New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 06 दिसम्बर, 2020 08:19 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

ठाकरे परिवार की ओर से उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने वाले पहले शख्स हैं - लेकिन चुनाव लड़ने का रिकॉर्ड बेटे आदित्य ठाकरे के नाम कराया है. वैसे शिवसेना की ओर से देखा जाये तो उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की कमान संभालने वाले वे तीसरे शिवसैनिक मुख्यमंत्री हैं. तीसरी बार के लिए शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे को उद्धव ठाकरे ने वादा कर रखा था और 28 नवंबर, 2019 को पूरा भी कर दिखाया, तब भी जबकि 'कमला बाई' को मनाना मुश्किल हो रहा था. बाल ठाकरे बीजेपी को कमला बाई ही कहा करते थे.

महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार को बीजेपी (BJP) नेता अक्सर ही किसी न किसी बहाने कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते रहते हैं. एक आरोप रिमोट कंट्रोल का भी है. हालांकि, पहले भी पिता-पुत्र की ही जोड़ी थी जो रिमोट कंट्रोल से सरकार चलाती थी - अब भी पिता-पुत्र की ही जोड़ी है जिस पर तोहमत है कि रिमोट कंट्रोल से चलती है. पहले पिता-पुत्र की जोड़ी बाला साहेब और उद्धव ठाकरे की रही, जो अब उद्धव और आदित्य ठाकरे की जोड़ी है. पहले ये रिमोट मातोश्री से कंट्रोल हुआ करता था - और अब इस रस्म को सिल्वर ओक से निभाया जाता है. मातोश्री ठाकरे परिवार का घर है तो सिल्वर ओक शरद पवार का.

उद्धव ठाकरे पहले किसी प्रशासनिक पद पर नहीं रहे. लिहाजा उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद सबसे बड़ी आशंका यही थी कि अनुभवहीनता के साथ वे सरकार किस तरह चलाएंगे - लेकिन रिमोट कंट्रोल की सुविधा हो तो प्रशासनिक अनुभव होकर भी काम नहीं आता और न होने पर भी काम चल जाता है. राजनीतिक किंवदंतियों की मानें तो मनमोहन सिंह के बाद उद्धव ठाकरे भी इसी बात के मिसाल बने हैं.

उद्धव ठाकरे जिस दिन से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं, उसी दिन से उनके आखिरी दिन की भविष्यवाणी की जाती रही है. अभी अभी एमएलसी चुनाव के दौरान केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे ने उद्धव सरकार के लिए एक नया एक्सपायरी डेट बताया - बस दो-तीन महीने. नारायण राणे ने तो इससे पहले तारीख ही बता दी थी - 30 नवंबर. डेडलाइन बीत चुकी है और ताजातरीन वाकया है कि एमएलसी चुनाव में बीजेपी बुरी तरह हार चुकी है, जिसमें नागपुर की सीट भी शामिल है.

हाल के कई विधानसभा चुनावों में शिकस्त के बावजूद बीजेपी ने राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का अपना एजेंडा छोड़ा नहीं, हां - बिहार में टोन जरूर थोड़ा सॉफ्ट रखा था. और किसी ने ज्यादा तो नहीं, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने की बात जरूर की, लेकिन तुरंत ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ही काउंटर कर दिया - किसी में भी इतना माद्दा नहीं जो ऐसा कर पाये.

लेकिन वही राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का एजेंडा अभी अभी हुए हैदराबाद नगर निगम चुनाव में पूरी तरह सफल रहा है - चार साल के अंदर ही बीजेपी ने सीटों के मामले में 11 गुणा उछाल दर्ज किया है. लग तो यहां तक रहा था कि बीजेपी का हैदराबाद एक्सपेरिमेंट हार जीत से ज्यादा राजनीतिक विरोधियों और अपने वोटर-समर्थकों को मैसेज देने की कोशिश रही. मैसेज तो डिलीवर हुआ ही, नतीजों ने जोश भी सातवें आसमान पर कर रखा है.

अयोध्या (6 December) में राम मंदिर निर्माण के बाद बीजेपी के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के नये सियासी कॉकटेल में ज्यादातर राजनीतिक विरोधी तो धराशायी होते जा रहे हैं, लेकिन उद्धव ठाकरे को छूने की हिम्मत नहीं पड़ रही है. बीजेपी के बड़े नेता सीधे सीधे कुछ भी बोलने से बचते हैं - और कभी रामदास आठवले तो कभी बाहर से योगी आदित्यनाथ को भेजा जाता है - मुंबई बनाम नोएडा फिल्म सिटी को लेकर बहस भी बीजेपी और शिवसेना नेतृत्व के बीच के झगड़े का ही एक हिस्सा है.

हिंदुत्व और उद्धव ठाकरे

कट्टर हिंदुत्व की राजनीति के मामले में शिवसेना ही बीजेपी से दो कदम आगे रही है. बीजेपी को तो कट्टर हिंदुत्व की राजनीति के लिए कभी वीएचपी तो कभी बजरंग दल को आगे बढ़ा कर सपोर्ट में खड़ा रहना पड़ा है.

एक जमाना था जब देश की बात हो या फिर हिंदुत्व पर आंच आने जैसा लगता हो, शिवसेना खुद सड़क पर उतर आती थी. शिवसैनिक भी 'राणा की पुतली फिरी नहीं तब तक चेतक' वाले अंदाज में कभी क्रिकेट की पिच खोद देते तो कभी किसी के मुंह पर कालिख पोत देते - और तोड़ फोड़ से लेकर किसी भी तरह के उत्पात मचाने में तो उनका कोई सानी भी नहीं था.

Uddhav thackerayउद्धव ठाकरे सरकार के लिए डेडलाइन तय करना बीजेपी के लिए मुश्किल होता जा रहा है!

बीजेपी आज भले ही शिवसेना नेतृत्व को हिंदुत्व का पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रही हो, लेकिन अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 की घटना के लिए जिस तरह का बोल्ड रिएक्शन बाला साहेब ठाकरे ने दिया था, कभी लौह पुरुष कहे जाने वाले बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी के मुंह से भी नहीं सुनने को मिला होगा. बाबरी मस्जिद गिराये जाने पर जब बीजेपी में खुल कर जिम्मेदारियां लेने से संकोच देखा गया तो ये बाला साहेब ठाकरे ही रहे जिनका कहना रहा, 'अगर बाहरी ढांचा शिवसैनिकों ने गिराया है तो मुझे इस बात पर गर्व है.'

जब तक शिवसेना और बीजेपी का चुनावी गठबंधन रहा, उद्धव ठाकरे को ऐसा सोचने की जरूरत भी कभी नहीं पड़ी - क्योंकि अब तो सूबे का राज्यपाल भी राज्य के मुख्यमंत्री से पूछने लगा है - सेक्युलर कैसे हो गये भाई, तुम तो अच्छे खासे हिंदुत्व के लंबरदार हुआ करते थे?

जब से बीजेपी को छोड़ कर उद्धव ठाकरे ने शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाकर महाविकास आघाड़ी की सरकार बना ली, तभी से राष्ट्रवाद और हिंदुत्व को लेकर बार बार सफाई और सबूत देने के नौबत आ पड़ी है. अपनी सरकार के 100 दिन पूरे होने पर जश्न के लिए उद्धव ठाकरे अयोध्या में थे, लेकिन जब राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन का मौका आया तो ई-पूजा की सलाह देकर घिर भी गये और नये सिरे से सफाई देनी पड़ी.

वैसे बीच बीच में मौका देख कर उद्धव ठाकरे दहाड़ते भी रहते हैं - और बगैर नाम लिए भी बीजेपी नेतृत्व को जितना भी भला बुरा हो सकता है, कहने से चूकते भी नहीं हैं.

अभी एक इंटरव्यू में उद्धव ठाकरे का कहना रहा कि शिवसेना का हिंदुत्व एक संस्कृति है, जबकि बीजेपी में विकृति आ गई है - यही वजह है कि शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन टूटा है और ऐसे संकेत भी दिये कि आगे ऐसी कोई संभावना भी नहीं बनती.

नवभारत टाइम्स का उद्धव ठाकरे से सवाल था - 'बीजेपी आपको और आपके परिवार को व्यक्तिगत तौर पर निशाना बना रही है - शिवसेना के हिंदुत्व पर सवाल खड़े कर रही है, फिर भी आप उसका जवाब नहीं दे रहे?'

जवाब में उद्धव ठाकरे बोले, 'मेरा हिंदुत्व विकृत नहीं है और झूठे आरोप करना मेरी संस्कृति नहीं है. मैंने कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह या उनके परिवार के किसी सदस्य पर व्यक्तिगत और झूठे आरोप नहीं लगाये. इसीलिए मैं हमेशा कहता हूं कि परिवार और बच्चों को राजनीति में नहीं घसीटा जाना चाहिये.'

उद्धव ठाकरे की ये बात सुशांत सिंह राजपूत केस को लेकर बीजेपी सांसद नारायण राणे और उनके बेटे विधायक नितेश राणे की तरफ से आदित्य ठाकरे को टारगेट किये जाने को लेकर ही लगती है. नितेश राणे तो नाम तो नहीं लेते रहे लेकिन 'बेबी पेंग्विन' कहते हुए सब कुछ कह जाते रहे. आदित्य ठाकरे ने तो तभी कहा था कि ऐसी सस्ती राजनीति नहीं देखी कभी, लेकिन उद्धव ठाकरे ने हाल ही में कहा था कि जिस तरह से आदित्य को निशाना बनाया गया वो बहुत बुरा रहा.

उद्धव ठाकरे को ये सब कितना बुरा लगा था, गठबंधन सरकार की सालगिरह पर उनके इंटरव्यू से ही साफ हो जाता है - 'हमारे परिवार या बच्चों पर आप हमला करना चाहते हैं तो. याद रखें उन लोगों के भी परिवार और बच्चे हैं. और, आप भी धुले चावल नहीं हो. तुम्हारी खिचड़ी कैसे पकानी है, वो हम पका सकते हैं.'

चाहे चुनाव हो या कोई और मौका बीजेपी कांग्रेस सहित सारे राजनीतिक विरोधियों को एक ही लाठी से हांक लेती है. दिल्ली में ये सब देखा ही गया, बिहार चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल में भी वही नजारा दिखेगा, कोई दो राय नहीं लगती. चूंकि उद्धव ठाकरे राजनीति की ऐसी पृष्ठभूमि से आते हैं कि बीजेपी के लिए कुछ भी बोलने से पहले चार बार सोचना ही पड़ता है.

अब तो इसमें भी कोई शक नहीं कि उद्धव ठाकरे केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी से दो-दो हाथ करने में दो बार सोच विचार भी कर रहे हैं. सोनिया गांधी के बुलाने पर गैर-एनडीए मुख्यमंत्रियों की बैठक में तो उद्धव ठाकरे ने साफ साफ कह दिया था कि पहले ये तय करना होगा कि डरना है या लड़ना है. ये बात तब वो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कह रहे थे. उसके बाद से देखें तो उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी दोनों ही बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ ज्यादा मुखर नजर आये हैं.

अपनी सरकार के एक साल पूरा होने पर शिवसेना के मुखपत्र सामना को दिये इंटरव्यू में उद्धव ठाकरे का कहना रहा - 'बीजेपी हमें हिंदुत्व सिखाने के पचड़े में न पड़े... देश में भगवा का स्वराज्य छत्रपति शिवाजी महाराज ने ही स्थापित किया... कम से कम महाराष्ट्र की मिट्टी को तो हिंदुत्व और वो भी तुम्हारे दलालों का हिंदुत्व सिखाने की जरूरत नहीं.

उद्धव सरकार कब तक?

ये सवाल तो उद्धव ठाकरे के कुर्सी पर बैठते ही शुरू हो गया था. साल भर बीत गये, लेकिन रामदास आठवले से लेकर तमाम बीजेपी नेताओं के दावे एक के बाद एक झूठे ही साबित होते जा रहे हैं. औरंगाबाद स्नातक निर्वाचन क्षेत्र में विधान परिषद चुनाव के लिए परभणी में बीजेपी कार्यकर्ताओं से केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे कहते सुने गये, बीजेपी महाराष्ट्र में अगले दो-तीन महीने में सरकार बना लेगी.

बीजेपी नेता ने कहा था कि वो एमएलसी चुनाव का इंतजार कर रहे हैं - 'सरकार कैसे बनेगी ये मैं आपको नहीं बताऊंगा, ये उन्हें बताऊंगा वो भी सरकार स्थापित करने के बाद.'

अब तो एमएलसी चुनाव हो भी चुके हैं और 6 में से 5 सीटों पर महाविकास आघाड़ी के उम्मीदवार विजयी भी घोषित किये जा चुके हैं. छह सीटों में से सिर्फ एक सीट बीजेपी को मिली है, लेकिन सबसे बड़ी बात है कि नागपुर की सीट हाथ से निकल गयी है. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम और एनसीपी नेता अजीत पवार ने कहा है, 'विधान परिषद चुनाव में आघाड़ी की जीत गठबंधन दलों के बीच एकता का सबूत है.'

बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भी योगी आदित्यनाथ की तरह मानना पड़ा है, 'महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव के परिणाम हमारी उम्मीदों के मुताबिक नहीं हैं... हम ज्यादा सीटों की उम्मीद कर रहे थे जबकि सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली है... हमसे तीनों पार्टियों की सम्मिलित ताकत को आंकने में चूक हुई.' 2018 में हुए यूपी में हुए उपचुनावों में बीजेपी की हार पर योगी आदित्यनाथ का कहना रहा कि वो अखिलेश यादव और मायावती के चुनावी गठजोड़ को काफी हल्के में ले लिये और हादसा हो गया.

एमएलसी चुनाव में बीजेपी की हार से महाआघाड़ी सरकार के मंत्रियों का जोश बढ़ गया है, एनसीपी नेता नवाब मलिक कहते हैं, 'चुनाव नतीजे पिछले एक साल में महाविकास आघाड़ी के विकास कार्यों पर मुहर की तरह हैं... बीजेपी को सच्चाई स्वीकार करनी चाहिये... विधान परिषद चुनाव के बाद राज्य में सत्ता परिवर्तन का उनका दावा खोखला साबित हुआ है.'

शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत का तो कहना ही क्या - 'हमारी सरकार एक साल का कार्यकाल पूरा कर रही है और अभी 4 साल और सत्ता में रहकर शासन करेगी. पिछले साल जो तीन दिन की सरकार बनी थी, ये लोग उसकी बरसी मना रहे हैं, क्योंकि उनके द्वारा किये गये सभी तरह के प्रयास फेल हो गये हैं.

जब तक एक्टर कंगना रनौत औपचारिक तौर पर बीजेपी ज्वाइन नहीं कर लेतीं, उद्धव ठाकरे को घेरने के लिए बीजेपी को कभी रामदास आठवले तो योगी आदित्यनाथ की जरूरत पड़ती रहेगी. हो सकता है कभी कभी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी भी बर्दाश्त न होने पर आगे आयें - और उद्धव ठाकरे को फिर से कोई चिट्ठी लिखें.

महाराष्ट्र बीजेपी के नेताओं के लिए कंगना मामले में भी शिवसेना को काउंटर करना और उद्धव ठाकरे पर निजी हमले करना मुश्किल साबित हुआ. बीजेपी उद्धव ठाकरे पर सीधा अटैक कर मराठी मानुष को नाराज नहीं करना चाहती - और यही वो मराठी अस्मिता का मुद्दा है जहां देवेंद्र फडणवीस सहित कोई भी नेता उद्धव ठाकरे से सीधे सीधे पंगा नहीं लेना चाहता.

समझा जाता है कि शरद पवार के पास ही महाविकास आघाड़ी सरकार का रिमोट कंट्रोल है - लेकिन हकीकत भी यही है कि बगैर उद्धव ठाकरे के कंधे के बंदूक तो वो भी नहीं चला सकते - क्रॉस फायरिंग का रिजल्ट वो भी जानते ही हैं.

उद्धव ठाकरे भी ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं की तरह ताकतवर साबित हो रहे हैं, जिनके खिलाफ केंद्र की कोई भी सत्ताधारी पार्टी मायावती और मुलायम सिंह यादव जैसे पेश नहीं आ सकती. ऊपर से मराठी अस्मिता का चोला और शिवसेना की मुंबई की गलियों से लेकर महाराष्ट्र के खेतों और मोहल्लों तक पैठ - मातोश्री को हद से ज्यादा ताकतवर बना देती है.

इन्हें भी पढ़ें :

उद्धव ठाकरे से सीधे टक्कर नहीं ले रही BJP - मोर्चे पर कभी योगी कभी आठवले क्यों?

GHMC election results: हैदराबाद के लोकल चुनाव में बीजेपी का नेशनल एजेंडा कैसे चला

लालू-नीतीश की दुनिया उजाड़ने का BJP का प्लान बड़ा दिलचस्प लगता है!

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय