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Updated: 07 जनवरी, 2023 02:39 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) खुल कर खेलने भी लगे हैं, और बोलने भी लगे हैं. भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) से राहुल गांधी के आत्मविश्वास में जो इजाफा हुआ है, सामने भी आ चुका है. हाव भाव में भी काफी बदलाव नजर आ रहा है.

राहुल गांधी का ये कहना कि वो भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व नहीं कर रहे हैं, पहले भी डिस्क्लेमर जैसा ही लगा था. करीब करीब वैसे ही जैसे कांग्रेस में वो बाकी सांसदों जैसे ही हैं. थोड़े महत्व की बात हो तो कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्यों जैसे - लेकिन माना तो यही जाता रहा है कि कांग्रेस के रिंग मास्टर वही हैं.

अब राहुल गांधी को पहले जैसी बातें करने की जरूरत नहीं पड़ती. शायद इसलिए भी क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी पर अब मल्लिकार्जुन खड़गे को बिठाया जा चुका है. ये बात अलग है कि उनकी भूमिका हाथी के दांत से ज्यादा नहीं मानी जाती होगी.

पहले राहुल गांधी का सिर्फ एक ही काम लगता था, कोई भी बहाना खोज कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करना. चाहे जैसे भी संभव हो. चाहे कोई भी मुद्दा हो. बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी से लेकर चीन के मुद्दे पर भी. अब राहुल गांधी के भाषण का दायरा भी बढ़ गया है.

अब वो देश के लिए अल्टरनेटिव विजन की भी बात करते हैं. अब वो विपक्ष से सीधे संवाद करते हैं. साथ आने पर सम्मान बनाये रखने का वादा तो करते हैं, लेकिन ये बताना नहीं भूलते कि शर्तें तो कांग्रेस (Congress) की लागू होंगी.

क्षेत्रीय दलों की हदें भी समझाने लगे हैं, ताकि कांग्रेस की हैसियत को कम करके आंकने की कोई भूल न करे. बीजेपी की बात और है, लेकिन क्षेत्रीय दलों की ये मजाल तो नहीं ही होनी चाहिये. राहुल गांधी की नयी राजनीति के पहले शिकार तो अखिलेश यादव ही हुए हैं.

राहुल गांधी 2024 के लोक सभा चुनाव में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शिकस्त देने का इरादा और पूरा प्लान तो समझा ही चुके हैं - अब तो ये भी बताने लगे हैं कि कांग्रेस की सरकार बनी तो न्याय योजना लागू की जाएगी, और लोगों के खाते में 72 हजार रुपये डाले जाएंगे.

निश्चित तौर पर भारत जोड़ो यात्रा में जुटी भीड़ राहुल गांधी का जोश बढ़ा रही होगी. खासतौर से यूपी में, ऐसा भी लगा होगा जैसे विधानसभा चुनावों से भी ज्यादा समर्थन लोग अब देने लगे हों - लेकिन क्या ये अगले डेढ़ साल तक यूं ही कायम रह सकेगा? ये सवाल तो राहुल गांधी के साथियों को भी परेशान कर ही रहा होगा.

ऐसे भी समझ सकते हैं कि यूपी में भारत जोड़ो यात्रा को जो समर्थन हासिल हुआ है, उससे राहुल गांधी जितना ही बीजेपी नेतृत्व भी खुश हो रहा होगा. ये तो हो सकता है अमित शाह ने अगले आम चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी का नाम लेना भी उसी खुशी का इजहार हो.

देखा जाये तो भारत जोड़ो यात्रा अपने ज्यादातर महत्वपूर्ण पड़ावों से गुजरते हुए आगे बढ़ चुकी है. उत्तर प्रदेश ऐसा ही एक पड़ाव था - अब तो सिर्फ श्रीनगर पहुंच कर राहुल गांधी का झंडा फहराना भर बाकी रह गया है.

ब्रेक लेने से पहले राहुल गांधी लाल किला पहुंच कर भारत जोड़ो यात्रा के तहत भाषण दे ही चुके हैं - अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत जोड़ो यात्रा आगे चल कर राहुल गांधी को लाल किले पर भी झंडा फहराने का मौका देगी?

उत्तर प्रदेश में तो उम्मीद से ज्यादा ही मिला

राहुल गांधी की तात्कालिक कामयाबी से मोदी-शाह के खुश होने की खास वजह भी है. जो चीज अमित शाह यूपी चुनाव 2022 में मायावती से चाहते थे, पश्चिम यूपी में कुछ हद तक वो काम राहुल गांधी ने कर दिया है - और भारत जोड़ो यात्रा में मुस्लिम समुदाय की मौजूदगी इस बात का सबूत है.

rahul gandhi, mallikarjun khargeराहुल गांधी को कांग्रेस जननायक के तौर पर पेश करने लगी है, पब्लिसिटी के लिए तो ठीक है, लेकिन अभी ये ये समझ लेना खतरनाक हो सकता है

भारत जोड़ो यात्रा यूपी के जिन तीन जिलों से गुजरी है वहां बड़ी मुस्लिम आबादी रहती है. गाजियाबाद, बागपत, शामली और कैराना में मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका में देखे जाते हैं. बेशक मुस्लिम समुदाय कांग्रेस का पारंपरिक वोटर रहा है, लेकिन यूपी चुनाव में तो यही देखने को मिला कि ज्यादातर वोट समाजवादी पार्टी की तरफ चले गये.

आपको याद होगा अमित शाह ने यूपी चुनाव के दौरान बीएसपी की प्रासंगिकता का जिक्र किया था, जिसे मायावती की तरफ मुस्लिम वोटर का रुख मोड़ने की कोशिश के तौर पर देखा गया. वही मुस्लिम समुदाय राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में दिलचस्पी दिखाने लगा है - जाहिर है, सबसे ज्यादा चिंतित तो अखिलेश यादव ही होंगे.

राहुल जिन रास्तों पर पदयात्रा कर रहे थे, उन पर मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों से लेकर हिजाब पहनी महिलाएं भी खड़ी दिखीं - और पूरे रास्ते कांग्रेस जिंदाबाद और राहुल गांधी जिंदाबाद के नारे भी लग रहे थे. राहुल गांधी और उनके साथी जब शामली से निकले तो साथ में कुछ मुस्लिम उलेमा भी देखे गये. जो काम सलमान खुर्शीद और नसीमुद्दीन सिद्दीकी यूपी चुनाव में नहीं कर पाये थे, भारत जोड़ो यात्रा के बाद कुछ दिन वे भी चैन की नींद तो सो ही सकते हैं.

ये तो ऐसा लगता है जैसे जितनी भीड़ यूपी के कुछ इलाकों में जुटी है, अब तक की पूरी भारत यात्रा में वैसी भीड़ कहीं नहीं देखने को मिली है - लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि भीड़ वोटों में तब्दील नहीं होती. अगर ऐसा होता है तो वो गिनती के अपवाद होते हैं.

राहुल गांधी की यात्रा की ये भीड़ बीजेपी को इसलिए थोड़ी अच्छी लग सकती है क्योंकि इसमें उसे मुस्लिम वोटों का बंटवारा नजर आ रहा होगा. अखिलेश यादव और जयंत चौधरी या मायावती को काफी परेशान कर रही होगी क्योंकि ये उनके वोट बैंक में सेंध नहीं बल्कि दिन दहाड़े लूट लेने जैसी है.

यूपी के हिस्से की यात्रा को अब कांग्रेस की तरफ से गंगा-जमुनी तहजीब के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है. तस्वीरें शेयर कर मोहब्बत की दुकान खोलने का कांग्रेस की तरफ से वादा किया जाने लगा है.

अब तो कांग्रेस राहुल गांधी को जननायक बताने लगी है

राहुल गांधी अक्सर कहते रहे हैं कि वो डरते नहीं हैं. पहले वो ऐसी बातें बीजेपी और मोदी को लेकर कहा करते थे, लेकिन अब वो ठंड को लेकर भी वैसी ही बातें करने लगे हैं. भारत जोड़ो यात्रा में ब्रेक के दौरान राहुल गांधी ने मीडिया को ये समझाने की कोशिश की थी कि ठंड भी उसे ही लगती है जो उससे डरता है - असल में ये कड़ाके की ठंड में टीशर्ट पहन कर घूमने को लेकर राहुल गांधी की दलील रही.

राहुल गांधी ने तो निडर और डरपोक नेताओं की कांग्रेस में कैटेगरी भी बना रखी है. जिन नेताओं के बीजेपी में चले जाने की संभावना लगती है, राहुल गांधी की तरफ से उनको डरपोक करार दिया जाता है. प्रियंका गांधी वाड्रा ऐसे बताती हैं कि चूंकि कांग्रेस का संघर्ष मुश्किल है और लंबा चल सकता है, इसलिए हर किसी के लिए टिके रहना भी मुश्किल हो सकता है.

राहुल गांधी की नजर में वे कांग्रेस नेता जो मोदी शाह को आगे बढ़ कर टारगेट करें या लगातार चैलेंज करते रहें, निडर नेता हैं. हालांकि, राहुल गांधी का स्टैंड कभी कभी संदेह भी पैदा करता है. क्योंकि मोदी पर बयान देने को लेकर वो मणिशंकर अय्यर से माफी भी मंगवाते हैं और अनुशासनात्मक कार्रवाई भी होती है, जबकि प्रधानमंत्री कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के रावण जैसा बता देने के बाद भी कोई कुछ नहीं बोलता. राहुल गांधी भी नहीं.

और ये भी भारत जोड़ो यात्रा का ही असर है कि राहुल गांधी को मोहब्बत का मसीहा से लेकर जननायक के तौर पर पेश किया जाने लगा है. राहुल गांधी की तस्वीर के साथ कांग्रेस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से एक पोस्ट में लिखा है, "निडरता का दूसरा शब्द...जननायक!"

जो कुछ राहुल गांधी ने अब तक सीखा

हाल ही में राहुल गांधी से एक प्रेस कांफ्रेंस में 2024 के आम चुनाव को लेकर एक सवाल पूछा जा रहा था, लेकिन राहुल गांधी ये कहते हुए टाल गये कि अब वो समझदार हो गये हैं - और वो हेडलाइन के लिए किसी के झांसे में नहीं आने वाले हैं.

मीडिया की सुर्खियां बनाये रखना: रास्ते भर राहुल गांधी लोगों से गले मिलते, हाथ पकड़ कर चलते हुए तो देखे ही गये हैं, मां सोनिया गांधी और बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ पारिवारिक प्रेम के सार्वजनिक इजहार के उनके तरीके ने भी लोगों को ध्यान खींचा है.

उससे पहले भी कर्नाटक में सोनिया गांधी के जूते के लैस बांधते राहुल गांधी की तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब शेयर की गयी थी. और जब दिल्ली लौटे तो मां के साथ कई तस्वीरें शेयर की थी. मां-बेटे के प्रेम का जिक्र राहुल गांधी ने तब भी किया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां की तबीयत काफी खराब हो गयी थी. मोदी की मां हीरा बेन के निधन पर भी राहुल गांधी वैसी ही प्रतिक्रिया दी थी.

राहुल गांधी सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें खुद भी शेयर कर रहे हैं और मीडिया को भी मौका दे रहे हैं जिनको न तो कोई नजरअंदाज कर सकता है, न ही राजनीतिक विरोधी वैसा रिएक्शन दे सकते हैं जैसा बाकी मामलों में देखने को मिलता है - और राहुल गांधी इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं.

अपनी फिटनेस का प्रदर्शन: भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राजस्थान में तो प्रियंका गांधी भी दौड़ती हुई देखी गयीं, लेकिन राहुल गांधी तो पूरे रास्ते एक ही मोड में देखे गये हैं. तेजी से चलते, कभी कभी दौड़ते हुए भी.

राहुल गांधी के साथ चल पाना कांग्रेस नेताओं के लिए भी मुश्किल हो रहा है - ये सब राहुल गांधी के फिटनेस का प्रदर्शन नहीं तो क्या है? ऐसे भी समझा जा सकता है कि ये सीधे सीधे प्रधानमंत्री मोदी के समानांतर बहस खड़ी करने का एक तरीका भी है. मोदी के बारे में बीजेपी हमेशा ही उनके घंटों बिना थके काम करते रहने का प्रचार करती रही है. कोविड संकट के दौरान भी ऐसी ही बातें चर्चित रहीं.

टीशर्ट पहन कर घूमना भी ऐसा ही एक प्रयोग है. वास्तव में अगर कोई पूरी तरह फिट नहीं है तो सिर्फ विल पावर की बदौलत लंबे समय तक ऐसा करना मुश्किल है. लेकिन राहुल गांधी ने भी वही रणनीति अपनायी है जो 2019 के चुनाव में उनके स्लोगन 'चौकीदार चोर है' के खिलाफ मोदी ने किया था - राहुल गांधी भी अपनी टीशर्ट पर बीजेपी की तरह से सवाल किये जाने का अपने तरीके से जवाब दे रहे हैं.

छुट्टी लेने की आदत छोड़ी है: राहुल गांधी को लेकर हमेशा ही उनके छुट्टियों पर चले जाने को लेकर सवाल खड़ा किया जाता रहा है - और यही वजह रही कि भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी के शामिल होने पर भी सवाल उठ रहे थे.

भारत जोड़ो यात्रा शुरू हुई तो भी लोगों के मन में ये सवाल था कि क्या राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर तक पदयात्रा करते रहेंगे - और बीच में छुट्टी नहीं लेंगे?

राहुल गांधी ने अपनी पुरानी आदत लगता है छोड़ दी है और अब तक की यात्रा में बने हए हैं, जबकि भारत जोड़ो यात्रा पूरी होने में अब कुछ ही दिन बचे हैं. बीच बीच में ऐसे काम आते रहे हैं जब राहुल गांधी को छोटे छोटे ब्रेक लेने पड़े हैं. जैसे गुजरात में चुनाव प्रचार के लिए जाना और हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार के शपथग्रहण में शामिल होना.

सोनिया गांधी की तबीयत ठीक न होने की वजह से भी राहुल गांधी को ब्रेक लेना पड़ा है, लेकिन वो अब तक कभी छुट्टी पर नहीं गये - अगर थोड़ा आराम किया, तो वो भी तभी जब पूरी यात्रा ही ब्रेक पर थी.

ये सब करके राहुल गांधी लगातार लोगों के बीच बने हुए हैं, और इसका फायदा भी साफ तौर पर नजर आ रहा है. बेशक चुनावी हार जीत सत्ता की राजनीति में खास मायने रखती है, लेकिन सबसे जरूरी होता है लोगों में पैठ बना चुकी धारणा को बदल पाना - राहुल गांधी का सफर सही रास्ते पर तो है, लेकिन मीलों पैदल चलना अभी बाकी है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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