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Updated: 20 नवम्बर, 2018 08:48 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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तनी हुई भौंहें, घनी काली बड़ी सी मूंछ, गले में एक केसरिया गमछा और माथे पर लगा केसरिया तिलक. ये पहचान है ज्ञानदेव आहूजा की, जो भाजपा के लिए एक अर्से तक हिंदुत्व का चेहरा बने रहे, लेकिन अब भाजपा ने उनका साथ छोड़ दिया है. कम से कम शुरुआत तो भाजपा की ओर से ही मानी जाएगी. तीन बार विधायकी के चुनाव जीत चुके ज्ञानदेव आहूजा को इस बार भारतीय जनता पार्टी ने टिकट देने से मना कर दिया है. भाजपा से टिकट न मिलने के बाद आहूजा ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है. आपको बता दें कि ये वही ज्ञानदेव आहूजा हैं, जो आए दिन अपने बयानों से सुर्खियां बटोरते हैं. इन्होंने ही आरोप लगाया था कि जेएनयू में लड़के-लड़कियां नग्न होकर डांस करते हैं और परिसर से 3000 इस्तेमाल किए जा चुके कंडोम मिलने का दावा भी कर चुके हैं.

ज्ञानदेव आहूजा, राजस्थान, चुनाव, भाजपाभाजपा ने आहूजा को टिकट ना देने की जो वजह बताई है, वही आहूजा की पहचान है.

तीन बार विधायक, फिर भी क्यों नहीं मिला टिकट?

भाजपा ने आहूजा को टिकट ना देने की जो वजह बताई है, वही आहूजा की पहचान है. भाजपा ने कहा है कि ज्ञानदेव आहूजा के तानाशाही रवैये के चलते इस बार उन्हें चुनाव लड़ने का टिकट नहीं दिया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर ये भी जान लेना जरूरी है कि रौबदार और तानाशाही रवैया ही उनकी पहचान भी है. खुद को टिकट नहीं मिलने से वह पार्टी से नाराज हैं. आहूजा ने न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए एक बयान में कहा है कि वह एक निर्दलीय की तरह राम जन्मभूमि, गौरक्षा और हिंदुत्व के मुद्दों पर चुनाव लड़ेंगे. हाल ही में हुए उपचुनावों में अलवर समेत तीन सीटों पर कांग्रेस जीत गई थी, जिसके बाद भाजपा ने ये कदम उठाया है. भाजपा ने आहूजा की जगह सुखवंत सिंह को रामगढ़ से चुनाव लड़ाने का फैसला किया है.

अब कंडोम गिनने का खूब समय है

फरवरी 2016 के दौरान जब दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देश विरोधी नारे लगाए जाने की घटना हुई थी, उस दौरान राजस्थान के अलवर जिले के रामगढ़ से विधायक ज्ञानदेव आहूजा सुर्खियों में छा गए थे. आहूजा ने विवादित बयान देते हुए कहा था कि जेएनयू में तो कल्चरल प्रोग्राम में लड़के लड़कियां नग्न होकर डांस करते हैं. उन्होंने दावा किया था कि हड्डियों के 50,000 टुकड़े, 3000 इस्तेमाल किए हुए कंडोम, 10,000 सिगरेट के पीस और 500 गर्भपात के इंजेक्शन जेएनयू कैंपस से मिले हैं. अब उन्होंने ये सब कैसे गिने थे ये तो वहीं जानें, लेकिन भाजपा से टिकट न मिलने के बाद अब उनके पास कंडोम गिनने के लिए काफी समय है.

मोदी-शाह पर भरोसा नहीं टूटा

ज्ञानदेव आहूजा वही शख्स हैं, जो पीएम नरेंद्र मोदी को भगवान कृष्ण और विष्णु का अवतार तक कह चुके हैं. हालांकि, उनके आराध्य की कृपा इस बार उनके श्रद्धालु पर नहीं बरसी है. अपार श्रद्धा होने के बावजूद उन्हें टिकट नहीं मिल सकता है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि आहूजा की आस्था में कोई कमी आई हो. ज्ञानदेव आहूजा कहते हैं- 'मुमकिन है कि पीएम मोदी और अमित शाह को इसकी जानकारी ही ना हो.' खैर, राजस्थान जैसा महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव, उसमें भी ज्ञानदेव आहूजा जैसे शख्स का टिकट कट जाना, जो हिंदुत्व का चेहरा बने रहे हों और अपने विवादित बयानों से सुर्खियों में छाए रहे हों, ये तो हो ही नहीं सकता कि पीएम मोदी और अमित शाह को इस बात की जानकारी ना हो. आहूज सिर्फ एक सेफ गेम खेलते से लग रहे हैं, जिन्हें घर वापसी की उम्मीद है.

गौरक्षा को लेकर रहते हैं सुर्खियों में

अप्रैल 2017 में अलवर में एक मॉब लिंचिंग की घटना हुई थी, जिसमें पहलू खान नाम के शख्स की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी. आरोप था कि वह गौ-तस्करी कर रहा था. उस दौरान हिंदुत्व की छवि वाले ज्ञानदेव आहूजा ने साफ-साफ कह दिया था कि पहलू खान की हत्या का उन्हें कोई दुख नहीं है. उन्होंने कहा था- 'हमें कानून हाथ में नहीं लेना चाहिए, लेकिन पहलू खान की हत्या पर हमें कोई दुख नहीं है, क्योंकि जो लोग गाय की तस्करी करते हैं वह गौ-हत्या करते हैं, ऐसे दोषियों को पहले भी ऐसी सजा दी गई है और आगे भी देते रहेंगे.' उन्होंने कहा था जो गौहत्या या गौ-तस्करी करेगा, वह मार दिया जाएगा. अलवर में ही जब रकबर खान की मॉब लिंचिंग हुई थी, तो भी ज्ञानदेव ने पुलिस पर सारे आरोप मढ़ दिए थे और मॉब लिंचिंग करने वालों का बचाव करते से दिखे थे. हालांकि, अब वह बच-बचकर बोलते दिख रहे हैं. भाजपा से बाहर होने के बाद ज्ञानदेव आहूजा कहते हैं कि अलवर में उनकी अनुपस्थिति से गौ रक्षा के उद्देश्य को नुकसान पहुंचेगा, क्योंकि मैं अपराधियों का काल था, अब न जाने क्या होगा.

आहूजा ने 1998, 2003, 2008 और 2013 में कुल मिलाकर चार बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा. इनमें से वह सिर्फ एक बार 2003 के चुनाव में हारे हैं. टिकट न मिलने पर वह पार्टी से नाराज जरूर हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि पार्टी में उनकी वापसी हो सकती है, इसीलिए तो पीएम मोदी और अमित शाह पर से उनका भरोसा नहीं उठा है. आहूजा का टिकट काटने की एक वजह उनकी बयानबाजी और मॉब लिंचिंग का समर्थन करना भी हो सकता है. जहां एक ओर पार्टी ने उन्हें तानाशाही रवैये के चलते टिकट नहीं दिया, वहीं दूसरी ओर आहूजा इसे पार्टी का तानाशाही और पक्षपातपूर्ण रवैया कहते हैं. वह कहते हैं कि पार्टी के इस फैसले से उन्हें दुख तो हुआ ही है, साथ ही ऐसे अन्याय पर आश्चर्य भी हुआ है.

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