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Updated: 04 जुलाई, 2018 09:21 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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जस्टिस दीपक मिश्रा ने अपना संदेश साफ कर दिया है - तुम अपना काम देखो, हमें अपना काम बाखूबी आता है. चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग लाने वालों के लिए इससे बेहतर और सख्त जवाब भला और क्या हो सकता है?

दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल की 'जंग' में 'सरकार राज' की व्यवस्था देने वाले जस्टिस दीपक मिश्रा इसी साल अक्टूबर में रिटायर हो रहे हैं. कोर्ट का काला गाउन हमेशा के लिए खूंटी पर टांग कर रखने से पहले जस्टिस दीपक मिश्रा की कलम से आने वाले कुछ और अहम फैसलों का पूरे देश को इंतजार है.

आधी रात को भी अदालत

जस्टिस दीपक मिश्रा ने चीफ जस्टिस की कुर्सी उस वक्त संभाली जब लोगों को फिर से लगने लगा था कि सुप्रीम कोर्ट ही देश की सुप्रीम अथॉरिटी है. जाते जाते जस्टिस जेएस खेहर ने ऐसे फैसले बरसाये थे कि बगैर ढोल की थाप के भी देश बल्ले करते हुए झूम रहा था. योग्यता के बूते सुप्रीम कोर्ट पहुंचे जस्टिस दीपक मिश्रा वरिष्ठता के आधार पर चीफ जस्टिस भी बन चुके थे, फिर लोगों की उम्मीदें कायम रखना बड़ी चुनौती थी.

cji justice dipak misraआधी रात को भी अदालत लगाने के लिए तैयार...

जो जज आधी रात को फांसी के रिव्यू पेटिशन की सुनवाई कर चुका हो, उसके लिए जरूरत पड़ने पर दोहराना कौन सी बड़ी बात होगी. दरअसल, जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने ही मुंबई ब्लास्ट के दोषी याकूब मेमन को फांसी की सजा सुनायी थी - और जब आधी रात को अदालत लगी तो भी अगुवाई जस्टिस दीपक मिश्रा ही कर रहे थे. देर रात शुरू हुई सुनवाई के बाद याकूब मेमन की मौत की सजा बरकरार रखी गयी और फिर तड़के उसे फांसी पर लटका दिया गया.

बतौर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के पास इंसाफ की आस में आधी रात को दरवाजा खटखटाया गया. दिलचस्प बात ये रही कि दरवाजे पर खड़े जो लोग इंसाफ मांग रहे थे, वे कुछ ही दिन पहले जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव ला चुके थे.

इंसाफ करने कुर्सी पर बैठी शख्सियत इस बात की कतई परवाह नहीं करती कि सामने खड़ा शख्स उनके प्रति दुश्मन वाला भाव रखता है या दोस्तवाला. उसे तो बस कानून के हिसाब से इंसाफ करना है - और इंसाफ का तो हक ही ऐसा है कि दरवाजे से कोई खाली हाथ वापस न जाये. जुर्म करने वाले को माकूल सजा मिले और बेकसूर बाइज्जत बरी हो. दीपक मिश्रा ने भी यही किया.

cji justice dipak misraअयोध्या और आधार केस का इंतजार

कर्नाटक चुनाव में पिछड़ने के बावजूद बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा अगली ही सुबह मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले थे. कर्नाटक के गवर्नर भी उन्हें न्योता दे चुके थे. बहुमत साबित करने के लिए भी इतना लंबा वक्त मिला हुआ था कि साम, दाम, दंड और भेद के अलावे भी नुस्खे आजमाये जा सकें. ये जस्टिस दीपक मिश्रा ही रहे जिन्होंने महाभियोग के मामले में मुंहकी खा चुके लोगों को भी इंसाफ दिलाया - और लोकतंत्र को ताक पर रख कर कुर्सी कब्जा करने वालों को शिकस्त खानी पड़ी.

अब 'अयोध्या' और 'आधार' पर इंसाफ की आस

दिल्ली के बाद अब अयोध्या की बारी है - और फिर आधार पर फैसले की. हालांकि, अयोध्या केस में अभी वक्त लग सकता है. क्योंकि अगली तारीख के बाद नियमित सुनवाई शुरू हो सकेगी.

सुप्रीम कोर्ट को ये फैसला करना है कि आधार संवैधानिक या नहीं? चार महीने में 38 दिन चली 130 घंटे की मैराथन सुनवाई के बाद 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. ये इतिहास की दूसरी सबसे लंबी चलने वाली सुनवाई है. इससे पहले केशवानंद भारती केस की सुनवाई 68 दिन चली थी

अयोध्या और आधार ये दो ऐसे मामले हैं जिनकी ओर हर किसी की उम्मीद टिकी हुई है. वैसे ये जस्टिस दीपक मिश्रा का ही दौर है जब सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने पहली पर मीडिया के जरिये देश की जनता से ज्युडिशियरी और लोकतंत्र को बचाने की गुहार लगायी. देश ही नहीं पूरी दुनिया ने देखा जब इंसाफ सुनाने वाले जनता की अदालत में न्याय की गुहार लगा रहे थे. अच्छी बात ये है कि जस्टिस दीपक मिश्रा के कुर्सी पर बैठते कोई खाली हाथ नहीं लौटता. इसे समझने के लिए एक ही मुद्दे पर जस्टिस दीपक मिश्रा के दो फैसले काफी हैं. दिल्ली हाई कोर्ट में रहते जस्टिस दीपक मिश्रा ने राष्ट्रगान के वक्त सिनेमा घरों में खड़ा होना अनिवार्य कर दिया था. जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचता जस्टिस दीपक मिश्रा बेंच लीड कर रहे थे. हाई कोर्ट के राष्ट्रगान के समय खड़े होने की अनिवार्यता को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपक मिश्रा ने खत्म कर दिया. अयोध्या और आधार पर अब उनकी कलम क्या लिखती है - देखना दिलचस्प होगा.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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