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Updated: 26 सितम्बर, 2022 04:51 PM
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के जोश में कोई कमी नहीं नजर आ रही है, लेकिन अधूरे विपक्ष के साथ मंजिल का रास्ता काफी लंबा लगता है. करीब करीब पहुंच के बाहर भी कह सकते हैं - चौधरी देवीलाल जयंती पर हरियाणा के फतेहाबाद की रैली असफल तो नहीं कही जाएगी, लेकिन 2024 के हिसाब से देखें तो बहुत उम्मीद करना भी सही नहीं होगा.

हरियाणा रैली (Opposition Rally) में नीतीश कुमार को जो सपोर्ट मिला है, वो राहत देने वाला है. लेकिन विपक्ष का जो अधूरापन नजर आया है, वो काफी निराश करने वाला है. चूंकि हरियाणा की रैली नीतीश कुमार ने नहीं बुलायी थी, इसलिए विपक्षी दलों के कई नेताओं के नहीं आने का ठीकरा जेडीयू नेता के सिर पर सीधे सीधे फोड़ा भी नहीं जा सकता.

हो सकता है कुछ नेताओं को नीतीश कुमार से तो नहीं लेकिन रैली के आयोजक ओम प्रकाश चौटाला से परहेज हो - और उनके भ्रष्टाचार के दोषी होने के कारण बहुतों को परहेज हुआ हो. नीतीश कुमार के अलावा जो नेता पहुंचे थे, उनके लिए बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विरोध जताने का एक मंच मिलना भी आकर्षित किया होगा.

अगले आम चुनाव (General Election 2024) को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार ने एक ही दिन दो दो सजायाफ्ता नेताओं के साथ अलग अलग कार्यक्रम बनाया था. एक, ओम प्रकाश चौटाला और दूसरे, लालू प्रसाद यादव. ओम प्रकाश चौटाला जहां शिक्षा घोटाले में भ्रष्टाचार के दोषी हैं, लालू यादव चारा घोटाले में जेल की सजा काट रहे हैं. फिलहाल लालू यादव मेडिकल ग्राउंड पर जमानत पर छूटे हुए हैं.

आरजेडी नेता लालू यादव के साथ नीतीश कुमार ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात का कार्यक्रम बनाया हुआ था, लिहाजा चौटाला की रैली में पहले ही शामिल हो लिये - विपक्ष के कई दिग्गजों की मौजूदगी में नीतीश कुमार ने एक बार फिर बीजेपी को अगले आम चुनाव में सत्ता से बेदखल कर डालने का दावा भी किया. हालांकि, वो ये भी याद दिलाना नहीं भूल रहे थे कि ऐसा तभी मुमकिन होगा जब पूरा विपक्ष एक साथ आये.

जब पूरा विपक्ष एक साथ मिल कर एक रैली नहीं कर पा रहा है, तो मिल कर राष्ट्रीय स्तर पर आम चुनाव लड़ने के बारे में कैसे यकीन किया जा सकता है. ऐसे में जो हालात दिखायी पड़ रहे हैं, 2024 में अगर नीतीश कुमार विपक्ष को साथ लेकर अगर बीजेपी को कुछ सीटें जीतने से रोक भी दिया तो वो कोई मामूली उपलब्धि नहीं मानी जाएगी.

रैली में गैरमौजूदगी तो कई नेताओं की खल रही थी, लेकिन सुखबीर बादल को मंच पर देख कर काफी हैरानी हुई. हैरानी इसलिए भी क्योंकि हाल ही में सुखबीर बादल के बीजेपी नेता अमित शाह से मुलाकात करने की भी खबर आयी है. ऐसे में जब सुखबीर बादल के एनडीए में लौटने के कयास लगाये जा रहे हों, नीतीश कुमार के साथ मंच शेयर कर वो मोदी-शाह को चिढ़ाने की कोशिश कर रहे थे या एनडीए में वापस लेने के लिए दबाव डालने की?

अमित शाह को जवाब

अव्वल तो अमित शाह बिहार के दौरे पर नीतीश कुमार को जवाब देने पहुंचे थे, लेकिन पूर्णिया और किशनगंज की रैलियों में जो कुछ कहा उसका असर हरियाणा में हुई विपक्ष की रैली में भी देखने को मिला - दरअसल, बिहार के मुख्यमंत्री रैली के मुख्य आकर्षण रहे.

op chautala, nitish kumar, tejashwi yadavसिरसा में INLD नेता ओम प्रकाश चौटाला के साथ लंच करते नीतीश कुमार

अमित शाह ने नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ कर महागठबंधन में चले जाने के बाद बिहार में बीजेपी के सामने 32 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. 2019 में बीजेपी और जेडीयू ने मिल कर 40 में से 39 सीटें जीती थीं, लेकिन नीतीश कुमार के पाल बदल लेने के बाद उसमें से 16 कम हो जाती हैं.

बिहार महागठबंधन में आरजेडी और कांग्रेस सहित कुल 7 राजनीतिक दल हैं - और उसी चीज की याद दिलाते हुए नीतीश कुमार ने भी दावा कर डाला कि बीजेपी को एक भी सीट नसीब नहीं होगी. एक भी सीट बीजेपी को नहीं जीतने देने का दावा तो नीतीश कुमार बिहार के लिए कर रहे थे, लेकिन ये भी बोले कि अगर पूरा विपक्ष मिल कर चुनाव लड़े तो पूरे देश में बीजेपी के लिए ऐसी स्थिति बनायी जा सकती है.

नीतीश कुमार ने एक बार फिर वही बात दोहरायी जो महागठबंधन का नेता बनने के बाद से कई बार कह चुके हैं - 'ज्यादा से ज्यादा पार्टिया एक हो जायें... तो बीजेपी के लिए 2024 में चुनाव जीतना तो दूर, बुरी तरह हारना तय हो जाएगा.'

सोनिया को न्योता

लालू यादव के साथ सोनिया गांधी से मुलाकात से ठीक पहले नीतीश कुमार विपक्ष के बाकी नेताओं के साथ हरियाणा के फतेहाबाद में आयोजित रैली में हिस्सा लेने पहुंचे थे. नीतीश कुमार के साथ उनके डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने भी रैली में हिस्सा लिया.

महागठबंधन के साथ साथ सरकार में साथ हो जाने के बाद से तेजस्वी यादव भी वे बातें ही दोहरा रहे हैं जो नीतीश कुमार अलग अलग मंचों से कहते चले आ रहे हैं. तेजस्वी यादव ने अमित शाह की बिहार रैली को कॉमेडी शो ही करार दिया था. हरियाणा रैली में तेजस्वी यादव ने कहा कि एनडीए बचा ही कहां है? नीतीश कुमार ने रैली में बीजेपी की तरह तरह से बुराई की और बोले कि जब वे लोग गलत बातें बोलने लगे तो साथ छोड़ देना ही बेहतर समझा.

रैली के मंच से ही नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी को न्योता दे दिया. बोले कि कांग्रेस को भी विपक्षी एकता के लिए उनकी मुहिम में साथ आना चाहिये. वैसे नीतीश कुमार दिल्ली दौरे में राहुल गांधी से भी मिल चुके हैं.

बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ नीतीश कुमार भी रैली में वैसे ही आक्रामक और आत्मविश्वास से लबालब देखे गये जैसे 2019 के आम चुनाव से पहले सोनिया गांधी को देखा जाता रहा. जैसे सोनिया गांधी ने 2019 से पहले बीजेपी को लेकर बड़े दावे से कहा था कि सत्ता में आने ही नहीं देंगे, नीतीश कुमार के भाव भी वैसे ही महसूस किये गये - और करीब करीब शब्द भी वैसे ही रहे.

INLD नेता ओम प्रकाश चौटाला से सारे विपक्षी दलों को एक साथ मंच पर लाने की गुजारिश करते हुए नीतीश कुमार बोले - 2024 में बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेकेंगे. 2019 से पहले सोनिया गांधी ऐसी बातें तो करती ही रहीं, ये याद दिलाना भी नहीं भूलती थीं कि 2004 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी अजेय माने जाते थे, लेकिन कांग्रेस ने शिकस्त दे डाली थी.

एक और खास बात जो रैली के मंच से नीतीश कुमार दोहराना नहीं भूले, वो रही खुद के प्रधानमंत्री पद के दावेदार न होने की बात. नीतीश कुमार ने कहा, अब हम सबको एक साथ मिलकर चलना होगा... हमें व्‍यक्तिगत लाभ की बात को पीछे छोड़कर साथ चलना होगा.

सोनिया गांधी की ही तरह नीतीश कुमार ने मंच पर मौजूद सुखबीर बादल की तरफ इशारा कर कहा, पंजाब के बादल परिवार से भी यही कहूंगा कि आप भी साथ ही आ जाइये.

अधूरे विपक्ष के साथ कितना लड़ पाएंगे?

हरियाणा रैली में अकाली दल नेता सुखबीर बादल को देखना जहां काफी अचरज भरा रहा, वहीं विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश में जुटे ममता बनर्जी, के. चंद्रशेखर राव जैसे नेताओं के मुंह मोड़ लेने से नीतीश कुमार के दावों पर सवालिया निशान लग रहे थे.

विपक्ष की इस रैली को भी विपक्ष के उन जमावड़ों में शामिल किया जा सकता है, जिन्होंने अलग अलग समय पर हर किसी का ध्यान खींचा है. ये जमावड़ा भी करीब करीब वैसा ही था जैसा 2018 में कुमार स्वामी के शपथग्रहण के मौके पर देखने को मिला था या फिर जनवरी, 2019 में कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड पर ममता बनर्जी की रैली में. लालू यादव ने भी ऐसी ही एक रैली पटना में की थी, लेकिन तब भी कई नेता वैसे ही परहेज करते देखे गये जैसे हरियाणा रैली से. इसकी बड़ी वजह तो चौटाला और लालू यादव की दागी छवि ही लगती है.

पटना रैली के लिए तो कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से भी सिर्फ संदेश भेज दिया गया था. ममता बनर्जी की रैली में भी कांग्रेस की तरफ से कुछ नेताओं ने प्रतिनिधित्व किया था, लेकिन जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी के शपथग्रहण के मौके पर तो सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ साथ ममता बनर्जी और मायावती भी एक साथ मंच पर हंसती मुस्कुराती नजर आयी थीं.

चौटाला की रैली में तेजस्वी यादव के अलावा एनसीपी नेता शरद पवार, सीपीएम नेता सीताराम येचुरी के अलावा उद्धव ठाकरे गुट के शिवसेना नेता अरविंद सावंत का मौजूद रहना निश्चित तौर पर नीतीश कुमार के हौसले में इजाफा कर रहा होगा. जेडीयू नेता केसी त्यागी ने लोगों को अपनी तरफ से साफ करने की कोशिश की कि ये कोई तीसरा मोर्चा नहीं बल्कि पहला ही मोर्चा बनने जा रहा है.

देश की मौजूदा राजनीति में आलम ये है कि जो बीजेपी के खिलाफ हैं उनकी तो बात ही और है, लेकिन जो बीजेपी से हाथ मिला रहे हैं उनकी भी खैर नहीं है. उद्धव ठाकरे से लेकर नीतीश कुमार तक प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. बीजेपी ने बारी बारी सबको कमजोर किया है - और ये सिलसिला जारी है.

ऐसे में सिर्फ कांग्रेस या क्षेत्रीय दलों के सामने ही नहीं बल्कि पूरे विपक्ष के सामने अस्तित्व का खतरा पैदा हो गया है. बीजेपी ऐसी रणनीति बना कर चल रही है कि दुश्मन ही नहीं दोस्त पार्टियों को भी नेस्तनाबूद करने में उसे कोई संकोच नहीं हो रहा है.

अभी जो हालात हैं, उसमें विपक्ष के लिए बीजेपी को 2024 में सत्ता से बेदखल कर पाना तो मुश्किल लग रहा है. अभी तो ऐसी ही स्थिति है. लेकिन जिस तरह नीतीश कुमार बंगाल से झारखंड तक और अन्य इलाकों में बीजेपी की 150 सीटें कम करने की कोशिश कर रहे हैं - अगर इसमें सफल हो गये तो ये भी कोई छोटी उपलब्धि नहीं कही जाएगी.

ऐसा हुआ तो बीजेपी कमजोर हो जाएगी - और अगर आगे प्रदर्शन लड़खड़ाया तो उसके बाद विपक्ष हावी भी हो सकता है. 2024 के लिए नीतीश की कोशिश अच्छी है, लेकिन अधूरे विपक्ष से बीजेपी को चैलेंज नहीं किया जा सकता.

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