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Updated: 31 जुलाई, 2020 01:39 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को लेकर विपक्षी खेमे में जो असहज स्थिति हुआ करती रही, वही अब कांग्रेस (Congress) के अंदर भी होने लगी है. शरद पवार से लेकर ममता बनर्जी तक विपक्षी दलों के नेताओं को सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) से तो कभी कोई दिक्कत नहीं रही, लेकिन राहुल गांधी को लेकर ज्यादातर नेताओं को दूरी बनाते देखा गया है. आम चुनाव के नतीजे आने से पहले एन. चंद्रबाबू नायडू जैसे नेता राहुल गांधी से मिलने में संकोच छोड़ चुके थे, लेकिन ममता बनर्जी कभी कभार को छोड़ दें तो दूरी बनाये रखती रहीं. अम्फान तूफान के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कोलकाता दौरे के बाद ममता बनर्जी विपक्ष की मीटिंग में शामिल हुईं, सिर्फ इसलिए क्योंकि सोनिया गांधी ने वो वर्चुअल मीटिंग बुलाई थी. राहुल गांधी के नेतृत्व को कुछ युवा कांग्रेसियों के अलावा कम ही लोग हैं जो स्वीकार कर पाते हैं - हां, दिग्विजय सिंह और अशोक गहलोत जैसे कुछ नेता जरूर हैं जो डंके की चोट पर राहुल गांधी के नेतृत्व में खुलेआम भरोसा जताते हैं.

कांग्रेस के भीतर एक बार फिर कम से कम दो पावर सेंटर हो गये हैं - और उसी हिसाब से गुटबाजी की भी झलक दिखाई पड़ रही है जो धीरे धीरे सार्वजनिक रूप से सामने भी आने लगी है. अब तक कांग्रेस की गुटबाजी राज्यों में ही देखने को मिलती रही, लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि ये राष्ट्रीय स्तर पर होने लगा है.

राहुल गांधी को सलाह कौन दे रहा है

विशेषज्ञों के साथ बातचीत के बाद राहुल गांधी अब सोलो वीडियो पोस्ट करने लगे हैं - नयी सीरीज में राहुल गांधी वीडियो में अकेले होते हैं और जो भी मुद्दा होता है उस पर अपनी राय देते हैं. नये और पुराने वीडियो में फर्क तो सिर्फ फॉर्मैट का ही है, लेकिन एजेंडा कॉमन है - मोदी सरकार पर हमला. हाल तक राहुल गांधी सिर्फ चीन को लेकर हमलावर हुआ करते रहे, लेकिन अब नोटबंदी से लेकर जीएसटी और अर्थव्यवस्था तक उसमें शामिल कर ले रहे हैं.

कांग्रेस के सीनियर नेता दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी के वीडियो को रीट्वीट करते हुए समर्थन जताया है - और सुझाव दिया है कि अपनी बेबाक टिप्पणी वो यूं ही जारी रखें. दिग्विजय सिंह ने कहा है कि जिस प्रकार से सोशल मीडिया पर समर्थन मिल रहा है लोगों की सोच में अंतर अवश्य आएगा.

राहुल गांधी को आंख मूंद कर सपोर्ट करने वाले नेताओं की संख्या घटती जा रही है, दिग्विजय सिंह भी इस मामले में अकेले ही नजर आ रहे हैं. हालांकि, राहुल गांधी के ट्वीट को रीट्वीट तो करीब करीब सभी नेता करते हैं, लेकिन वो बेमन से की जाने वाली ड्यूटी जैसा ही है.

चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर मोदी सरकार पर राहुल गांधी के साथ साथ सोनिया गांधी भी हमलावर रही हैं - और कांग्रेस की तरफ से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह दे चुके हैं. सोनिया गांधी ने तो सर्वदलीय बैठक में भी सरकार से कई सवाल पूछे थे, लेकिन कांग्रेस में नेताओं की अलग अलग राय हो चली है. कांग्रेस के लिए चिंता की बात है कि राहुल गांधी के रवैये को लेकर पार्टी के अंदर ही सवाल उठने लगे हैं.

rahul gandhi, sonia gandhiये गुटबाजी कांग्रेस को अब कहां लेकर जाएगी

राहुल गांधी के आलोचकों के ग्रुप के एक सदस्य ने मीडिया से बातचीत में कहा है, 'वो हमसे बात नहीं करते और हमें नहीं पता कि उन्हें कौन सलाह दे रहा है.' ये बात राहुल गांधी के ताजा वीडियो को लेकर कही गयी है.

यही सवाल जब कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस में पी. चिदंबरम के सामने उठा तो उनकी प्रतिक्रिया गौर करने लायक रही. चिदंबरम पहले तो कुछ रूखे से दिखे लेकिन बाद में खुद को संभालते हुए बताये कि वो न तो कभी रक्षा मंत्री रहे हैं और न ही विदेश मंत्री के तौर पर काम किया है. पी. चिदंबरम ने ये जरूर माना कि राहुल गांधी कभी कभार उनकी राय भी लेते हैं, लेकिन अभी जो वीडियो आ रहे हैं उनके बारे में उनसे कोई राय नहीं ली गयी है. चिदंबरम ने मन की बात जाहिर न होने देने की पूरी कोशिश की, लेकिन लोगों को ये समझने से नहीं रोक पाये कि वो दिग्विजय सिंह की तरह राहुल गांधी के नये वीडियो से इत्तफाक नहीं रखते.

दूसरी तरफ, वही कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के बारे में अलग तरह की राय रखते हैं. मीडिया से बातचीत में बताते हैं कि कैसे सोनिया गांधी कुछ भी कहने से पहले चीजों को अच्छी तरह समझने की कोशिश करती हैं. ऐसे नेता सर्वदलीय बैठक में पूछे गये सोनिया गांधी के सवालों की मिसाल भी देते हैं, कहते हैं, 'वो हमसे बात करती हैं और एक राय बनाती हैं.'

राहुल गांधी के इन आलोचकों की बात में दम तो है. सोनिया गांधी के सवालों पर प्रधानमंत्री मोदी ने सर्वदलीय बैठक में जो जवाब दिया था उस पर भी सवाल उठे - और फिर प्रधानमंत्री कार्यालय को आगे आकर सफाई भी देनी पड़ी थी. राहुल गांधी के साथ तो ऐसा कभी नहीं होता. हां, राहुल गांधी के सवालों पर बीजेपी की तरफ रिएक्शन जरूर होता है. कम से कम दो बार तो ऐसा देखने को मिला ही है. एक बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और फिर एक बार विदेश मंत्री एस. जयशंकर को एक साथ एक से ज्यादा ट्वीट करते देखा गया.

राहुल गांधी के विरोधी खेमे के एक कांग्रेस नेता की टिप्पणी है, 'वो शायद सोचते हैं कि हम बेकार लोग हैं - और उनके सलाहकार सबसे अच्छा जानते हैं.'

अब तो ऐसा लगता है कि मामला काफी गंभीर हो चला है - और बड़ा सवाल यही है कि आखिर राहुल गांधी को ऐसे सलाह कौन दे रहा है?

कांग्रेस में कितने पावर सेंटर हैं

जितने समय के लिए राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रहे, उससे पहले काफी दिनों तक कांग्रेस नेता महसूस करते रहे कि पार्टी में दो दो पावर सेंटर बने हुए थे. 2019 के चुनाव नतीजे आ जाने के बाद जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया तो दो से ज्यादा पावर सेंटर हो गये. एक तो कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की वजह से, दूसरा राहुल गांधी की वजह से और एक अलग से प्रियंका गांधी वाड्रा के चलते. सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा तो क्रमशः अंतरिम अध्यक्ष और महासचिव हैं भी, लेकिन राहुल गांधी तो किसी भी पद पर नहीं हैं, CWC मेंबर के सिवा. कुछ कहने की बारी आती है तो खुद को वायनाड से सांसद और कांग्रेस का सिपाही भर बताते हैं, लेकिन दखल भरपूर रहती है.

कांग्रेस में एक बार फिर से एक पूर्ण कालिक अध्यक्ष की शिद्दत से जरूरत महसूस की जाने लगी है. 11 जुलाई को कांग्रेस के लोक सभा सांसदों के साथ सोनिया गांधी ने मीटिंग रखी थी तो उसमें भी ऐसी मांग उठी और राहुल गांधी के पक्ष में आवाज भी. इस बारे में एक जोरदार आवाज राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भी रही है कि राहुल गांधी को फिर से कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाये - चूंकि आने वाले 10 अगस्त को ही सोनिया गांधी का मौजूदा कार्यकाल पूरा हो रहा है, इसलिए ये मांग और भी जोर पकड़ने लगी है.

एक और खास बात सामने आ रही है, राहुल गांधी के आलोचक कांग्रेस नेताओं को भी उनके अध्यक्ष बनने से परहेज नहीं है. ऐसे नेताओं का मानना है कि अध्यक्ष बन जाने के बाद राहुल गांधी जैसे चाहें काम करें, लेकिन अगर वो ऐसा नहीं चाहते तो कम से कम कांग्रेस के नेतृत्व स्तर के मामलों में दखल बिलकुल न दें.

क्या यही वो वजह है जिसके चलते प्रियंका गांधी वाड्रा को लगता है कि राहुल गांधी अकेले ही प्रधानमंत्री मोदी से लोहा ले रहे हैं. चुनावों के वक्त 'चौकीदार चोर है' के मुद्दे पर और अब जबकि राफेल भारत पहुंच चुका है तब भी?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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