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Updated: 26 अप्रिल, 2018 04:16 PM
अनिल कुमार
अनिल कुमार
  @apkaanil
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जहां देश में एक ओर रेप की घटनाओं ने महिलाओं को असुरक्षित महसूस करा दिया है तो दूसरी ओर इससे पहले की समस्या का समाधान अभी तक नहीं हो पाया है. देश में ग्राणीण और छोटे शहरों में रहने वाली महिलाओं को लीडरशिप में लाने के लिए न सरकार कुछ करती दिख रही है और न समाज में ऐसा अभी तक कोई बदलाव दिखाई दिया है. दुनिया में रीटेल हब के रूप में माना जाने वाला और चीन के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़ा कंज्यूमर मार्केट भारत में आज भी महिलाओं की बिजनेस में भागीदारी महज 8 प्रतिशत क्यों है.

महिला, महिलाएं, रोजगार, नौकरी, महिला उद्यमी   बात जब महिला उद्यमियों की हो तो ऐसी चंद ही महिलाएं हैं जो शीर्ष पदों पर कार्यरत हैं

नेशनल सेंपल सर्वे ऑफिस के सिक्स्थ इकोनॉमिक सेंसस के मुताबिक देश में चल रहे कुल 58.5 मिलियन बिजनेस में केवल 8 फीसदी बिजनेस ऐसे हैं जिनमें महिलाओं द्वारा लीडरशिप निभाई जा रही है. इसमें ज्यादातर महिलाएं बड़े शहरों से हैं. एक्सिस बैंक की सीईओ शिखा शर्मा दिल्ली से रहीं, तो आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ चंदा कोचर राजस्थान के जोधपुर से हैं. शिखा शर्मा की शिक्षा दिल्ली यूनिवर्सिटी और आईआईएम अहदाबाद से हुई तो वहीं चंदा कोचर ने मुंबई के जय हिंद कॉलेज से अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की.

गोदरेज ग्रुप की चीफ डायरेक्टर और चीफ ब्रैंड ऑफिसर तानिया दबास का ज्यादातर समय अमेरिका में बीता, इनकी शिक्षा अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी हावर्ड बिजनेस स्कूल से हुई. एचएसबीसी की कंट्री हेड नैना लाल किदवई दिल्ली से हैं और इनकी शिक्षा दिल्ली यूनिवर्सिटी और अमेरिका के हावर्ड यूनिवर्सिटी से हुई. ये कुछ उदाहरण ही हैं. जिससे ये तो साबित हो रहा है कि देश में महिलाएं बिजनेस लीडरशिप में आगे बढ़ रही हैं. लेकिन एक खाई का पता चल रहा है. क्योंकि कुछ चुनिंदा महिलाएं हैं जो देश की शीर्ष कंपनियों के शीर्ष पदों पर बैठी हैं. इसके अलावा प्रमुख पदों के बाद वरिष्ठ पदों पर भी महिलाओं की उपस्थिति बहुत कम है.

महिला, महिलाएं, रोजगार, नौकरी, महिला उद्यमी    महिला सशक्तिकरण की बात तब अधूरी हो जाती हैं जब हम वर्क प्लेस में भारतीय महिलाओं की स्थिति देखते हैं

गत वर्ष ग्रांट थोर्नटॉन की एक सर्वे रिपोर्ट में ये सामने आया था कि भारत उन देशों में है जिन देशों के बिजनेस को लीड करने में महिलाएं पीछे हैं. महिलाओं की लीडरशिप पर हुए इस सर्वे में भारत को सबसे कम तीसरे स्थान पर रखा गया. सर्वे 36 देशों के 5500 बिजनेस यूनिटों पर किया गया. जिसमें ये पता चला कि 41 फीसदी भारतीय बिजनेस में महिलाएं कहीं भी किसी भी तरह के लीडरशिप रोल में नहीं हैं.

इस मामले में यूरोप का पूर्वी भाग सबसे ऊपरी पायदान पर है. यूरोप के पूर्वी भागों में चल रहे बिजनेस में 38 फीसदी वरिष्ठ पदों पर सिर्फ महिलाएं नियुक्त हैं, यहां महज 9 फीसदी बिजनेस ही ऐसे हैं जहां वरिष्ठ पदों पर महिलाएं नियुक्त नहीं हैं.

महिला, महिलाएं, रोजगार, नौकरी, महिला उद्यमी    अब समय आ गया है जब हमें महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा आगे बढ़ाने की जरूरत है

ऐसा है तो भारत इस मामले में पीछे क्यों है. एपीजे अब्दुल कलाम और जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि देश की असली पहचान ग्रामीण क्षेत्रों में है. देश में आज भी अधिक से अधिक जन संख्या ग्रामीण और छोटे शहरों में बसती है. इन क्षेत्रों से महिलाएं आगे आकर बड़े ओहदों पर अब तक क्यों नहीं पहुंच पाईं. इस समस्या के समाधान के लिए इसके कारणों में झांकने की जरूरत है.

जहां एक ओर शैक्षिक गुणवत्ता के कारण ग्रामीण और छोटे शहरों की महिलाएं बिजनेस में लीडरशिप की ओर आगे नहीं बढ़ पा रही हैं तो वहीं दूसरा कारण पुरुष मानसिक सोच भी है. आज भी महिलाओं को रोटी और बेलन तक सीमित रखा जा रहा है. पुरुष और महिलाओं को एक समान लीडरशिप स्किल सिखाने और अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा देने की जरूरत से ये समस्या भविष्य में हल की जा सकती है. अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो मुश्किलें खड़ी ही होंगी.

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लेखक

अनिल कुमार अनिल कुमार @apkaanil

लेखक पत्रकार हैं और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं.

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