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Updated: 03 दिसम्बर, 2020 11:27 AM
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योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के दौरे से पहले से ही मुंबई में खलबली सी मच गयी. एक तरफ बॉलीवुड हस्तियों में जोश देखने को मिल रहा है तो सत्ता के गलियारों में काफी बेचैनी महसूस की जा रही है.

योगी आदित्यनाथ के फिल्म सिटी प्रोजेक्ट का विरोध उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) अकेले नहीं कर रहे हैं, उनके साथ महाविकास आघाड़ी के साथी और चचेरे भाई राज ठाकरे की MNS के साथ साथ महाराष्ट्र बीजेपी के नेता भी एक सुर में एक ही बात कह रहे हैं - "मुंबई से फिल्म सिटी को कहीं और शिफ्ट नहीं किया जा सकता है."

'मुंबई से बॉलीवुड को खत्म करने के इल्जाम' के बीच योगी आदित्यनाथ सबसे पहले एक्टर अक्षय कुमार और फिर सिंगर कैलाश खेर से मिले और उसके बाद भी काफी लंबी कतार देखने को मिली जिनमें बोनी कपूर और तिग्मांशु धूलिया जैसे प्रोड्यूसर-डायरेक्टर शामिल रहे.

योगी आदित्यनाथ का स्वागत मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ये कह कर किया कि प्रतिस्पर्धा अच्छी चीज है, लेकिन कोई धमकाने की चेष्टा करे तो ऐसा हरगिज नहीं होने दिया जाएगा. ऐसी सारी बातों से बेपरवाह योगी आदित्यनाथ ने मुंबई में धावा बोलते हुए डेरा डाल ही दिया - और बारी बारी हर उस महत्वपूर्ण शख्सियत से मिलने की कोशिश किये जो उनके काम आ सके और हां, मिलने को भी तैयार हो.

ऊपर से तो ये मामला फिल्म सिटी को लेकर छिड़ी लड़ाई जैसा ही है, लेकिन अंदर की राजनीति बहुत ही दूरगामी सोच वाली लगती है. बीजेपी के लिए देवेंद्र फडणवीस के जरिये उद्धव ठाकरे को काउंटर करना मुश्किल हो रहा है, लिहाजा वो सियासी हमले आउटसोर्स करने लगी है. योगी आदित्यनाथ के मुंबई दौरे का असली मकसद और उसके पीछे की रणनीति भी कुछ कुछ ऐसी ही लगती है. लोकल लेवल पर उद्धव के खिलाफ बीजेपी फील्ड में रामदास आठवले (Ram Das Athawale) को तो मोर्चे पर भेज देती है, लेकिन उनकी भी अपनी सीमाएं हैं. बीजेपी की केंद्र सरकार ने कंगना रनौत को सिक्योरिटी तो दे दी, लेकिन एयरपोर्ट पर रिसीव करने के लिए इम्पोर्टेड आइटम आठवले टीम को हायर करना पड़ा था. बयान तो राम दास आठवले हर कुछ दिन पर देते रहते हैं कि अगले तीन महीने में उद्धव ठाकरे सरकार गिर जाएगी - या फिर शिवसेना को भी एनडीए में लौट जाना चाहिये.

uddhav thackeray, yogi adityanathबीजेपी को लगता है कि उद्धव ठाकरे को योगी आदित्यनाथ ही मुंहतोड़ जवाब दे सकते हैं - ऐसा क्या?

ध्यान देने वाली बात ये है कि योगी आदित्यनाथ के विरोध के खड़े नेताओं वाली छोर पर ही महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांद पाटिल भी खड़े हैं - और यही बता रहा है कि ये लड़ाई किसी फिल्म सिटी के लिए नहीं बल्कि मायानगरी में बने मंत्रालय बिल्डिंग की कुर्सी को लेकर है.

लगता नहीं देवेंद्र फडणवीस से हो पाएगा

महाराष्ट्र में बीजेपी ने चुन चुन कर देवेंद्र फडणवीस के राजनीतिक विरोधियों को ठिकाने लगाया - और 40 साल तक संघ की विचारधारा को ढोते रहने वाले एकनाथ खड्से को शरद पवार की एनसीपी में जाने को मजबूर होना पड़ा. पंकजा मुंडे और विनोद तावड़े जैसे नेताओं को पहले हाशिये पर किया गया और फिर जेपी नड्डा ने जो टीम बनायी उसमें महाराष्ट्र में उनकी पावर सप्लायी ही काट दी गयी.

देवेंद्र फडणवीस के लिए दिल्ली से मजबूत बैक अप फायर मिलने के बावजूद उद्धव ठाकरे से लोहा लेना मुश्किल क्यों हो रहा है?

शिवसेना नेतृत्व को लगता है कि महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ जो कुछ भी हो रहा है कि उसके पीछे बीजेपी का हाथ है - और सब कुछ बदले की कार्रवाई क तहत हो रहा है. वैसे सुशांत सिंह राजपूत केस में जिस तरीके से सीबीआई जांच में जुगाड़ और उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे के खिलाफ बीजेपी नेताओें नारायण राणे और उनके बेटे नितेश राणे की तरफ से 'पेंग्विन अटैक' हुआ - शिवसेना नेतृत्व का ये सब सोचना बहुत गलत भी नहीं लगता.

लगता तो ये भी है कि शिवसेना और सरकार में साथी नेता ये भी मान कर चल रहे हैं कि एनसीबी के जरिये चुन चुन कर बॉलीवुड के लोगों को समन भेजना, पूछताछ और फिर गिरफ्तार कर जेल भेजा जाना भी असलियत में राजनीतिक कार्रवाई ही है. और यही वजह है कि टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी को मुंबई पुलिस के जेल भेजने को भी शिवसेना का बीजेपी के खिलाफ सियासी पलटवार समझा गया है. ये शिवसेना के 'शठे शाठ्यम् समाचरेत' दांव का हिस्सा रहा. ऐसे छिटपुट वाकयों के अलावा को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी घोटाले में महाराष्ट्र पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा की छापेमारी बड़ा कदम है और इसका मकसद भी अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी की ही तरह सबक सिखाने और मैसेज देने जैसा है - तुम एक को निशाना बनाओगे तो हम 10 का शिकार करेंगे.

को-ऑपरेटिव सोसायटी घोटाले में शिकार बने हैं पूर्व मंत्री गिरीश महाजन के करीबी लोग. गिरीश महाजन को पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का करीबी माना जाता है. आगे का हाल समाचार भी पहले ही ही आ चुका है - देवेंद्र फडणवीस के जानी दुश्मन और अब सीनियर एनसीपी नेता एकनाथ खड्से घोटाले को लेकर जल्दी ही कोई बड़ा खुलासा करने वाले हैं.

योगी आदित्यनाथ और उद्धव ठाकरे के बीच इससे पहले बड़ा टकराव पालघर में साधुओं की हत्या के मामले में देखने को मिला था. कोरोना वायरस के लिए लॉकडाउन के दौरान तो तनातनी रही ही, पालघर हत्या को लेकर योगी आदित्यनाथ ने उद्धव ठाकरे को फोन कर सख्त एक्शन लेने की सलाह दी थी. तभी कुछ ही दिन बाद यूपी के बुलंदशहर से भी वैसी ही घटना की खबर आ गयी. उद्धव ठाकरे ने बगैर कोई देर किये योगी आदित्यनाथ को फोन कर सलाह तो लौटाई ही, लगे हाथ ये भी बता दिया कि केस को हैंडल करने में कोई चीज समझ न आये तो मदद के लिए तैयार हैं क्योंकि ताजा अनुभव जो है.

मुंबई पहुंचते ही फिल्म स्टार अक्षय कुमार से योगी आदित्यनाथ की मुलाकात पर शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने बड़ा ही लंबा कटाक्ष किया है - 'फाइव स्टार होटल में ठहरे साधु महाराज के लिए अक्षय शायद आम की टोकरी लेकर गए होंगे.' संजय राउत ने अक्षय कुमार से जुड़ा वो प्रसंग योगी आदित्यनाथ के साथ जोड़ दिया है जब एक्टर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक टीवी इंटरव्यू लिये थे और आम खाने के तौर तरीके को लेकर काफी दिलचस्प बातचीत हुई थी.

योगी आदित्यनाथ के फिल्म सिटी मिशन को लेकर एक कार्यक्रम में उद्धव ठाकरे ने कहा था - कॉम्पिटीशन होना अच्छी बात है, लेकिन चिल्लाकर, धमकाकर कोई लेकर जाना चाहेगा तो मैं वो होने नहीं दूंगा.' और बगैर योगी आदित्यनाथ का नाम लिये ये भी चैलेंज किया, 'दम हैं तो यहां के उद्योग को बाहर लेकर जायें.'

संजय राउत कह रहे हैं, 'दक्षिण भारत में फिल्म इंडस्ट्री भी काफी बड़ी है... पंजाब और पश्चिम बंगाल में भी फिल्म सिटी हैं - क्या योगी जी वहां जाएंगे और वहां के डायरेक्टर, आर्टिस्ट से बात करेंगे या फिर वह केवल मुंबई में ही ये करना चाहते हैं?'

योगी आदित्यनाथ के खिलाफ उद्धव ठाकरे, संजय राउत के अलावा कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण, एनसीपी नेता नवाब मलिक के साथ साथ राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी कड़े तेजर दिखाये हैं, लेकिन महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंत्रकांत पाटिल का बयान कहीं ज्यादा दिलचस्प लगता है. चंद्रकांत पाटिल कहते हैं, 'योगी जी यहां फिल्म सिटी और इंडस्ट्री को उपलब्ध कराई वाली सुविधा को लेकर अध्ययन करने आए होंगे - लेकिन फिल्म सिटी और इसके ग्लैमर को कोई मुंबई से बाहर नहीं ले जा सकता.'

योगी की फिल्म सिटी में कितनी दिलचस्पी लगती है?

उद्धव ठाकरे को सही तरीके से वही काउंटर कर सकता है जिसे मराठी अस्मिता को लेकर वहां के लोगों की नाराजगी की परवाह न हो. मतलब वो राष्ट्रीय नेता न हो जिसे विरोध के चलते वोट गंवाना पड़े. वोट मांगने तो योगी आदित्यनाथ आगे भी जाते रहेंगे, लेकिन वो अपने श्रद्धालुओं के इलाकों तक ही सीमित रहेंगे. बाकी बातों से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता. अभी तो उनको उत्तर प्रदेश की राजनीति ही करने है, जब तक कि मोदी शाह दिल्ली तक पंख फैलाने की छूट नहीं देते. कभी कभार छूट मिलेगी भी तो दिल्ली विधानसभा चुनाव में कुछ इलाकों में चुनावी रैली की ही - ये तो सीजनल छूट हुई, भले ही बंपर कैटेगरी में आती हो.

उद्धव ठाकरे के खिलाफ बीजेपी की मुहिम में योगी आदित्यनाथ इस पैरामीटर में आसानी से फिट हो जाते हैं. योगी आदित्यनाथ के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से सीधे जुड़े होने के कारण हिंदुत्व की राजनीतिक लाइन भी फिलहाल उद्धव ठाकने के लिए चुनौती पेश करती है. होता ये है कि उद्धव ठाकरे को वो बातें भी कहनी पड़ती हैं जो सबको पसंद हो और वे भी जिनसे हिंदुत्व की राजनीति पसंद करने वालों से भी संवाद कायम रहे. कुछ दिन पहले तो महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने लिखित तौर पर उद्धव ठाकरे से ये भी पूछ लिया था कि आप तो हिंदुत्व का झंडा लिये घूमते रहे - अचानक सेक्युलर कैसे हो गये. ये बात तब की है जब बीजेपी नेता भी महाराष्ट्र मंदिर खोलने के लिए उद्धव ठाकरे को टारगेट किया करते रहे.

ये सही है कि आबादी बढ़ जाने पर नये शहर बसाने पड़ते हैं, लेकिन नोएडा को मुंबई का विकल्प बनने में बरसों लगेंगे - मुंबई तो दूर अभी तो नोएडा में दिल्ली जितनी भी बिजली और दूसरी सुविधायें नहीं मिलती - और सिर्फ बिजली से ही काम थोड़े ही न चलने वाला है. कहने को तो गाजियाबाद के हिंडन में भी एयरपोर्ट चालू हो गया है, लेकिन वहां बहुत ही सीमित सेवाएं हैं और जब तक जेवर एयरपोर्ट बन नहीं जाता नोएडा से कहीं भी आने जाने के लिए पूरी दिल्ली पार करना कोई मामूली जहमत तो है नहीं.

बाकी फील्ड के निवेशकों की तरह यूपी में कानून व्यवस्था की समस्या से भी फिल्म निर्माण में कोई खास मुश्किल नहीं आने वाली - जो फिल्मी हस्तियां अंडरवर्ल्ड के साथ बरसों पहले कोरोना वायरस की तरह जीना सीख चुकी हों, उनके लिए यूपी के मौसमी क्रिमिनल क्या मायने रखते हैं भला. वैसे भी योगी सरकार एनकाउंटर के बाद जेलों में बंद माफियाओं के आशियाने चुन चुन कर गिराने ही लगी है, ताकि जेल से छूट कर आयें तो भी उनके लिए कोई ठिकाना न बचे और ठिकाने बदल बदल कर ही रात गुजारने को मजबूर होना पड़े - और कहीं किसी ने ज्यादा ऊंच-नीच सोची तो 'ठांय ठांय' तो है ही.

योगी आदित्यनाथ की फिल्म सिटी को लेकर उम्मीदें जगाने के चलते रवि किशन और मनोज तिवारी जैसे अदाकारों का जोश बढ़ा है और उन जैसों को लगता है कि ऐसा हुआ तो मराठी लोगों के वर्चस्व को तोड़ कर भोजपुरी वालों को काम करने और खुल कर अपना जौहर दिखाने का मौका मिलेगा, लेकिन जब तक भोजपुरी मनोरंजन के क्षेत्र में कॉपी करने और गीतों में अश्लीलता की सवारी करने की आदत नहीं छूटेगी - सारी कवायद बेकार ही लगती है.

योगी आदित्यनाथ 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से लोगों का बीजेपी और योगी आदित्यनाथ के प्रति आकर्षण तो बना हुआ है, लेकिन हाल के कई चुनाव में मंदिर मुद्दा वोट नहीं जुटा पाते देखा गया है. ऐसे में योगी आदित्यनाथ ऐसा कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं जिसे वो अपनी उपलब्धि के तौर पर बता सकें - वरना, एनकाउंटर और कानून व्यवस्था के अलावा उनके हाथ एक पुराना प्रोजेक्ट लव जिहाद ही बचा है. योगी आदित्यनाथ की नोएडा फिल्म सिटी को लेकर जो भी दिलचस्पी है, लेकिन उद्धव ठाकरे को मुंबई पहुंच कर ललकारे में तो वो सक्षम हैं ही - और बीजेपी नेतृत्व इससे ज्यादा भला और चाहिये भी क्या?

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