New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 30 अगस्त, 2018 09:50 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
  @arvind.mishra.505523
  • Total Shares

कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता का चाबी उत्तर प्रदेश के पास होता है. इस राज्य में लोकसभा की 80 सीटें हैं, यानी केंद्र में सरकार बनाने के लिए जितनी सीटें चाहिए उसकी करीब एक तिहाई. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 71 और इसके गठबंधन ने 2 सीटें जीती थीं. मतलब कुल 73 सीटें इसके पाले में आयी थीं. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को क्रमश: 2 और 5 परम्परागत सीटें ही मिल पायी थीं. तो वहीं मायावती की बसपा खाता भी नहीं खोल पायी थी. तो ऐसे में, हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में अभी वक्त है लेकिन यहां सियासी बिसात बिछनी शुरू हो गई है. जहां इसके लिए सभी राजनीतिक दलों ने लामबंदी करना शुरू कर दी है तो वहीं कुछ नेता दूसरे दलों में अपनी संभावनाएं तलाशने में जुट गए हैं.

'वनवास' झेल रहे शिवपाल यादव का पार्टी पर किनारे लगाने का आरोप

जहां एक तरफ विपक्षी पार्टियां भाजपा को शिकस्त देने के लिए एकजुट होने के लिए प्रयासरत हैं वहीं भाजपा प्रदेश के सपा परिवार में सेंध लगाकर चुनावी ज़ायके को फीका करने में लगे हैं ताकि इसका फायदा भाजपा को मिल सके.

shivpal yadavकाफी समय से पार्टी से नाराज चल रहे हैं शिवपाल

सपा नेता शिवपाल यादव के अनुसार- 'मैं पार्टी में एक जिम्मेदारी वाले पद के लिए इंतजार कर रहा हूं. डेढ़ साल बीत गए और मैं अब भी इंतजार कर रहा हूं'. ऐसे में राजनीतिक पंडितों के अनुसार वो भाजपा में शामिल हो सकते हैं. इससे पहले भी वो प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ कर चुके हैं. कहा जा रहा है कि इस काम के लिए सपा से निष्कासित नेता अमर सिंह इसमें अहम भूमिका निभा रहे हैं.  

भाजपा सांसद जगदंबिका पाल फिर से पाला बदलने के फ़िराक में

2014 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम डुमरियागंज सीट से जीत हासिल करने वाले जगदंबिका पाल इस बार साइकिल पर सवार हो सकते हैं. भाजपा प्रदेश के कुछ अपने सांसदों का टिकट काट सकती है जिसमें जगदंबिका पाल के नाम का भी चर्चा है.

jagdambikapalजगदंबिका पाल हो सकते हैं सपा में शामिल

ऐसे कयास इसलिए भी क्योंकि अभी हाल में ही प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ उनकी मुलाकात होती रही है. वैसे भी सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव से उनकी नजदीकियां पहले से जगजाहिर हैं. इससे पहले वो कांग्रेस के टिकट पर भी चुनाव जीत चुके हैं. डुमरियागंज लोकसभा सीट पर मुस्लिम और यादवों की अच्छी खासी तादाद है, ऐसे में सपा में शामिल होना उनके लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है. और खासकर जब उनके ज़हन में प्रदेश में विपक्षी पार्टियों का महागठबंधन हो.

पंखुड़ी पाठक का इस्तीफा

समाजवादी पार्टी की प्रवक्ता और पैनेलिस्ट पंखुड़ी पाठक ने पार्टी पर गंभीर आरोप लगाते हुए एक ट्वीट के ज़रिए इस्तीफा दे दिया. फिलहाल उन्होंने किसी पार्टी से जुड़ने का खुलासा नहीं किया है.

pankhuri pakhakपंखुड़ी पाठक ने छोड़ी सपा

वैसे इस बार भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या उत्तर प्रदेश में विपक्ष के उभरते हुए राजनीतिक समीकरण हैं. पिछली बार का परफॉरमेंस बरकरार रखना उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी. भाजपा उत्तर प्रदेश के उप चुनावों में जिस तरह से विपक्षी पार्टियों की एकता से भयभीत है उससे निजात पाने की हर सम्भव कोशिश करेगी. भयभीत होना भी लाज़मी है क्योंकि विपक्षी गठबंधन के कारण उसे परम्परागत सीट गोरखपुर तक गंवानी पड़ी थी. और इस बार भी यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा, कांग्रेस और रालोद और छोटे दलों का गठबंधन यदि परवान चढ़ता है तो उसके लिए केंद्र का रास्ता मुश्किल हो सकता है.

ये भी पढ़ें-

बिहार में खिचड़ी चलेगी या फिर खीर

प्रधानमंत्री पद की रेस में ममता बनर्जी को मायावती पीछे छोड़ सकती हैं

 

लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय