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Updated: 26 सितम्बर, 2018 05:53 PM
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किसी महिला के लिए मां बनना गौरव की बात मानी जाती है, कहा जाता है कि जब तक वो मां नहीं बन जाती उसे अधूरा माना जाता है, लेकिन क्या समाज का ये नियम बकवास नहीं है? अगर कोई औरत मां बनना ही ना चाहे तो? अब इसका जवाब कई मॉर्डन लोग दे सकते हैं कि आजकल की महिलाएं तो बर्थ कंट्रोल के कई तरीके अपना सकती हैं. पर क्या किसी ने सोचने की कोशिश की कि इसकी जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं को ही दी जाती है.

हमारे देश में अभी भी कंडोम को एक अपवाद माना जाता है और फैमिली प्लानिंग की पूरी जिम्मेदारी महिलाओं पर होती है. अरे हमारे देश में ही क्यों पूरी दुनिया में अगर नजर दौड़ाएंगे तो कई देश अबॉर्शन को गैरकानूनी मानते हैं और वहां भी मर्द फैमिली प्लानिंग की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते. ट्विटर पर आए दिन ऐसे देशों की महिलाएं अपने हक के लिए लड़की हैं और सोशल कैंपेन का हिस्सा बनती हैं. आयरलैंड में कुछ समय पहले एक ऐसा मामला सामने आया था जहां एक भारतीय मूल डेंटिस्ट सविता हल्लपनावर की मौत सिर्फ इसलिए हो गई थी क्योंकि उन्हें अबॉर्शन की इजाजत नहीं दी गई थी और प्रेग्नेंसी के 17वें हफ्ते में उन्हें इसके कारण सेप्टिक हो गया था.

प्रेग्नेंसी, महिलाएं, भारत, बच्चा, सोशल मीडिया, अबॉर्शनकई देशों में अबॉर्शन से जुड़े नियम महिलाओं को उनसे और बच्चे से जुड़ा कोई फैसला नहीं लेने देते

अगर कोई अनचाही प्रेग्नेंसी हो भी जाती है तो भी सारा दोष महिलाओं के सिर मढ़ दिया जाता है पर क्या कोई ये सोचता है कि इसके लिए पुरुष ज्यादा जिम्मेदार हैं? न्यूयॉर्क टाइम्स की बेस्ट सेलिंग ऑथर और ब्लॉगर गैब्रियल ब्लेयर ने अपने ट्विटर अकाउंट पर 40 से भी ज्यादा ट्वीट कर इस बारे बात की और उनकी ट्वीट्स अब वायरल हो गई हैं. इस स्टोरी को लिखने तक उनके ट्विटर थ्रेड को 73 हजार से भी ज्यादा बार शेयर किया जा चुका था.

गैब्रियल के अनुसार अनचाही प्रेग्नेंसी के 100% जिम्मेदार पुरुष होते हैं और पुरुषों के लिए इस बात को मानना बहुत मुश्किल होता है. 6 बच्चों की मां गैब्रियल ये जानती हैं कि अनचाही प्रेग्नेंसी और अबॉर्शन की जद्दोजहद क्या होती है.

कुछ भी कहने से पहले एक बार उनकी ट्वीट्स पर नजर डाली लेनी चाहिए.

जैसे बच्चों के प्रेम को सिर्फ एक मा समझ सकती है वैसे ही अनचाही प्रेग्नेंसी और अबॉर्शन का दर्द क्या होता है ये भी एक मां ही समझ सकती है.

और वाकई अगर अबॉर्शन को लेकर कानून बनाया गया है तो यकीनन उसे रोकने का सबसे अच्छा तरीका है अनचाही प्रेग्नेंसी को रोकना.

प्रेग्नेंसी के लिए दोनों जिम्मेदार हैं, लेकिन अनचाही प्रेग्नेंसी के लिए और उसके बाद अबॉर्शन की तकलीफ के लिए सिर्फ औरतों को जिम्मेदार ठहराना कहां तक सही है?

और वाकई साल के सिर्फ 24 दिनों के लिए भी महिलाओं को दोष दिया जाता है.

अगर पुरुष बच्चा नहीं चाहते या ये नहीं चाहते हैं कि महिलाएं अबॉर्शन की प्रक्रिया से गुजरें तो उन्हें सावधानी नहीं रखनी चाहिए क्या?

महिलाओं के शरीर पर बर्थ कंट्रोल के तरीके क्या असर डालते हैं ये तो मेडिकल साइंस भी समझती है, लेकिन शायद महिलाओं के साथ रह रहे पुरुष नहीं समझ सकते.

सिर्फ इसलिए कि पुरुषों के ईगो को ये गलत लगता है, या उन्हें ये लगता है कि वो ये सब झंझट क्यों पालें इसके लिए वो महिलाओं को बीमारियों के मुंह में ढकेल देते हैं.

वाकई इसे देखकर तो लगता है जैसे सोसाइटी को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि महिलाओं के साथ कुछ भी हो, क्योंकि हमारा समाज तो पुरुषों के लिए बना हुआ है न.

गैब्रियल की इन ट्वीट्स के अलावा, और भी कई ट्वीट्स हैं जिन्हें इस ट्विटर थ्रेड पर जाकर पढ़ा जा सकता है. इन्हें देखकर शायद ये आसानी से समझा जा सकता है कि प्रेग्नेंसी को लेकर जितनी भी समस्याएं हैं वो सिर्फ और सिर्फ महिलाओं को ही झेलनी पड़ती हैं. पुरुषों के लिए अनचाही प्रेग्नेंसी को रोकने का तरीका आसान है और उनका सिर्फ कंडोम का इस्तेमाल करना ही महिलाओं को कई बीमारियों से बचा सकता है. और अगर देखा जाए तो महिलाओं का प्रेग्नेंसी कंट्रोल करने के तरीके भी आसानी से नहीं उपलब्ध हो पाते. इसके लिए कम से कम एक बार तो किसी महिला को डॉक्टर के पास जाना होता है, दवाइयां जो ली जाती हैं वो भी आसानी से नहीं मिलती और न ही सस्ती होती हैं.

अगर ऑपरेशन करवाने की बात हो तब तो ये और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है. महिलाओं के शरीर के साथ खिलवाड़ करने की आज़ादी सिर्फ इसलिए चाहिए क्योंकि पुरुष साथी खुद कंडोम खरीद कर उसे इस्तेमाल नहीं कर सकता है ये तो बहुत गलत है.

इसके बाद भी अगर प्रेग्नेंसी हो जाए तो दुनिया भर के नियम और संविधान के अनुसार महिलाओं को ये तय करने का हक पूरी तरह से नहीं है कि वो ये बच्चा चाहती हैं या नहीं. यहां तक कि अगर रेप से कोई बच्चा होता है तो भी भारत और अन्य कई देशों में अबॉर्शन कानून ये इजाजत महिलाओं को नहीं देता कि वो खुद ये तय कर सकें कि उन्हें बच्चा चाहिए या नहीं.

कुदरत ने महिलाओं को बच्चे पैदा करने का हक दिया है, लेकिन असल मायने में उन्हें ये हक नहीं कि वो अपनी जिंदगी और उनसे जुड़ी किसी जिंदगी का फैसला ले सकें. गैब्रियल के ट्वीट ये बताते हैं कि ये सिर्फ भारत की समस्या नहीं, पुरुषों को लेकर ये तो पूरी दुनिया की समस्या है. जहां कुछ पुरुष इस बात को समझते हैं वहीं अधिकतर के लिए तो ये उनकी मर्दानगी को चुनौती होती है. अगर इन ट्वीट्स को देखकर किसी को शर्म आ रही है या वो इस बारे में बात करने से कतरा रहा है तो यही वो गलती है जो गैब्रियल ने बताई है. ये शर्मिंदगी महसूस करने की बात अगर लोग समझते हैं तो ये गलत है.

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