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Updated: 27 दिसम्बर, 2022 06:58 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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टिंकू की मम्मी को अगर एक घंटे के लिए मार्केट भी जाना रहता है तो वे घर के सारे काम निपटाने के बाद ही जाती हैं. फिर भी उनके दिमाग में घर की चिंता लगी रहती है. इसी बीच 2, 4 फोन तो आ ही जाते हैं. आपको क्या लगता है कि, घर की महिला के लिए हॉलीडे पर जाना इतना आसान है? क्या वह खुद को पहाड़ों की वादियों या समुंद्र किनारे देख पाती है?

असल में एक हाउसवाइफ के लिए घर का सामान लाना या सब्जी खरीदना ही उसका घूमना हो जाता है. इससे अधिक वह सोच भी नहीं पाती है. अरे जब हफ्ते में उसे एक दिन घर के कामों से छुट्टी नहीं मिल पाती, ऐसे में उसका हॉलीडे पर जाना आसान कैसे हो सकता है? देखिए जब एक पत्नी हॉलीडे पर जाने का सोचती है तो क्या होता है?

परिवार की व्‍यस्‍तता

घर की महिला के ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी होती है. वह किसी की पत्नी, किसी की मां तो किसी की बहू होती है. उसे सबसे पहले अपना घर देखना होता है. कहीं जाने से पहले उसे अपने बच्चों और सास-सुसर के बारे में सोचना होता है. वह कहीं घूमने जाने के लिए पति पर निर्भर रहती है. एक समय के बाद वह घूमने जाने के ख्याल ही अपने मन से निकाल देती है. कई बार तो ऐसा होता है कि पति ही डिसाइड करते हैं कि घूमने कहां जाना है. कई बार हॉलीडे की प्लानिंग इसलिए टल जाती है, क्योंकि बच्चे का स्कूल होता है. पति को ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलती है. कई बार पत्नी यह सोचकर अपना मन मार लेती है कि मेरे घर पर ना रहने पर सास-ससुर की देखभाल कौन करेगा? उसे खुद से जुड़े लोगों के टाइमटेबल के हिसाब से अपना टाइम सेट करना पड़ता है. वह घर में इतना बंध जाती है कि उसका घर से एक दिन भी बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है. इस तरह उसका हॉलीडे पर जाने के सपना टलता रहता है.

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फिजूलखर्ची

चलो, मान लिया कि जैसे-तैसे वह सारी व्यवस्था कर के खुद को दो तीन दिन के लिए फ्री कर लेती है. तो उसे लगता है कि घूमने जाने का मतलब फिजूलखर्ची है. मतलब आने-जाने का किराया, होटल का बिल, बाहर खाने में पैसा तो लगेगा. यही खर्चा उसे फिजूल लगता है. कई बार तो परिवार के बड़े मना भी कर देते हैं. उन्हें लगता है कि इतने पैसे में तो घऱ का कोई नया सामान आ जाएगा. इससे बढ़ियां तो घर में फिल्म लगा कर देख लें, और यहां पॉपकॉर्न के पैसे भी नहीं लगेंगे. बस क्या हॉलीडे पर जाना कैंसिल.

मिलेगा क्‍या

चलो, अगर फिजूलखर्ची को इग्नोर भी कर दिया जाए तो उस हॉलीडे पर जाकर मिलेगा क्या? वैसे भी पत्नी भले ही घर से दूर चली जाए मगर उसका दिमाग घर पर ही लगा रहता है. फायदा क्या? पहले पैंकिग में परेशान होवो फिर सफर में. इतना करने के बाद भी सिर्फ आना और जाना. मतलब वहां ना तो रिश्तेदार से मुलाकात होगी ना जान-पहचान का कोई मिलेगा. एक बार को माता का मंदिर होता तो बात अलग होती. कम से कम मां का आशीर्वाद तो मिलता. बिना मतलब के क्यों परेशान होना, इससे अच्छा तो मायके से घूम कर आ सकती हूं.

कई डर

सफर में जाने के नाम पर सबसे पहले बात आती है बात सुरक्षा की. जाने से पहले ही उस जगह के बारे में पूरी जानकारी जुटा ली जाती है. पूरी कोशिश की जाती है कि किसी जान पहचान वाले के जरिए ही होटल बुक किया जाए. कहां-कहां जाना है, कौन सी जगह सुरक्षित है इसके कुंडली पहले ही खंगाल ली जाती है. सफर में पत्नियों की तीसरी आंख वैसे ही खुल जाती है, वे हर इंसान को शक की निहागों से देखती हैं. तो अगर उस जगह के बारे में जरा सी भी कोई बुरी बात पता चली तो जाना कैसिंल.

लौट के यहीं आना है

जाने से पहले ही पत्नियों के दिमाग में यह बात आ जाती है कि दो दिन के लिए जा रहे हैं फिर लौट कर यहीं आना है. उन्हें जाने से पहले ही आने की तैयारी करनी होती हैं. वे दो दिन बाद के टाइम को पहले ही अपने दिमाग में फिक्स कर लेती हैं. उन्हें इतनी टेंशन हो जाती, यही सोचकर वह जल्दी घर छोड़कर कहीं जाना नहीं चाहती हैं.

एक पत्नी अपने घर के कामों में इतनी उलझी हुई होती है कि उसे मायके गए हुए एक-एक साल हो जाते हैं. ऐसा नहीं है कि उसका मन नहीं करता मगर वह अपने बारे में सोचने से पहले सबके बारे में सोचती है. वह खुद से पहले अपने घरवालों को रखती है. वह हर चीज में खुद से कंप्रोमाइज करना चाहती है, मगर अपने परिवार को परेशान नहीं देख सकती है. उसे लगता है कि उसके घरवाले अच्छे से रहे, यही उसके लिए काफी है...बाकी घूमने में क्या रखा है? उसके लिए उसका घर ही सबसे अच्छी जगह है, खासकर उसकी रसोई जहां उसका दिल बसता है. उसके लिए उसका घर-परिवार ज्यादा जरूरी है ना कि उसका हॉलीडे ट्रिप...

लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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