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Updated: 01 अगस्त, 2020 08:28 PM
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जुलाई, 2020 में कांग्रेस (Congress) की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने पार्टी की दो महत्वपूर्ण बैठकें बुलायी थी - 11 जुलाई को लोक सभा सांसदों की और 30 जुलाई को राज्य सभा सांसदों की. दूसरी बैठक में राज्य सभा के लिए चुने गये नये सांसद भी शामिल थे जिन्होंने 22 जुलाई को ही सदस्यता की शपथ ली थी.

राज्य सभा सांसदों की बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता भी शामिल थे - और मीटिंग के दौरान राहुल गांधी (Rahul Gandhi Brigade) की वापसी की चर्चा सहित तमाम महत्वपूर्ण मुद्दों पर बातें और जम कर बहस भी हुई.

सवाल उठा कि आखिर क्यों कोरोना वायरस की महामारी, चीन और अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी सरकार के बुरी तरह फेल होने के बावजूद कांग्रेस घेरने में नाकाम रही? क्यों लोग कांग्रेस की बात नहीं सुन रहे हैं और बीजेपी का समर्थन कायम है?

मजेदार बात तो ये रही कि अगला सवाल उठते ही पहले सवाल का जवाब भी मिल गया - दरअसल, अगला सवाल कांग्रेस में आत्ममंथन की जरूरत को लेकर उठा और तभी युवा जोश से भरपूर एक नेता कहने लगे कि आत्ममंथन तो 2014 की हार पर होना चाहिये. यूपीए सरकार को लेकर होना चाहिये.

अब इससे दिलचस्प बात क्या होगी कि 2020 में भी कांग्रेस का युवा जोश 2014 की हार पर आत्ममंथन चाहता है. एक तरफ बीजेपी बिहार चुनाव के साथ ही साथ 2021 के बंगाल सहित तमाम राज्यों के चुनावों की तैयारी में जुटी हुई है - और कांग्रेस है कि अभी 2014 को लेकर ही अटकी हुई है.

क्या अब भी समझने और समझाने की जरूरत बचती है कि कांग्रेस मोदी सरकार की नाकामियों से वाकिफ होकर भी क्यों हाथ मलती रह जा रही है?

UPA पर कांग्रेस में उठे सवाल!

कांग्रेस सांसदों को संबोधित तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी किया लेकिन ज्यादातर खामोश ही रहे. जब बर्दाश्त के बाहर बातें होने लगीं तो बीच बीच में दखल भी देनी पड़ी. कांग्रेस के राज्य सभा सांसदों की मीटिंग को लेकर सूत्रों के हवाले से आई रिपोर्ट बताती है कि यूपीए 2 शासन को लेकर कांग्रेस के युवा ब्रिगेड के मन में कितना कुछ भरा हुआ है.

सोनिया गांधी के नेतृत्व में हो रही मीटिंग में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के अलावा कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम, एके एंटनी, गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा सभी मौजूद रहे - ये सभी यूपीए सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे हैं. मीटिंग के दौरान ही कपिल सिब्बल ने ऊपर से लेकर नीचे तक आत्मनिरीक्षण की सलाह दे डाली - बोले, हमें मालूम करना चाहिये कि आखिर कांग्रेस का ये हाल क्यों हो रहा है?

बताते हैं कपिल सिब्बल के मुंह से ये बातें सुनते ही राजीव सातव बरस पड़े. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राजीव सातव कहने लगे - 'आत्मनिरीक्षण पूरी तरह होना चाहिये... लेकिन 44 पर हम कैसे पहुंच गये ये भी देखा जाना चाहिये. 2009 में हम 200 प्लस रहे... आत्मनिरीक्षण की बात आप अभी कर रहे हैं... तब आप सभी मंत्री हुआ करते थे. हम कहां फेल हुए इस पर गौर फरमाया जाना चाहिये... आपको यूपीए 2 काल से आत्मनिरीक्षण करना होगा...'

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान कुछ मौके ऐसे भी आये जब यूपीए शासन की बात हुई तो मनमोहन सिंह ने दखल देने की कोशिश की - असल में ये कांग्रेस के पुराने दिग्गजों और युवा ब्रिगेड की लड़ाई है जो सोनिया गांधी की मौजूदगी में खुल्लम खुल्ला छिड़ गयी. मीटिंग में सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे अहमद पटेल भी मौजूद थे और कई नेताओं ने राजीव सातव की इस टिप्पणी को अपने खिलाफ युवा ब्रिगेड के हमले के तौर पर लिया है.

rahul gandhi, sonia gandhi, manmohan singhकांग्रेस के भीतर यूपीए 2 के कार्यकाल पर उठने लगे हैं सवाल - लेकिन अब क्यों?

राजीव सातव राज्य सभा के लिए नये नये चुन कर आये हैं और राहुल गांधी के बेहद करीबी नेताओं में शुमार किये जाते हैं. यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके राजीव सातव कांग्रेस के गुजरात प्रभारी भी हैं.

कांग्रेस के सीनियर सिटिजन तो मन मसोस कर रह गये लेकिन पंजाब से सांसद और सीनियर नेता शमशेर सिंह ढुलो ने युवा ब्रिगेड को ठीक से जवाब देने की कोशिश पूरी कोशिश की. शमशेर सिंह ने सीधे सीधे बोल दिया कि पार्टी में वरिष्ठों को नजरअंदाज किया जा रहा है और 'चमचों' को आगे बढ़ाया जा रहा है. शमशेर सिंह ने कहा कि पुराने नेताओं ने अपने खून परीने से पार्टी को खड़ा किया है, नये नेताओं ने नहीं. ढुलो ने साफ साफ कह दिया कि 'चमचों' का प्रमोशन हो रहा है और पदों पर बिठाया जा रहा है जिसमें योग्यता और वरिष्ठता नहीं बल्कि पसंद और नापसंद देखा जा रहा है.

शमशेर सिंह ढुलो की बातों के निशाने पर राहुल गांधी भी रहे क्योंकि बुजुर्ग नेताओं की नजर में राजीव सातव जैसे नेता राहुल गांधी के बल पर ही कुछ भी बोले जा रहे हैं. शमशेर सिंह की बातें भी करीब करीब वैसी ही रही जैसा अशोक गहलोत ने हाल फिलहाल सचिन पायलट के संदर्भ में कहा था.

अशोक गहलोत ने कहा था कि सचिन पायलट जैसे नेताओं को कम उम्र में ही काफी कुछ मिल गया है और ठीक से इनकी 'रगड़ाई' नहीं हुई है. अशोक गहलोत से शमशेर सिंह की मंशा भले अलग रही हो, लेकिन भड़ास एक जैसी ही लगती है.

पंजाब से ही आने वाले प्रताप सिंह बाजवा भी राहुल गांधी के करीबी माने जाते हैं. राहुल गांधी ने बाजवा को पंजाब कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष भी बनाया हुआ था लेकिन 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दबाव बनाकर पीसीसी अध्यक्ष का पद बाजवा से छीन लिया था. शायद यही वजह रही कि बाजवा के सुर भी मीटिंग में काफी बदले बदले से रहे.प्रप्रताप प्रताप सिंह बाजवा ने कहा - 'कांग्रेस के कॉडर को देश के कोने कोने में भेजना होगा. बीजेपी सरकार से उनकों सड़कों पर लड़ना होगा - ये सब ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक से नहीं होने वाला है.'

मीटिंग की बातों को आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने ट्विटर पर कई सवाल उठायें हैं -

1. क्या 2014 में कांग्रेस की हार के लिए UPA जिम्मेदार है - ये उचित सवाल है और इसका जवाब मिलना चाहिए?

2. अगर सभी बराबर जिम्मेदार हैं, तो UPA को अलग क्यों रखा जा रहा है?

3. 2019 की हार पर भी मंथन होना चाहिए.

4. सरकार से बाहर हुए करीब 6 साल हो गये हैं, लेकिन UPA पर कोई सवाल नहीं उठाया गया - सवाल तो UPA पर भी उठाये जाने चाहिये?

राहुल गांधी की वापसी की डिमांड जोर पकड़ रही है

राज्य सभा सांसदों की मीटिंग में बुजुर्गों पर बरसने वाले राजीव सातव की भी मांग रही कि राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जाये. ऐसी डिमांड रखने वालों में गुजरात के कांग्रेस नेता शक्तिसिंह गोहिल, असम कांग्रेस अध्यक्ष रिपुन बोरा और नीरज डांगी जैसे नेता आगे बढ़ कर आवाज उठाते देखे गये.

पहले लोक सभा सांसदों की बैठक में भी के. सुरेश, अब्दुल खालिक और गौरव गोगोई जैसे कांग्रेस नेताओं ने राहुल गांधी से आग्रह किया था कि वो फिर से कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभालें. वायनाड से लोक सभा सांसद होने के नाते राहुल गांधी भी उस बैठक में मौजूद रहे. राहुल गांधी की कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर वापसी का नारा बुलंद करने वालों में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी आगे रहे हैं.

सोनिया गांधी को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष का पद संभाले एक साल होने जा रहा है, लेकिन स्थायी अध्यक्ष को लेकर पार्टी अब भी जहां की तहां खड़ी है. 10 अगस्त से पहले कांग्रेस को नयी व्यवस्था को लेकर चुनाव आयोग को आधिकारिक सूचना भी देनी होगी. मतलब, उससे पहले तय हो जाना चाहिये कि सोनिया गांधी ही अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर काम करती रहेंगी या और कोई इंतजाम होगा या फिर राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर वापसी होगी.

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