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Updated: 29 दिसम्बर, 2016 04:36 PM
कुमारी स्नेहा
कुमारी स्नेहा
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हमारा देश फिलहाल धर्म संकट से गुजर रहा है. यह संकट इतना बड़ा है कि इसे टाला ही नहीं जा सकता. इस पर हो हल्ला मचाए बिना तो रहा ही नहीं जा सकता. फिलहाल संकट यह है कि भारत की मशहूर अदाकारा करीना कपूर और उनके पति व नवाब सैफ अली खान ने अपने बेटे का नाम चुन्नु, मन्नु न रखकर तैमूर रख दिया है और क्रिकेटर शमी की पत्नी को तस्वीरों के माध्यम से लोगों ने खुल बांह वाले गाउन में देख लिया है.

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मोहम्मद शमी की पत्नी के इन कपड़ों पर लोगों ने आपत्ति दर्ज कराई थी

भले ही शेक्सपियर यह कहकर चले गए हों कि नाम में क्या रखा है लेकिन गर वे जिंदा होते तो देख पाते कि नाम में कितनी ताकत है. वह महज कुछ घंटे के बच्चे को विवाद के केंद्र में खड़ा करने की क्षमता रखता है. बात अब कपड़ों की करें तो यह हमेशा ही औरतों के मामले में विवादास्पद रहा है. इतना ज्यादा कि यह धर्म को खतरे में डाल सकता है. कुल मिलाजुला कर बात यह है कि करीना कपूर के कारण हिंदू धर्म खतरे में है और शमी की वजह से इस्लाम!

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 सैफ और करीना ने अपने बेटे का नाम तैमूर रख दिया तो सोशल मीडिया पर बवाल मच गया

गौरतलब है कि ये दोनों बातें इतनी मामूली हैं कि जिसके कारण धर्म को खतरे में बताना एक भौंडे मजाक के अलावा कुछ नहीं लगता. यह हमारे समय की अजीबोगरीब विडंबना है कि जब इंसानी वजूद और उसके जज्बात पर सबसे ज्यादा खतरा मंडरा रहा हो, ठीक उसी समय में हम इसकी रक्षा के विपरीत धर्म की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध नजर आते हैं. जबकि उपरोक्त इन दोनों बातों का धर्म से तो दूर की कहें सार्वजनिक जीवन में भी कोई लेना-देना नहीं है.

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अजीब तो यह लगता है कि जो लोग हर समय इसी तथाकथित धर्म की दुहाई देते रहते हैं. तो उन्हें इसी धर्म के बारे में कितनी जानकारी होती है यह एक अहम सवाल है. आज तक मैंने तो महिलाओं के ड्रेस कोड के ऊपर लिखी गई कोई धार्मिक किताब नहीं पढ़ी है. मुझे यह भी नहीं मालूम कि किस धार्मिक किताब में इंची-टेप से कपड़ों की लंबाई और चौड़ाई तय की गई हो. अगर कहीं ऐसा है तो वह सरासर गलत है और ढोंग से अधिक कुछ भी नहीं है.

सोशल साइट्स पर लोगों को लानतें भेजने वाले लोग अकसर लड़कियों के फेसबुक इनबॉक्स में घुसकर संस्कृति और परंपरा की दुहाई देते हैं. इनके पसंदीदा वाक्य होते हैं- ऐसे कपड़ों में तस्वीरें नहीं साझा करनी चाहिए. लड़कों के साथ फोटो क्यों खिंचवाती हो? क्यों मां-बाप के नाम के साथ पूरी बिरादरी का नाम खराब कर रही हो. यह लिस्ट और भी लंबी होती चली जाती है. जैसे ही किसी लड़की ने इनकी दुहाई को सुनने से मना किया वैसे ही इन सामाजिक और धार्मिक ठेकेदारों के अच्छे संस्कार और परंपराएं गालीगलौज के रूप में दिखने लगती हैं. ऐसे सारे स्वघोषित संस्कारी लोग सोशल साइट्स से लेकर गांव की हर गलियों, मोहल्लों, नुक्कड़ों और चौक-चौराहों पर सक्रियता से हर वक्त चरित्र प्रमाण बांटते मिल जाएंगे. ऐसे ही स्वघोषित ठेकेदारों का वंश, जाति और धर्म हर समय खतरे में पड़ा रहता है.

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आश्चर्य की बात है कि अब तक बुनियादी जरूरतों, शिक्षा, स्वास्थ्य और भोजन लोगों तक न पहुंच पाने के कारण धर्म खतरे में नहीं पड़ता. इन जरूरतों की भरपाई के लिए लोग ट्विटर और फेसबुक पर संगठित नहीं दिखते. हमारी जिंदगी को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली ये तीनों बुनियादी जरूरतों के लिए कभी भी सकारात्मक बहस शुरू होती नहीं दिखती. लोगों को इतिहास जानने की जरूरत इसलिए भी होती है क्योंकि वे खुद की गलतियों से सीखते हुए उसे आगे न दुहराएं. जबकि हो ऐसा रहा है कि लोग 21वीं सदी में रहते हुए भी बदलना नहीं चाहते. चिंतनीय है कि सोशल साइट्स पर किसी की तस्वीर और नाम को लेकर पीछे पड़ जाने वाली भीड़ की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे लोगों को रोकने के तमाम उपाय मौजूद होने के बावजूद भी इन पर कार्रवाई न के बराबर होती है जिससे इन लोगों का मनोबल हमेशा ऊंचा उठा हुआ ही दिखता है.

लेखक

कुमारी स्नेहा कुमारी स्नेहा @100006424236549

लेखक पत्रकार हैं

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