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Updated: 01 दिसम्बर, 2017 05:04 PM
अनुराग तिवारी
अनुराग तिवारी
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तमाम कयासों के बीच यूपी नगर निकाय चुनावों के रिजल्ट आने शुरू हुए तो राजनीतिक पंडितों के लिए चौंकाने वाले साबित हुए. जहां बीजेपी ने नगर निकायों में अपना दबदबा बरक़रार रखा तो वहीं मायावती की पार्टी बीएसपी ने बाउंस बैक किया है. बीएसपी का लोकसभा और विधानसभा चुनावों के मुकाबले नगर निकायों में शानदार प्रदर्शन भले अप्रत्याशित लगे लेकिन यह अचानक नहीं हुआ है. ऐसा कहा जा सकता है कि विधानसभा चुनावों के बाद एक बार फिर पॉलिटिकल पंडित अंडर करंट को समझने में नाकाम रहे. इस बार के नगर निकाय चुनावों में 16 में से 14 मेयर बीजेपी के बने तो 2 बीएसपी के. वहीं विधानसभा चुनावों में पसंदीदा साथ वाले लड़कों की पार्टी सपा और कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पाईं. इन चुनावों में एक बात और निराली रही कि कभी लोकल बॉडी इलेक्शन पर अपना ध्यान न देने वाली बीएसपी ने पहली बार इन चुनावों में ऑफिशियली ताल ठोंकी. ऐसे में उसके इस प्रदर्शन को काफी उत्साहजनक माना जा सकता है. 

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विधानसभा की कवायद, नगर निकाय में फायदा

बीएसपी ने उत्तर प्रदेश विधान सबही चुनावों में 19 सीटें हासिल की हों लेकिन उसका वोट प्रतिशत 47 सीटें पाने वाली समाजवादी पार्टी से कहीं ज्यादा था. जहाँ सपा का वोट प्रतिशत 21.8 था तो बीएसपी का 22.2 था. उस समय भले किसी का ध्यान इस समीकरण पर न गया हो लेकिन निकाय चुनावों ने इसी समीकरण का फायदा बीएसपी को दिया है. बीएसपी ने विधान सभा चुनावों में मुसलामनों को लुभाने के लिए 97 सीटों पर टिकेट दिया था, जो उस समय कारगर नहीं साबित हुआ. लेकिन नगर निआय चुनाव में बीएसपी की यह कवायद फायदा देती नजर आई. सपा को वोट देने वाला मुस्लिम वोटबैंक सीधा-सीधा मायावती के पाले में जा गिरा. अलीगढ, मेरठ नगर निगमों की मेयर की सीट का बीएसपी के खाते में जाना इस तथ्य की पुष्टि करता नजर आ रहा है. इसके अलावा भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीएसपी का प्रदर्शन कुल मिलाकर काफी अच्छा रहा है.  इसके अलावा बुंदेलखंड में भी बीएसपी का अंडरकरंट बरकरार रहा.

भीम आर्मी फैक्टर काम आया

सहारनपुर दंगों के बाद चर्चा में ई भीम आर्मी के साथ बेएस्पी के रिश्तों की बात से भले ही मायावती इंकार करती रही हों, लेकिन हकीकत यह रही कि बीएसपी को भीम आर्मी का फायदा इन चुनावों में भरपूर मिला है. ख़ुफ़िया रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी भीम आर्मी बीजेपी का विरोध करने के लिए दलित और मुस्लिम नेताओं का गठजोड़ करेगी. यही फैक्टर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीएसपी के फेवर में जाता नजर आया. वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शहरी मुसलमान खुलकर बीएसपी को वोट देने निकला. वे कहते हैं कि यह अखिलेश यादव के लिए खतरे की घंटी है.

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सपा का न खत्म होने वाला परिवार वार

सपा की न खत्म होने वाला परिवार का युद्ध बीएसपी को फायदा देता नजर आया. सपा का मुस्लिम समर्थक बीएसपी के समर्थन में जाकर खड़ा होता नजर आया. एक सपा समर्थक ने बताया कि अखिलेश यादव ऐसे चापलूसों से घिरे हैं जो उन्हें हकीकत नहीं देखने दे रहे हैं. वहीं कैडर पर पकड़ रखने वाले शिवपाल जी अनदेखी भी पार्टी को भारी पड़ी.

सपा समर्थकों का अपने नेताओं पर सीधा सीधा आरोप है कि वे कार्यकर्ताओं पर ध्यान नहीं देते. सपा समर्थक सुमित ने सीधा सीधा उन्नाव के एक चर्चित सपा एमएलसी पर आरोप लगाया कि वे तो कार्यकर्ताओं का फ़ोन तक नहीं उठाते ऐसे में जीत की उम्मीद करना बेमानी है. एक अन्य सपा समर्थक ने तो इस एमएलसी को प्रधानी का चुनाव जीत कर दिखाने की चुनौती दे दी. सपा के शिवपाल समर्थक कार्यकर्ता यह भी आरोप लगा रहे हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रामगोपाल यादव की अदूरदर्शिता के चलते भी बीएसपी को फायदा मिला. शिवपाल यादव भी आरोप लगा चुके हैं कि सपा में खुलेआम टिकट बेचे गए. यहां तक कि शिवपाल ने सपा के कैंडिडेट्स के समर्थन में कैम्पेनिंग करने के बजाय निर्दलीय कैंडिडेट्स का प्रचार करना उचित समझा.

दुश्मनों को बीच हो सकती है दोस्ती!

जिस तरह से बीएसपी नगर निकाय चुनावों में अपना प्रदर्शन बेहतर किया है, उससे यही संकेत मिल रहे हैं कि अगर अगले लोकसभा चुनावों में एक बार फिर सवर्णों को अपने पाले में करने में सफल रही तो लोकसभा चुनावों में बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है. वहीं यह भी संभावना बन रही है कि आने वाले कुछ महीनों में धुर विरोधी और दुश्मन बीएसपी और एसपी अपने अस्तित्व को बचने के लिए कांग्रेस के साथ बनकर एक बीजेपी विरोधी मोर्चा बना सकते हैं.

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लेखक

अनुराग तिवारी अनुराग तिवारी @vnsanut

लेखक पत्रकार हैं

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