New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 03 जून, 2022 05:15 PM
अमित सिंह
अमित सिंह
  @100000411375491
  • Total Shares

2 मई बड़गाम - राहुल भट्ट, 13 मई पुलवामा - पुलिसकर्मी रियाज अहमद ठाकोर, 25 मई - टीवी आर्टिस्ट अमरीन भट्ट, 31 मई कुलगाम - टीचर रजनी बाला और 2 जून कुलगाम बैंक मैनेजर विजय कुमार, ये वो नाम हैं जिन्होंने पिछले एक महीने में टारगेट किलिंग में अपनी जान गवाई. इस साल 16 से अधिक हिन्दू और गैर-कश्मीरी घाटी में टारगेट किलिंग का शिकार बन चुकें हैं. पिछले एक महीने में आतंकियों ने जिस तरह चुन-चुनकर गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाया है, उसने घाटी के हिन्दुओं और गैर-कश्मीरियों में दहशत बढ़ा दी है. जिसके बाद कश्मीरी हिन्दुओं के सामूहिक पलायन की तैयारी की खबरें भी आने लगी हैं. ऐसे में ये लगने लगा है कि क्या एक बार फिर से घाटी में 90 वाला दशक लौटने लगा है, जिसमें लाखों हिन्दुओं ने घाटी से पलायन कर दिया था.

क्या है टारगेट किलिंग

टारगेट किलिंग के तहत पहले कई दिनों तक सॉफ्ट टारगेट की गतिविधियों की रेकी कर उसके बारे में तमाम जानकारी जुटाई जाती है. उन्हें यह अच्छी तरह पता होता है कि कब और किस समय हमला करना मुफीद होगा. जम्मू-कश्मीर में भी इसी पैटर्न के तहत गैर कश्मीरियों की हत्याएं की जा रही हैं.

जम्मू-काश्मीर में 90 के दशक से टारगेट किलिंग शुरू हुई थी, जो 2021 में फिर से शुरू हो गयी है. घाटी में टारगेट किलिंग द्वारा आतंकी आम लोगों के बीच डर का माहौल बनाकर उन्हें घाटी छोड़ने के लिए मजबूर करते हैं.

Jammu Kashmir, Hindu, Murder, Kashmiri Pandit, Muslim, Terrorist, Terrorism, Narendra Modi, Prime Ministerकश्मीर में आतंकियों द्वारा बैंक मैनेजर की हत्या के बाद एक बार फिर सरकार की नीतियां सवालों के घेरे में हैं

 

कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की स्थिति

केंद्र की लगभग सभी सरकारें कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताती रहीं हैं, विशेषतौर पर बीजेपी ने हमेशा इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया है. पर जमीनी स्तर पर अब तक ऐसा नहीं किया जा सका है.

20 जुलाई, 2021 एक RTI के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बताया कि 31 जनवरी 2021 तक लगभग 44,167 प्रवासी परिवारों पुनर्वास के लिए अपना पंजीकरण करवाया था. पुनर्वास पर सवाल के जवाब में, गृह मंत्रालय ने जवाब दिया था कि कश्मीर घाटी में 6000 कश्मीर के प्रवासी कर्मचारियों के लिए 6,000 ट्रांजिट आवास के निर्माण को प्रधानमंत्री विकास पैकेज 2015 के तहत मंजूरी दी गई थी.

गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय के अनुसार, इनमें से केवल 1,025 आवास पूर्ण हो चुकें हैं.

प्रमुख कदम

कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए पिछले 30 साल में दो प्रमुख पहल की गई हैं. पहली अहम पहल 2008 में मनमोहन सिंह सरकार के समय दिया गया पैकेज थी. जिसमें तीन हजार कश्मीरी पंडितों को पहले चरण में सरकारी नौकरी देने का वादा किया गया. हालांकि नवंबर 2015 तक महज 1963 पंडितों को ही राज्य सरकार की नौकरी मिल पाई थी.

इसी तरह 2015 में मोदी सरकार ने पैकेज के तहत 6000 नौकरी देने का ऐलान किया था. सरकार का कहना है कि कश्मीर में 5 अगस्त 2019 के बाद अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद अब तक 1700 कश्मीरी पंडितों को सरकारी नौकरियां मिली हैं.

राज्यसभा में दिए लिखित जवाब में गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि कश्मीरी प्रवासी परिवारों को 2015 के बाद से अब तक 3800 से ज्यादा प्रवासी नौकरियों के लिए घाटी लौट चुके हैं.

इतने खर्च के बावजूद नहीं मिल रही सुरक्षा

एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद 28 महीनों में वहां सुरक्षा पर 9,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय की हाल ही में जारी वार्षिक रिपोर्ट 2020-2021 में इसका उल्लेख किया गया है कि सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर सरकार को सुरक्षा संबंधी (पुलिस) योजना के तहत 9,120.69 करोड़ रुपये जारी किए हैं.

विश्वास जितने की सारी कोशिशे नाकाम

2019 में कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद से सुरक्षा व्यवस्था के साथ ही भारत सरकार ने कश्मीरियों का विश्वास जीतने की काफी कोशिश की हैं, जिसके अंतर्गत कश्मीर के विकास और नवजवानों के रोज़गार पर विशेष ध्यान दिया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री विकास पैकेज (पीएमडीपी-2015) के तहत तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए 80,068 करोड़ रुपये के विकास पैकेज की घोषणा की गई, जिसमें महत्वपूर्ण क्षेत्रों में 63 प्रमुख परियोजनाएं शामिल हैं.

इन योजनाओं में सड़क, बिजली, नई अक्षय ऊर्जा, पर्यटन, स्वास्थ्य, शिक्षा, जल संसाधन, खेल, शहरी विकास, रक्षा और वस्त्र हैं, जिससे घाटी के लाखों लोगों को रोज़गार मिलने की सम्भावना है.

टारगेट किलिंग कारण

दरअसल, आतंकी संगठन यह बिल्कुल नहीं चाहते है कि घाटी से पलायन कर चुके लोग वापस घाटी में आकर बसें. यही कारण है कि आतकवादी और आलगाववादियों ने केंद्र सरकार की पलायन कर चुके लोगों को वापस से राज्य में बसाने को योजना का हमेशा विरोध किया है.

साथ ही केंद्र सरकार अलपसंख्यकों को रोजगार दिलाने की जो व्यवस्था कर रही है उससे घाटी में आतंकवादियों द्वारा बेरोजगार लोगों को इस्तेमाल करने की के मंसूबों को बड़ा झटका दिया है. केंद्र सरकार की योजनाओं ने आतंकियों पर अंकुश लगा दिया है, जिससे वह लोगों को सॉफ्ट टारगेट कर घटना को अंजाम दे रहे हैं.

लोकल लोगों की मिलीभगत?

कश्मीर में जिस तरह से हिन्दुओं और गैर कश्मीरियों को निशाना बनाया जा रहा है उसको देखकर तो यही लगता है कि कही न कही इसमें लोकल और बहुत करीबी लोगों का सहयोग आतकवादियों को मिल रहा है.

मतलब ये है कि जिन इलाकों में ये हत्याएं हो रही हैं वहां हिन्दुओं या गैर कश्मीरी की संख्या बहुत कम है ऐसे में आतकंवादियों को ये कैसे पता चलता है कि कौन से स्कूल में कौन सा टीचर हिन्दू या गैर कश्मीरी है और कौन से बैंक में कौन एम्प्लॉय हिन्दू है?

मतलब इतने सारे लोगों में वो किसी हिन्दू या गैर कश्मीरी को कैसे पहचान पाते हैं? ये वो प्रश्न हैं जो सुरक्षा एजेंसियों के सर दर्द को बढ़ा सकतें हैं.

बदलनी होगी कश्मीर नीति

कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो कश्मीर को लेकर देश में अलग अलग सरकारों की नीति में कुछ विशेष अंतर नहीं रहा है. लगभग सभी सरकारें दशकों से कश्मीरी लोगों का विश्वास जीतने में लगीं हैं, इसके लिए कई योजनाएं भी चलायी गई, जिसका कुछ सकारात्मक असर भी दिखा, पर ओवरआल स्थिति में कोई बड़ा बदलाव देखने को नहीं मिला.

आतंकवादियों के एनकाउंटर का हिंसात्मक विरोध, अलगाववादियों की सजा पर प्रदर्शन और गैर मुस्लिम कश्मीरियों को घाटी में बसाने का विरोध आज भी जारी है. घाटी के अलगाववादी आज भी देश के खिलाफ बयान देते देखे जा सकतें हैं, जो ये दर्शाता है कि हमारी कश्मीर नीति में कोई भारी कमी है जिसकी कीमत अब तक हज़ारों लोगों ने अपनी जान देकर चुकाई है.

ऐसे में लगने लगा है कि क्या अब भारत को भी कश्मीर को लेकर अब किसी दूसरी नीति पर काम करने की ज़रूरत है? दुनिया में ऐसे कई देश हैं जो अलगांववाद और आंतकवाद से झूझ रहें हैं और उन्होंने अपनी कड़ी कार्यवाही से काफी हद तक उसे नियंत्रित करने में सफलता पाई है, ऐसे में भारत को भी अब कश्मीर पर सॉफ्ट पॉलिसी को छोड़कर इन देशों की कड़ी कार्यवाही को अपनाना होगा, शायद तभी कश्मीर से इस अलगाववाद और आतंकवाद का अंत किया जा सके.

ये भी पढ़ें -

टूटे दिल वालों के बदन पर टैटू बनकर रहेंगे सिद्धू मूसेवाला!

सम्राट पृथ्वीराज मूवी का बॉक्स ऑफिस पर जो भी हो, सोशल मीडिया पर बहस हिट है

Mukhtar Abbas Naqvi क्या भाजपा के आखिरी मुस्लिम नुमाइंदे होंगे?

लेखक

अमित सिंह अमित सिंह @100000411375491

लेखक आजतक में पत्रकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय