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Updated: 22 नवम्बर, 2020 02:39 PM
प्रदीप कुमार
प्रदीप कुमार
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साल 2018-19 में पर्यावरण (Enviornment) के हितैषी अंतरराष्ट्रीय समुदायों के बीच खासा उत्साह का माहौल था. दरअसल, संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की एक रिपोर्ट से यह पता चला था कि साल 2000 से ओजोन परत (Ozone Layer) में 2 फीसदी की दर से सुधार हो रहा है. संयुक्त राष्ट्र संघ के इस रिपोर्ट से यहां तक कयास लगाए जा रहे थे कि सदी के मध्य तक ओजोन परत पूरी तरह दुरुस्त हो जाएगी. मगर हाल में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और अमेरिका (NASA America) के ही नेशनल ओसियानिक एंड एटमॉस्फियरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने अपने अवलोकनों का खुलासा करते हुए बताया है कि इस साल अंटार्टिका (Antarctica) का ओजोन सुराख अपने वार्षिक आकार के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. इसका आकार 20 सितंबर को 2.48 करोड़ वर्ग किलोमीटर हो गया था जो करीब-करीब अमेरिका महाद्वीप के क्षेत्रफल के बराबर है. इसने आशावादियों को थोड़ा चिंतित कर दिया है. थोड़ा इसलिए क्योंकि वैज्ञानिकों (Scientist) का कहना है कि लगातार ठंडे तापमान और तेज ध्रुवीय हवाओं से अंटार्टिका के ऊपर ओजोन की परत में गहरा सुराख होने में सहायता मिली है हालांकि यह सुराख सर्दियों तक बना रहेगा और उसके बाद गर्मियों में ओजोन परत में धीरे-धीरे सुधार आने लगेगी.

Environment, Earth, Ozone, Sun, Life, Pollution, Scientistओजोन धरती का आधार है जीवन के लिए इसका संरक्षण करना ही होगा

धरती पर जीवन के लिए ओजोन परत का बहुत महत्व है. पृथ्वी के धरातल से लगभग 25-30 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायुमण्डल के समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फेयर) क्षेत्र में ओजोन गैस का एक पतला-सा आवरण है. यह आवरण धरती के लिए एक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है. यह सूर्य से आने वाले अल्ट्रा-वॉयलेट रेडिएशन यानी पराबैंगनी विकिरण को सोख लेती है. लेकिन अगर ये किरणें धरती तक पहुँचती है इसका मतलब होगा अनेक तरह की खतरनाक और जानलेवा बीमारियों का जन्म लेना.

इसके अलावा यह पेड़-पौधों और जीवों को भी भारी नुकसान पहुँचाती है. पराबैंगनी विकिरण इंसान, जीव जंतुओं और वनस्पतियों के लिये बेहद खतरनाक और नुकसानदायक है. घरेलू इस्तेमाल के लिए और थोड़ी मात्रा में खाद्य पदार्थो को ठंडा रखने के लिए साल 1917 से ही रेफ्रिजरेटर या फ्रिज का व्यावसायिक रीति से निर्माण शुरू हो चुका था. हालांकि तब रेफ्रिजरेशन के लिए अमोनिया या सल्फर डाइऑक्साइड जैसे विषैले और हानिकारक गैसों का इस्तेमाल किया जाता था.

रेफ्रिजरेटर से इनका लीक होना जान-माल के लिए बेहद घातक था। इसलिए जब जर्मनी और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने रेफ्रिजरेशन के लिए कार्बन-क्लोरीन-फ्लोरीन के अणुओं से निर्मित एक ऐसे पदार्थ क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) की खोज की जो प्रकृति में नहीं पाया जाता, तो रेफ्रिजरेटर सर्वसाधारण के इस्तेमाल के लिए सुरक्षित और सुलभ हो गए. इस खोज के बाद क्लोरोफ्लोरोकार्बन का इस्तेमाल व्यापक पैमाने पर एयर कंडीशनर, एरोसोल कैंस, स्प्रे पेंट, शैंपू आदि बनाने में किया जाने लगा.

इसने औद्योगिक घरानों को काफी आकर्षित किया जिससे हर साल अरबों टन सीएफसी वायुमंडल में घुलने लगा. ओजोन परत को नुकसान से बचाने के लिए 1987 में मॉन्ट्रियाल संधि लागू हुआ जिसमें कई सीएफसी रसायनों और दूसरे औद्योगिक एयरोसॉल रसायनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया. अभी तक विश्व के तकरीबन 197 देश इस संधि पर हस्ताक्षर कर ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले रसायनों के इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए हामी भर चुके हैं.

इस संधि के लागू होने से सीएफसी और अन्य हानिकारक रसायनों के उत्सर्जन में धीरे-धीरे कमी आई। मगर साल 2019 में प्रकाशित प्रतिष्ठित साइंस जर्नल नेचर की एक रिपोर्ट के मुताबिक अब भी चीन जैसे देश पर्यावरण से जुड़े अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन करते हुए अपने उद्योग-धंधों में ओजोन परत के लिए घातक गैसों का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल कर रहे हैं.

चीन का फोम उद्योग अवैध रूप से सीएफसी-11 का उपयोग ब्लोइंग एजेंट के रूप में करता रहा है. चूंकि अन्य विकल्पों की तुलना में सीएफसी-11 सस्ता है, इसलिए उद्योग पॉलीयूरेथेन फोम या पीयू फोम बनाने के लिए इसका उपयोग करते हैं. चीन में सीएफसी की तस्करी की भी समस्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंता का सबब बना हुआ है. देखने वाली बात यह है कि क्या चीनी सरकार पर्यावरण विरोधी ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगा पाएगी या फिर उसकी बदौलत पिछले 30 सालों की वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा?

बहरहाल, नासा और एन.ओ.ए.ए. हालिया अध्ययनों में दक्षिणी ध्रुव के ऊपर समताप मंडल में चार मील ऊंचे स्तंभ में ओजोन की पूर्ण रूप से गैरमौजूदगी दर्ज की गई है. वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले 40 साल के रिकार्डों के अनुसार साल 2020 में ओजोन सुराख का यह 12वां सबसे बड़ा क्षेत्रफल है. वहीं गुब्बारों के यंत्रों से लिए गए मापन के अनुसार यह पिछले 33 सालों में 14वीं सबसे कम ओजोन की मात्रा है. नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में अर्थ साइंसेज के प्रमुख वैज्ञानिक पॉल न्यूमैन के मुताबिक साल 2000 के उच्चतम स्तर से समताप मंडल में क्लोरीन और ब्रोमीन के स्तर सामान्य स्तर से 16 प्रतिशत गिरा है.

यह क्लोरीन और ब्रोमीन के अणु ही होते हैं जो ओजोन अणुओं को ऑक्सीजन के अणुओं में बदलते हैं। हालांकि न्यूमैन का कहना है, ‘हमें अब भी बहुत दूर जाना है. लेकिन सुधार ने इस साल बड़ा बदलाव दिखाया है. यह सुराख लाखों वर्ग मील बड़ा होता अगर समताप मंडल में उतनी ही क्लोरीन की मौजूदगी दर्ज होती.’

सर्दियों के मौसम में समताप मंडल के बादलों में ठंडी परतें बन जाती है. ये परतें ओजोन अणुओं का क्षय करती हैं. गर्मी के मौसम में समताप मंडल में बादल कम बनते हैं और अगर वे बनते भी हैं तो वो लंबे वक्त तक नहीं टिकते, जिससे ओजोन के खत्म होने की प्रक्रिया में कमी हो जाती है. सर्दियों में तेज हवाओं और बेहद ठंडे वातावरण की वजह से क्लोरीन के तत्व ओजोन परत के पास इकट्ठे हो जाते हैं.

बाकी रासायनिक तत्वों के साथ मिले क्लोरीन के अणु सूर्य की पराबैंगनी किरणों के संपर्क में आने पर टूट जाते हैं. टूटे हुए क्लोरीन अणु ओजोन गैस से टकरा कर उसे ऑक्सीजन में तोड़ देते हैं. विघटित रासायनिक तत्व बादलों के संपर्क में आने पर अम्ल बनाते हैं और ओजोन परत में सुराख करते हैं.

हम अपने दैनिक जीवन में बहुत से ऐसे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों का इस्तेमाल करते हैं जिनमें ज़्यादातर से किसी न किसी गैस का रिसाव जरूर होता है. इनमें मुख्य रूप से एसी है जिसमें ओजोन परत के लिए घातक फ्रियान-11, फ्रियान-12 का गैसों का प्रयोग होता है. दरअसल इन गैसों का एक अणु ओजोन के लाखों अणुओं को नष्ट करने में समर्थ होता है.

बहरहाल, आजोन संरक्षण के लिए सशक्त कदम उठाए जाने की आवश्यकता है. ओजोन परत को बचाने के लिए हमें अपनी जीवन शैली में आमूल-चूल परिवर्तन लाना होगा.

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लेखक

प्रदीप कुमार प्रदीप कुमार @2175488646036357

लेखक साइंस ब्लॉगर हैं और विज्ञान से ही जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं.

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