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उद्धव ठाकरे को राज्य सभा चुनाव में बीजेपी से मिली शिकस्त कितनी खतरनाक है?
उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) मानें या न मानें लेकिन राज्य सभा चुनाव (RS Election) में बीजेपी के पक्ष में जो उलटफेर देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) ने किया है, वो शिवसेना की कमजोरी बता रहा है - और गठबंधन साथियों की प्रतिक्रिया से संदेह और भी गहरा हो जाता है.
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राज्य सभा चुनाव (RS Election) के लिए 10 जून को हुई वोटिंग के ठीक पहले उद्धव ठाकरे ने रैली की थी. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी के साथ साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी जोरदार हमला बोला था - और केंद्र की मोदी सरकार को नसीहत भी दी थी, 'ED और सीबीआई को हमारे पीछे लगाने के बजाये बेहतर होगा कि वे जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की स्थिति पर ध्यान दें.'
रैली में उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने नुपुर शर्मा के बयान पर हुए विवाद को लेकर भी बहुत कुछ बोला था. बीजेपी और देश में फर्क बताते हुए कई सवाल भी पूछे थे - और अपनी सरकार गिराने की बीजेपी की मंशा का भी जोर देकर जिक्र किया था.
औरंगाबाद रैली में उद्धव ठाकरे ने कहा था, 'कुछ लोगों के सपनों के उलट सरकार ने ढाई साल पूरे कर लिये हैं... वे ये दिखाने के लिए माहौल बनाते हैं कि यहां चीजें ठीक नहीं हैं.'
उद्धव ठाकरे ने भले ही किसी बीजेपी नेता का नाम नहीं लिया, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने फौरन ही रिएक्ट किया - और नुपुर शर्मा को लेकर उद्धव ठाकरे की बातों को नजरअंदाज करते हुए गठबंधन सरकार के कामकाज पर सवालों की झड़ी लगा दी.
राज्य सभा चुनाव में बीजेपी की झोली में एक्स्ट्रा सीटें डाल देने के बाद अब तो देवेंद्र फडणवीस को बोलने का मौका भी मिल गया है. शिवसेना उम्मीदवार को शिकस्त देकर बीजेपी का स्कोर बराबरी पर ला देने के बाद, देवेंद्र फडणवीस कह रहे हैं कि सरकार के कामकाज से नाराजगी के कारण विधायकों ने बीजेपी का सपोर्ट किया है.
देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) का दावा अपनी जगह है, लेकिन वे बातें तो ध्यान बरबस खींच रही हैं जिसमें एनसीपी नेता शरद पवार बधाई दे रहे हैं - और गठबंधन की हार को उनकी सांसद बेटी शर्मनाक हार करार देती हैं.
देवेंद्र फडणवीस ने कौन सा चमत्कार किया: एनसीपी के नवाब मलिक को तो वोट डालने की परमिशन नहीं मिल पायी थी, लेकिन बीजेपी के दो विधायक पीपीई किट में अस्पताल से एंबुलेंस से सीधे वोट डालने पहुंचे थे. देवेंद्र फडणवीस उनके स्वागत में पहले से गेट पर मौजूद थे - और उनके साथ खड़े बीजेपी नेताओं ने ताली बजाकर दोनों विधायकों का स्वागत किया.
चुनाव आयोग के बीजेपी के दबाव में काम करने के शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत के आरोप पर देवेंद्र फडणवीस का कहना था, 'ये कहा जाता है कि एक वोट चुनाव आयोग ने रद्द किया... अगर वो वोट इन्हें मिलता, तब भी हम जीतते... नवाब मलिक आते तब भी हम जीतते.'
बीजेपी के पक्ष में आये नतीजों से उत्साहित देवेंद्र फडणवीस ने ट्वीट कर अपनी खुशी का इजहार किया, 'चुनाव केवल लड़ने के लिए नहीं, जीतने के लिए लड़े जाते हैं. जय महाराष्ट्र!'
असल में गठबंधन सरकार के पास ज्यादा विधायक हैं, लेकिन बीजेपी और गठबंधन दोनों ने तीन-तीन सीटें जीती है. गठबंदन के तीनों दलों के एक एक नेता चुनाव जीत गये हैं, शिवसेना के दूसरे उम्मीदवार संजय पवार को बीजेपी के धनंजय महादिक ने हरा दिया है.
शिवसेना को सत्ता में होते हुए भी हार का मुंह देखना पड़ता हो और गठबंधन साथियों की तरफ से बयानबाजी हो रही हो, तो भला कैसे मान लें कि उद्धव ठाकरे की गठबंधन सरकार में सब ठीक चल रहा है और सरकार को लेकर कोई खतरे वाली बात नहीं है.
उद्धव और पवार के बीच सब ठीक तो है?
शरद पवार का कहना है कि गठबंधन ने महाराष्ट्र से राज्य सभा चुनाव में छठवीं सीट के लिए साहसिक प्रयास किया, लेकिन 'हमें उस चमत्कार को स्वीकार करना होगा जिसके जरिये बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस उन निर्दलीय सदस्यों और छोटे दलों को हमसे दूर करने में सफल रहे... जो गठबंधन का सपोर्ट करते.'
शरद पवार की ही तरह सुप्रिया सुले ने भी कटाक्ष किया है, लेकिन उनका इशारा अलग ही लगता है, 'हमें अपनी शर्मनाक हार स्वीकार करनी चाहिये.'
महाराष्ट्र में राज्य सभा चुनाव के साथ ही बीजेपी ने 'खेला' शुरू कर दिया है
शरद पवार तो कह रहे हैं हार से गठबंधन की उद्धव ठाकरे सरकार पर कोई असर नहीं पड़ने जा रहा है, लेकिन सुप्रिया सुले की बातों से ठीक ऐसा ही क्यों नहीं लगता. सुप्रिया सुले की बातों से तो ऐसा लग रहा है जैसे शिवसेना नेतृत्व ही उनके निशाने पर हो.
एनसीपी सांसद आखिर उद्धव ठाकरे को क्यों टारगेट करेंगी? सुप्रिया सुले को ऐसे बयान देते कम ही सुना जाता है. ये तो ऐसा लगता है जैसे सुप्रिया सुले अपने पिता शरद पवार के मन की बात सुनाने की कोशिश कर रही हों?
राज्य सभा चुनाव में खुद भी उम्मीदवार रहे और जीत चुके संजय राउत कह रहे हैं, 'हमारी पार्टी के नामांकन पर चुने गये किसी भी विधायक ने दलबदल नहीं किया है... ये निर्दलीय हैं, इन्हें प्रलोभन दिया गया - और केंद्रीय जांच एजेंसियों का डर बिठाया गया.'
निर्दलीयों की तरफ तो शरद पवार भी इशारा कर रहे हैं और खास तौर तरीकों से मैनेज कर लेने के लिए देवेंद्र फडणवीस को बधाई भी दे रहे हैं. जहां तक जांच एजेंसियों के धमकाने की बात है, महाराष्ट्र चुनाव से एनसीपी और कांग्रेस नेताओं के बीजेपी ज्वाइन करने को लेकर शरद पवार की भी संजय राउत जैसी ही राय रही है.
और महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले का बयान भी हैरान करता है, 'पवार साहब के मन में क्या है, ये मुझे पता नहीं - लेकिन चुनाव में देवेंद्र फडणवीस की जीत हुई है... उनको शुभकामनाएं देता हूं.'
जिस तरह से अलग अलग बयान आ रहे हैं, सीआईडी वाले एसीपी प्रद्युम्न का मशहूर डायलॉग याद दिला देते हैं, "कुछ तो गड़बड़ है, दया!"
आखिर सुप्रिया सुले शिवसेना की हार के लिए आत्ममंथन की बात क्यों कर रही हैं? क्या गलत हुआ है?
सुप्रिया सुले का कहना है, 'हमें स्पष्ट रूप से आत्मनिरीक्षण करने की आवश्यकता है... क्या सही हुआ और क्या गलत हुआ? अगर आप नंबर को देखें, तो साफ तौर पर आखिर तक हमारे पास सही संख्या नहीं थी... लेकिन हमने चांस लिया...'
ये तो ऐसा लगता है जैसे शिवसेना के दूसरे उम्मीदवार पर एनसीपी को ऐतराज रहा हो? शिवसेना ने संजय राउत और छठवीं सीट के लिए संजय पवार को उम्मीदवार बनाया था. शिवसेना नेतृत्व को उम्मीद रही होगी कि उसे भी जीत लेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
गठबंधन सरकार में तीन पार्टनर हैं, लेकिन शिवसेना ने बाकियों के एक एक के मुकाबले अपने दो उम्मीदवार उतार दिये थे - कहीं उस सीट पर शरद पवार की नजर तो नहीं थी?
बीजेपी अब खुल कर खेलेगी
अब तक तो यही देखने को मिला है कि बीजेपी महाराष्ट्र में फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रही है. ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि देवेंद्र फडणवीस दोबारा 72 घंटे ही सरकार चला पाने के सदमे से नहीं उबर पाये हों.
चाहे कंगना रनौत का मामला रहा हो, चाहे केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की गिरफ्तारी या फिर नवनीत राणा को जेल भेजे जाने का - देवेंद्र फडणवीस चुप तो कभी नहीं रहे, लेकिन जो कुछ भी बोले वो रस्मअदायगी से ज्यादा कभी नहीं लगा.
नवनीत राणा से मिलने देवेंद्र फडणवीस अस्पताल जरूर गये थे, लेकिन नारायण राणे और कंगना रनौत के मामले में बड़ा ही सोच समझ कर बयान दिया था. बीजेपी नेता को तो ऐसे ही मौके की तलाश थी जिसमें वो राजनीतिक दांव से उद्धव ठाकरे को शिकस्त दे सकें - और महाराष्ट्र में करीब दो दशक बाद हुए राज्य सभा के चुनाव ने ये मौका दे दिया.
औरंगाबाद में जिन सपनों का उद्धव ठाकरे मजाक उड़ा रहे थे, देवेंद्र फडणवीस उन सपनों को हकीकत बनाने में जुट गये हैं - सपनों का मर जाना ही नहीं, राजनीति में ऐसे सपने भी खतरनाक होते हैं.
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