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Updated: 12 फरवरी, 2021 02:20 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने में अभी एक साल से ज्यादा का समय बचा हुआ है. बावजूद इसके राजनीतिक हलकों में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर एक अजीब सी घबराहट है. वैसे, ये घबराहट नई नहीं है. 'सुप्रीम फैसले' के बाद अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के रास्ते खुलने के साथ ही सियासी हलकों में हलचल शुरू हो गई थी. सूबे के विपक्षी राजनीतिक दलों में राम मंदिर को लेकर इस उहापोह की स्थिति के बीच कांग्रेस पार्टी की महासचिव व यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने अपने पत्ते खोलने शुरू कर दिए हैं. प्रयागराज के दौरे पर आईं प्रियंका गांधी ने मौनी अमावस्या पर संगम में डुबकी लगाई. सियासी गलियारों में इस राजनीतिक डुबकी की उतनी चर्चा नहीं हो रही है, जितनी चर्चा प्रियंका के हाथ में पहनी हुई रुद्राक्ष की माला की हो रही है. कहा जा सकता है कि प्रियंका गांधी ने यूपी में कांग्रेस का 'खेवनहार' बनने के लिए संगम में ये डुबकी लगाई है. 

2017 के विधानसभा चुनाव और योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद कांग्रेस के लिए मुश्किलों का दौर शुरू हो गया था. रही सही कसर लोकसभा चुनाव 2024 से पहले राम मंदिर निर्माण के पूरा होने के ऐलान ने निकाल ली. ऐसी स्थिति में कांग्रेस को डूबने से बचाने के लिए प्रियंका गांधी ने संगम में डुबकी लगाई. 2019 लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी वाराणसी में ऐसी ही एक डुबकी लगाई थी. सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि प्रियंका की ये राजनीतिक डुबकी मोदी की ही तरह सफल हो सकती है. ऐसा माना जा रहा है कि भाजपा के उग्र हिंदुत्व के सामने प्रियंका गांधी का सॉफ्ट हिंदुत्व वाला चेहरा कड़ी टक्कर पेश कर सकता है. हालांकि, इससे पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी इस फॉर्मूला को अपना चुके हैं. लेकिन, 'कुर्ते के ऊपर पहने हुए जनेऊ पर' भाजपा ने राहुल गांधी को उनके ही जनेऊ से बांध दिया था. लेकिन, राहुल गांधी और प्रियंका में एक बड़ा अंतर है. राहुल गांधी बीते चुनावों में अपने चेहरे की चमक खो चुके हैं. लेकिन, प्रियंका की चमक अभी भी बरकरार है. ऐसे में अगर प्रियंका गांधी यूपी में कोई करिश्मा कर जाती हैं, तो उत्तर प्रदेश में पिछले कई चुनावों से मूर्छित पड़ी कांग्रेस के लिए यह 'संजीवनी बूटी' साबित होगा.

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजनीति में सक्रिय तौर पर कदम रखने और कांग्रेस का महासचिव बनने के बाद प्रियंका गांधी वाड्रा ने खास तौर से उत्तर प्रदेश पर अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है. अब प्रियंका गांधी सूबे के हर दांव-पेंच में पारंगत मानी जा सकती हैं. उन्हें पता है कि उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति के दो मजबूत स्तंभ हैं 'धर्म' और 'जाति'. पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक सभी राजनीतिक दलों का ध्यान विशुद्ध रूप से केवल इन दोनों पर ही रहता है. सालों से राजनीतिक दल इनके ही सहारे अपनी जीत सुनिश्चित करते चले आ रहे हैं. धर्म और जाति उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की नसों में खून बनकर बहता है. ऐसे में यहां की राजनीति में आप धर्म को साधे बिना आगे नहीं बढ़ सकते हैं. किसी समय कांग्रेस के काडर वोट में यूपी की सवर्ण जातियां मुख्य भूमिका निभाती थीं. वहीं, अन्य जातियां भी कांग्रेस के साथ थीं. लेकिन, कांग्रेस के लगातार गिरते प्रदर्शन से ये छिटककर सपा, बसपा औक भाजपा के साथ हो गए. ऐसे में प्रियंका गांधी का धर्म को लेकर ये दांव कांग्रेस के काफी काम आ सकता है.

कांग्रेस की सेकुलर छवि के लिए किसी समय में उत्तर प्रदेश एक मुफीद राज्य हुआ करता था.कांग्रेस की सेकुलर छवि के लिए किसी समय में उत्तर प्रदेश एक मुफीद राज्य हुआ करता था.

कांग्रेस की सेकुलर छवि के लिए किसी समय में उत्तर प्रदेश एक मुफीद राज्य हुआ करता था. लेकिन, 2017 के वोट शेयर के आंकड़ों पर नजर डालें, तो पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. उत्तर प्रदेश के करीब 14.50 करोड़ मतदाताओं में से कांग्रेस को 54 लाख से कुछ ज्यादा ही वोट मिले थे. यह कुल मतदाताओं का 6.2 फीसदी है. यूपी में कांग्रेस की कमान थामे, प्रियंका गांधी के सामने चुनौतियों का सबसे बड़ा पहाड़ खड़ा है और वो इसे 'दशरथ मांझी' बन धीरे-धीरे तोड़ने में जुटी हैं. हालांकि, इस पर संशय बरकरार है कि वह सफलता हासिल कर पाएंगी या नहीं. प्रियंका के इस दांव को अन्य राजनीतिक दल उनकी चुनावी रणनीति के अहम हिस्से के तौर पर देख रहे हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा के हिंदुत्व कार्ड की काट अभी फिलहाल किसी राजनीतिक दल के पास नजर नहीं आ रही है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री ने हाल ही में राम मंदिर के संदर्भ में 'चंदाजीवी' शब्द इस्तेमाल कर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार ली है. वहीं, बसपा की राजनीति प्रदेश में हाशिये पर जा चुकी है. ऐसे में प्रियंका गांधी अपने सॉफ्ट हिंदुत्व से कांग्रेस को धीरे-धीरे तैयार करने में जुटी हुई हैं. जिससे 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को सीधी टक्कर दे सकें.

प्रियंका गांधी का सॉफ्ट हिंदुत्व का 'अमोघ' अस्त्र उनके और कांग्रेस के कितना काम आता है, ये तो वक्त ही बताएगा. लेकिन, इतना कहा जा सकता है कि प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश और उसकी राजनीति को पूरी तरह से समझ चुकी हैं. प्रियंका इस मामले में बहुत फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही हैं. प्रियंका गांधी के सामने अपने मुस्लिम वोटबैंक को सहेजने की चुनौती है. अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर ने कांग्रेस के लिए यूपी में हालात काफी मुश्किल कर दिए हैं. प्रियंका गांधी की ये डुबकी चुनावी स्टंट बनकर रह जाएगी या उन्हें कुछ फायदा देगी. इसका फैसला जनता को करना है. यूपी में राजनीति के लिए जरूरी बैलेंस बनाने में प्रियंका गांधी कितना सफल होंगी, ये तो चुनाव के नतीजे तय करेंगे. लेकिन, प्रियंका गांधी के सामने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को फिर से रणक्षेत्र में लाने की बड़ी चुनौती है.

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लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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