New

होम -> समाज

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 04 फरवरी, 2019 10:39 PM
ऑनलाइन एडिक्ट
ऑनलाइन एडिक्ट
 
  • Total Shares

बचपन से हमें ये सिखाया जाता है कि बच्चे कभी भी माता-पिता का कर्ज नहीं चुका सकते हैं. उन्होंने हमें जीवन दिया, पढ़ाया-लिखाया, अपने पैरों पर चलना सिखाया और बच्चों के जिंदगी भर उनका कर्जदार रहना चाहिए. पर ये धारणा कहां तक सही है? क्या वाकई आप मानते हैं कि माता-पिता ने हमें जिंदगी देकर बेहद अच्छा काम किया है और इसलिए उन्हें हमारी जिंदगी का हर फैसला लेने का हक मिल जाता है?

कुछ लोग इसका विरोध करेंगे उन्हें अपने फैसले खुद लेना पसंद होगा, कुछ को लगेगा कि माता-पिता ही सारे फैसले लें तो अच्छा है, लेकिन कुछ लोग इन दोनों ही तरह की सोच से अलग होते हैं. ऐसे ही कुछ लोग एक नए आंदोलन का हिस्सा बने हैं. ये आंदोलन है 'Stop making babies' कम से कम अभी तो इस आंदोलन का यही आधिकारिक नाम है.

बच्चों की इजाजत लेकर ही पैदा करें माता-पिता:

ये बात सुनने में बड़ी अजीब लग रही होगी, लेकिन इस ग्रुप से जुड़े लोगों का यही मानना है कि अगर माता-पिता ने उनसे इजाजत लेकर उन्हें पैदा नहीं किया तो माता-पिता का कोई कर्ज उनपर नहीं है. मुंबई स्थित एक व्यक्ति Raphael Samuel अपने माता-पिता पर केस करने को तैयार है. रिपोर्ट के मुताबिक सैमुअल का कहना है कि वो अपने माता-पिता से बेहद प्यार करता है, उनकी बॉन्डिंग भी अच्छी है, लेकिन वो सिर्फ भारतीय बच्चों को ये बताना चाहते हैं कि वो बच्चे किसी के कर्जदार नहीं हैं.

बच्चे, जन्म, माता-पिता, समाजमाता-पिता आखिर कैसे किसी अजन्मे बच्चे से उसकी सहमति पूछ सकते हैं.

माता-पिता ने बच्चों को अपनी खुशी के लिए पैदा करते हैं. सैमुअल कहते हैं कि उनकी जिंदगी बहुत अच्छी रही, लेकिन उन्हें ये समझ नहीं आता कि एक नई जिंदगी को दुनिया में लाकर आखिर उसे स्कूल, करियर, कॉलेज, पैसे और दुनिया की सभी परेशानियों से उनका तल्लुक करवाना जब्कि उस जिंदगी ने ये कहा ही नहीं कि उसे पैदा करो तो फिर क्यों वो ये सब परेशानियां झेले?

सैमुअल की सोच का एक नाम है. ये सोच Anti-natalism कही जाती है. Anti-natalism मतलब बच्चों की पैदाइश का विरोध करना. सैमुअल ने एक फेसबुक पेज Nihilanand भी बनाया है. जो इसी सोच को सपोर्ट करता है.

सैमुअल के कई वीडियोज भी यूट्यूब पर मौजूद हैं जहां वो बताते हैं कि माता-पिता को बच्चों का कर्जदार होना चाहिए क्योंकि एक बच्चा होने के बाद माता-पिता की जिंदगी समाज में आसान हो जाती है. उन्हें किसी को कोई जवाब नहीं देना होगा क्योंकि उनकी जिंदगी तो पूरी हो गई. इसलिए माता-पिता बच्चों के कर्जदार होते सकते हैं.

बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती...

बात सिर्फ सैमुअल तक ही खत्म नहीं होती. ऐसे कई लोग हैं जो इस तरह की सोच रखते हैं. सहमति एक ऐसा विषय है जो पिछले कुछ सालों से बहुत ज्यादा चर्चा में है. पर अब अजन्मे बच्चों की सहमति को लेकर भी बहस शुरू हो गई है. Anti-natalism भारत में बहुत लोकप्रिय हो रहा है और हर रोज़ नए लोग इससे जुड़ रहे हैं.

ये लोग 'child free' समाज की स्थापना करना चाहते हैं. कई लोग इसे स्वेच्छा से मानवता का अंत भी बता रहे हैं. ये लोग खुद को Voluntary Human Extinction Movement (VHEM) एक्टिविस्ट भी कहते हैं.

10 फरवरी को महासभा-

जी हां, इस तरह की सोच रखने वाले लोग 10 फरवरी को बेंगलुरु में महासभा भी करने वाले हैं.

इस आंदोलन का नाम ‘Stop Making Babies’ ही रखा गया है. कई रिसर्च ये बताती हैं कि युवा वर्ग अब बच्चे नहीं चाहता. कई युवा चाइल्ड फ्री लाइफ जी रहे हैं और इस तरह के आंदोलन का हिस्सा बन रहे हैं. उनका मानना है कि बच्चा पैदा करना कई मामलों में सिर्फ सामाजिक दबाव के कारण ही सही माना जाता है जब्कि लोगों को समझना चाहिए कि न सिर्फ उनकी सहमति बल्कि बच्चे की सहमति भी जरूरी है.

पर ये सोच कितनी सही है?

अगर इसे जनसंख्या विस्फोट रोकने के नजरिए से देखा जाए तो ये सोच सही लगती है कि कम से कम कुछ लोग तो इसमें योगदान करेंगे, लेकिन अगर वाकई अजन्मे बच्चे की सहमति के बारे में सोचा जाए तो शायद आपका सिर घूम जाए.

खुद ही सोचिए, दुनिया में हर चीज़ पैदा हो रही है. मतलब अनाज, पेड़, पौधे, कुत्ते, बिल्ली, घोड़े और असंख्य जीव. सब कुछ जीवन चक्र पर ही निर्भर करता है. अगर सभी ये सोचने लग जाएं कि अब कुछ पैदा नहीं किया जाएगा तो पृथ्वी मंगल ग्रह बन जाएगी जहां सिर्फ जमीन ही है और बाकी कुछ नहीं.

लोग उस जीव की सहमति के बारे में बात कर रहे हैं जो है ही नहीं. जो चीज़ अस्तित्व में है ही नहीं वो आखिर कैसे अपनी सहमति दे सकती है. आंदोलन भले ही भले के लिए किया जा रहा है, लेकिन ये जो कारण दिया जा रहा है वो बिलकुल बचकाना है. इंसान में थोड़ा दिमाग है तो वो ये सोचने लगा कि उसकी सहमति नहीं ली गई उसे पैदा करने से पहले पर ये किसी भी तरह से मुमकिन नहीं है कि किसी अजन्मे बच्चे की सहमति ले ली जाए.

चाइल्ड-लेस सोसाइटी की बात और उसकी सोच अच्छी लगती है, ये कई मायनों में लोगों की बहुत सी समस्याएं हल कर सकती है, लेकिन ऐसे में ये कहना कि माता-पिता को बच्चों का कर्जदार होना चाहिए क्योंकि बच्चा उनके घर पैदा हुआ और माता पिता बस अपने मजे के लिए बच्चे पैदा कर रहे हैं ये भी गलत सोच है. माता-पिता बच्चे को प्लान करते हैं और उसे अच्छी से अच्छी जिंदगी देने की कोशिश करते हैं. ये अलग बात है कि किसी को बच्चे नहीं चाहिए तो, ये उनकी अपनी मर्जी है और सही भी है, लेकिन अगर इसके लिए माता-पिता को दोष दिया जाए कि वो गलत हैं क्योंकि वो किसी को जीवन दे चुके हैं ये अपने आप में बहुत बचकानी सोच है.

ये भी पढ़ें-

21 बच्चों की मां, और गिनती चालू है...

ब्रिटेन के पहले प्रेग्नेंट पुरुष का बयान रोंगटे खड़े कर देगा

लेखक

ऑनलाइन एडिक्ट ऑनलाइन एडिक्ट

इंटरनेट पर होने वाली हर गतिविधि पर पैनी नजर.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय