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Updated: 15 जुलाई, 2020 10:27 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सचिन पायलट (Sachin Pilot) सहित कांग्रेस के 19 विधायकों को नोटिस दिया गया है और दो दिन में सबको जवाब देना है. ये नोटिस सचिन पायलट और उनके समर्थकों के कांग्रेस विधायकों की मीटिंग से दूरी बनाने के लिए मिला है. कांग्रेस नेतृत्व (Sonia Gandhi and Rahul Gandhi) की तरफ से अब भी यही मैसेज देने की कोशिश हो रही है कि सचिन पायलट के लिए दरवाजे खुले हुए हैं, लेकिन जितना बड़ा इल्जाम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत लगा रहे हैं, उससे तो यही लग रहा है कि सचिन पायलट को राजनीतिक तौर पर खत्म किये जाने की कवायद चल रही है.

अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने साफ साफ कह दिया है कि हमारे यहां खुद डिप्टी सीएम हॉर्स ट्रेडिंग में शामिल हैं और जो हमारे साथ नहीं हैं वे पैसा ले चुके हैं - ऐसे में कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी का ये कहना कि भगवान सचिन पायलट को सद्बुद्धि दें और उनको गलती समझ आये. अविनाश पांडे कह रहे हैं, 'मेरी प्रार्थना है बीजेपी के मायावी जाल से वो बाहर निकल आएं,' जबकि इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में सचिन पायलट कहते हैं कि सौ बार कह चुका हूं कि बीजेपी में नहीं जा रहा हूं.

मान कर चलना होगा, जिस दौर से सचिन पायलट गुजर रहे हैं, ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी इतना खुल कर नहीं तो कुछ कुछ तो सहा ही होगा - और मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, संजय झा और प्रिया दत्त भी ऐसा ही जाहिर करने की कोशिश कर रहे हैं - सब देखने सुनने के बाद तो यही लगता है जैसे सचिन पायलट कांग्रेस में वो किरदार नजर आ रहे हैं जो सोनिया गांधी के राज में राहुल गांधी के दोस्तों की अजीब दास्तां सुना रहा है!

राहुल गांधी की टोली के साथ कौन दुर्व्यवहार कर रहा है?

सचिन पायलट की प्रेस कांफ्रेंस का सबको इंतजार था, लेकिन फिर पता चला कि फिर से टाल दिया गया है. वैसे भी इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू के बाद सचिन पायलट को प्रेस कांफ्रेंस की जरूरत ही कहां बची थी. जो कुछ कहना था इंडिया टुडे को बता ही दिये थे - वैसे भी इंटरव्यू और प्रेस कांफ्रेंस में फर्क भी तो होता है.

सचिन पायलट कांग्रेस में उस जमात का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं जो मौजूदा नेतृत्व के कामकाज के तौर तरीके से खफा है. जिस नेतृत्व को लेकर सचिन पायलट जैसे नेताओं में धारणा बन चुकी है कि वो कुछ चापलूसों से घिरा हुआ है - और वो वही देखता है जो उसके आस-पास की मंडली उसे दिखाना चाहती है.

अशोक गहलोत उसी मंडली के एक सक्रिय सदस्य हैं और जिस तरीके से सचिन पायलट के खिलाफ ये लोग एकजुट हैं, उनके आगे सचिन पायलट जैसों में घुटन स्वाभाविक है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निजी हमले से बचने की सलाह देने पर आरपीएन सिंह का कांग्रेस कार्यकारिणी में जो हाल हुआ था वो बहुत पुरानी बात नहीं है. सचिन पायलट तो अभी जूझ ही रहे हैं, उनके सपोर्ट में कांग्रेस प्रवक्ता रहे संजय झा को तो सस्पेंड ही कर दिया गया है.

ashok gehlot, sachin pilot, rahul gandhiनकली हंसी की बुनियाद पर बनी इमारत के साथ जो होता है, राजस्थान में वही तो हो रहा है!

कांग्रेस में बने 2-प्लस पावर सेंटर को मिला कर मौजूदा नेतृत्व समझा जाये या फिर अलग अलग जब ये नेता नहीं समझ पा रहे हैं तो बाकियों के लिए अंदाजा लगाना कितना मुश्किल हो सकता है. ये तो साफ है कि हाल फिलहाल सभी मामलों में तो नहीं लेकिन महत्वपूर्ण मसलों में सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ साथ प्रियंका गांधी का भी बड़ा रोल होता है.

सचिन पायलट भी कभी कांग्रेस की एक टोली का हिस्सा रहे हैं जो राहुल गांधी के इर्द-गिर्द जमा हुआ करती रही - ये कांग्रेस के ऐसा नेताओं की जमात रही जो अपने अपने पिता की विरासत के बूते कांग्रेस में फल फूल रहे थे - ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में उसी टोली के नेता हुआ करते रहे और फिलहाल सचिन पायलट के समर्थन में आवाज उठाने वाले जितिन प्रसाद भी हैं.

लेकिन सिर्फ विरासत के बूते राजनीति कितना चलती है, राहुल गांधी तो उसकी प्रत्यक्ष मिसाल ही हैं. सचिन पायलट बदले माहौल में यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि वो सिर्फ विरासत की राजनीति नहीं करते, मेहनत भी करते हैं - और अशोक गहलोत के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन भी किया है, फिर भी हक की लड़ाई के लिए बोलते ही सब चुप कराने दौड़ पड़े हैं. कपिल सिब्बल ने अस्तबल के जिन घोड़ों की बात की थी, प्रिया दत्त भी उसी की बात कर रहे हैं - और संजय निरुपम भी.

संजय निरुपम ने मुंबई में प्रेस कांफ्रेंस करके तब भी ऐसी बातें कही थी जब महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभाओं के चुनाव हो रहे थे. तब सिंधिया को महाराष्ट्र में उम्मीदवारों की चयन समिति का अध्यक्ष बनाया गया था और अशोक तंवर को हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था. जब तंवर का विरोध नेक्स्ट लेवल पर पहुंच गया तो कांग्रेस से ही निकाल दिया गया.

सचिन पायलट तो फिर भी अकेले नहीं हैं, सिंधिया कैसे घुटते रहे और फिर एक दिन चुपचाप चल दिये - जाने के तीन महीने बात तक चुप रहे और तब बोले जब बार बार उनको गद्दार बताया जाने लगा था. फिर भी सिंधिया ने दिग्विजय और कमलनाथ को ही जवाब दिया, सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बारे में अब तक कुछ नहीं कहा है. कुछ बातें खास मौकों के लिए बचत खाते में भी रखी जाती हैं. जैसे वरुण गांधी ने 2019 के चुनाव में टिकट फाइनल हो जाने के बाद कहा था - प्रधानमंत्री तो हमारे परिवार से भी हुए हैं लेकिन नरेंद्र मोदी जैसा तो कोई नहीं हुआ. सवाल ये है कि कांग्रेस में जो फैसले लिये जा रहे हैं उसे सिर्फ सोनिया गांधी का फैसला माना जाये या फिर राहुल गांधी की भी कोई भूमिका मानी जाये. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष तो सोनिया गांधी ही हैं, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ देने के बावजूद ट्विटर बॉयो को छोड़ कर राहुल गांधी पर कोई असर नजर तो आता नहीं.

अगर सचिन पायलट जैसे नेताओं के इस हाल के लिए राहुल गांधी जिम्मेदार नहीं है तो मान कर चलना होगा कि सोनिया गांधी को राहुल गांधी के दोस्त जरा भी पसंद नहीं आ रहे हैं - और न ही उनसे कोई उनको उम्मीद लगती है. ऐसा भी तो हो सकता है कि राहुल गांधी का खुद भी अपने दोस्तों से मन भर गया हो - वैसे भी सिंधिया के बीजेपी ज्वाइन कर लेने के बाद भी कोई अफसोस तो जताया नहीं था. ऐसे मौकों पर असम के नेता हिमंता बिस्व सरमा की वो बातें बरबस याद आ जाती हैं - मुलाकातों के दौरान राहुल गांधी कांग्रेस नेताओं से बात करने से ज्यादा अपने पालतुओं में व्यस्त लगते थे.

क्या ये राहुल राज का साइड इफेक्ट है?

राहुल गांधी अपनी शुरुआती राजनीति से ही सिस्टम बदलने की बातें करते रहे हैं. जब कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी संभाले तो जाहिर तौर पर आखिरी कोशिश की होगी, लेकिन चुनाव नतीजे आये तो हकीकत से रूबरू हुए और मन की बात जबान पर भी आ गयी. जबान खोले तो दो नाम निकले - अशोक गहलोत और कमलनाथ. कमलनाथ तो कुर्सी गंवा ही चुके हैं, अशोक गहलोत खतरा टालने में जी जाने से जुटे हैं. इस हद तक कि किसी की राजनीतिक जान भी लेनी पड़े तो चलेगा. सचिन पायलट पर सरकार गिराने के लिए रिश्वतखोरी के आरोप लगाने को कैसे समझा जाये?

इंडिया टुडे से इंटरव्यू में आखिर सचिन पायलट भी तो यही बताना चाह रहे हैं कि कैसे वो राहुल गांधी की राजनीति के साइड इफेक्ट झेल रहे हैं. सचिन पायलट का कहना है कि राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से हटते ही अशोक गहलोत के लोग उन पर टूट पड़े और बात बात पर जलील करने की कोशिश करने लगे.

कांग्रेस की तरफ से बताया तो यही गया है कि किस किस ने सचिन पायलट से बात कर मनाने की कोशिश की है. कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला कह रहे हैं कि सोनिया गांधी तक ने सचिन पायलट तक पहुंची हैं. सचिन पायलट की मानें तो ये सब भी उसी झूठे प्रचार का हिस्सा है जो उनके खिलाफ किया जा रहा है.

सचिन पायलट ने प्रियंका गांधी के फोन की बात तो स्वीकार की है, लेकिन राहुल गांधी या सोनिया गांधी से किसी भी तरह की बातचीत से इंकार किया है. प्रियंका गांधी से भी हुई बातचीत निजी तौर पर ही बतायी है और ये भी कहा है कि उससे मौजूदा राजनीतिक संकट का कोई नतीजा नहीं निकल सका है.

इंडिया टुडे से बातचीत में सचिन पायलट कहते हैं, "मेरे आत्मसम्मान को चोट पहुंची है. राज्य की पुलिस ने मुझे राजद्रोह का नोटिस थमा दिया. अगर आपको याद हो तो 2019 के लोकसभा चुनाव में हम लोग ऐसे कानून को ही हटाने की बात कर रहे थे. और यहां कांग्रेस की ही एक सरकार अपने ही मंत्री को इसके तहत नोटिस थमा रही है. मैंने जो कदम उठाया वो अन्याय के खिलाफ था. अगर व्हिप की बात हो तो वो सिर्फ विधानसभा के सदन में काम आता है, मुख्यमंत्री ने ये बैठक अपने घर में बुलाई थी ना कि पार्टी के दफ्तर में."

रणदीप सुरजेवाला ने गिनाया था कि सचिन पायलट को छोटी सी उम्र में कांग्रेस ने क्या क्या न दिया. दिग्विजय सिंह भी ट्विटर पर यही समझाये जा रहे हैं और सिंधिया को भी उसमें लपेट कर अपनी खुन्नस मिटा रहे हैं.

लिहाजा सचिन पायलट से ये सवाल भी पूछा जाता है - 'आपकी पार्टी का कहना है कि इतनी कम उम्र में आपको काफी पद दिए गए हैं, क्या आप महत्वाकांक्षी हो रहे हैं?'

सचिन पायलट कहते हैं, "सिर्फ मुख्यमंत्री बनने की बात नहीं है, मैंने मुख्यमंत्री पद की बात तब की थी जब मैंने 2018 में पार्टी की जीत की अगुवाई की थी. मेरे पास सही तर्क थे. जब मैंने अध्यक्ष पद संभाला तो पार्टी 200 में से 21 सीटों पर आ गई थी. पांच साल के लिए मैंने काम किया और गहलोत जी ने एक शब्द भी नहीं बोला. लेकिन चुनाव में जीत के तुरंत बाद गहलोत जी ने मुख्यमंत्री पद के लिए दावा ठोक दिया."

सचिन पायलट का कहना है कि डिप्टी सीएम का पद भी उन्होंने राहुल गांधी के कहने पर स्वीकार किया. सचिन के अनुसार, 'राहुल गांधी ने सत्ता का बराबर बंटवारा करने की बात कही थी, लेकिन गहलोत जी ने मुझे साइडलाइन करना शुरू कर दिया.'

अशोक गहलोत की वरिष्ठता और अनुभव को लेकर सचिन पायलट का सवाल है - "उनका क्या अनुभव है?"

फिर याद दिलाते हैं, "2018 से पहले वो दो बार मुख्यमंत्री बने हैं, दो चुनाव में उनकी अगुवाई में पार्टी 56 और 26 पर आ पहुंची. इसके बाद भी उन्हें तीसरी बार मुख्यमंत्री बना दिया गया." संजय झा ने भी सचिन पायलट के सपोर्ट में ऐसे ही ट्वीट किये थे - फिर उनको बालासाहब थोराट ने निलंबन का पत्र थमा दिया. पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते तो प्रवक्ता पद से पहले ही हटाया जा चुका था.

14 दिसंबर 2018 को राहुल गांधी ने ये ट्वीट किया था - यूनाइटेड कलर्स ऑफ राजस्थान. अभी राजस्थान में जो कुछ भी हो रहा है ये ट्वीट उस नींव की पहली ईंट लगती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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