TikTok को इस बार एक मां ने खतरे में डाल दिया है
जी हां, मौतों के आंकड़े, और होने वाले क्राइम के आंकड़े शायद सरकार देख नहीं पा रही थी, इसलिए इस ओर भी सरकार का ध्यान आकर्षित करना जरूरी था. आश्चर्य होता है जब हम अखबारों में टिकटॉक (TikTok) का नाम क्राइम की खबरों में देखते हैं.
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पिछली बार जब TikTok पर बैन लगा था, मैं बहुत खुश थी. क्योंकि बेलगाम हो रहे Tik Tok पर लगाम लगाने की यही एक सूरत बची थी. लेकिन ये खुशी कुछ ही दिन की थी. आज टिकटॉक धड़ल्ले से चल रहा है. और लोगों की दीवानगी किसी भी रूप में कम नहीं हुई है.
इसी साल अप्रेल में TikTok पर पोर्नोग्राफी को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए थे और इसे बैन करने की आवाजें भी उठी थीं. कोर्ट ने माना भी था कि ये ऐप बच्चों पर बुरा असर डालता है, पॉर्नोग्राफी को बढ़ावा दे रहा है और यूजर्स को यौन हिंसक बना रहा है. बैन लगाया भी गया, लेकिन कुछ ही समय बाद इस शर्त पर हटा भी लिया गया कि ऐप पर अश्लील वीडियो अपलोड नहीं किया जाएगा.
टिक टॉक को लेकर अब भी अभिभावक संतुष्ट नहीं हैं
अब अश्लीलता का स्तर सबका अलग अलग होता है. कितना अश्लील हो कि कंटेट बुरा लगे, और कितना अश्लील हो कि कंटेंट बुरा न लगे ये अपने-अपने विवेक पर निर्भर करता है. छोटी-छोटी लड़कियां फिल्मी गानों पर तरह तरह के फेशियल एक्सप्रेशन दे रही हैं, इश्क मुहब्बत की शायरी कर रही हैं. बालों के छल्ले दिखा रही हैं तो कभी आंख मारने के चैलेंज में पार्टिसिपेट कर रही हैं. इसे भले ही आप अश्लीलता न कहें लेकिन ये सभ्य भी तो नहीं है. बच्चों से तो कम से कम ये उम्मीद नहीं की जाती.
और तीन बच्चों की एक मां इस बात पर जरा भी भरोसा नहीं करती कि अब टिकटॉक पाक-साफ हो गया है. इसलिए मुंबई की रहने वाली इस महिला हिना दरवेश ने टिकटॉक को दोबारा बैन किए जाने की जनहित याचिका दायर की है. आरोप लगाया गया है कि ये एप युवाओं को प्रभावित कर रहा है. खासकर बच्चों को, बच्चे इसके एडिक्ट बन रहे हैं और ये उनके मानसिक स्वास्थ पर प्रभाव डाल रहा है. महिला का आरोप है कि ये एप धार्मिक समूहों के बीच घृणा, असंतोष और दुश्मनी पैदा कर रहा है और देश की विविधता को प्रभावित करता है. इसके साथ ही हिना ने सरकार से मांग की है कि वो टिकटॉक की वजह से होने वाली मौतों के आंकड़े भी उपलब्ध करवाएं.
जी हां, मौतों के आंकड़े, और होने वाले क्राइम के आंकड़े शायद सरकार देख नहीं पा रही थी, इसलिए इस ओर भी सरकार का ध्यान आकर्षित करना जरूरी था. आश्चर्य होता है जब हम अखबारों में टिकटॉक का नाम क्राइम की खबरों में देखते हैं. टिकटॉक लोगों से अपराध करवा रहा है और लोगों की संवेदनाओं को कम कर रहा है. जरा देखिए खबरों की ये हेडलाइन जो हाल ही में आई हैं. क्या इन्हें देखकर ये नहीं लगता कि सरकार को अपनी आंखों पर बंधी पट्टी हटा लेने की जरूरत है.
टिकटॉक पर दोबारा इस तरह के बैन की मांग ये बताती है कि सरकार ने सिवाए खानापूर्ति के कुछ नहीं किया. अश्लीलता को आधार बनाते हुए टिकटॉक ने करोड़ों ऐसे वीडियो डिलीट किए जो भारतीय मानकों के हिसाब से ठीक नहीं थे. लेकिन क्या इससे फर्क पड़ा? पोर्न को सेंसर कर देने से भी लोगों का टिकटॉक प्रेम कम नहीं हुआ और बच्चे अभी भी टिकटॉक पर समय बर्बाद कर ही रहे हैं, इसके अलावा कुछ सोच नहीं पा रहे.
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