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Updated: 28 नवम्बर, 2016 04:10 PM
रमेश ठाकुर
रमेश ठाकुर
  @ramesh.thakur.7399
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जीवन की प्राणदायिनी हवा इस समय आमजन के लिए मौत वाली हवा बनी हुई है. वायु प्रदूषण में घुल रहे जहर को कम करने के लिए हर जतन किए जा रहे हैं. वातारण सांस लेने लायक हो इसके लिए स्थिति को नियंत्रित करने की दिशा में कठोर कार्यवाही करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों की बिक्री और खरीद पर पूरी तरह से प्रतिबंध का फरमान जारी किया है. प्रदूषण को रोकने के लिए जब सरकारी तंत्र पूरी तरह से फेल हो गया तब अदालत को ही जनहित का ख्याल रखते हुए यह फैसला लेना पड़ा. दिल्ली-एनसीआर की फिजा पिछले कुछ समय से बदरंग है. दिल्ली में सांस लेना भी दूभर हो रहा है. स्थिति को सुधारने में दिल्ली सरकार एकदम विफल हो गई है. सांस के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है. घुटनकारी माहौल के चलते लोग घरों से भी नहीं निकल रहे.

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 सांकेतिक फोटो

सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक के लिए हर तरह के ज्वलनशील पटाखों के विक्रेताओं के लाइसेंस निलंबित करने का आदेश दिया हैं. स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि वायु प्रदूषण के मद्देनजर दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के स्कूलों को भी पिछले दिनों बंद करना पड़ा. ताकि इसकी चपेट में नौनिहाल न आ सकें. खैर, अब सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों की बिक्री पर तत्काल प्रभाव से पाबंदी लगा दी है. इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने पटाखा विक्रेताओं के लाइसेंस निलंबित करने के साथ ही कोई नया लाइसेंस नहीं देने का भी सख्त आदेश केंद्र सरकार को दिया है. सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश तीन छोटे बच्चों की ओर से उनके पिताओं द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया है. दरअसल इन बच्चों ने याचिका के जरिए पटाखों की बिक्री पर पाबंदी लगाने की मांग की थी.

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दिल्ली के अलावा पूरे देश में ऐसे पर्दाथों पर रोक लगा देनी चाहिए जिससे वायु में जहर घुलता हो. कोयले से बिजली बनाने वाले तापीय बिजलीघरों पर भी बैन लगाने चाहिए, क्योंकि इससे निकले वाला धुंआ हवा में जहर घोलने का काम करता है. इसके अलावा डीजल युक्त वाहनों पर तुरंत रोक लगनी चाहिए. जहरीली गैसों पर प्रतिबंध लगे. वाहन पंजीकरण प्रक्रिया को और जटिल करने की आवश्यकता है. सरकार को मोटर वाहन अधिनियम में सुधार कर पूरे भारत एक से ज्यादा वाहन लेने पर रोक लगा देनी चाहिए. हालांकि ऐसा करना सरकार के लिए मुनासिब नहीं होगा.

2002 में सुनीता नारायण की संस्था ने जब दिल्ली में चलने वाली सभी बसों में सीएनजी की मांग की तो चारों ओर हो-हल्ला मच गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए तत्काल प्रभार से सभी बसें सीएनजी से चलने का फरमान जारी किया. इसके बाद प्रदूषण में काफी फर्क देखने को मिला था. दिल्ली में प्रदूषण कम करने को लेकर भी सुनीता नारायण ने दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार को एक सुझाव वाला मसौदा सौंपा है. अगर उस पर अमल हो जाए तो काफी हद तक स्थिति में सुधार आ सकता है.

प्रदूषण की चपेट में न आएं, इसके लिए लोग अपने चेहरे पर मास्क लगाकर घरों से निकल रहे हैं. विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं कि अगर स्थिति जल्द नहीं सुधरी तो दिल्ली-एनसीआर भयावह स्थिति सहने को तैयार रहे. दिल्ली का मानवीय जीवन विशैली धुंध, प्रदूषण वाली जहरीली हवाओं व दुष्प्रभावी वातावरण से बेहाल है. सांस लेने के लिहाज से इस समय जीवन की प्राणदायिनी हवा आमजन के लिए मौत वाली हवा बनीं हुई है. यह स्थिति पिछले कुछ सालों से लगातार जोर पकड़ रही है. बावजूद इसके सरकारी तंत्र बेखबर है. सरकार आसपास के किसानों को दोषी ठहरा रही है कि उनके पराली जलाने से यह सब हो रहा है. जबकि ऐसा है नहीं! वास्तिवक स्थिति कुछ और ही है.

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 सांकेतिक फोटो

पटाखों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर लिया है। साफ हवा में सांस लेने के अधिकार की मांग के तहत दायर याचिका में सुप्रीम कोर्ट से पटाखों पर पाबंदी लगाने के निर्देश देने की गुहार की गई थी। सचमुच प्रदूषण से दिल्ली और आसपास के इलाकों की हालत बहुत खराब है. यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि दिल्ली में प्रदूषण काफी खतरनाक स्तर तक पहुंच चुका है. इसके अलावा और भी कई चीजें हैं जो धीरे-धीरे सामने आ रही हैं. पर्यावरण संबंधी तमाम रिपोर्टों को देखा जाए तो वहां की आबोहवा में जहर घुल रहा है. प्रदूषण का खतरा छोटे-बड़े स्तर पर हर जगह है. दिल्ली के मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्वागत योग्य कदम है. अब सरकार को भी उन आदेशों पर सख्ती से अमल करना चाहिए.

देखा जाए तो हवा को प्रदूषित करने में बहुतायत संख्या में हो रहे वाहनों का इजाफा और मशीनरी में बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईंधन का प्रयोग करना मुख्य कारण सामने आ रहा है.

उत्तर भारत में इस समय खतरनाक सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, ओजोन, शीशा, आर्सेनिक, निकेल, बेंजीन, अमोनिया, बेंजोपाइरिन, डीजल पार्टिकुलेट मैटर (डीपीएम) आदि प्रदूषक हवा में घुल रहे हैं. किन कारणों से शहर में प्रदूषण कम हो सकता है, इस संबंध में राज्य सरकारों व केंद्र सरकार को कई सामाजिक संस्थाएं अवगत भी करा चुकी हैं. बावजूद इसके प्रदूषण को रोकने के प्रयास नाकाफी हैं. सच तो यह है कि कोई भी प्रदूषण को रोकने के लिए इच्छाशक्ति नहीं दिखा रहा.  

सुप्रीम कोर्ट के फरमान के बाद अच्छी बात है कि अब कुछ हद तक दिल्ली में प्रदूषण रोकने के लिए हर तरफ से कोशिश हो रही है. इसमें कहीं न कहीं सरकारी नियंत्रण के अलावा स्व-प्रेरणा की भी जरूरत है. दिल्ली की परिस्थितियों को देखते हुए यह सही कदम कहा जा सकता है. लंबे समय से दिल्ली में प्रदूषण की समस्याएं यथावत हैं. अदालत के इस कदम को व्यापक दृष्टि से देखा जाना चाहिए. केवल दिल्ली ही नहीं देश के अनेक इलाकों में पर्यावरण की स्थितियां ठीक नहीं हैं. इन इलाकों में भी प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ा है, लेकिन इधर किसी का ध्यान नहीं है. पटाखों के अलावा वाहनों, विशेषकर ट्रकों की आवाजाही से भी प्रदूषण काफी बढ़ा है. नतीजतन सांस लेने में तकलीफ के साथ ही फेफड़ों संबंधी बीमारियां बड़े. पैमाने पर पैर पसार रही हैं.

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गौरतलब है कि जिस जगह का प्रदूषण 2 हजार माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पर पहुंच जाए, जो तय सुरक्षा मानकों से 20 गुना ज्यादा हो, वहां का जीवन असामान्य हो जाता है. हिंदुस्तान में फैली ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के मालिकों को अपनी कमाई के अलावा कुछ नहीं दिखता. पर्यावरण की उन्हें जरा भी चिंता नहीं. आबोहवा को प्रदूषित करने में इनका बहुत बड़ा योगदान रहता है. यह सब सरकार की मिलीभगत से होता है. सरकार इन पर लगाम लगाने में आज भी विफल हैं. हवा में इनके वाहनों से जो धुआं निकल रहा है उसमें इस समय सल्फर की मात्रा 50 पीपीएम के आसपास है. इससे ह्रदय, सांस, अस्थमा व फेफड़ों संबंधी बीमारियां पैदा हो रही हैं. पेट्रोल व डीजल के वाहनों में पीएम कण ज्यादा उत्सर्जित हैं.

अदालत ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इन पटाखों में प्रयुक्त सामग्री के दुष्प्रभावों का अध्ययन करके छह महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करने का निर्देश भी दिया है. पटाखों की बिक्री, खरीद और उनके भंडारण के लाइसेंस तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का मतलब राजधानी और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में इन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना ही है. सवाल उठता है कि क्या अदालत का यह फरमान ठीक से अमल में आएगा. शक इस बात का है कि कहीं दुकानदार पटाखों की ब्रिकी का दूसरा रास्ता न खोज लें. अगर ऐसा होता है तो उसमें प्रत्यक्षरूप से भागीदारी सरकार की मानी जाएगी.

किन कारणों से प्रदूषण कम हो सकता है इस बात का पता सरकार को है लेकिन फिर भी रोकने में नाकाम हैं. दिखावे के लिए प्रदूषण को रोकने के प्रयास किए जाते हैं. सच तो यह है कि कोई भी प्रदूषण को रोकने के लिए इच्छाशक्ति नहीं दिखा रहा. सुप्रीम कोर्ट का के फरमान पर अगर केंद्र सरकार सच्चाई से अमल कर ले, तो वातावरण की आबोहवा कुछ और ही हो जाएगी.

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