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Updated: 17 मई, 2021 05:10 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राजीव सातव (Rajiv Satav) कांग्रेस के एक गुट में वैसी ही अहमियत रखते रहे जैसे बुजुर्ग कांग्रेसियों की जमात में कभी अहमद अहमद पटेल का रुतबा हुआ करता था.

कांग्रेस (Congress) सांसद राजीव सातव कोविड 19 की चपेट में आने के बावजूद रिकवर कर रहे थे. 22 अप्रैल को राजीव सातव की कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद पुणे के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था - 46 साल के राजीव सातव की तबीयत बिगड़ने के बाद उनको वेंटिलेटर पर भी रखा गया था, लेकिन उनको बचाया नहीं जा सका.

राजीव सातव की कभी सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल जैसी घोषित भूमिका तो नहीं रही, लेकिन राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के पसंदीदा युवा नेताओं में उनका करीब करीब वैसा ही दबदबा रहा - और कांग्रेस में उनकी हैसियत का अंदाज पहली बार तब हुआ जब सोनिया गांधी की बुलायी एक मीटिंग में कपिल सिब्बल की एक बात पर बरस पड़े और ऐसा पहली बार देखने को मिला था जब मनमोहन सिंह को भी बीच बीच में दखल देना पड़ा था - ये 30 जुलाई, 2020 की बात है.

राहुल गांधी की ही खोज थे राजीव सातव

2017 का गुजरात विधानसभा चुनाव राहुल गांधी के राजनीतिक कॅरियर का बड़ा ही महत्वपूर्ण पड़ाव रहा - चुनावों में राहुल गांधी के प्रदर्शन को लेकर कांग्रेस नेतृत्व में इतना भरोसा रहा कि नतीजे आने से पहले ही राहुल गांधी की ताजपोशी का कार्यक्रम तय हो गया - और कांग्रेस अधिवेशन में राहुल गांधी की भव्य ताजपोशी हुई.

राजीव सातव तो वैसे भी राहुल गांधी की खोज रहे - पहली बार विधायक बने राजीव सातव को राहुल गांधी यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया. तत्कालीन यूथ कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर की जगह लेने वाले राजीव सातव महाराष्ट्र से आने वाले तीसरे नेता रहे जिसे यूथ कांग्रेस की जिम्मेदारी सौंपी गयी. राजीव सातव से पहले गुरुदास कामत और मुकुल वासनिक भी यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष थे. मौजूदा यूथ कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी जो कोरोना संकट में लोगों की मदद करने के साथ ही दिल्ली पुलिस की पूछताछ को लेकर सुर्खियों में हैं, ट्विटर पर लिखा - जब मैं पहली बार दिल्ली आया था, तो राजीव सातव के नेतृत्व में मैं राष्ट्रीय सचिव बना. ऐसे कद्दावर नेता के असामयिक निधन ने हम सभी को स्तब्ध कर दिया है.'

ahmed patel, rajiv satav, rahul gandhiगुजरात के प्रभारी रहे राजीव सातव पर 2017 के चुनावों में राहुल गांधी अहमद पटेल और अशोक गहलोत से भी ज्यादा भरोसा करते थे - और सौराष्ट्र से सबसे ज्यादा सीटें दिलाकर उन्होंने कांग्रेस नेता के विश्वास को साबित भी कर दिया था.

गुजरात चुनाव से पहले राहुल गांधी की मदद के लिए सोनिया गांधी ने जहां अहमद पटेल और अशोक गहलोत को जिम्मेदारी सौंपी थी, राहुल गांधी ने राजीव सातव को गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र का प्रभारी बना दिया - और जब नतीजे आये तो मालूम हुआ कांग्रेस सबसे अच्छा प्रदर्शन सौराष्ट्र क्षेत्र में ही रहा.

राहुल गांधी ने जब कांग्रेस की कमान संभाली तो कांग्रेस में राजीव सातव भी कद बढ़ता गया. राहुल गांधी ने राजस्थान में कांग्रेस की जिम्मेदारी सचिन पायलट को सौंपी और तब तक गुजरात के प्रभारी रहे अशोक गहलोत कांग्रेस में संगठन महासचिव बना दिये गये - और फिर राजीव सातव को गुजरात का प्रभार सौंपा गया. गुजरात का प्रभारी बनने का मतलब कांग्रेस में फिलहाल वो इलाका देखना होता है जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह आते हैं.

2014 में हिंगोली से शिवसेना के दिग्गज नेता सुभाष बापूराव वानखेड़े को हराकर लोक सभा पहुंचे राजीव सातव ने 2019 में लोक सभा का चुनाव लड़ने से मना कर दिया था - फिर बाद में उनको महाराष्ट्र से राज्य सभा भेजा गया. समझने वाली बात ये रही कि जहां मुकुल वासनिक, अविनाश पांडे और रजनी पाटिल जैसे नेता महाराष्ट्र से राज्य सभा जाने की होड़ में थे, राजीव सातव के नाम पर राहुल गांधी की मुहर लगने के साथ ही सबका पत्ता साफ हो गया.

कांग्रेस में फिलहाल राहुल गांधी की जिस चौकड़ी का दबदबा नजर आता है, राजीव सातव सबसे आगे की लाइन में होते थे, लेकिन उनकी खासियत ये रही कि वो भी अहमद पटेल की तरह मीडिया के चेहरे बने रहने की जगह परदे के पीछे रह कर पूरी निष्ठा से कांग्रेस संगठन के लिए काम करने में दिलचस्पी लेते थे. राजीव सातव के अलावा चौकड़ी के बाकी सदस्य हैं - संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, रणदीप सिंह सुरजेवाला और मणिकम टैगोर. किसानों के मुद्दे पर राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश से दुर्व्यवहार को लेकर जिन सांसदों को सस्पेंड किया गया था उनमें राजीव सातव भी शामिल थे.

लेकिन राजीव सातव कांग्रेस में क्या हैसियत रखते हैं, अच्छे से मालूम तब हुआ जब सोनिया गांधी की बुलायी मीटिंग में वो बुजुर्ग कांग्रेसियों पर अचानक धावा बोल दिये - और कांग्रेस नये और पुराने दिग्गजों में साफ साफ बंटी नजर आने लगी.

जब बुजुर्ग कांग्रेसियों ने महसूस की राजीव सातव की हैसियत

30 जुलाई, 2020 को सोनिया गांधी ने कांग्रेस के राज्य सभा सांसदों की एक वर्चुअल मीटिंग बुलायी थी - तब देश के सामने कोरोना संकट पहली बार आया था और लॉकडाउन लगाये जाने के बाद धीरे धीरे छूट दी जाने लगी थी.

मीटिंग बुलायी जाने का एक मकसद नये राज्य सभा सांसदों से बातचीत के साथ ही आगे की रणनीतियों पर विचार किया जाना था. मीटिंग में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कपिल सिब्बल, पी. चिदंबरम, एके एंटनी, गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा जैसे पुराने दिग्गज शामिल हुए तो राज्य सभा के लिए चुने गये राजीव सातव जैसे अन्य नेता भी.

कोरोना संकट और दूसरे मुद्दों की चर्चा तो हुई ही, किसी बात पर कपिल सिब्बल ने ऊपर से लेकर नीचे तक कांग्रेस में आत्मनिरीक्षण की सलाह दे डाली - बोले, 'हमें मालूम करना चाहिये कि आखिर कांग्रेस का ये हाल क्यों हो रहा है?'

तब की मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, कपिल सिब्बल के मुंह से आत्मनिरीक्षण की सलाहियत सुनते ही राजीव सातव आपे से बाहर हो गये - और कहने लगे, 'आत्मनिरीक्षण पूरी तरह होना चाहिये... लेकिन 44 पर हम कैसे पहुंच गये ये भी देखा जाना चाहिये. 2009 में हम 200 प्लस रहे... आत्मनिरीक्षण की बात आप अभी कर रहे हैं... तब आप सभी मंत्री हुआ करते थे. हम कहां फेल हुए इस पर गौर फरमाया जाना चाहिये... आपको यूपीए 2 काल से आत्मनिरीक्षण करना होगा...'

राजीव सातव के तेवर देख हर कोई सकते में था - क्योंकि ये सब सोनिया गांधी की मौजूदगी में हो रहा था. मीटिंग में कांग्रेस के कई वो नेता थे जो मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री हुआ करते थे - और ये सब सीधे सीधे सबको कठघरे में खड़ा करने की कोशिश लगी.

मीटिंग के दौरान कुछ मौके ऐसे भी आये जब यूपीए शासन पर सवाल उठने पर मनमोहन सिंह ने दखल देने की कोशिश की - असल में ये कांग्रेस के पुराने दिग्गजों और युवा ब्रिगेड का उग्र रूप था जो सोनिया गांधी के होते हुए आमने सामने खुल्लम खुल्ला लड़ रहा था. मीटिंग में तब सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे अहमद पटेल भी मौजूद थे - और उनकी ही तरह कई नेताओं ने राजीव सातव की तैश में आकर की गयी इस टिप्पणी को अपने खिलाफ युवा ब्रिगेड के हमले के तौर पर लिया.

अगले ही दिन कांग्रेस के कई नेताओं ने जो कुछ अंदर हुआ था उसे ट्विटर पर इशारों इशारों में टिप्पणिओं में परोस दिया - हालांकि, बाद में खुद राजीव सातव ने ट्वीट कर अफसोस जाहिर किया और माना कि जो कुछ हुआ वो नहीं होना चाहिये था. राजीव सातव जहां सीनियर कांग्रेसियों के निशाने पर थे, वहीं यूथ ब्रिगेड उनके सपोर्ट में बयानबाजी करता रहा.

कांग्रेस नेतृत्व अभी अहमद पटेल की जगह कभी कमलनाथ तो कभी किसी और को आजमाता रहा है, लेकिन कोई उनकी जगह नहीं ले पाया है - राहुल गांधी के सामने भी राजीव सातव के चले जाने के बाद वैसी ही चुनौतियां पेश आएंगी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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