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Updated: 13 फरवरी, 2021 04:20 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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भले ही इमरजेंसी और उस दौरान लिए हए फैसलों के चलते देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की आलोचना हो मगर इस बात में संदेह की रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं है कि 'इंदिरा गांधी' का एक ऑरा और जबरदस्त फैन फॉलोइंग थी. आप घर के बुजुर्गों से बात कीजिये. तमाम किस्से ऐसे आएंगे जिनमें आपको पता चलेगा कि उस दौर में देश विशेषकर उत्तर भारत में जैसे ही पता चलता कि इंदिरा दौरे के सिलसिले में आ रही हैं सिर्फ उनकी झलक पाने के लिए लोगों का हुजूम जुट जाता. लोग मीलों पैदल चलते और इंदिरा को देखने के लिए आते. आज इंदिरा भले ही हमारे बीच नहीं हों लेकिन जब हम प्रियंका गांधी को देखते हैं तो मिलता है कि वो न केवल उस कमी को पूरा करने के लिए प्रयासरत हैं बल्कि जो उनका अंदाज है उन्होंने अपने में इंदिरा को उतार लिया है. पहले 2014 फिर 2019 जैसे देश की जनता ने कांग्रेस और राहुल गांधी को खारिज किया है. इंदिरा के चलते प्रियंका की लोकप्रियता डूबते को तिनके का सहारा की कहावत को चरितार्थ करती है. इंदिरा के परिवार से होने का फायदा प्रियंका को कैसे मिल रहा है और कैसे ये उपलब्धि उनके पॉलिटिकल करियर को फायदा पहुंचा रही है गर जो इस बात को समझना हो तो हम अरैल घाट के उन विजुअल्स को देख सकते हैं जहां बीते दिन प्रियंका गांधी आई थीं.

Priyanka Gandhi, UP, Congress, Indira Gandhi, Rahul Gandhi, BJP, Yogi Adityanathअरैल घाट में प्रियंका गांधी ने कुछ इस अंदाज में जलवे बिखेरे

बताया जा रहा है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को नजर भर देखने के लिए कार्यकर्ता तो उत्साहित थे ही साथ ही आम लोगों में भी जबरदस्त उत्साह था. मौके पर भीड़ कुछ इस हद तक थी कि कई मौके ऐसे आए जब प्रियंका गांधी वाड्रा तक को दुश्वारियों का सामना करना पड़ा. लेकिन प्रियंका के चेहरे पर मुस्कान बरकरार थी और वो बिल्कुल इंदिरा वाले अंदाज में हाथ हिला हिलाकर लोगों का अभिवादन कर रही थीं.

प्रियंका गांधी के अरैल घाट आने के मद्देनजर कहा यही जा रहा है कि जिस वक्त प्रियंका का काफिला वहां पहुंचा समर्थकों और आम लोगों ने उनके स्वागत में नारे लगाए. मौके पर भीड़ का आलम कुछ यूं था कि आशंका जताई गई कि आयोजन स्थल पर लगे गेट टूट जाएंगे और कोई दुर्घटना हो जाएगी. बाद में तमाम गेट खोल दिये गए. स्वराज भवन के बाद प्रियंका का अरैल घाट पर भी जोरदार स्वागत हुआ. संगम स्नान और पूजा के दौरान भी प्रियंका को घेरे लोगों ने हर हर गंगे के नारे लगाए.

जैसा कि हम बता चुके हैं कांग्रेस प्रियंका गांधी वाड्रा के जरिये इंदिरा को भुना रही है और अरैल घाट पर मौजूद समर्थकों के अलावा आम लोगों की भीड़ ने इस बात की तसदीख कर दी है कि कांग्रेस न केवल अपने मिशन में कामयाब है. बल्कि आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों तक के लिए उसकी तैयारी पूरी है.

होने को तो इंदिरा गांधी और प्रियंका गांधी दो अलग अलग व्यक्तित्व हैं. प्रियंका जहां एक तरफ शांत और सहज हैं. तो आज भी राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर बल देते हैं कि इंदिरा की छवि एक तेज तर्रार नेता की थी. प्रियंका अपनी छवि कैसे तोड़ती हैं और कैसे खुद को इंदिरा में ढालती हैं? इसका फैसला वक़्त करेगा. लेकिन जो वर्तमान है उसमें जैसी प्रसिद्धि प्रियंका गांधी को मिल रही है वो अवश्य ही यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा की परेशानी का सबब है.

प्रियंका को यूपी विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में यूं हाथों हाथ क्यों लिया जा रहा? इसपर तमाम बातें की जा सकती हैं बड़े बड़े लेख लिखे जा सकते हैं. साथ ही ऐसा भी नहीं है कि प्रियंका के बल बूते यूपी में कांग्रेस ने अपना खोया हुआ जनाधार वापस हासिल कर लिया है. बात बस इतनी है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की एक बड़ी ग्रामीण आबादी के लिए वो 'इंदिरा गांधी' की 'बिटिया' हैं.

बाकी जैसा उत्तर प्रदेश में बिटियों के लिए लोगों का मोह है हम फिर इसी बात को बल देंगे कि अगर कांग्रेस थोड़ा और गंभीर हो जाए और प्रियंका गांधी थोड़ी मेहनत और कर लें वो बड़ी ही आसानी के साथ उत्तर प्रदेश में भाजपा को मुंह तोड़ जवाब दे सकती हैं. अंत में हम बस ये कहकर अपनी बातों को विराम देंगे कि प्रियंका गांधी वाड्रा को ये पब्लिक अपियरेंस बरकरार रखनी चाहिए इससे उनके पॉलिटिकल भविष्य को एक नई दिशा मिलेगी.

वहीं कांग्रेस के लिए भी हमारा एक छोटा सा संदेश है. एक पार्टी के रूप में कांग्रेस को प्रियंका गांधी को ज्यादा से ज्यादा भुनाना चाहिए. प्रियंका न केवल पस्त होती कांग्रेस की दशा बदल सकती हैं बल्कि उनके अंदर लगातार गर्त में जाती पार्टी को दिशा देने के भी लक्षण हैं. प्रियंका दादी इंदिरा की बदौलत अरैल घाट में इतिहास रच चुकी हैं. कांग्रेस को इसका गहनता के साथ विश्लेषण करना चाहिए और कुछ ऐसी रणनीति बनानी चाहिए जिससे ये लोकप्रियता वोटबैंक में तब्दील हो. और वो करिश्मा करे जो फ़िलहाल कांग्रेस के लिए दूर के सुहावने ढोल हैं.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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