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Updated: 30 अप्रिल, 2018 01:53 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने आधार-मोबाइल को लिंक करने का आदेश दिया ही नहीं गया, तो सर्कुलर में सुप्रीम कोर्ट का नाम कैसे लिख दिया गया. कुछ समय पहले जब कैंब्रिज एनालिटिका के साथ फेसबुक के डेटा शेयर करने की खबर सामने आई थी, तो अमेरिका में सीनेट ने उन्हें बैठाकर 5 घंटे तक सवाल पूछे थे. अब जब ये बात सामने आ चुकी है कि आधार-मोबाइल लिंक करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दिया था तो सरकार को भी बैठाकर ये पूछना चाहिए कि आखिर ऐसा करने के पीछे उसकी क्या मंशा थी. सरकार से सवाल करना चाहिए कि आखिर सरकार लोगों का डेटा जमा करके कौन सी नई योजना बनाने की तैयारी कर रही थी.

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सुप्रीम कोर्ट के आदेश को 'औजार' की तरह किया इस्तेमाल

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा है कि उन्होंने मोबाइल उपयोगकर्ताओं के अनिवार्य सत्यापन पर उसके आदेश को एक 'औजार' की तरह इस्तेमाल किया है. कोर्ट ने सिर्फ इतना कहा था मोबाइल उपयोगकर्ता की राष्ट्र सुरक्षा के हित में सत्यापन की जरूरत है, लेकिन सरकार ने मोबाइल को आधार से लिंक कराना अनिवार्य करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया. इतना ही नहीं, उस नोटिफिकेशन में यह भी लिख दिया कि यह आदेश सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जारी किया गया है. खुद सूचना और प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी ट्वीट करते हुए कहा था कि हां मोबाइल को आधार से लिंक करवाना अनिवार्य है और ये सुप्रीम कोर्ट का आदेश है.

 सुप्रीम कोर्ट, मार्क जकरबर्ग, आधार, मोदी सरकार, मोबाइलखुद रविशंकर प्रसाद ने अपने ट्वीट में भी यही कहा था कि आधार को मोबाइल से लिंक कराने का आदेश सुप्रीम कोर्ट का है.

किसी धमकी से कम नहीं लगते थे नोटिफिकेशन

जैसे ही किसी शख्स के फोन में ये नोटिफिकेशन आता था, वो किसी धमकी से कम नहीं लगता था. नोटिफिकेशन में साफ लिखा रहता था कि 6 फरवरी 2018 तक सभी को अपने मोबाइल को आधार से लिंक करना जरूरी है. जो लोग अपना मोबाइल लिंक नहीं करवाएंगे, उनकी सेवाएं बाधित कर दी जाएंगी. आज के दौर में कोई बिना मोबाइल के जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है और उस दौर में किसी का मोबाइल नंबर बंद कर देने की बात कहना किसी धमकी से कम नहीं लगता था. अब सरकार को इस बात का जवाब देना चाहिए कि उसने क्यों लोगों से उनके मोबाइल को आधार से लिंक करवाने को अनिवार्य किया.

आधार डेटा लीक पर भी सरकार की क्लास लगनी चाहिए

कुछ समय पहले ही गूगल पर सर्च करने भर से आधार डेटा वाली कुछ पीडीएफ फाइलें ऑनलाइन मिल जा रही थीं और अब आंध्र प्रदेश से भी आधार डेटा लीक होने का मामला सामने आया है. एक सिक्योरिटी रिसर्चर कोडली श्रीनिवास ने दावा किया है कि आंध्र प्रदेश सरकार ने कुछ प्राइवेट एजेंसियों के साथ करीब 1.3 लाख लोगों को निजी डेटा शेयर किया है. आंध्र प्रदेश के आईटी सेक्रेटरी विजयानंद ने कहा है कि वो ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर ये डेटा कैसे लीक हो गया और क्या-क्या डेटा लीक हुआ है.

जब फेसबुक से डेटा लीक होने की खबर आई थी तो उसे समन तक भेजने की बात सरकार की तरफ से सुनने को मिली, लेकिन आधार डेटा लीक पर ऐसी कोई कार्रवाई करना तो दूर, कुछ कहा तक नहीं. अब जब सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ कर दिया है कि उसने मोबाइल-आधार की लिंकिंग का कोई आदेश नहीं दिया, तो अब सरकार फिर से निशाने पर आ गई है, लेकिन इसका जवाब देने की स्थिति में नहीं है. जिस तरह मार्क जुकरबर्ग ने डेटा लीक को लेकर हर एक सवाल का जवाब दी और अपनी सफाई दी, ठीक उसी तरह अब बारी मोदी सरकार की है. मोदा सरकार को भी कटघरे में लाकर हर सवाल का जवाब लेना जरूरी हो गया है.

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