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Updated: 02 दिसम्बर, 2019 11:40 AM
आर.के.सिन्हा
आर.के.सिन्हा
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पाकिस्तान (Pakistan) में मुहाजिरों के नेता अल्ताफ हुसैन (Altaf Hussain) ने भारत की नागरिकता की मांग की है. एक अर्से से लंदन में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे अल्ताफ हुसैन ने राम मंदिर (Ram Mandir) पर आए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले का भी स्वागत किया है. अल्ताफ हुसैन की मांग से पाकिस्तान की बेशर्म सरकार भी शर्मसार ज़रूर हुई है. आखिर पाकिस्तान के उर्दू बोलने वाले मुहाजिरों (Muhajir) के शिखर नेता ने भारत में बसने की इच्छा जताई है. पाकिस्तान में मुहाजिर उन मुसलमानों (Muslim) के लिए कहा जाता है जो देश के बंटवारे के समय दिल्ली, यूपी मध्य प्रदेश, बिहार आदि राज्यों से पाकिस्तान चले गए थे. तब उन्हें लगता था कि नए मुल्क में उन्हें जन्नत ही मिल जायेगी. इन्हीं मुसलमानों ने पाकिस्तान के लिए लम्बी लडाई भी लड़ी थी और कइयों ने अपनी कुर्बानी भी दी थी, लेकिन नए मुल्क पाकिस्तान में जाकर इन्हें दोयम दर्जे का नागरिक ही माना गया और अब तक वही माना जा रहा है.

Pakistan leader Altaf Hussainअल्ताफ हुसैन की मांग से पाकिस्तान की बेशर्म सरकार भी शर्मसार ज़रूर हुई है.

इनकी जमकर दुर्गती हुई. ये अधिकतर पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के कराची और पंजाब के लाहौर और रावलपिंडी शहरों में जा कर बसे थे. वहां के स्थानीय सिन्धी और पंजाबी मुसलमानों ने इन्हें कभी भी बराबरी का दर्जा नहीं दिया. 1960 के बाद सिन्धी और मुहाजिर मुसलमानों में खूनी जंग भी हुई. ज़ाहिर है इसका भारी नुकसान मुहाजिरों को ही हुआ. पाकिस्तान के पंजाबी भी मुहजिरों से खुंदक खाते हैं. इनका आरोप है कि उर्दू बोलने वाले मुहाजिरों के कारण उनकी पंजाबी के साथ पंजाब में अन्याय हुआ. हालांकि, देश की 65 फीसदी आबादी पंजाबी ही बोलती है, पर देश की राष्ट्र भाषा तो उर्दू ही है.

लम्बे समय तक सताए गए मुहाजिर 70 के दशक में लामबन्द होने लगे. उन्हें लगा कि अगर वे एकजुट नहीं हुए तो मारे जाएंगे. उन्हें एकजुट करने में अल्ताफ हुसैन की भूमिका अहम थी. वे तब छात्र नेता थे. उनकी पहचान एक प्रखर वक्ता के रूप में होने लगी. वे अपनी सभाओं में बताने लगे कि किस तरह से पाकिस्तान में मुहाजिरों के साथ नाइंसाफ़ी हो रही है. उनकी सभाओं में हज़ारों मुहाजिर पहुंचने लगे. वे इस तरह मुहाजिरों के एकछत्र नेता बन गए. उन्होंने मुहाजिरों के हितों के लिए लड़ने वाली एक पार्टी का गठन भी किया. उसका नाम रखा मुहाजिर कौमी मूवमेंट. हालांकि, यह नाम आगे चल कर कुछ बदला. इस पार्टी को चुनाव में भी खूब सफलता मिलने लगी. लेकिन, यह पार्टी अल्ताफ हुसैन की जेबी पार्टी बन गई. कहते हैं कि उन्होंने अपनी ही पार्टी के उन नेताओं को मरवाना शुरू कर दिया, जो उनसे किसी मसले पर अलग मत रखते थे. उनके इशारे पर पाकिस्तान के सबसे बड़े शहर कराची में खूनी खेल खेला जाने लगा. इसके साथ ही अल्ताफ हुसैन का पतन भी शुरू हो गया. अल्ताफ हुसैन, जिसके पूर्वज आगरा से गए थे, उस पर हत्या लूट पाट, फिरौती आदि के दर्जनों केस दर्ज हो गए. तब वे लंदन भाग गए.

भारत दलाईलामा, तस्लीमा नसरीन समेत सैकड़ों लोगों को राजनीतिक शरण और नागरिकता देता रहा है. अकेले दिल्ली में हज़ारों तिब्बत, अफगानिस्तान, सूडान, सोमालिया के नागरिक रहते हैं. इन सबको अपने देशों में गृह युद्घ के कारण या उन पर हो रहे दमन के कारण भारत आना पड़ा. भारत सरकार इन सबको पूरे आदर सम्मान के साथ रखती है. 60 साल पहले तिब्बत से आए लोगों को अब भारत की नागरिकता भी मिलने लगी है. ये चुनाव में अब वोट भी डालते हैं. भारत ने पकिस्तान के सिंगर अदनान सामी को भी नागरिकता दी है. सामी के पिता पाक वायुसेना मे थे. लेकिन ऐसा लगता है कि अल्ताफ हुसैन को भारत में शरण मिलने का सवाल ही नहीं उठता. उनकी छवि दागदार है. वे भारत के पक्ष में जरूर बोलते हैं. परन्तु, उन्हें सिर्फ़ इस आधार पर तो भारत में तो शरण नहीं मिल सकती न? वैसे भी भारत किसी अन्य देश के राजनीतिक मामले में तो दखलअंदाजी नहीं करने में ही विश्वास करने वाला ही देश है.

(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)

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लेखक

आर.के.सिन्हा आर.के.सिन्हा @rksinha.official

लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं.

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