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Updated: 04 नवम्बर, 2019 04:14 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
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बेटियों की शादी करके लोग गंगा नहाने जाते हैं. इसके पीछे वजह जो भी हो लेकिन गंगा नहाने का मतलब यही होता है कि शादी करके सिर से बोझ उतर गया. पूरे जीवन बेटी की शादी के लिए जोड़-तोड़ करने वाले माता-पिता बेटी को ब्याह कर सकून की नींद ले पाते हैं. लेकिन क्या हो जब बेटी घर लौट आए? उसकी शादी नाकाम हो जाए?

हां ये वास्तव में किसी भी माता-पिता के लिए बड़ी अजीब स्थिति होती है जब बेटी अपनी शादी तोड़कर घर आ जाती है. वो जाएगी भी कहां. माता-पिता का घर ही तो अब तक उसका घर था. जब कोई शादी टूटती है (कारण जो भी हो) तो बेटियों के लिए सबसे सुरक्षित जगह अपने माता-पिता का घर ही होता है. लेकिन टूटी हुई शादी का तमगा लेकर लौटने वाली बेटियों के लिए अब उनका मायका उतनी खुशी और प्यार की गर्माहट नहीं देता जितनी कि शादी से पहले दिया करता था.

वीग्ाशादी के बाद मायके लौटी बेटी के प्रति घरवालों को व्यवहार क्यों बदल जाता है?

तलाक के बाद मायकेवालों का व्यवहार बदल जाता है

ऐसा नहीं है कि सभी बेटियों के साथ ऐसा होता हो. बहुत से माता-पिता और घरवालों का व्यवहार बेटी के लिए बहुत अच्छा भी होता है. लेकिन ज्यादातर मामलों में यही देखा जाता है कि तलाकशुदा बेटी का वापस अपने घर पर आना मायके वालों को अच्छा नहीं लगता. माता-पिता के लिए वो बेटी मजबूरी की तरह होती है. और अगर भाई भी हैं तो भाई-भाभियों को अलग तरह की insecurity घर कर जाती है. ज्यादातर लोगों को प्रॉपर्टी की चिंता होनी शुरू हो जाती है, कि आगे क्या होगा. बहन ने हिस्सा मांग लिया तो?? आधी से ज्यादा समस्याएं तो इसी बात को लेकर ही होती हैं.

सभी बातों से इतर, बेटी के टूटे रिश्ते को लेकर खुद बेटी को ही दोष दिया जाता है. उसे गाहे-बगाहे ये याद दिलाया जाता है कि उसी की वजह से शादी टूटी होगी. और नहीं, तो उसे ही समझौता करने के लिए कहा जाता है. माताएं तो इमोशनल होकर बेटी को ये बताती हैं कि बेटी का घर उसका ससुराल ही होता है. डोली जहां जाती है अर्थी भी वहीं से उठती है. पति के साथ समझौता करना ही होता है, पति मारता भी हो तो चुपचाप सह लो वगैरह-वगैरह. यानी लड़के की गलती मानकर बेटी को हक से ये कहने वाले कम ही हैं कि 'तू फिक्र न कर, तेरा बाप अभी जिंदा है'.

कुछ मामले विचलित करते हैं

आज एक खबर से मन बड़ा आहत हुआ. दिल्ली की 47 साल की एक नौकरीपेशा महिला को अपनी 81 वर्ष की मां की हत्या करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. नीरू नाम की ये महिला सड़क पर अचेत और घायल अवस्था में मिली थी. पुलिस ने पूछताछ की तो उसने बताया कि मां से झगड़ा हो गया और मां ने उसपर रॉड से हमला किया और गुस्से में नीरू ने भी मां को उसी रॉड से मारा, जिससे मां की मौत हो गई. 13 साल पहले नीरू तलाक लेकर अपनी मां के साथ ही रह रही थी. लेकिन मां उसे हमेशा अपनी नाकाम शादी को लेकर ताने दिया करती थी. जिसको लेकर उनमें अकसर झगड़ा होता था.  

ये खबर पढ़कर नीरू और नीरू की मां को लेकर अनेक सवाल मन में आते हैं. नीरू किस अवस्था में होगी, उसके मन में कितना गुस्सा रहा होगा कि उसने अपनी मां पर ही हाथ उठाया और सिर्फ हाथ ही नहीं उसे मौत तक पहुंचा दिया. लेकिन यहां ये भी नहीं भूलना चाहिए कि एक 47 साल की तलाकशुदा महिला अपनी बूढ़ी मां के साथ अकेली रहती थी, जिसके पास कोई नहीं था जिससे वो अपने मन की बात करती हो, सिवाए मां के. लेकिन मां तलाक के लिए बेटी को ही जिम्मेदार ठहराकर उसे ताने देती रहती. वो मां, जिससे किसी भी बेटी को पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा उम्मीद होती है साथ देने की. लेकिन मां ही बेटी के दर्द को न समझ सकी.

womanतलाकशुदा महिलाओं की मानसिक स्थिति पर भी गौर करने की जरूरत है

दोष नीरू की मां को भी कैसे दे सकते हैं क्योंकि वो भी तो समाज के ही नियमों को निभा रही थीं. हमारा समाज ही ऐसा है. हमेशा शादी निभाने को बोझ महिलाओं के कांधे पर ही डाला जाता रहा है. उन्हें ससुराल में एडजस्ट करने की सीख माएं ही देती हैं. मां ये कभी नहीं कहतीं कि बेटी ससुराल जाकर सिर उठा कर रहना, वो हमेशा बेटियों को सिर और आंखे दोनों झुकाए रहने की नसीहत ही देती आई हैं. और शादी टूटने की अहम वजह भले ही पुरुष क्यों न हो लेकिन दबाव हमेशा बेटी पर ही डाला जाता है कि 'एडजस्ट करो, वही तुम्हारा घर है.'

बेटी पहले ही रिश्ता टूटने और आने वाले कल को लेकर दुखी होती है. ऐसे में उसे संबल देने वाले ही उसे ताने दें, दूसरी शादी के लिए दबाव बनाएं, अपना व्यवहार बदल लें तो वो बेटी के मानसिक स्वास्थ्य के लिए बहुत खराब होता है. और कभी-कभी ऐसी विकराल स्थिति भी पैदा होती है जो नीरू के साथ हुई. हालांकि जो नीरू ने किया वो किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है. इस घटना ने न सिर्फ इंसानियत बल्कि मां-बेटी के रिश्ते को भी शर्मसार किया है. लेकिन इस घटना ने समाज को स्वचिंतन करने की वजह भी दी है. कि आखिर एक टूटे रिश्ते के लिए जिम्मेदार सिर्फ बेटी की क्यों ठहराई जाए. इसमें उसका क्या दोष? क्या परेशान बेटी के भविष्य की चिंता सिर्फ उसकी दूसरी शादी करके ही खत्म हो सकती है? क्या उसे आत्मनिर्भर बनाने के बारे में नहीं सोचा जाना चाहिए? क्या वास्तव में बेटी मायके आकर प्रॉपर्टी में हिस्सा चाहती है या फिर अपने परिवार वालों का प्यार और साथ? विचार कीजिए...

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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