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Updated: 05 जुलाई, 2022 10:16 PM
ज्योति गुप्ता
ज्योति गुप्ता
  @jyoti.gupta.01
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Jaipur Couple Drowning Suicide Case को देखकर लगा कि बहू इंजीनियर हो या घरेलू उसे अपनी औकात में ही रहना चाहिए. उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि यह उसका ससुराल है जहां के कानून-कायदे उसे मानने ही पड़ेंगे...वरना उसका वही हाल होगा जो जयपुर में मधुबाला का हुआ.

आह, मधुबाला जैसा नाम है उतनी ही प्यारी सूरत है. किसने सोचा था कि इस खूबसूरत चेहरे के पीछे मधुबाला ने कितने दर्द छिपा रखे हैं. वह जब मार खा-खाकर थक गई, ससुराल वालों को समझा-समझा कर पागल हो गई, जब वह एडजस्ट नहीं कर पाई तो द्रव्यवती नदी में कूदकर अपनी जान दे दी. पति भी उसे बचाने के लिए कूदा और वह भी मर गया. अकेली रह गई तो उनकी 10 साल की बेटी...इस तरह एक हंसता-खेलता जोड़ा हमेशा के लिए बिछड़ गया.

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जरा मधुबाला की तस्वीर को देखिए वह गोरी थी, सुंदर थी, सुशील थी ऊपर से सरकारी नौकरी वाली बहू थी. वह इंजीनियर थी जो अपनी सैलरी अपने ससुराल वालों को ही देती थी. उसकी सैलरी से ही घर का किश्त भरा जा रहा था. घर खर्च के पैसे भी अपने पास रखने पर उसके साथ बुरा बर्ताव किया जाता था. पति तरुण भी सरकारी नौकरी वाला था. उसकी पोस्टिंग बिहार के पटना शहर में थी. दोनों की शादी तीन साल पहले हुई थी. दोनों भले ही अलग-अलग शहर में रहकर नौकरी करते थे लेकिन खुश थे. वे अक्सर मिल लिया करते थे. दोनों में प्यार बहुत था.

हालांकि मधुबाला अपने ससुराल वालों की हरकतों की वजह से तरूण को जयपुर मिलने बुलाने से घरबाती थी. उसका ससुराल जयपुर के मानसरोवर के गणपति नगर में ही था. जहां जाने के नाम पर ही डर जाती थी. पति भी शायद, अपने घरवालों की फिदरत को समझता था लेकिन घर ना टूटे इसी लिहाज में चुप रहता था. वह घर की कलह को अपने तरीके से हैंडल करना चाहता था. उसे लगा होगा कि शायद एक दिन सब ठीक हो जाएगा. वह अपने घरवालों को अच्छी तरह से जानता था कि वे पैसे के कितने लालची हैं. हालंकि वह समझता था कि उसके घरवालों को अपनी इंजीनियर बहू में कोई अच्छाई नजर ही नहीं आती.

शुरु में पति-पत्नी केल सुसाइड को ट्रांसफर और उनके बीच झगड़े से जोड़ा जा रहा था, लेकिन पिता सोहन सिंह ने बताया है कि किस तरह उनकी बेटी को ससुराल में सताया जा रहा था. उन्होंने जयपुर के महिला थाना में शिकायत दर्ज करवाई है. उनका कहना है कि मेरी बेटी सूरतगढ़ थर्मल प्लांट पर एईएन के पद पर थी. उसने मौत से पहले मुझे फोन किया था. उसने मुझसे बताया था कि किस तरह उसके जेठ और जेठानी ने उसे 30-40 थप्पड़ मारा था. मेरी बेटी के सास-ससुर ने भी उसे बचाने की जगह पीटा था.

पिता के अनुसार, 23 जून की शाम को बेटी ने उन्हें फिर से कॉल किया और कहा, " पापा आप मुझे जयपुर से ले जाइए वरना ये लोग मुझे जान से मार देंगे". पापा आप आजकल में आकर मुझे अपने साथ ले चलिए, क्योंकि आए दिन मेरा साथ मार-पीट हो रही है. यह लोग मेरे सात बुरा व्यवहार करते हैं. अगर आप मुझे नहीं बचा पाएंगे तो मैं खुद को खत्म कर लंगी. बेटी की ऐसी बात सुनकर किस पिता का कलेजा ने फट जाए, उन्होंने कहा कि मैं जल्दी तुझे लेने आ रहा हूं बेटी, जो भी होगा देख लिया जाएगा.

इसके बाद मैं अपने बेटे और रिश्तेदारों के साथ उसके ससुराल गया था. जहां उन लोगों से इस बारे में बात की था, इसके बाद उन लोगों ने हाथ जोड़कर माफी मांगी थी और यह कहा था कि अब ऐसा कभी नहीं होगा. उन्होंने कहा था कि घर की बात को घर में ही रहने दीजिए और बेटी को घर लाने से मना कर दिया. मैं उसी रात अलवर अपने घर आ गया.

मलतब ससुराल वाले आए दिन मधुबाला को प्रताड़ित करते थे. पिता एक बार घर गया और समझाइश के बाद बेटी को उन जालिमों के बीच छोड़कर आ गया. जिन लोगों ने बहू पर बार-बार पर हाथ उठा दिया हो, उन्हें किस बात की माफी? ऐसा भी समाज का क्या डर कि अपनी बेटी को मौत के मुंह में कोई छोड़ दे. जबकि बेटी बार-बार पिता से कह रही था कि मुझे यहां से ले चलो. ऐसा भी बेटी का क्या घर बसाना कि उसकी जान ही चली जाए? इससे तो अच्छा होता कि उसका घर टूट जाता कम से कम वह आज जिंदा तो होती.

अपनी जिंदगी को खत्म करना आसान नहीं होता, सोचिए मधुबाला कितनी तड़पी होगी जो अपनी 10 साल की बेटी को छोड़कर नदी में कूद गई. वह बार-बार कहती थी कि मुझे यहां नहीं रहना. इस हिसाह से तो कमाऊ इंजीनियर बहू हो या घरेलू...यहां उसकी जान की कोई कीमत नहीं है.

मधुबाला को अगले दिन फिर पीटा गया, उसे फिरे से गाली दी गई. उसने दोबारा पिता को फोन कर सारी बात बताई. वह फोन पर रो रही थी. वह कह रही थी कि पापा आप फिर से आ जाओ. पिता ने कहा कि हां मैं जल्दी आता हूं. हालांकि इस बार पिता अपनी बेटी के पास पहुंचता तब तक वह अपनी जिंदगी खत्म कर चुकी थी.

पिता को मन ही मन यह कचोट तो रहा होगा कि काश वह बेटी को पहली बार ही अपने साथ से ले आए होते तो आज यह दिन न देखना पड़ता. बेटियों को सहना ना सीखाकर लड़ना सीखाना शुरु कर दीजिए, क्योंकि बेटियां सुंदर-सुशील और कमाऊ होने के बाद भी ससुराल में थप्पड़ खाती रहेंगी, मधुबाला की मौत से सबक ले लीजिए...

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लेखक

ज्योति गुप्ता ज्योति गुप्ता @jyoti.gupta.01

लेखक इंडिया टुडे डि़जिटल में पत्रकार हैं. जिन्हें महिला और सामाजिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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