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Updated: 13 जनवरी, 2023 09:31 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) को लेकर राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने बड़ी ही महत्वपूर्ण बात कही है, 'ये यात्रा मेरे लिए एक तपस्या थी.' ये बात राहुल गांधी ने देश के नाम एक खुले पत्र में लिखी है. राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के 3500 किलोमीटर का सफर पूरा होने के मौके पर कही है - कन्याकुमारी से शुरू हुई ये यात्रा कश्मीर पहुंच कर खत्म होने वाली है.

भारत जोड़ो यात्रा के अंत में श्रीनगर में कांग्रेस की तरफ से एक बड़े समापन समारोह की भी तैयारियां चल रही हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से व्यक्तिगत तौर पर पत्र लिख कर बुलाया भी गया है.

भारत जोड़ो यात्रा के पूरे होने से पहले ही अब तक के सफर को लेकर राहुल गांधी का तपस्या बता डालना, थोड़ा संदेह पैदा करता है. ये इसलिए भी क्योंकि समापन से पहले यात्रा को लेकर किसी नतीजे पर पहुंचना हड़बड़ी में लिए गये फैसले जैसा ही है.

तपस्या शब्द का इस्तेमाल कर राहुल गांधी ने 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले आये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की याद दिला दी है. तब दिल्ली में किसानों का आंदोलन चल रहा था और तमाम साम-दाम-दंड-भेद के बावजूद किसान टस से मस होने को तैयार नहीं थे - और धीरे धीरे चुनावी की तारीख भी नजदीक नजर आने लगी थी.

एक दिन अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी टीवी पर आये और बोले, '...लगता है हमारी तपस्या में ही कोई कमी रह गयी...' ये बात प्रधानमंत्री मोदी ने उन तीन कृषि कानूनों को लेकर कहा था, जिसका किसान आंदोलन के जरिये विरोध चल रहा था. और फिर प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कानून वापस लेने की घोषणा भी कर दी थी. मोदी सरकार के कानून लाने का मकसद तो नहीं पूरा हो सका, लेकिन कानूनों के वापस लेने का मकसद तो पूरा ही हो गया. बीजेपी ने पांच में से चार राज्यों सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही. और सबसे महत्वपूर्ण जीत उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के लिए रही.

कानून तो बन चुके थे. जो भी औपचारिकताएं होनी चाहिये, पूरी हो चुकी थीं. फिर भी मकसद अधूरा रह गया. कानूनों में कुछ खामियां जरूर थीं, लेकिन ऐसा भी तो नहीं था कि कानून पूरी तरह बेकार था. वैसे तो जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने का बहुत ज्यादा फायदा अब तक नजर नहीं आया है. हालात जैसे पहले थे, अब भी वैसे ही हैं. बेशक आतंकवादियों की शेल्फ लाइम कम हो गयी है, लेकिन आतंकवाद खत्म तो नहीं ही हुआ है. होने को तो इतने साल बाद पंजाब में भी खालिस्तान की चर्चा होती रहती है, लेकिन पहले जैसी हालात तो कतई नहीं हैं.

तपस्या पूरी हो गयी या अब भी अधूरी ही है, राहुल गांधी ने अभी ये नहीं बताया है. तकनीकी तौर पर बताना भी सही नहीं होगा. ये बात राहुल गांधी ने कश्मीर पहुंच कर कही होती तो शायद इतने किन्तु-परन्तु की नौबत भी नहीं आती.

ये तो मानना ही पड़ेगा कि राहुल गांधी ने जो दिलेरी दिखायी है, अब तक उनकी राजनीति में नहीं देखने को मिला था? शुरू में तो किसी को भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि वो भारत जोड़ो यात्रा में लंबे समय तक टिक भी पाएंगे?

क्योंकि तब तक राहुल की छवि ऐसी ही थी कि वो कभी भी छुट्टी पर जा सकते हैं. और छुट्टियां भी उनकी ज्यादातर विदेशों वाली ही होती रही हैं. असल वजह जो भी हो, लेकिन राहुल गांधी ने अपने बारे में कम से कम इस फ्रंट पर धारणा तो बदल ही डाली है.

हाल की एक प्रेस कांफ्रेंस में जब राहुल गांधी से भारत जोड़ो यात्रा को लेकर एक सवाल पूछा गया तो वो कहे थे कि जब तक यात्रा पूरी नहीं हो जाती, कुछ कहना ठीक नहीं होगा - लेकिन अब अचानक ऐसा क्या समझ में आया है कि वो देश के नाम एक खुला पत्र लिख देते हैं?

जिस तरीके से विपक्षी दलों (Opposition) से सहयोगी की कांग्रेस को उम्मीद और कोशिश रही, वैसा कुछ तो नहीं ही देखने को मिला. गिनती के नेता ही भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के साथ मार्च करते देखे गये. जिन नेताओं से विपक्ष की ताकत का सही एहसास होता वे तो दूर ही रहे. तेलंगाना और कर्नाटक को छोड़ भी दें तो उत्तर प्रदेश में भी बिलकुल वही हाल रहा.

राहुल गांधी के खुले पत्र से तो ऐसा लगता है जैसे वो सैद्धांतिक तौर पर यात्रा की पूर्णाहूति कर चुके हों - तपस्या में और कोई अपेक्षा नहीं थी क्या?

देश के नाम राहुल गांधी का खुला पत्र

देश की जनता को संबोधित अपने खुले पत्र में राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा से जुड़े अपने अनभवों को साझा किया है - और ये भी बताया है कि उनके व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन का लक्ष्य क्या है?

'मेरे प्यारे देशवासियों' के संबोधन के साथ शुरू हो रहे खुले पत्र में राहुल गांधी ने आभार सहित अपनी भावनाओं का भरसक इजहार किया है, 'मैं ये पत्र आपको 3500 किलोमीटर की ऐतिहासिक भारत जोड़ो यात्रा पूरी करने के बाद लिख रहा हूं... कन्याकुमारी से कश्मीर तक की इस पदयात्रा में हमारे साथ करोड़ों भारतीयों ने हिस्सा लिया... ये मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण यात्रा थी... और इस यात्रा के दौरान आप सभी ने जो प्यार और स्नेह मुझे दिया उससे में अभिभूत हूं.'

rahul gandhiभारत जोड़ो यात्रा को अगर राहल गांधी तपस्या मानते हैं तो ये भी मान लेना चाहिये कि वो पूरी नहीं हुई है

भारत जोड़ो यात्रा को अपने लिए तपस्या बताते हुए राहुल गांधी लिखते हैं, 'इस यात्रा ने मुझे आप सब के हक में लड़ने के लिए एक नयी ताकत दी है...'

राहुल गांधी आगे लिखते हैं, 'यात्रा ने मुझे सिखाया है कि मेरे व्यक्तिगत और राजनैतिक जीवन का एक ही लक्ष्य है - हक की लड़ाई में कमजोरों की ढाल बनना, जिनकी आवाज दबाई जा रही है उनकी आवाज उठाना... मेरा सपना हमारे देश को अंधेरे से उजाले की ओर, नफरत से मोहब्बत की ओर, और निराशा से आशा की ओर ले जाना है... और इस लक्ष्य को पाने के लिए मैं भारत को एक महान संविधान देने वाले हमारे महापुरुषों के बताये हुए सिद्धांतों और मूल्यों को अपना आदर्श बना कर आगे बढूंगा.'

भारत जोड़ो यात्रा के बाद

भारत जोड़ो यात्रा के खत्म होने से पहले ही कांग्रेस एक और मुहिम शुरू करने जा रही है. कांग्रेस की तरफ से बताया गया है कि 26 जनवरी, 2023 से 26 मार्च, 2023 तक 'हाथ से हाथ जोड़ो अभियान' चलाया जाना है.

नये अभियान के तहत देश के हर राज्य की राजधानी में पदयात्राएं तो होंगी ही, अलग से महिला यात्रा का भी आयोजन किया जाएगा. कांग्रेस की तरफ से ट्विटर पर बताया गया है कि इस अभियान में करीब 2.5 लाख ग्राम पंचायतों, 6 लाख गांवों और 10 लाख से ज्यादा मतदान केंद्रों तक जाने की कोशिश होगी.

और ये खबर भी आ ही चुकी है कि अगले महीने पटना में होने जा रही कांग्रेस की रैली में प्रियंका गांधी वाड्रा पहुंच रही हैं. फिर तो यही समझा जाना चाहिये कि महिला यात्रा की कमान प्रियंका गांधी के हाथ में ही रहने वाली है. बिहार कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने के बाद अखिलेश सिंह काफी एक्टिव देखे गये हैं - लेकिन ये भी है कि बातों बातों में वो नीतीश कुमार को पीएम मैटीरियल भी बता चुके हैं.

प्रियंका गांधी के बाद राहुल गांधी के भी बिहार में यात्रा का कार्यक्रम बन रहा है. फिर तो मान कर चलना चाहिये कि देश के अलग अलग हिस्सों में भी ऐसा ही देखने को मिलेगा, लेकिन बिहार में राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की यात्रा का मकसद तो वही लगता है जो भारत जोड़ो यात्रा में देखा गया है.

जैसे भारत जोड़ो यात्रा के केरल पहुंचने पर दोस्त होने के बाद भी सीताराम येचुरी सहित लेफ्ट के नेताओं को अच्छा नहीं लगा, बिहार में तेजस्वी यादव को भी बिलकुल वैसा ही लगेगा. अगर वैसी ही यात्रा पश्चिम बंगाल में निकलती है तो ममता बनर्जी को भी बुरा लगेगा.

विपक्ष राहुल का लोहा मान रहा है क्या

बिहार की बात करें तो आरजेडी नेता मनोज झा पहले ही राहुल गांधी को सलाह दे चुके हैं कि वो कांग्रेस को सहयात्री के तौर पर रखें और राज्यों में ड्राइविंग सीट पर क्षेत्रीय दलों को रहने दें. लेकिन अब तो राहुल गांधी ने समाजवादी पार्टी के बहाने ये भी साफ कर दिया है कि क्षेत्रीय दलों की सीमाएं अपने राज्यों से बाहर नहीं हैं, लिहाजा राष्ट्रीय स्तर पर सभी क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस का नेतृत्व ही स्वीकार करना होगा.

राहुल गांधी के इस सख्त लहजे का अखिलेश यादव पर असर भी देखा गया है. अखिलेश यादव ने भले ही जंयत चौधरी को मना लिया हो, लेकिन वो बाकी आरएलडी नेताओं को भारत जोड़ो यात्रा में जाने से तो नहीं ही रोक सके हैं.

21 विपक्षी दलों के नेताओं को मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से लिखी चिट्ठी से ये तो साफ हो ही चुका है कि कांग्रेस ने विपक्षी दलों को लेकर एक खास लाइन मन ही मन तय कर रखी है. भारत जोड़ो यात्रा में जो भी विपक्षी दल खुलेआम साथ आये हैं, उनके बारे में तो सहयोगी बने रहने की बात पक्की ही समझी जाएगी.

अरविंद केजरीवाल और के. चंद्रशेखर राव सहित विपक्ष के जिन नेताओं को मल्लिकार्जुन खड़गे ने भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह में नहीं बुलाया है, उनके प्रति भी राहुल गांधी ने कांग्रेस की लाइन तय कर दी है.

अब ये देखना है कि भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह में कौन कौन नेता पहुंचते हैं? कांग्रेस के कार्यक्रम में नेता वे नेता खुद पहुंचते हैं या अपने प्रतिनिधि भेजते हैं. ऐसा हुआ तो उसका भी एक मतलब तो होगा ही. मतलब, ये कि प्रतिनिधि भेजने वाले नेता कांग्रेस से दूरी नहीं बना रहे हैं, लेकिन खुद मंच शेयर करने से बच रहे हैं.

राहुल गांधी और सोनिया गांधी ऐसा पहले कई बार कर चुके हैं. 2019 के आम चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में रैली की थी, तो कांग्रेस ने प्रतिनिधि भेज दिया था - और एक बार लालू यादव की पार्टी की तरफ से पटना में रैली हुई तो सोनिया गांधी का मैसेज पढ़ा गया था.

अब तक विपक्षी दलों का सबसे बड़ा जमावड़ा सिर्फ बेंगलुरू में देखने को मिला है, लेकिन 2018 में जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री पद के शपथग्रहण के बाद वैसा नजारा कभी नहीं देखने को मिला है. अब तो कांग्रेस और जेडीएस का रिश्ता भी टूट चुका है.

तृणमूल कांग्रेस सांसद शत्रुघ्न सिन्हा की बातों से तो पार्टी ने किनारा कर लिया है, लेकिन टीएमसी प्रवक्ता कुणाल घोष कह रहे हैं, हम हमेशा कांग्रेस के सड़कों पर आने और भाजपा से लड़ने के पक्ष में रहे हैं... अगर यात्रा से कांग्रेस को मदद मिलती है तो हमें खुशी होगी.'

कुणाल घोष की बातें तो एक तरह से ममता बनर्जी के मन में कांग्रेस नेतृत्व के प्रति नरमी के ही संकेत दे रहे हैं. ये भी हो सकता है कि कोलकाता में वंदे भारत एक्सप्रेस के मौके पर जय श्रीराम के नारे फिर से सुन लेने के बाद बीजेपी की तरफ बढ़ते कदम अपनेआप रुक गये हों.

टीएमसी के ही एक अन्य नेता समीर चक्रवर्ती की बात भी ध्यान देने योग्य है, 'ये सही है कि कांग्रेस लोक सभा की कम से कम 170 सीटों पर बीजेपी के लिए एकमात्र चुनौती है, लेकिन वो इसीलिए ताकतवर हो गई है क्योंकि कांग्रेस उसे ऐसी सीटों पर कड़ी टक्कर देने में नाकाम रही है.'

टीएमसी नेताओं के बयानों पर कांग्रेस की तरफ से जो सवाल पूछा गया है, वो भी बेहद जरूरी सवाल लगता है. पश्चिम बंगाल कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी का कहना है कि शत्रुघ्न सिन्हा और दूसरे नेताओं की बातें अपनी जगह हैं, लेकिन 'हमें ममता बनर्जी के बयान की जरूरत है.'

ममता बनर्जी ने अभी तक कांग्रेस के प्रति कोई झुकाव नहीं दिखाया है. आखिरी बार ममता बनर्जी ने नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन का नाम लेकर 2024 में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ लड़ने की बात की थी - और आगे का एक्शन प्लान 30 जनवरी को कांग्रेस के समापन समारोह तक साफ हो जाएगा.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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