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Updated: 26 अक्टूबर, 2019 03:46 PM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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दीपावली पर उत्तम क्वालिटी की मिठाई न मिले तो समझ लीजिए कि आलोक पर्व का मजा किरकिरा हो गया. मिठाई के बिना दीपावली अधूरी है. हमारे देश मे समस्त धर्मिक और पारिवारिक अनुष्ठानों पर मिठाई अनिवार्य है. लेकिन अब दीपावली पर लक्ष्मी पूजन और भाई दूज के अवसर पर घर में उपयोग के लिए और मित्रों-संबंधियों को उपहार में दी जाने वाली मिठाई को खरीदते हुए एक तरह का भय का भाव का जकड़ने लगता है. वजह यह है कि दीपावली पर बिकने वाली मिठाइयां हम सबकी सेहत को बिगाड़ने की गारंटी देती हैं. हर साल दीपावली के अवसर पर कुछ खबरें जरूर ही पढ़ने को मिल जाती हैं कि खाद्य निरीक्षक विभाग ने मिठाई की दूकानों पर छापा मारा. मिठाई के नमूने लिये. उसमें भारी गड़बड़ी पायी गईं. परंतु, उसके बाद आगे की कार्रवाई के बारे में किसी को अपडेट नहीं मिल पाता. यानी सब कुछ कालाबजरियों और भ्रष्ट अधिकारियों की मिली भगत से रफा-दफा हो जाता है.

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 मिठाई के बिना त्योहार अधूरा है

सबको पता है कि दीपावली के दौरान बाजार में दूषित दूध और मावे की मात्रा बढ़ जाती है. क्योंकि,मिठाइयों की मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर पैदा हो जाता है. इसके बावजूद यह सुनिश्चित नहीं किया जाता कि इन्सानियत के दुश्मनों पर इतनी कठोर कार्रवाई हो ताकि ये मिठाई बेचने के नाम पर जहर न बेचने का दु:साहस ही न कर सकें.

क्यों कम खाएं?

हां, यह रूटीन ही सलाह जरूर मिल जाती है कि दीपावली पर मिठाइयों का सेवन कम से कम हो. क्यों कम हो? हिन्दुस्तानी मूलत: और अंतत: मिष्ठान प्रेमी हैं. तो क्या वे दीपावली पर भी मिष्ठान न खाएं? मिष्ठान हर भारतीय की कमजोरी है. एक इस तरह की कमजोरी जिसमें यदि शुद्धत्ता बरती जाये तो किसी को हानि नहीं होती. और फिर वे सरकारी महकमे क्या कर रहे हैं जिनपर मिठाई की शक्ल में जहर बेचने वालों पर कानूनी शिकंजा कसने की जिम्मेदारी है? क्या इनके दफ्तरों पर ताले नहीं लगा दिए जाने चाहिए. आखिर इन्हें मोटी पगार मिल किसलिए रही है.

दरअसल, भारतीय मिष्ठान शक्कर, अन्न, दूध और घी के अलग-अलग प्रकार से पकाने और मिलाने से बनती हैं. खीर और हलवा सबसे सामान्य मिठाइयां हैं जो प्रायः सभी के घरों में बनती हैं. इसके अतिरिक्त लड्डू, पेड़े, बर्फी और गुजिया भी घरों मे बनती है. पर ज्यादातर मिठाइयां बाजार से ही खरीदी जाती हैं. भारत की संस्कृति के ही अनुसार यहां हर प्रदेश की मिठाई में भी विभिन्नता है. उदाहरण के लिए बंगाली मिठाइयों में छेने की प्रमुखता है तो पंजाबी मिठाइयों में खोये की. उत्तर भारत की मिठाइयों में दूध की प्रमुखता है तो दक्षिण भारत की मिठाइयों में अन्न और नारियल की. बेशक त्योहारों व दूसरे   अनुष्ठानों में मिठाई का बहुत महत्व होता है. दैनिक जीवन में मिठाई भोजन के बाद खाई जाती है. कुछ मिठाइयों को खाने का समय भी निर्धारित होता है जैसे जलेबी सुबह के समय खाई जाती है, तो राबड़ी रात्री में. कुछ मिठाइयां पर्वों से संबंधित होती हैं, जैसे गुझिया उत्तर भारत में होली पर बिकती है और पूर्वी भारत मे तीज के पर्व पर हर घर मे बनाई जाती है. उत्तर भारत में कलाकंद, काजू कतली, कालाजाम, गुलाब जामुन, घेवर, चमचम, जलेबी, बर्फ़ी, तिलकुट, दाल हलवा, नारियल बर्फ़ी, मिल्क केक, परवल की मिठाई, पेठा, पेड़ा, फीरनी वगैरह मिलती हैं. कौन सा भारतीय है जिन्हें ये पसंद न हो? पर दीपावली पर भी ये अधिकतर मिलावटी ही मिलती हैं. बेशक,ये बेहद गंभीर मसला है.

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 मिलावटी मिठाइयां त्योहार की मिठास खत्म कर देती हैं

मुझे मेरे एक डाक्टर मित्र बता रहे थे कि मिलावटी मावे और दूध में सबसे ज्यादा खतरनाक कास्टिक सोडा और यूरिया की बड़ी मात्रा मे मिलावट होती है. इस तरह के मावे या दूध से बनी मिठाइयों के सेवन से शुरूआती तौर पर उल्टियां या पेचिश हो सकती है. जाहिर है, इस तरह की मिठाइयों के सेवन से शरीर को दीर्घकालिक नुकसान भी हो सकता है. बेशक, अगर मिठाई अत्यधिक मिलावटी है तो उसमें कास्टिक सोडा और यूरिया की मात्रा भी ज्यादा पाई जाती है. इससे गुर्दे से रक्तस्राव होने का खतरा बढ़ जाता है. दूषित पदार्थ से बनी मिठाई से शरीर पर कितना असर होगा यह इस पर निर्भर करता है कि आप कितनी मात्रा में मिठाई का सेवन करते हैं.

यानी दीपावली पर मिठाई खाना आफत होता जा रहा है

अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि बीते सालों की तरह से इस बार भी दीपावली पर नकली मावा, दूध और मिठाइयां बाजार में आ रही हैं. और फिर इस बार भी ज्यादा से ज्यादा खाद्य विभाग और प्रशासन मिठाई की दूकानों पर छापेमारी कर रस्मअदायगी देगा. यानी उसकी जिम्मेदारी पूरी हो गई.

चूंकि इस बात की संभावना खत्म होती जा रही है कि दूषित मिठाई नहीं बिकेगी इसलिए सबसे बेहतर यह होगा कि आप ज्यादा से ज्यादा पानी पियें और फल खायें ताकि शरीर से जहरीले तत्व बाहर निकल सकें.

कहने वाले कह रहे हैं कि दीपावली पर आप दूध और मावे की मिठाइयों के बजाय बेसन या दाल की बनीं मिठाइयों को ही खरीदें और खाएं. लेकिन, दालों और घी की मिलावट का क्या करेंगे? पर इनमें वह आनंद थोड़ा आएगा जो दूध से बनी मिठाइयों में आता है. दीपावाली पर हर कोई चाहता है कि अच्छी से अच्छी मिठाई का लुत्फ लें और मेहमानों को भी खिलाएं. लेकिन, इतने मांगलिक अवसर पर भी स्तरीय मिठाई के न मिलने की संभावना से गहरी निराशा अवश्य होती है.

अब सवाल यह है कि एक आम इंसान जब बाजार से मिठाई लेने के लिए जाता है तो उसे कैसे पता चले कि वह जो मिठाई खरीद रहा है, वह मिलावटी नहीं है. बाजार में तो हर रंग और हर किस्म की मिलावटी मिठाई धड़ल्ले से मिल रही है. इन मिठाइयों को खाने के बाद डॉक्टरों के चक्कर लगाना तो तय है.

मुझे याद है पिछले साल अहमदाबाद पुलिस ने एक गोदाम पर छापा मारकर करीब 2 हजार किलो मिलावटी मावा बरामद किया था. पुलिस का कहना है कि पाम आयल और मिल्क पाउडर मिलाकर मावा बनाया जा रहा था जिसे ऊंची कीमत पर बाजार में बेचा जाना था. इसी तरह से इलाहाबाद में मिठाई की एक मशहूर दूकान में छापेमारी की गई. खाद्य विभाग के अफसरों ने जब उस मिठाई की दूकान के गोदाम पर छापा मारा तो पाया कि बहुत ही गंदे से कमरे में मिठाइयां बनाई जा रही थीं. कई मिठाइयों में तो कीड़े लग गए थे. गोदाम के भीतर चूहे दौड़ रहे थे तो कमरे के बाहर बिल्ली.

ये सर्वविदित है कि दीपावली पर बड़े स्तर पर मिठाई की बिक्री को देखते हुए अलग-अलग जगहों पर बंगाली, गुजराती और राजस्थानी मिठाइयां बनाने का काम शुरू हो जाता है. मांग कई गुना बढ़ जाने से हर जगह बाहरी क्षेत्रों से मावा मंगाया जाता है. मिलावटखोर रुपया कमाने के चक्कर में खपत पूरी करने के लिए हलवाइयों को सिंथेटिक और मिलावटी मावा बेचते हैं .

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  दूध से बनी मिठाइयों में जमकर मिलावट हो रही है

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डा.हर्षवर्धन ने विगत 16 मार्च को लोकसभा में स्वीकार किया था कि देश में बेचा जाने वाला 68 प्रतिशत दूध भारत के खाद्य नियामक द्वारा निर्धारित शुद्धता के पैमाने पर खरा नहीं उतरता. यानी देश में दूध से बनी मिठाइयों में जमकर मिलावट हो रही है. तब डा. हर्षवर्धन ने संसद में माना था कि अमृत को मिलावटखोर विष बना रहे हैं. दरअसल मिलावटखोरों के खिलाफ व्यापक स्तर पर कार्रवाई करने की आवश्यकता है. सांकेतिक कार्रवाई से बात नहीं बनेगी. खैर, दीपावली पर मिठाई खाएं और खिलाएं, पर जरा ध्यान से.

आप भी मानेंगे कि मिलावट हमारे देश के राष्ट्रीय चरित्र का अभिन्न हिस्सा बन गई है. इसलिए दूध या मिठाई को अपवाद नहीं माना जाना चाहिए. चीन में कुछ साल पहले दूध में मिलावट करने वालों को मौत की सजा देने की व्यवस्था कर दी गई है. कुछ दोषियों को फांसी पर लटकाया भी गया है. उसके बाद सब लाइन पर आ गए. क्या हम कभी मिलावटखोरों के खिलाफ इस तरह के कड़े कानून बना सकेंगे? बेशक देश को जहर खिलाने-पिलाने वालों के खिलाफ कड़े से कड़े कानून बनने चाहिए. इन्हें मौत की सजा भी दी जाए तो कम होगी.

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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