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Updated: 13 जनवरी, 2023 05:18 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) पंजाब में थे. बीच में ही भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) से ब्रेक लेकर दिल्ली पहुंचे. समाजवादी नेता शरद यादव (Sharad Yadav) के घर पर जाकर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की और परिवार के साथ शोक में शामिल हुए. शरद यादव की बेटी सुभाषिनी अली, राहुल गांधी को देखते ही लिपट कर रोने लगीं. राहुल गांधी कुछ देर तक पूरे परिवार के साथ बैठे.

कांग्रेस की तरफ से ट्विटर पर शरद यादव के परिवार के साथ राहुल गांधी की कुछ तस्वीरें पोस्ट की गयी हैं. एक तस्वीर में राहुल गांधी परिवार के लोगों के वैसे ही हाथ पकड़ कर बैठे दिखायी पड़ रहे हैं. चूंकि शरद यादव को राहुल गांधी गुरु मानते रहे हैं, इसलिए स्वाभाविक तौर पर वो तो परिवार का हिस्सा ही हुए. दुख की ऐसी घड़ी में ये बहुत बड़ा भरोसा होता है. निश्चित तौर पर परिवार को दुख सहने की ताकत मिलती है. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी राहुल गांधी को लोगों का हाथ पकड़ कर चलते हुए ऐसे ही देखा जाता रहा है.

भारत जोड़ो यात्रा में ब्रेक टाइम दिल्ली में ही तय किया गया था, और वैसा ही हुआ भी. जब से यात्रा शुरू हुई है, राहुल गांधी खास मौकों पर ही बीच में कुछ देर के लिए यात्रा छोड़ कर दिल्ली आते रहे हैं. पहले भी अपनी मां सोनिया गांधी से मिलने आये थे, और हाल ही में जब उनकी तबीयत थोड़ी गड़बड़ हुई थी तब भी वैसा ही किया - शरद यादव को श्रद्धांजलि देने के लिए खासतौर पर उनका दिल्ली आना अपने गुरु के प्रति भावनाओं के इजहार जैसा ही है.

मीडिया के सामने आने पर राहुल गांधी ने शरद यादव को अपना गुरु तो बताया ही, आंध्र प्रदेश के एक दौरे में उनके साथ बिताये बेहद महत्वपूर्ण दो घंटों की फिर से याद दिलायी - शरद यादव के निधन पर देश भर में उनके तमाम साथियों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित काफी नेताओं ने शोक व्यक्त किया है, लेकिन राहुल गांधी के लिए निश्चित तौर पर ये व्यक्तिगत क्षति है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि वो शरद यादव से जुड़ी यादों को संजो कर रखेंगे.

आंध्र प्रदेश के सफर में हुई उस छोटी सी मुलाकात से पहले दोनों का आपस में कोई खास परिचय भी नहीं था, जबकि एक चुनावी सभा में शरद यादव ने राहुल गांधी को लेकर बड़ा ही अजीब बयान भी दिया था. वैसे राहुल गांधी की तरफ से उस बात पर कोई टिप्पणी सुनने को नहीं मिली.

शरद यादव और राहुल गांधी के निजी रिश्तों को ध्यान से देखें तो दोनों ही एक दूसरे के लिए मन से कुछ न कुछ चाहते भी थे, लेकिन दोनों की ही ये इच्छाएं अधूरी ही रह गयीं - ये कोई मुकम्मल जहां मिलने जैसी बात तो नहीं थी, लेकिन कुछ ख्वाहिशों के अधूरे रह जाने जैसा तो लगता ही है.

शरद यादव को मिला था खास न्योता

30 जनवरी को श्रीनगर में होने वाले भारत जोड़ो यात्रा के समापन समारोह के लिए समान विचारधारा वाले 21 राजनीतिक दलों के नेताओं को कांग्रेस की तरफ से न्योता भेजा गया है. ये बुलावा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से भेजा गया है, जिसमें वो कह रहे हैं कि मेहमानों को वो व्यक्तिगत तौर पर बुला रहे हैं.

बाकी नेताओं की तरह राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू यादव के साथ साथ तेजस्वी यादव को भी बुलावा भेजा गया है. चूंकि लालू यादव अपनी किडनी ट्रांसप्लांट के लिए सिंगापुर गये हुए हैं, और अभी लौटे नहीं हैं, इसलिए तेजस्वी यादव को भेजना जरूरी भी था. वैसे भी बिहार के डिप्टी सीएम होने के नाते ज्यादा सक्रिय तो तेजस्वी यादव ही हैं.

rahul gandhi, sharad yadavराहुल गांधी ने पंजाब से दिल्ली पहुंच कर शरद यादव को अपनी श्रद्धांजलि दी.

भारत जोड़ो यात्रा के राजनीतिक बुलावे सबसे खास रहा शरद यादव को अलग से भेजा गया न्योता. ये तो मल्लिकार्जुन खड़गे की तरफ से ही भेजा गया होगा, लेकिन मान कर चलना चाहिये कि राहुल गांधी के कहने पर ही ऐसा किया गया होगा.

ये तो हर कोई महसूस कर रहा है कि भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी काफी बदले बदले देखे जा सकते हैं. अब तो वो यहां तक कहने लगे हैं कि पुराने राहुल गांधी रहे ही नहीं. जिस राहुल गांधी को मीडिया या बीजेपी के नेता देख रहे हैं, वो उनको बिलकुल भी दिखायी नहीं देते.

और जिस तरह से राहुल गांधी बार बार शरद यादव की राजनीतिक समझ और ज्ञान की तरफ इशारा कर रहे हैं, जाहिर है वो भारत जोड़ो यात्रा के समापन के मौके पर उनकी मौजूदगी महसूस करना चाहते होंगे. शरद यादव से राजनीति के बारे में कुछ और भी सुनना चाहते होंगे.

मौजूदा राजनीति को लेकर शरद यादव की लेटेस्ट राय भी करीब करीब वही रही है, जिस तरह की राजनीति की बात राहुल गांधी कर रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा से जुड़े खास मौके पर अगर शरद यादव कुछ कहे होते तो राहुल गांधी को बल ही मिलता.

शरद यादव के अचानक चले जाने से राहुल गांधी का अपने राजनीतिक करियर खास मोड़ पर गुरु के आशीर्वचनों से वंचित होना निश्चित ही मायूस करने वाला है... और इसकी भरपाई तो कभी नहीं हो सकेगी.

राहुल गांधी ने शरद यादव से क्या सीखा?

जब भी राहुल गांधी कहते हैं कि शरद यादव से वो बहुत कुछ सीखे हैं, तो उनके राजनीतिक विरोधियों के मन में ये सवाल जरूर होता होगा कि कांग्रेस नेता ने समाजवादी नेता से सीखा क्या है?

असल में राहुल गांधी जिस राजनीतिक सीख का जिक्र करते हैं वो किसी हाइपर शॉर्ट क्रैश कोर्स जैसा ही है. जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म यूडेमी के सिखाने वाले वीडियो होते हैं. यूडेमी के कई पेड कोर्स भी हैं और वो सर्टिफिकेट भी देता है. सर्टिफिकेट तो वो फ्री वाले कोर्स के लिए भी देता है, लेकिन वो एक बार उसके सारे वीडियो प्ले कर देने और पीडीएफ फाइलें ओपन कर देने भर से ही पूरा हो जाता है - कभी कभी तो ऐसा लगता है राहुल गांधी ने भी शरद यादव से वैसे ही सीखा है.

अपनी श्रद्धांजलि में भी राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा है, ‘शरद यादव जी समाजवाद के पुरोधा होने के साथ एक विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे... मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है... उनके शोकाकुल परिजनों के प्रति अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करता हूं... देश के लिए उनका योगदान सदा याद रखा जाएगा.’

राहुल गांधी को लेकर शरद यादव क्या सोचते थे?

राहुल गांधी ने शरद यादव और अपनी दादी इंदिरा गांधी के जमाने के रिश्तों का भी जिक्र किया है. राहुल गांधी कहते हैं, 'मेरी दादी के साथ उनकी काफी राजनीतिक लड़ाई हुई थी... मगर उनके बीच सम्मान का रिश्ता था. उन्होंने मुझे जो बताया, वो रिश्ते की शुरुआत थी.'

भारतीय राजनीति में वो इंदिरा गांधी का जमाना समझा जाता था. और उसी जमाने में शरद यादव 27 साल की उम्र में लोक सभा पहुंचे थे. जनता पार्टी के चुनाव निशान हलधर पर वो पहली बार चुनाव जीते थे. तब शरद यादव जबलपुर यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के अध्यक्ष हुआ करते थे और छात्र आंदोलन के चलते जेल भेज दिये गये थे - और जेल से ही शरद यादव ने अपना पहला चुनाव जीत लिया था.

और जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1976 में इमरजेंसी के वक्त लोकसभा का कार्यकाल 5 साल की जगह बढ़ा कर 6 साल कर दिया तो जिन दो सांसदों ने विरोध में इस्तीफा दे दिया था, शरद यादव भी उनमें से एक थे. इंदिरा गांधी के फैसले के विरोध में इस्तीफा देने वाले दूसरे सांसद मधु लिमये थे.

राहुल गांधी के प्रति शरद यादव का नजरिया कब बदला, ये तो नहीं मालूम लेकिन पहले तो ऐसा कतई नहीं था. 2010 की एक चुनावी रैली पर बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट में शरद यादव के भाषण का जिक्र है. नेहरू-गांधी परिवार को टारगेट करते करते शरद यादव यहां तक बोल गये कि राहुल गांधी को गंगा नदी में फेंक देना चाहिये.

फतुहा की चुनावी रैली में शरद यादव ने कहा था, 'मोतीलाल, जवाहर लाल, इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी... नया बबुआ आया है... क्या जानता है? पेपर पर लिख कर दे दिया... पढ़ दिये... बदकिस्मत देश है... तुम्हें उखाड़कर गंगा में बहाना चाहिये था, लेकिन बीमार लोग हैं.' अपने भाषण के दौरान ही शरद यादव ने राहुल गांधी के आस्तीन चढ़ा कर रैलियों में बोलने की नकल भी उतारी थी. जेडीयू का नेता होने के नाते तब शरद यादव एनडीए का हिस्सा हुआ करते थे - और नीतीश कुमार तब भी बिहार के मुख्यमंत्री रहे.

ये तब की बात है जब राहुल गांधी अमेठी से दूसरी बार सांसद बन चुके थे. तब यूपी में बीएसपी की सरकार थी और मायावती मुख्यमंत्री हुआ करती थीं. अपनी चुनावी रैलियों में कमीज की आस्तीन चढ़ा कर राहुल गांधी अपने गुस्से का इजहार किया करते थे - और लोगों से पूछते भी कि क्या उनको तत्कालीन हालात से गुस्सा नहीं आता? तब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए 2 की सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे.

रिपोर्ट के मुताबिक, बाद में शरद यादव का खंडन भी आया था और वो इस बात से इनकार कर रहे थे कि राहुल गांधी के बारे में कोई ऐसी वैसी बात कही है. शरद यादव का कहना रहा कि वो कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और लोक जनशक्ति पार्टी के चुनाव निशानों का जिक्र कर रहे थे. बाकी आप खुद समझ सकते हैं.

राहुल गांधी वे दो घंटे कभी नहीं भूल पाते

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भी राहुल गांधी ने बताया था कि कैसे शरद यादव ने एक छोटे से सफर में ही भारत की राजनीति समझा डाली थी - और वो उसे कभी नहीं भूल सकते. शरद यादव की बेटी सुभाषिनी यादव कांग्रेस के टिकट पर बिहारीगंज विधानसभा से चुनाव लड़ी थीं, लेकिन वो हार गयीं.

राहुल गांधी ने सुभाषिनी के लिए वोट भी मांगे थे. बाद में सुभाषिनी ने एक इमोशनल पोस्ट लिखी थी - और बताया कि कैसे राहुल गांधी ने उनके बीमार पिता के नहीं पहुंच पाने की स्थिति में उनको बहन बताया और हौसला बढ़ाया. जब राहुल गांधी, शरद यादव के घर श्रद्धांजलि देने पहुंचे तो वो काफी भावुक हो गयी थीं, पुरानी बातें भी याद आयी ही होंगी.

राहुल गांधी के मुताबिक, एक कार्यक्रम के लिए आंध्र प्रदेश में शरद यादव के साथ उनको दो-तीन घंटे बिताने का मौका मिला. राहुल गांधी ही बताते हैं कि कार्यक्रम के बाद शरद यादव पैदल ही निकले थे. तब राहुल गांधी और शरद यादव में कोई खास परिचय नहीं था. राहुल गांधी ने शरद पवार को लिफ्ट देने का ऑफर किया, और वो मान गये.

राहुल गांधी बताते हैं कि शरद यादव से वो पहले ही बोल दिये थे कि पूरे रास्ते वो खुद चुप रहेंगे और उनकी बातें सुनेंगे. राहुल गांधी बिलकुल वैसा ही किया - और वो बात उनको ताउम्र नहीं भूलेगी.

एक अफसोस भी रहेगा

सारी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन राहुल गांधी को एक बात का अफसोस भी होना चाहिये. अगर अफसोस न हो तो भी - और ये बात राहुल गांधी के दोबारा कांग्रेस की कमान न संभालने की जिद से जुड़ी है.

अप्रैल, 2022 की बात है. एक दिन शरद यादव से मिलने राहुल गांधी उनके घर पहुंचे थे. कुछ तक घर पर रहे. दोनों की आपस में काफी सारी बातें हुई ही होंगी. मुलाकात खत्म होने के बाद एक साथ दोनों ही मीडिया के सामने आये.

राहुल गांधी ने शरद यादव को अपना गुरु बताया ये भी कहा कि वो अपने गुरु से मिलने पहुंचे थे. मतलब, मुलाकात को राजनीतिक या कुछ अलग से न समझा जाये. मीडिया ने राहुल गांधी की बात मान भी ली, लेकिन गुरु से शिष्य के बारे में एक सवाल पूछ डाला.

सवाल ये था कि राहुल गांधी के कांग्रेस का नेतृत्व करने को लेकर शरद यादव की क्या सलाह होगी? शरद यादव ने तब ये भी बताया था कि कैसे कांग्रेस को 24 घंटे चलाने वाला कोई है तो वो राहुल गांधी ही हैं.

और फिर शरद यादव की सलाह थी कि कांग्रेस को चाहिये कि वो राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बना कर कमान सौंप दे. शरद यादव की सलाह पर राहुल गांधी ने सिर्फ इतना ही कहा, 'ये देखने वाली बात होगी.'

बहरहाल, अब तो मल्लिकार्जुन खड़गे को राहुल गांधी की इच्छानुसार ही कांग्रेस की कमान सौंपी जा चुकी है, लेकिन उनके गुरु की वो इच्छा तो अधूरी ही रही - करीब करीब वैसे ही जैसे भारत जोड़ो यात्रा के समापन के मौके पर राहुल गांधी को गुरु का साक्षात् आशीर्वाद न मिलना.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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