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Updated: 03 जुलाई, 2022 03:49 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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बमुश्किल डेढ़ महीने हुए होंगे. उदयपुर (Udaipur Kanhaiya Murder) में कांग्रेस का चिंतन शिविर लगाया गया था. सोनिया गांधी, राहुल गांधी (Rahul Gandhi) और प्रियंका गांधी वाड्रा के साथ साथ तीन दिन तक कांग्रेस का हर महत्वपूर्ण नेता डेरा डाले रहे. अगर कुछ नेता नहीं पहुंचे थे तो उनमें सुनील जाखड़, कपिल सिब्बल और हार्दिक पटेल रहे, जो शिविर खत्म होते होते कांग्रेस छोड़ चुके थे या अंतिम फैसला ले चुके थे.

उसी उदयपुर में एक टेलर की दुकान में घुस कर दो हमलावर बेरहमी से कत्ल कर देते हैं - चाकू से गला रेत कर सिर्फ जान से ही नहीं मारते, बल्कि एक वीडियो बनाते हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेकर वैसी ही धमकी भी देते हैं. हत्या का वीडियो सोशल मीडिया के जरिये सर्कुलेट होता है, लेकिन कम ही लोग होंगे जो पूरा वीडियो देखने की हिम्मत जुटा पाये होंगे.

अपराधी तो गलती से सबूत ही छोड़ कर चले जाते हैं, लेकिन ये तो दहशतगर्द रहे - वीडियो बना कर न सिर्फ उदयपुर में कन्हैयालाल की हत्या की जिम्मेदारी ले रहे थे, बल्कि आगे का अपना एक्शन प्लान बना रहे थे. अच्छा ये हुआ कि वे खुद ही पुलिस का काम आसान कर दिये.

राजस्थान पुलिस की तारीफ करनी होगी कि फटाफट अलर्ट हो गयी और बगैर कोई गलती किये दोनों को दबोच भी लिया गया. बतौर इनाम मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दोनों हमलावरों को गिरफ्तार करने वाले पुलिस टीम को आउट ऑफ टर्न प्रमोशन देने का ऐलान भी किया है.

पुलिसवालों ने भी अच्छा काम किया है. जिंदा पकड़ लिये ये भी तारीफ के काबिल है. न तो गोली चलानी पड़ी, न मुंह से ही ठांय-ठांय करने की नौबत आयी - और न ही गाड़ी को पलटने दिया. ये भी कोई मामूली बात नहीं है. राजस्थान पुलिस की बहादुरी और तत्परता की बदौलत ही दोनों हमलावरों से अब NIA की टीम ज्यादा और सही जानकारी ले पाएगी. अगर पुलिस एनकाउंटर हो गया होता तो केस तो वहीं क्लोज हो जाता.

हत्या किन परिस्थितियों में हुई, ये अलग मामला हो सकता है. हत्या से पहले कन्हैयालाल के साथ पुलिस का व्यवहार क्या रहा, ये भी अलग मुद्दा है. जांच होनी चाहिये और जो भी दोषी हों, सजा मिलनी ही चाहिये.

कन्हैयालाल की हत्या को क्या टाला नहीं जा सकता था? हत्या के बाद अशोक गहलोत और उनकी पुलिस ने जो तत्परता दिखायी है, पहले लापरवाही नहीं बरती होती तो क्या कन्हैयालाल जिंदा बच नहीं सकते थे?

ये भी बहस का अलग मुद्दा है कि बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा के बयान से पैदा हुए हालात में कन्हैयालाल को जान गंवानी पड़ी है - और अलग से ही बहस इस बात पर भी हो सकती है कि सुप्रीम कोर्ट के एक जज कैसे सीधे सीधे दोनों चीजों को एक साथ जोड़ देते हैं.

हो सकता है, अपना मुख्यमंत्री होने के चलते राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Vadra) को उदयपुर की घटना में सरकार और पुलिस की तरफ से कोई कमी नहीं नजर आ रही हो, लेकिन ठीक ऐसा ही तो उत्तर प्रदेश के हाथरस में भी हुआ था, जहां वे सारे ही आरोपी गिरफ्तार कर जेल भेज दिये गये थे जो एफआईआर में नामजद रहे. हाथरस पुलिस की तरफ से गैंगरेप पीड़ित की शिकायत को जिस लापरवाह तरीके से लिया गया, कन्हैयालाल के केस में भी तो उदयपुर पुलिस ठीक वैसे ही कठघरे में खड़ी नजर आती है - और अशोक गहलोत भी यूपी सरकार की ही तरह अपनी पुलिस की पीठ थपथपा रहे हैं. आपको याद होगा हाथरस गैंगरेप की जांच सीबीआई को सौंप दी गयी थी. जिन आरोपियों को पुलिस ने जेल भेजा था, सीबीआई ने उनके खिलाफ ही चार्जशीट फाइल की थी. उदयपुर मर्डर केस में नये अपडेट के लिए एनआईए की जांच पड़ताल का इंतजार रहेगा.

अक्सर देखा जाता है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जनता से जुड़े मुद्दों पर न सिर्फ कड़ी प्रतिक्रिया देते हैं, बल्कि लोगों के साथ मुश्किल घड़ी में खड़ा रहने की कोशिश भी करते हैं, लेकिन उदयपुर की बेहद सनसनीखेज और जघन्य हत्या के बाद भी दोनों में से किसी का पीड़ित परिवार से मिलने न जाना किसी को हजम नहीं हो रहा है. सोशल मीडिया से लेकर गली मोहल्लों तक लोग पूछ रहे हैं - हाथरस और लखीमपुर खीरी जाकर पीड़ितों से गले मिल कर तस्वीरें शेयर करने वाले भाई-बहन उदयपुर से परहेज क्यों कर रहे हैं?

जनता से जुड़े मुद्दों पर गांधी परिवार सेलेक्टिव क्यों?

ये तो नहीं कह सकते कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार होने की वजह से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा उदयपुर के कन्हैयालाल हत्याकांड पर चुप्पी साध लिये, लेकिन उनके बयान और ट्वीट रस्मअदायगी से ज्यादा तो नहीं लगते.

rahul gandhi, priyanka gandhi vadraकांग्रेस नेतृत्व आखिर हाथरस गैंगरेप और उदयपुर मर्डर को अलग अलग चश्मे से क्यों देख रहा है?

राहुल गांधी की पहली प्रतिक्रिया रही, 'उदयपुर में हुई जघन्य हत्या से मैं बेहद स्तब्ध हूं... धर्म के नाम पर बर्बरता बर्दाश्त नहीं की जा सकती... इस हैवानियत से आतंक फैलाने वालों को तुरंत सख्त सजा मिले... कृपया शांति और भाईचारा बनाये रखें.'

और प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी घटना की कड़ी निंदा की, 'उदयपुर में घटी हिंसक घटना की जितनी निंदा की जाये, कम है... दोषियों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिये. धर्म के नाम पर नफरत, घृणा और हिंसा फैलाने वाले मंसूबे हमारे देश व समाज के लिए घातक हैं.'

बस इतना ही काफी हो सकता था, अगर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी बीते दो-तीन साल की घटनाओं पर भी ऐसे ही बयान देकर या ट्वीट कर चुपचाप घर बैठ गये होते. अगर यूपी के सोनभद्र नरसंहार के बाद प्रियंका गांधी उभ्भा गांव जाने की जिद नहीं दिखायी होतीं. उन्नाव में रेप पीड़ित के मौत के बाद घर जाकर परिवार से नहीं मिली होतीं. यूपी विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस का कैंपेन रोक कर सफाई कर्मी की पुलिस टॉर्चर से हुई मौत के बाद आगरा जाकर हमदर्दी जताने का प्रदर्शन न की होतीं - या फिर गैंगरेप की घटनाओं के विरोध में इंडिया गेट पर कैंडल मार्च का आयोजन नहीं किया गया होता.

क्या राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को किसी बाद का डर रहा होगा? क्या दोनों भाई-बहन उदयपुर के दौरे पर इसलिए नहीं निकले क्योंकि राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर सवाल उठने लगते?

क्या मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को मना कर दिया होगा? या फिर अशोक गहलोत ने राहुल और प्रियंका को उदयपुर न जाने के लिए मना लिया होगा? क्या उदयपुर जैसी घटना उत्तर प्रदेश के किसी इलाके में हुई होती तो भी राहुल और प्रियंका का ऐसा ही रवैया होता?

हाथरस और लखीमपुर जैसा गुस्सा क्यों नहीं आया: उदयपुर जाने के लिए तो प्रियंका गांधी को न तो पुलिस से हाथापाई करने की जरूरत थी, न ही कहीं धरना देने की - बल्कि दोनों भाई-बहन कार्यक्रम बना लिये होते तो अशोक गहलोत खुद एस्कॉर्ट बन कर गाड़ी से चल रहे होते. ये भी हो सकता था कि अशोक गहलोत और सचिन पायलट में नये सिरे से होड़ भी मच जाती.

सोनभद्र नरसंहार के बाद प्रियंका गांधी रात भर धरने पर बैठी रहीं - और लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद भी करीब करीब वैसा ही नजारा देखने को मिला. जिस गेस्ट हाउस में पुलिस ने रखा था वहां प्रियंका गांधी के झाड़ू लगाने का वीडियो भी वायरल हो गया था. उदयपुर के रास्ते में ये सारे मौके तो शायद ही बन पाते, लेकिन क्या ऐसा न होने की संभावना से ही दौरे का कार्यक्रम नहीं बना होगा. ऐसा तो नहीं लगता.

हाथरस जाने के लिए प्रियंका गांधी को पुलिस से लड़ाई लड़नी पड़ी थी. जब सबको साथ नहीं जाने दिया गया तो बाद में खुद गाड़ी ड्राइव कर जाते हुए प्रियंका गांधी को देखा गया था. हाथरस पहुंचने के बाद पीड़ित परिवार के सदस्यों से गले मिलने की तस्वीरें भी शेयर की गयीं, लेकिन कन्हैयालाल के परिवार से मिलने दोनों में से कोई नहीं गया - क्यों?

और ऐसा सिर्फ उदयपुर के मामले में ही नहीं है - कोटा के अस्पताल में बच्चों की मौत पर भी खासा बवाल मचा हुआ था, लेकिन प्रियंका गांधी या राहुल गांधी में से कोई भी झांकने तक नहीं गया. सवाल तो उठेंगे ही.

गोरखपुर और कोटा अस्पताल में फर्क क्यों: कोटा के अस्पताल में भी बच्चों की मौत पर वैसे ही बवाल हो रहा था, जैसे यूपी के गोरखपुर अस्पताल की घटना पर. हां, कोटा में मामला ऑक्सीजन की कमी के चलते बच्चों की मौत का नहीं बताया गया था.

ये उन दिनों की ही बात है जब प्रियंका गांधी प्रियंका गांधी CAA-NRC का घूम घूम कर विरोध कर रही थीं और पुलिस की लाठी के शिकार मुस्लिम परिवारों के बीच जाकर मुश्किल घड़ी में खड़े रहने का भरोसा दिलाने की कोशिश कर रही थीं.

ऐसा ही सपोर्ट प्रियंका गांधी की तरफ से गोरखपुर अस्पताल वाले डॉक्टर कफील खान को भी मिला था. जेल से रिहा होने के बाद राजस्थान में उनके रहने का इंतजाम कांग्रेस सरकार की तरफ से ही किया गया था.

गोरखपुर अस्पताल में बच्चों की मौत के बाद राहुल गांधी खुद मौके पर पहुंचे थे और पीड़ित परिवारों से मुलाकात भी की थी. फिर यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार पर जिम्मेदारी न निभाने के लिए खरी खोटी भी सुनायी थी - लेकिन कोटा के पीड़ित परिवारों को देखने न तो राहुल गांधी गये और न ही प्रियंका गांधी.

मायावती लगातार ललकारती रहीं, लेकिन प्रियंका गांधी अनसुना कर देती थीं. एक बार जब मीडिया ने सीधे सीधे पूछ लिया तो बोलीं - वो क्यों नहीं जातीं. उनको जाना चाहिये. विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस एक्शन के शिकार लोगों से मिलने प्रियंका गांधी लखनऊ और मुजफ्फरनगर के बाद वाराणसी गयीं और फिर एक शादी में शामिल होने के लिए, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, चार्टर्ड प्लेन से सीधे जयपुर पहुंचीं. अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने एयरपोर्ट पहुंच कर अगवानी भी की. कांग्रेस नेता जुबेर खान के बेटे की शादी में शामिल होने के बाद प्रियंका गांधी सीधे दिल्ली लौट गयी थीं, लेकिन कोटा नहीं गयीं.

आखिर जयपुर से कोटा जाने में ज्यादा वक्त तो नहीं ही लगता. वैसे सोनिया गांधी ने कोटा अस्पताल जाकर हालात का जायजा लेने के लिए सचिन पायलट को जरूर भेजा था - सचिन पायलट ने तो अशोक गहलोत सरकार को ही कठघरे में खड़ा कर दिया था.

क्या राहुल-प्रियंका ने फिर मौका गवां दिया?

राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए एक बार उदयपुर जाकर कन्हैयाला के परिवार से मिल लेने का बड़ा राजनीतिक फायदा मिल सकता था. आखिर सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान मुस्लिम परिवारों के साथ खड़े होने का चुनावों में कोई फायदा तो मिला नहीं. पूरा मुस्लिम वोट तो समाजवादी पार्टी और गठबंधन के खाते में चला गया - और अब कफील खान की किताब का विमोचन भी अखिलेश यादव ही कर रहे हैं.

कांग्रेस को वैसे भी पार्टी की साख और गांधी परिवार की छवि सुधारने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. वोट से ज्यादा जरूरत भी इसी की है. अगर लोगों का भरोसा वापस मिल गया तो वोट भी मिल ही जाएगा - उदयपुर दौरे से कांग्रेस नेतृत्व को जो फायदा हो सकता था, अब डबल नुकसान हो चुका है.

उदयपुर में पीड़ित परिवारों के साथ तस्वीरों के जरिये राहुल और प्रियंका ये संदेश दे सकते थे कि वे आम लोगों के साथ मुश्किल वक्त में खड़े रहते हैं, लेकिन अब बीजेपी हो या कांग्रेस के बाकी राजनीतिक विरोधी - सबको ये कहने का मौका मिल गया है कि दोनों भाई बहन लोगों के दुखों पर राजनीतिक रोटी सेंकने जाते हैं, न कि उनकी तकलीफों से कोई मतलब होता है?

अगर ऐसा न होता तो भला वे उदयपुर-कोटा और हाथरस-लखीमपुर खीरी के मामले में अलग अलग स्टैंड क्यों लेते? अब दोनों भाई-बहन और किस किस का मुंह बंद करेंगे?

क्या गांधी परिवार स्वकेंद्रित हो गया है?

कांग्रेस की राजनीति जिस मोड़ पर पहुंच चुकी है, आम लोगों की सहानुभूति मिलनी तो दूर - राहुल गांधी की प्रवर्तन निदेशालय में पेशी के दौरान ऐसे बहुत सारे नेता हैं जो बेमन से प्रदर्शनों में हिस्से लेते हैं - और ये बात खुद नेताओं ने ही मीडिया को बातचीत में बताया है.

उदयपुर से दूरी बना कर गांधी परिवार ने वही संदेश दिया है जो राहुल गांधी के प्रवर्तन निदेशालय जाने पर विरोध प्रदर्शन करके दिया है - गांधी परिवार सेल्फ सेंटर्ड हो गया है. अपने अलावा उसे किसी से कोई मतलब नहीं है. अब अगर कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं की ही परवाह नहीं है तो भला आम जनता क्या सोचेगी?

जैसे बेमन से विरोध प्रदर्शन में शामिल होने वाले नेता पूछ रहे थे कि जब उनके साथ कुछ ऐसा वैसा होता है तो गांधी परिवार खुद सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं करता? कांग्रेस के भीतर से उठा ये वही सवाल है जो आरोप लगाता है कि गांधी परिवार बचाओ और कांग्रेस बचाओ मुहिम के लिए कांग्रेस लोकतंत्र बचाओ और भारत बचाओ नाम देकर रैलियां करती है. मीडिया से बातचीत में कांग्रेस के ऐसे नेता जो खुद भी ईडी की तरफ से वैसा ही दबाव महसूस कर रहे हैं जैसा राहुल गांधी का केस है, ये कहते हुए काफी निराश लग रहे थे कि जब उनको पेशी पर जाना होता है तो विरोध प्रदर्शन क्यों नहीं होता? जब मल्लिकार्जुन खड़गे और पवन बंसल पूछताछ के लिए ईडी के दफ्तर में हाजिरी लगाते हैं तो गांधी परिवार वैसा ही क्यों नहीं करता जैसा अपने पर मुसीबत आने पर करता है - और डीके शिवकुमार या पी. चिदंबरम के मामले में भी मिल कर सहानुभूति जता कर रस्म अदायगी क्यों अदा की जाती है?

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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