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Updated: 23 मई, 2018 06:23 PM
पारुल चंद्रा
पारुल चंद्रा
  @parulchandraa
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अमेरिका के न्यूयॉर्क में एक माता-पिता अपने 30 साल के बेरोजगार बेटे को लेकर कोर्ट चले गए, ये कहते हुए कि उनका बेटा घर के कामों में कोई मदद नहीं करता है और न ही वो घर पर रहने का किराया देता है. पिछले कई महीनों में बेटे को लिखित में 5 नोटिस भी दिए गए कि वो घर छोड़कर चला जाए, लेकिन बेटा नहीं गया लिहाजा अब कोर्ट ने बेटे को तुरंत घर छोड़कर चले जाने का आदेश दिया है.

son, parentsमाता पिता ने कोर्ट का सहारा लेकर अपने बेटे को घर से बाहर का रास्ता दिखाया

माता-पिता ने बेटे को कई बार नौकरी करने की सलाह दी, उससे उम्मीद की थी कि नौकरी नहीं कर रहा तो कम से कम घर के ही कामों में मां का हाथ बटा दे, लेकिन वो कुछ भी नहीं करता था और घर में पड़े-पड़े सिर्फ अपना समय खराब कर रहा था. लिहाजा मां-बाप को ये कदम उठाना पड़ा.

अब ऐसे मां-बाप के बारे में जानकर किसी को भी गुस्सा आ सकता है. भला कौन करता है ऐसा, कौन अपने बच्चों से घर में रहने का किराया मांगता है. भारतीय परिवेश में देखें तो ये वाकई अनैतिक लगता है, लेकिन यहां बात भारत की नहीं अमेरिका की है. और अमरीका की संस्कृति हमारी संस्कृति से बिलकुल अलग है. लेकिन फिर भी इस वाकिए ने हमारे समाज के सामने एक बड़ी बहस खड़ी कर दी है, जिसपर विचार होना ही चाहिए.  

अगर बेटा नाकार हो, और माता पिता पर सिवाए बोझ के कुछ न हो तो ऐसे में क्या माता-पिता का उसे घर से निकालना जायज है? क्या एक तय उम्र के बाद बच्चों को माता-पिता के घर में रहने का किराया देना चाहिए? ये सवाल भले ही अटपटे लगें लेकिन अब इनपर बात होनी चाहिए.

अमेरिकी संस्कृति भारत से अलग लेकिन सीख देती है-

पक्षी एक वक्त तक ही अपने बच्चों के मुंह में दाना डालते हैं, और जब बच्चों के पंख उन्हें उड़ने की मजबूती दे देते हैं तो उन्हें अपनी मां का घोंसला छोड़ना होता है. फिर वो आजाद हो जाते हैं और अपनी लड़ाई खुद लड़ते हैं. अमेरिका की संस्कृति भी ठीक ऐसी ही है जैसे प्रकृति की होती है. वहां भी बच्चों का लालन पालन में मां-बाप कोई कमी नहीं छोड़ते, पढ़ाते लिखाते हैं लेकिन वयस्क होते है बच्चे अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रयास करने लगते हैं कि जिंदगी में लायक बन सकें.

teen jobsकोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता

संयुक्त परिवार जैसी कोई चीज वहां नहीं होती. इसलिए हर किसी को अपने लिए मेहनत खुद ही करनी होती है. वहां उच्च शिक्षा के लिए बच्चे खुद ही लोन लेते हैं और पढ़ते हैं. जो नहीं पढ़ते वो भी अपने पैरों पर जल्द से जल्द खड़ा होना चाहते हैं, फिर चाहे कोई भी काम उन्हें करना पड़े. ध्येय सिर्फ एक ही कि खुद के खर्चे खुद उठाने हैं. माता-पिता नहीं चाहते कि बच्चे उनसे दूर हों, बस उनका मकसद सिर्फ यही होता है कि वो संवतंत्र या इंडिपेंडेट हो जाएं. फिर चाहे वो उनके साथ रहें या फिर अलग.

क्या है भारत की स्थिति-

यहां भी माता-पिता बच्चों को अच्छे से पढ़ाते-लिखाते हैं, उनका पालन-पोषण करते हैं, उनसे उम्मीदें लगाते हैं कि वो जीवन में उनसे भी बेहतर करें. बस बच्चों को यहां घोंसला नहीं छोड़ना पड़ता (सिवाए बेटियों के). यहां माता-पिता बच्चों की पढ़ाई पर खुद कर्ज में डूब जाते हैं, लेकिन बच्चों को किसी भी तरह बेहतर शिक्षा दिलवाते हैं. यहां अगर बच्चा कोई छोटी-मोटी नौकरी करता है तो सबसे पहले परेशानी माता-पिता को ही होती है कि हमारा बेटा क्या ये काम करेगा. कोई बाप बेटे को रेस्त्रां में वेटर का काम करते नहीं देखना चाहता. जबकि विदेशों में किसी को कोई भी काम करने में परहेज नहीं है चाहे वो सफाई का ही क्यों न हो. वहां रोजगार पाना ही सबसे महत्वपूर्ण होता है, जबकि भारत में अपने 'मन' का रोजगार पाना. और जब तक बेटों को 'मन' का रोजगार नहीं मिलता, वो मां-बाप पर ही आश्रित रहते हैं. और जब तक माता-पिता उन्हें खिला सकते हैं वो खिलाते हैं, और जब नहीं खिला पाते, तब जाकर वो कोई भी काम करता है, क्योंकि तब गुजारा करना प्राथमिकता बन जाती है.

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भारत में संयुक्त परिवार की संस्कृति रही है. जिसके मूल्य हमें बचपन से बताए जाते रहे हैं. कुछ समय पहले तक तो ये ठीक भी था, लेकिन अब जैसे जैसे समय बदल रहा है, और हम संयुक्त परिवार से एकल परिवारों में बदलते जा रहे हैं तो हमारे पारिवारिक मूल्यों में भी बदलाव आ रहा है, जिसे स्वीकार करना अब हर किसी के लिए मुश्किल हो रहा है. पहले खेती किसानी के जमाने में परिवार के सभी लोग खेत पर काम करते थे, और सबके सहयोग के परिवार चलते थे. लेकिन आज वो जमाना नहीं रहा, आज जमीन जायदाद वाले भी खेत पर जाकर खड़े नहीं होते, वो भी खेती करवाते हैं. और परिवार एक पीढ़ी के बाद एकल हो जाते हैं.

ऐसे में अब क्या ये जरूरी नहीं कि एक बेरोजगार वयस्क जब तक अपने माता-पिता के घर में रहता है तो उसे वहां रहने का किराया अदा करना चाहिए? हां, हमारी संस्कृति ये नहीं कहती कि हमें अपने परिवार को छोड़ना है, लेकिन उनपर बोझ नहीं बनना है कम से कम हम ये तो समझ ही सकते हैं. लेकिन भारत की संस्कृति, माता-पिता के त्याग और समर्पण, खुद बच्चों की ही राह में रोड़ा बनते हैं. उन्हें बहुत अच्छा बनाने के चक्कर में वो अच्छे से भी चले जाते है. शायद बढ़ती बेरोजगारी का एक कारण ये भी है. हर माता-पिता को अपने बच्चों को भी समझानी चाहिए कि उनके लिए अपने पैरों पर खड़ा होना किसी भी चीज से बेहद जरूरी है.

अमेरिका की ये घटना जब मा-ंबाप ने अपने बेटे को घर से निकालने के लिए कोर्ट की मदद ली, इसकी लोग भले ही आलोचना करें, लेकिन इसे पीछे उनका ध्येय सिर्फ इतना ही रहा होगा कि 30 साल की उम्र तक बेरोजगार बैठा बेटा अपने जीवन में कुछ कर जाए. बाहर रहेगा तो वक्त और हालात उसे सब सिखा देंगे. इसके लिए उन्होंने अपना दिल कितना कड़ा किया होगा, वो एक मां-बाप ही समझ सकता है. आपको क्या लगता है क्या भारत में अब माता-पिता को एक कड़ा रुख अपनाने की जरूरत है, जो असल में उनके बच्चों के ही हित में होगा. क्या अब माता-पिता तैयार हैं अपने बेरोजगार बच्चों से घर में रहने का किराया वसूलने के लिए?

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लेखक

पारुल चंद्रा पारुल चंद्रा @parulchandraa

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं

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