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शिवसेना की बगावत में बीजेपी से ज्यादा कसूरवार उद्धव ठाकरे हैं
उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) वाकिफ तो हर बात से थे, लेकिन बीमारी की परवाह न करने का जो नतीजा होता है, वही हुआ. सीधे हार्ट अटैक. शरद पवार के अनुसार भी तो ये तीसरा अटैक है. देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) मिशन पर थे - एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) शिकार हो गये.
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महाराष्ट्र में सियासी संकट के बीच कोरोना वायरस ने भी धावा बोल दिया है - एक छोटे से अंतराल में मालूम हुआ है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी दोनों ही कोविड पॉजिटिव हो गये हैं. कोविड रिपोर्ट आने के बाद राज्यपाल को तो अस्पताल में भर्ती होना पड़ा है. वैसे बाद की रिपोर्ट में उद्धव ठाकरे कोरोना निगेटिव हो गये हैं.
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने महाराष्ट्र कैबिनेट की वर्चुअल मीटिंग ली है - और ये सब तब हो रहा है जब शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) गुवाहाटी से दावा कर रहे हैं कि उनके साथ 40-45 विधायक हैं. एकनाथ शिंदे अचानक आउट ऑफ नेटवर्क हो जाने के बाद पहले सूरत में पाये गये - और फिर वहां से गुवाहाटी के होटल में शिफ्ट हो चुके हैं. ध्यान रहे, गुजरात और असम दोनों ही जगह बीजेपी की ही सरकारें हैं. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) तो जैसे तैसे खुशी पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं, महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल बहुत ही तोल-मोल के कुछ भी बोल रहे हैं.
खबर इस बीच ये भी आयी है कि अकोला के बालापुर से शिवसेना विधायक नितिन देशमुख नागपुर लौट आये हैं, जबकि नांदेड़ के विधायक बालाजी कल्याणकर अचानक नेटवर्क से बाहर बताये जा रहे हैं. कहा जाने लगा है कि बालाजी कल्याणकर एकनाथ शिंदे के संपर्क में हैं. नितिन देशमुख का कहना है कि उनको जबरदस्ती कैद करके रखा गया था - और अस्पताल में भर्ती कराये जाने की बात भी एकनाथ शिंदे के बागी साथियों का नाटक रहा. शिवसेना नेता संजय राउत ने दावा किया था कि नितिन देशमुख और पांच विधायकों के साथ हाथापाई और पिटायी हुई है - और नितिन देशमुख की पत्नी ने उनके लापता होने की पुलिस में शिकायत भी दर्ज करायी थी.
एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद ट्विटर बॉयो बदलने की भी खबर है. एकनाथ शिंदे ने जहां ट्विटर बॉयो से 'शिवसेना' हटा दिया है, वहीं शिवसेना के भविष्य आदित्य ठाकरे ने 'मंत्री' शब्द से अचानक ही तौबा कर लेने की खबर आयी है. हालांकि, शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी का दावा है के आदित्य ठाकरे ने अपने ट्विटर बॉयो में मंत्री शब्द जोड़ा ही नहीं था.
उद्धव ठाकरे के साथ साथ महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार के तीनों ही पार्टनर एक्शन मोड में आ गये हैं. डर तो सबको लगता ही होगा कि कहीं कांग्रेस और एनसीपी के विधायक भी शिवसेना के बागियों की तरह ही नॉट रिचेबल न हो जायें.
शरद पवार का कहना है कि जो भी सब चल रहा है वो महाराष्ट्र की सरकार गिराने की कोशिश है - और ऐसा तीसरी बार हो रहा है. एकनाथ शिंदे के विधायकों के साथ बगावत को शरद पवार ने शिवसेना का आंतरिक मामला बताया है, कहा है कि ये सब उद्धव ठाकरे खुद हैंडल करेंगे.
कांग्रेस विधायकों की भी बाला साहेब थोराट के यहां मीटिंग हुई है, जिसमें पार्टी के 44 में से 41 विधायक ही शामिल हुए. बैठक के बाद थोराट ने दावा किया कि कुछ जगह गलत खबर चल रही है, लेकिन सभी विधायक उनके साथ हैं. दिल्ली से संकटमोचक बनाकर भेजे गये कमलनाथ ने अपना पुराना डायलॉग दोहराया है, 2020 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते हुए बोला था. कमलनाथ का कहना रहा, 'जो भी आज विरोध कर रहे हैं उनको मैं यही कहना चाहता हू कि कल के बाद परसों भी आता है...' ये बात अलग है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस और कमलनाथ की राजनीति में अब तक न कल आया और न ही परसों.
शिवसेना विधायकों के एक के बाद एक बीजेपी शासित राज्यों में जाना 'ऑपरेशन लोटस' की तरफ इशारा तो साफ साफ कर रहा है, लेकिन ऐसा भी नहीं कहा जा सकता है कि शिवसेना में बगावत के पीछे सिर्फ BJP का ही हाथ है, उद्धव ठाकरे भी कम जिम्मेदार नहीं हैं.
ये तो होना ही था, लेकिन अचानक क्या और कैसे हुआ?
पहले राज्य सभा चुनाव और फिर महाराष्ट्र विधान परिषद की 10 सीटों पर चुनाव तो हो गये, लेकिन दोनों चुनावों के दौरान हुई तकरार न तिल का ताड़ बना ही डाला. उद्धव ठाकरे के लिए मुसीबतों का पहाड़ ही टूट पड़ा. राज्य सभा चुनाव में जहां गठबंधन के बीच भारी टकराव हुआ, एमएलसी चुनाव ने एकनाथ शिंदे को नाराजगी का जश्न मनाने का ही मौका दे डाला - वैसे भी एकनाथ शिंदे को तो बस एक मौके की तलाश थी ही.
एकनाथ शिंदे भी आदित्य ठाकरे के साथ ही अयोध्या गये थे, लेकिन रामलला से दोनों की मुरादें अलग अलग थीं
अचानक चर्चा होने लगी कि शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे किसी के भी संपर्क में नहीं हैं. ये बात भी अजीब थी, भला ऐसा कैसे हो सकता है कि एकनाथ शिंदे जैसा नेता किसी के भी संपर्क में न हो, या कोई भी उनके संपर्क में न हो.
असल में, जिस लाइन पर वो अपने तात्कालिक शुभेच्छुओं के संपर्क में थे, वो लाइन अलग थी. वो उन लोगों के संपर्क में रहे, जिनसे उनके अच्छे संपर्क और रिश्तों की फिलहाल महाराष्ट्र की राजनीति में चर्चा हो रही है - और ऐसे नेताओं में एक नाम महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी हैं.
एकनाथ शिंदे का संपर्क जिनसे रहना चाहिये था, वो तो उद्धव ठाकरे या उनसे जुड़े लोग हैं. एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं, और 18 साल की उम्र से शिवसैनिक भी बताये जाते हैं. लिहाजा उद्धव ठाकरे के संपर्क में उनका न होना अस्वाभाविक था.
महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार के अचानक गिर पड़ने की चर्चा कोई नयी तो थी नहीं, लिहाजा चर्चा आगे बढ़ी लेकिन एकनाथ शिंदे जिस तरह से अचानक सूरत में प्रकट हुए, मामला काफी गंभीर लगने लगा - और फिर एकनाथ शिंदे का सदल बल गुजरात से असम शिफ्ट होना तो उद्धव ठाकरे सरकार के आईसीयू में चले जाने जैसा रहा. फिर क्या था, कयासों का नया दौर शुरू हो गया.
हर किसी के मन में सवाल यही है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि एकनाथ शिंदे विधायकों के साथ होटल में पहुंच गये - और एक होटल से दूसरे होटल शिफ्ट होते रहे?
राज्य सभा और एमएलसी चुनाव: बताते हैं कि विधान परिषद चुनाव को लेकर एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच अनबन हो गयी थी. कहते हैं कि एकनाथ शिंदे तो बीते ढाई साल से मौका खोज रहे थे - और करीब डेढ़ साल से तो दूरियां और भी बढ़ चुकी थीं. एमएलसी चुनाव में उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे की नाराजगी बढ़ा कर उनको खुल कर खेलने का बहाना ही दे दिया.
ये भी करीब करीब वैसा ही लगता है जैसे राज्य सभा चुनाव में शिवसेना के चौथी सीट पर उम्मीदवार खड़ा करने को लेकर भी गठबंधन साथियों के बीच नाराजगी महसूस की गयी. हार शिवसेना के उम्मीदवार की हुई थी - और सुप्रिया सुले उसे 'शर्मनाक' बता रही थीं. जाहिर है, वो साउंडबाइट भले ही सुप्रिया सुले ने दी थी, लेकिन उसके पीछे शब्द तो एनसीपी नेता शरद पवार के ही होंगे.
उद्धव ठाकरे ने ये नौबत आने क्यों दी?
एकनाथ शिंदे खास मौकों पर ही शिवसेना नेता आनंद दिखे का नाम लेते हैं. सूरत पहुंचने के बाद भी एकनाथ शिंदे ने वैसा ही किया. मतलब, उद्धव ठाकरे को मामले की गंभीरता को अच्छे से समझ लेना चाहिये.
आनंद दिघे को ठाणे का ठाकरे कहा जाता रहा है. एकनाथ शिंदे, दरअसल, आनंद दिघे के शिष्य हैं. एकनाथ शिंदे मानते हैं कि राजनीति में जो कुछ सीखा है, आनंद दिघे ने ही सिखाया है. ध्यान रहे, एकनाथ शिंदे ने जब महाराष्ट्र सरकार में मंत्री पद की शपथ ली थी, तब भी आनंद दिघे का खासतौर पर जिक्र किया था.
एकनाथ शिंदे की मंशा भांपते हुए, शिवसेना नेतृत्व ने तत्काल प्रभाव से हटा दिया. उनकी जगह सेवारी से विधायक अजय चौधरी को शिवसेना विधानमंडल दल का नेता बनाने की बात सामने आयी. ऐन उसी वक्त एकनाथ शिंदे ने ट्विटर पर लिखा कि सत्ता के लिए वो कभी धोखा नहीं देंगे.
तब से लेकर अब तक एकनाथ शिंदे यही दावा कर रहे हैं कि वो बाला साहेब ठाकरे के हिंदुत्व वाली राजनीति को मानते हैं और शिवसेना छोड़ने का भी उनका कोई इरादा नहीं है. फिर भी, अपने ट्विटर बॉयो से वो शिवसेना जैसा शब्द हटा चुके हैं - अब जिसे जो संकेत समझना चाहिये, समझ सकता है. उद्धव ठाकरे भी. आदित्य ठाकरे भी.
अब ये सवाल तो उठेगा ही कि आखिर एकनाथ शिंदे बागी क्यों बने? और कैसे बन गये?
सीधा सा जवाब ये भी हो सकता है कि बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को बागी बना दिया - क्योंकि बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस से भी उनके बहुत अच्छे संबंध बताये जाते हैं.
लेकिन थोड़ा गौर करने पर इस मामले में खुद उद्धव ठाकरे ही ज्यादा जिम्मेदार लगते हैं - एकनाथ शिंदे की नाराजगी को पाला-पोसा तो खुद उद्धव ठाकरे ने ही, देवेंद्र फडणवीस तो मौका देख कर निमित्त बन गये. जैसे मौके पर कोई सपोर्ट सिस्टम होता है.
एकनाथ शिंदे अगर इतने सारे विधायकों के साथ महाराष्ट्र छोड़ देते हैं तो ये कोई मामूली बात तो हुई नहीं. और जो ऐसा कर सकता है, वो भी कोई मामूली नेता तो हो नहीं सकता - लेकिन ये बात उद्धव ठाकरे को वक्त रहते क्यों नहीं समझ में आयी?
2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद शिवसेना ने बीजेपी से चुनावी गठबंधन तोड़ लिया था - और तभी एकनाथ शिंदे को कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया था. आगे चल कर उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी ये जिम्मेदारी एकनाथ शिंदे के पास ही रही. एकनाथ शिंदे को हटाये जाने के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की तरफ से सभी विधायकों को पार्टी की मीटिंग में मौजूद रहने का व्हिप जारी किया गया. उद्धव ठाकरे के फरमान पर एकनाथ शिंदे ने मराठी में लिखे अपने ट्वीट में बताया कि उन लोगों ने भरत गोगावले को शिवसेना का चीफ व्हिप नियुक्त कर दिया है.
जब शिवसेना का गठबंधन टूटा तो लोग मान कर चल रहे थे कि उद्धव ठाकरे ने अपने पिता बाल ठाकरे से किसी शिवसैनिक को ही महाराष्ट्र मुख्यमंत्री बनाने का जो वादा किया है, मौका मिला तो कुर्सी पर एकनाथ शिंदे ही बैठेंगे. तब तक ये हाल रहा कि कुछ लोग आदित्य ठाकरे तक के मुख्यमंत्री बनने के बारे में सोच ले रहे थे, लेकिन उद्धव ठाकरे के बारे में नहीं. शायद वे लोग उद्धव ठाकरे में भी बाल ठाकरे का ही अक्स देख रहे थे.
जाहिर है, जब इतने सारे संकेत मिलते हों तो एकनाथ शिंदे को तो पक्का यकीन रहा होगा कि शिवसेना के हिस्से में मुख्यमंत्री की कुर्सी आने की सूरत में कुर्सी पर तो उनको ही बिठाया जाएगा, लेकिन हालात तेजी और ऐसे बदले की उद्धव ठाकरे खुद मुख्यमंत्री बन गये.
कहते हैं कि ये एनसीपी नेता शरद पवार की सलाह थी कि उद्धव ठाकरे किसी और को मुख्यमंत्री बनाने की जगह खुद सीएम की कुर्सी संभालें - और इस तरह सारे दावेदारों के नाम कट गये. एकनाथ शिंदे को कैसा लगा समझा जा सकता है.
एकनाथ शिंदे के देवेंद्र फडणवीस और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ भी काफी अच्छे संबंध बताये जाते हैं. माना जाता है कि एकनाथ शिंदे भी धीरे धीरे उस विचार के पैरोकारों में शुमार हो गये, जो कहते हैं कि शिवसेना और बीजेपी को तो साथ ही रहना चाहिये. मतलब, शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी के साथ कतई नहीं रहना चाहिये. एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे शिवसेना के महाराष्ट्र के कल्याण से लोक सभा सांसद हैं.
शिवसेना के एक विधायक प्रताप सरनाईक ने तो उद्धव ठाकरे को चिट्ठी लिख कर कहा कि शिवसेना को बीजेपी से हाथ मिला लेना चाहिये. हालांकि, मालूम हुआ कि वो प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों से शिवसेना नेताओं को बचाने के लिए कहे थे.
बीजेपी तो अपनी ड्यूटी कर रही है
महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने एक बयान जारी कर पल्ला झाड़ने की कोशिश की है. कहते हैं, एकनाथ शिंदे न जो कदम उठाया है, हमारी उसमें कोई भूमिका नहीं है. चंद्रकांत पाटिल ने जो कहा है, उनका हक है - और परदे के पीछे भी जो कुछ कर रहे होंगे, राजनीति में वो सब भी हक का ही हिस्सा होता है. राजनीति में सत्ता सर्वोपरि होती है - और चुनाव सबसे बड़ा युद्ध.
चंद्रकांत पाटिल का दावा अपनी जगह है, लेकिन शिवसेना में हुई बगावत में बीजेपी की भूमिका साफ साफ नजर आ रही है. एकनाथ शिंदे पहले विधायकों को लेकर सूरत जाते हैं - और फिर पूरे दल बल के साथ गुवाहाटी पहुंच जाते हैं. सूरत यानी गुजरात में भी बीजेपी की सरकार है और भूपेंद्र पटेल मुख्यमंत्री. गुवाहाटी यानी असम में भी सत्ता में भाजपा ही है और हिमंत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री.
देवेंद्र फडणवीस के लिए जब सीधे सीधे कुछ बोलना मुश्किल होता है, तो वो रचनात्मक बयान देने लगते हैं. ऐसे ही एक बार कहा था - 'मैं समंदर हूं, लौटकर आऊंगा'. वैसे आने को तो वो 72 घंटे के लिए आये भी थे, लेकिन लहरों ने साथ नहीं दिया और कर्नाटक के बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा की तरह भाग खड़े हुए.
एकनाथ शिंदे की जो ताकत देवेंद्र भडणवीस समझते थे, शायद उद्धव ठाकरे इग्नोर कर गये. देवेंद्र फडणवीस को मालूम था कि एकनाथ शिंदे शिवसेना के लिए धन-बल सारे इंतजाम करते हैं यानी फंड से लेकर राजनीतिक जरूरत की ज्यादातर चीजें. जो भी नेता ऐसा काम करता है, जाहिर है विधायकों पर भी प्रभाव तो रखता ही होगा. अगर उद्धव ठाकरे ये नहीं समझते तो उनको विधायक दल का नेता बनाते भी क्यों? लेकिन आगे की राजनीति में वो चूक गये और अब खामियाजा सामने नजर आ रहा है.
बजट सत्र के दौरान कई लोगों ने देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे के व्यवहार में काफी बदलाव महसूस किया. ऐसा लगने लगा था जैसे दोनों ही किसी कॉमन एजेंडे पर एक जैसा सोचने लगे हों. संपत्ति कर के एक मामले को लेकर जिस तरह से देवेंद्र फडणवीस ने एकनाथ शिंदे को समझाया था, वो भी उनकी बातें मानते देखे गये - और असल बात तो यही है कि उद्धव ठाकरे न तो खुद ये अलर्ट महसूस कर सके, न ही कोई उनको ये बात समझा सका.
देवेंद्र फडणवीस अक्सर कहते रहे हैं कि बीजेपी को गठबंधन सरकार गिराने की कोशिश करने की भी कोई जरूरत नहीं है. ये सरकार अपने से ही गिर जाएगी - और चंद्रकांत पाटिल भी अक्सर इसी लाइन पर बयान देते नजर आये हैं.
सबसे बड़ी हैरानी की बात तो ये है कि हाल ही में जब आदित्य ठाकरे अयोध्या दौरे की तैयारी कर रहे थे, सारे जरूरी इंतजामों की जिम्मेदारी दो ही लोग निभा रहे थे - एक संजय राउत और दसरे एकनाथ शिंदे.
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