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Updated: 12 मई, 2021 09:24 PM
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर'
  @siddhartarora2812
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TVF यानी The Viral fever वो मीडिया ग्रुप है जिन्हें भारत में सबसे पहले OTT series बनाने का गर्व हासिल है. जब भी OTT पर लो बजट में हाई क्वालिटी कंटेंट की बात होती है तब TVF का नाम ज़रूर लिया जाता है. कुछ ऐसी ही हाई एक्सपेक्टेशन और कंटेंट क्वालिटी के साथ मात्र 5 एपिसोड की एस्पिरेंट्स सीरीज का आख़िरी एपिसोड अभी हाल ही में यूट्यूब पर देखा गया है. कहानी आईएस अधिकारी अभिलाष (नवीन कस्तूरिया) से शुरु होती है जो दिल्ली बस अड्डे पर बोतल को किस तरह से फेंकना चाहिए, ये आम लोगों को बता रहा है. अगले ही सीन में श्वेतकेतु यानी एसके सर (अभिलाष थपलियाल) अपनी अकादमी के नये भर्ती छात्रों को upsc क्लियर करने के गुर सिखा रहे हैं. यहां एक अच्छी मोटिवेशनल स्पीच है. अब यहां तीसरे लड़के गुरी उर्फ़ गुरप्रीत (शिवांकित सिंह परिहार) की एंट्री होती है जो शादी करने वाला है. फ़्लैशबैक 2012 में ये तीनों बहुत अच्छे दोस्त होते हैं, तीनों UPSC की तैयारी कर रहे होते हैं और तीन में से दो का, अभिलाष और श्वेतकेतु का ये आख़िरी अटेम्प्ट होता है. अब इन पांच में से चार एपिसोड में इन तीनों (ख़ासकर अभिलाष) की ज़िन्दगी के प्रति एप्रोच, लेडी लक, बैकअप को लेकर स्ट्रगल और फेलियर्स और आपसी झगड़े की कहानी बयां होती है.

TVF, Aspirants, Entertainment, Web Series, Review, Amazon Prime, Cinemaहल्के फुल्के मनोरंजन के मद्देनजर टीवीएफ की एस्पिरेंट्स एक देखने लायक सीरीज है

इस कहानी की सबसे बड़ी ख़ूबी ये है कि इससे हर दूसरा स्टूडेंट और हर तीसरा आदमी कनेक्ट हो सकता है. लेकिन सबसे बड़ी ख़ामी ये है कि कहानी पूरी होते हुए भी अधूरी लगती है. प्री-मेन्स और लाइफ में लाइफ कितनी इम्पोर्टेन्ट है, ये बहुत अच्छे से बताया गया है और बहुत चतुराई से ये भी समझाने की कोशिश की गयी है कि प्री-मेन्स भी पार्ट ऑफ लाइफ ही हैं.

डायरेक्शन और स्क्रीनप्ले की बात करते हैं. इसमें क्रिएटर/लेखक अरुणभ कुमार, श्रेयांश पांडे और दीपेश हैं, वहीं डायरेक्शन अपूर्व सिंह कर्की के हाथ में है. अपूर्व काफी समय से TVF से जुड़े हुए हैं. उनका डायरेक्शन बेजोड़ है. नज़रिया बदलने से पहले चश्मा चेंज होना हो या ज़िन्दगी की अप्रोच चेंज करने के लिए सड़क के गड्ढे भरना, एक से बढ़कर एक मेटाफॉर क्रिएट किए हैं. हालाँकि इसका क्रेडिट राइटर्स को भी मिलना चाहिए. स्क्रीनप्ले बहुत टाइट बहुत कण्ट्रोल में है. लव स्टोरी वाला एंगल अच्छा डायरेक्ट तो हुआ ही है, साथ बैकग्राउंड में ‘हमने तुमको देखा, तुमने हमको...’ भी बहुत परफेक्ट बैठता है.फिर आधार कार्ड योजना का मनमोहन सरकार में ज़िक्र करना कहानी को और रेअस्लिस्टिक बनाता है.

डायलॉग्स की बात करूं तो ढेर सारे इमोशनल और मोटिवेशनल डायलॉग्स के अलावा दो एक ह्यूमरस डायलॉग्स भी हैं. मुलाहजा फरमाइए –

मुझे आईएएस इसलिए बनना है क्योंकि मैं चेंज ला सकता हूं, मुझे चेंज लाना है.'

'तूने उसकी आंखें देखीं?' – 'हां तो तुम भी आंखें ही देखो न चश्में में काहे घुसे हो?'

'और हमारा क्या? यहां दिल चाहता है चल रही है? मैं सैफ अली खान हूं?'

एक्टिंग की बात करूं तो –

नवीन पहले भी TVF पिचर्स में अपनी एक्टिंग का जलवा दिखा चुके हैं. यहां वो पहले से 21 नज़र आए हैं. अभिलाष ने समा बांध दिया है. उनके सारे डायलॉग (उपरोक्त मिलाकर) हंसने और सोचने के लिए एक साथ मजबूर कर देते हैं. शिवांकित अपने करैक्टर में जमे हैं. चाय टपरी पर उनकी मोटिवेशनल स्पीच बढ़िया है. नमिता दुबे भी अच्छी लगी हैं, उनका करैक्टर और बढ़ सकता था. मकान मालिक बने कुलजीत सिंह ज़बरदस्त कलाकार हैं, नोटिस हुए बगैर रह ही नहीं सकते हैं. नीतू झांझी ने भी एक सीन में बाजी मारी है.

नुपुर नागपाल का रोल ही लाउड था, उन्होंने ओवरलाउड प्ले किया है, अच्छा है.

सनी हिंदुजा इस सीरीज के श्रीकृष्ण हैं. हर एपिसोड में उनकी ज़रा सी प्रेजेंस भी जान डालने वाली साबित होती है. उनकी लास्ट स्पीच ज़बरदस्त है, पूरी सीरीज का सार है.

तुषार मलिक का बैकग्राउंड म्यूजिक बहुत अच्छा है. दोनों गाने और ख़ासकर ‘मोहभंग पिया’ का रिप्राइज़ वर्शन बहुत अच्छा बना है.

जॉर्ज जॉन और अर्जुन कुकरेती ने सिनेमटाग्रफी में भी बहुत मेहनत की है. चाय के प्याले को दिखाकर सार समझाना हो या नवीन के भीगते वक़्त बैकग्राउंड में खड़े सनी हिंदुजा को ब्लर करना, हर शॉट ज़बरदस्त है.

कुलमिलाकर एस्पिरेंट्स में आपको स्टूडेंट लाइफ से जुड़ी फाइनेंशियल तकलीफ छोड़कर हर समस्या मिल जायेगी. कुछ एक के समाधान भी मिल जायेंगे. ज़िन्दगी के प्रति नज़रिया चेंज होने के भी चांसेज़ हैं. लेकिन अगर आपका फोकस है कि ‘प्री और मेन्स क्लियर करने के लिए कैसी पढ़ाई करनी होती है’ ये दिखाया जायेगा, तो आप निराश हो सकते हैं. पढ़ना क्या है और कैसे पढ़ना है इसके लिए स्पोंसर्स ने अनअकैडमी एप बनाया है जिसका जमकर प्रचार आप इस सीरीज़ में देख सकते हैं. हां, ज़िन्दगी के इम्तेहान में कैसे पास होना है, इसका हल शायद इस सीरीज में मिल सकता है.

एक वाइटल कमी जो मुझे नज़र आई वो ये है कि – अंत हड़बड़ी में करने की बजाए करैक्टर अभिलाष के फ्लैशबैक के कुछ मिनट, इसपर फोकस किए जा सकते थे कि जब वो फेल हुआ तो उसे संभालने के लिए दोस्त थे, लेकिन जब वो पास हुआ तब ख़ुशी शेयर करने के लिए कोई भी नहीं था. रेटिंग – 9/10.

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लेखक

सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' सिद्धार्थ अरोड़ा 'सहर' @siddhartarora2812

लेखक पुस्तकों और फिल्मों की समीक्षा करते हैं और इन्हें समसामयिक विषयों पर लिखना भी पसंद है.

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