New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 22 अगस्त, 2022 02:16 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

कांग्रेस के उदयपुर चिंतन शिविर में सोनिया गांधी को काफी हद तक यकीन हो गया था कि G-23 के रूप में पार्टी में 2020 में उभरी बगावत को वो न्यूट्रलाइज कर चुकी हैं. समय भले ही थोड़ा ज्यादा लग गया हो. ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस में बचे खुचे बागी नेता कोई ऐसी वैसी बात बोल नहीं रहे थे. सोनिया गांधी ने अपनी तरफ से बड़े बागियों को किसी न किसी तरीके से मुंह बंद कर लेने का इंतजाम तो कर ही दिया था.

एक स्थायी कांग्रेस अध्यक्ष (Congress President) की मांग को लेकर सीनियर कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में सोनिया गांधी को पत्र लिख कर पार्टी के लिए एक स्थायी अध्यक्ष की मांग की गयी थी. पत्र पर करीब दो दर्जन कांग्रेस नेताओं के हस्ताक्षर थे. कांग्रेस नेताओं की चिट्ठी को लेकर CWC की बैठक में काफी बवाल हुआ, लेकिन गुट के कई नेताओं के कांग्रेस छोड़ देने और निराशा के चलते मामला धीरे धीरे ठंडा पड़ गया.

एक स्थायी कांग्रेस अध्यक्ष की मांग के साथ नेताओं ने एक शर्त भी रखी थी. ऐसा अध्यक्ष जो काम करता हुआ नजर भी आये - समझा गया कि नेताओं का इशारा राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के अध्यक्ष के कार्यकाल की तरफ ही था.

संयोग की बात ये है कि अब वो घड़ी भी आ गयी है जब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है. ये प्रक्रिया 20 सितंबर तक चलने वाली है. कांग्रेस के संविधान के अनुसार लोकतांत्रिक तरीके से अध्यक्ष चुना जाएगा. अब तक बस एक ही चीज बाधा बनी हुई है और वो है, राहुल गांधी का फिर से अध्यक्ष बनने के लिए तैयार न होना. अगर एक बार राहुल गांधी राजीहो जायें तो फिर से उसी लोकतांत्रिक तरीके से उनको कांग्रेस का स्थायी अध्यक्ष चुन लिया जाएगा - हां, काम करते हुए नजर आने की चुनौती जरूर बरकरार रहेगी.

राहुल गांधी ने अपना इस्तीफा देते वक्त नये कांग्रेस अध्यक्ष के लिए जो शर्त रखी थी, वो अब भी कायम है. असल बात तो ये है कि वो शर्त ही कांग्रेस की खोई हुई ताकत और सम्मान दिलाने वाली संजीवनी बूटी जैसी है - और वो शर्त ही नये कांग्रेस अध्यक्ष पद के रास्ते की सबसे बड़ी बाधा है - राहुल गांधी ने इस्तीफा देते वक्त ही बोल दिया था कि आगे से कांग्रेस का अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं होगा.

कुछ दिनों तक तो सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने नया कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने वाली प्रक्रिया से दूरी भी बनायी, लेकिन मामला हाथ से फिसलते देख सोनिया गांधी ने अपनी पुरानी टीम को सक्रिय किया - और फिर एक दिन अचानक खबर आयी कि परिवार के करीबियों ने सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया है.

अब जबकि नया कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने को लेकर औपचारिकताएं गति पकड़ने वाली हैं, तरह तरह की चर्चाएं जोर पकड़ चुकी हैं. अव्वल तो हर कोई यही चाहता है कि राहुल गांधी ही फिर से कमान संभाल लें, लेकिन ऐसा नहीं हो पाता तब की हालत में कुछ सीनियर कांग्रेस नेताओं के नाम भी चर्चा में हैं जिनको पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है - और ऐसा ही एक नाम राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का भी है, लेकिन एक तरीके से वो अपनी अनिच्छा भी जता चुके हैं. हालांकि, अशोक गहलोत की अनिच्छा में भी अलग ही राजनीतिक मकसद नजर आता है.

नये कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के ठीक पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की जयंती के मौके पर राहुल गांधी ने अपने पिता से उनके सपनों का पूरा करने का वादा किया है - सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या राहुल गांधी अपने पिता के सपने पूरे करने का वादा निभा पाएंगे भी? आखिर कैसे मान लें कि राहुल गांधी वास्तव में अपने वादे के प्रति गंभीर हैं, अब तक ऐसा कोई लक्षण तो दिखाई तो पड़ा नहीं है!

क्या राहुल गांधी वादे के प्रति गंभीर हैं?

राहुल गांधी ने अपने पिता राजीव गांधी से उनके बर्थडे पर जो वादा किया है, वो कोई अनोखा वादा नहीं है. राहुल गांधी जैसा हर बेटे का सपना होता है या नहीं, लेकिन हर पिता का अपनी औलाद को लेकर कोई न कोई जरूर होता है. कुछ बच्चे तो पिता के जीते जी उनका सपना पूरा भी कर देते हैं, कुछ बाद में पूरा करते हैं और कई चूक भी जाते हैं - लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने लिए ऐसे सपने देख लेते हैं जिन्हें पूरा करना नामुमकिन सा हो जाता है. पिता के सपने तो पहले ही पीछे छूट चुके होते हैं.

rahul gandhi, rajiv gandhiजब तक राहुल गांधी नहीं चाहेंगे कांग्रेस को नया अध्यक्ष तो मिलने से रहा

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को याद करते हुए राहुल गांधी ने ट्विटर पर लिखा है, "पापा, आप हर पल मेरे साथ, मेरे दिल में हैं... मैं हमेशा प्रयास करूंगा कि देश के लिए जो सपना आपने देखा, उसे पूरा कर सकूं."

भला कौन ऐसा पिता होगा जिसे अपने बेटे के ऐसे प्रॉमिस पर गर्व न हो. निराश होने के बावजूद उम्मीदें फिर से न जग जायें. ज्यादा कुछ न सही, कम से कम ये भरोसा तो होगा ही कि कामयाब भले न हो, लेकिन कोशिशों में कमी तो नहीं है ना.

ऐसे ख्याल तो हमारे मन में आ रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी का वही ट्वीट पढ़ कर क्या सोनिया गांधी के मन में भी ये ख्याल आ रहे होंगे? बाकी कांग्रेस नेताओं की छोड़िये क्या प्रियंका गांधी वाड्रा के मन में भी सकारात्मकता से भरा कोई ख्याल आ रहा होगा?

क्या सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को ये यकीन हो रहा होगा कि राहुल गांधी अब अपनी जिम्मेदारियों के प्रति गंभीर होने जा रहे हैं - या एक बार फिर वे राहुल गांधी के तमाम पुराने टास्क की तरह ही सैम पित्रोदा वाले अंदाज में सोच रहे होंगे - "हुआ तो हुआ!"

अब तक तो यही देखने को मिला है कि राहुल गांधी अपनी फिटनेस को छोड़ कर बाकी चीजों के प्रति कतई गंभीर नहीं हैं. और ऐसा कभी कभार नहीं बल्कि बार बार देखा जा चुका है. सब कुछ पहले से तय कर लिये जाने के बावजूद राहुल गांधी ऑन स्पॉट फैसला लेते हैं और बना बनाया काम बिगाड़ कर रख देते हैं.

अभी 5 अगस्त को ही बेरोजगारी और महंगाई को लेकर कांग्रेस के जबर्दस्त एक्शन प्लान का फोकस राहुल गांधी ने अपनी बातों से कमजोर कर दिया. राहुल गांधी को जब महंगाई और बेरोजगारी पर जोर देना चाहिये तब वो ईडी सहित जांच एजेंसियों और बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डरने की बातें करने लगते हैं. ऐसा ही राहुल गांधी ने कांग्रेस जयपुर रैली के वक्त भी कर दिया था. रैली महंगाई पर मोदी सरकार को घेरने के लिए बुलाई गयी थी - और अपने भाषण के नोट कि जगह वो हिंदुत्व का सिलैबस रट कर पहुंच गये - जो याद किये थे वो बोल दिये. महंगाई का मुद्दा बहुत पीछे छूट गया.

महत्वपूर्ण मौकों पर वो कम ही पाये जाते हैं. अमूमन होता तो ये है कि वो पहले ही छुट्टी पर विदेश निकल जाते हैं. ऐसा करके वो कोई गलत काम नहीं कर रहे हैं, ये सब अधिकार उनको मिले हुए हैं. हां, अपने कॅरियर पर ध्यान न देकर वो अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार लेते हैं - मुसीबत ये कि ऐसा वो बार बार करते हैं. जैसे यही उनकी आदत बन चुकी हो.

ये सब देखते हुए ही यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि राहुल गांधी अपने पिता से किये वादे को पूरा करने के मामले में भी गंभीरता दिखाएंगे!

ध्यान देने वाली बात ये है कि राजीव गांधी को शुरुआती दौर में भले ही राजनीति में दिलचस्पी नहीं रही हो, लेकिन एक बार जब जिम्मेदारी उठा लिये तो ताउम्र निभाये भी - और देश के लिए ऐसे कई काम किये जिसके लिए भुलाया नहीं जा सकता. राजनीतिक विरोध अपनी जगह है. जब नेहरू को नहीं बख्शा जाता तो राजीव गांधी की कौन सोचे.

राजीव गांधी कभी जिम्मेदारियों से भागे नहीं

जैसे राहुल गांधी कई बार कह चुके हैं कि सत्ता और राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है. अगर किसी चीज में उनकी दिलचस्पी है तो वो अपने देश और लोगों को समझना चाहते हैं क्योंकि अपने देश और लोगों से उनको प्यार है.

राहुल गांधी की भी राजनीति में कभी दिलचस्पी नहीं रही. वो तो पायलट बन कर ही खुश थे. बेहद खुश थे. अपनी हर फ्लाइट में वो आसमान को छूने की कोशिश करते और वो उनको खूब खुशी देता रहा - लेकिन अपने छोटे भाई संजय गांधी की दुर्घटना में मौत हो जाने की वजह से उनको मां की मदद के लिए राजनीति का रुख करना पड़ा.

देश के लिए कुछ करने का विचार राहुल गांधी के मन में भी पिता से मिली विरासत का ही हिस्सा लगता है. ये राजीव गांधी ही थे जो सैम पित्रोदा को अपनी मां तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलाये थे - और जब खुद देश की कमान संभाली तो सैम पित्रोदा की सलाह से राजीव गांधी ने कई सारे काम भी किये.

भाई की मौत ने राजीव गांधी को राजनीति में ला दिया, जबकि मां की मौत ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी दे दी, लेकिन राजीव गांधी जिम्मेदारियों से कभी भागे नहीं. यहां तक कि सोनिया गांधी को न तो राजीव गांधी का राजनीति में आना मंजूर था, न प्रधानमंत्री बनने देना चाहती थीं, लेकिन पति के साथ खड़ी रहीं.

2004 न सही, 2009 में तो राहुल गांधी भी चाहते तो प्रधानमंत्री बन ही सकते थे. सोनिया गांधी ने तो दूसरी बार मजबूरी में ही मनमोहन सिंह को दोबारा प्रधानमंत्री बनाया होगा - क्योंकि राहुल गांधी के बाद मनमोहन सिंह के अलावा किसी पर और विश्वास रहा नहीं होगा.

दावेदार तो कई नेता थे, लेकिन मनमोहन सिंह जैसी तब के हालात में अपेक्षित योग्यता तो किसी के पास नहीं थी. राजनीतिक दांव पेंच के हिसाब से देखें तो सभी मनमोहन सिंह के मुकाबले बीस ही पड़ते - फिर तो रिमोट कंट्रोल के सिग्नल भी हरदम कमजोर ही पाये जाते.

राहुल गांधी अब भी जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते

2017 के आखिर में, बड़ी मुश्किल से राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंप कर सोनिया गांधी थोड़ी निश्चिंत हो पायी थीं, लेकिन वो तो बीच में ही छोड़ कर भाग खड़े हुए - ये ठीक है कि कांग्रेस तो चुनाव हारी ही थी, खुद भी एक सीट से हार गये थे, लेकिन जैसे जिम्मेदारी लिये, वैसे मोर्चे पर डटे भी तो रह सकते थे.

आज फिर एक बार कांग्रेस की राजनीति उसी मोड़ पर आ खड़ी हुई है. कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है - और 20 सितंबर तक पूरी होनी है, लेकिन अब भी हर कोई राहुल गांधी का ही मुंह देख रहा है.

तबीयत ठीक न होने के बावजूद सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं. और अब तो दावा ये भी कर चुकी हैं कि वो ही पूर्णकालिक अध्यक्ष हैं. बच्चों पर अगर सवाल उठने लगे तो मां के पास आगे बढ़ कर जिम्मेदारी लेने के अलावा कोई रास्ता भी तो नहीं बचा होता.

नये कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में गांधी परिवार से बाहर के नामों पर भी चर्चा हो रही है - और राहुल गांधी के हां का भी इंतजार हो रहा है. राहुल गांधी के इंकार की सूरत में आखिरी फैसला सोनिया गांधी को ही लेना होगा. ऐसी नौबत आयी तो मजबूरी में ही सही फिर से वो स्थायी अध्यक्ष बन जाएंगी - क्योंकि प्रियंक गांधी को भी अध्यक्ष बनाये जाने का कोई इरादा अब तक नहीं दिखा है.

कांग्रेस नेता भक्त चरण दास ने एक इंटरव्यू में बताया है कि राहुल गांधी ने कहा है कि अध्यक्ष बनने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है, फिर भी उनसे कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालने की रिक्वेस्ट की जा रही है. भक्त चरण दास का कहना है कि अगर ऐसा नहीं होता तो भी राहुल गांधी को ही बताना होगा कि कैसे उपाय किये जायें कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद खाली न रहे.

कांग्रेस की प्रस्तावित भारत जोड़ो यात्रा को लेकर भी राहुल गांधी का रुख साफ नहीं लगता. कांग्रेस नेता ये तो बता रहे हैं कि सितंबर में होने जा रही कांग्रेस की रैली को राहुल गांधी संबोधित करेंगे लेकिन कन्याकुमारी से शुरू होने जा रही भारत जोड़ो यात्रा को सिर्फ हरी झंडी दिखाएंगे. पहले ये यात्रा गांधी जयंती के मौके पर 2 अक्टूबर से शुरू होने वाली थी, लेकिन अब नयी तारीख 7 सितंबर बतायी गयी है.

राहुल गांधी के इनकार की स्थिति में कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर चल रही चर्चाओं की रेस में सबसे आगे चल रहे अशोक गहलोत ने अपनी तरफ से मना ही कर दिया है. अशोक गहलोत का कहना है कि राहुल गांधी को आज नहीं तो कल राजी होना ही चाहिये.

क्या राहुल गांधी को नहीं लगता कि राजीव गांधी ने उनके लिए देश का प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष बनने का सपना देखा होगा? प्रधानमंत्री फिलहाल न सही, कांग्रेस अध्यक्ष बन कर राहुल गांधी पिता के सपनों को कुछ हद तक पूरा तो कर ही सकते हैं.

इन्हें भी पढ़ें :

ये तो अच्छा है राहुल गांधी राजस्थान में पंजाब जैसे प्रयोग नहीं कर रहे हैं

सोनिया-राहुल से ED की पूछताछ के दौरान कांग्रेस ने क्या खोया - और क्या पाया?

गुजरात: कौन सा मुंह लेकर बिलकिस का वोट मांगने जाओगे, शर्म तुमको मगर नहीं आती?

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय