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Updated: 15 सितम्बर, 2022 10:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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राजनीति में कोई मुलाकात यूं ही नहीं होती. और शिष्टाचार की नौबत भी स्वार्थ के बगैर नहीं आती! अगर स्वार्थ नहीं होता तो शिष्टाचार मुलाकातें तभी क्यों होती हैं जब कुछ बड़ा होना होता है?

पटना में एक शाम हुई नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) की सीक्रेट मीटिंग के सूत्रधार पवन वर्मा बने हैं - और नीतीश कुमार की मीडिया से हंसते-मुस्कुराते बातचीत के भावों को समझें तो पवन वर्मा ने ही मुलाकात को कोऑर्डिनेट किया था, और फिर खबर लीक भी कर डाली. मालूम नहीं क्यों?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी ये नहीं समझ पा रहे हैं - और बातों बातों में स्थिति को सहज बनाने और कुछ भी न छुपाने का भाव प्रकट करने की कोशिश में वो गलती से (या जानबूझ कर जैसा आप समझें) मिस्टेक कर देते हैं. मतलब, जाने अनजाने सब कुछ सच सच बता दे रहे हैं. बल्कि ये कहना बेहतर होगा कि सब कुछ अपने हिसाब से सच सच समझा देते हैं.

बाकी सवाल जवाब और बातों का चीर फाड़ होता रहेगा, लेकिन ये तो मान कर ही चलना होगा कि नीतीश कुमार ने जो कुछ भी, जिन भावों के साथ, मीडिया से कहा है वो ही उनका असली राजनीतिक बयान है. बिलकुल, पॉलिटिकली करेक्ट. कड़ियों को जोड़े तो चीजें पाइथागोरस के प्रमेय की तरह इति सिद्धम् की दिशा में अपनेआप बढ़ती चली जाती हैं.

अब सवाल ये जरूर हो सकता है कि नीतीश कुमार और पीके यानी प्रशांत किशोर छुप कर क्यों मिलना चाहते थे? और अगर सब कुछ ऐसा ही था तो पवन वर्मा (Pawan Verma) ने खबर लीक क्यों कर दी? और खबर लीक होने पर भी नीतीश कुमार गुस्सा नहीं हैं. पुराने संबंध जो हैं, दुहाई तो ऐसे ही दे रहे हैं. प्रशांत किशोर ने भी पवन वर्मा को लेकर कुछ ऐसा वैसा कहा या ट्वीट नहीं किया है. कोई कविता भी नहीं. नीतीश कुमार भी नहीं कह रहे हैं, 'चंदन विष व्यापत नहीं...' लेकिन सफाई जरूर दे रहे हैं. छुपाना भी आता है, निभाना भी आता ही है. बल्कि, बार बार रिश्ता तोड़ तोड़ कर भी निभाना आता है.

राजनीतिक दृष्टि देखें तो ये सब प्रशांत किशोर की पदयात्रा से करीब 15 दिन पहले ही हुआ है. लेकिन ये मुलाकात तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार की उस मुलाकात जैसी तो कतई नहीं लगती, जैसी तब के विपक्ष के नेता के दिल्ली मार्च के ऐलान से पहले हुई थी - और उसी मुलाकात में तेजस्वी यादव ने अपना दिल्ली मार्च होल्ड कर लिया था. अब तो वो डिप्टी सीएम वाली कुर्सी पर फिर से काबिज हो चुके हैं. अब दिल्ली मार्च की तैयारी नीतीश कुमार कर रहे हैं, तेजस्वी तो पटना में ही खूंटा गाड़ कर रहना चाहते हैं. नीतीश कुमार तो दिल्ली मार्च का ट्रेलर भी दिखा ही चुके हैं.

आज तक से बातचीत में प्रशांत किशोर बताते हैं कि मुलाकात से उनकी पदयात्रा पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है. प्रशांत किशोर फिलहाल चंपारण में ही हैं. गांधी जयंती के मौके पर वो पदयात्रा शुरू करने वाले हैं - लेकिन अपनी जन सुराज यात्रा वो होल्ड भी कर सकते हैं. अगर नीतीश कुमार उनको तेजस्वी यादव जैसा ही आश्वासन दे सकें. तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार न आश्वस्त किया था कि वो जातीय जनगणना कराएंगे. ये बात अलग है कि तेजस्वी यादव को आश्वासन से वो ज्यादा ही दे चुके हैं - और एक्सचेंज ऑफर में पा भी चुके हैं.

राजनीति में आश्वासन का बड़ा ही महत्व है. कई नेताओं की तो राजनीति ही आश्वासन पर चलती है. लेकिन तेजस्वी यादव के मामले से ही मालूम होता है कि जनता से किया आश्वासन और एक नेता के दूसरे नेता को दिये गये आश्वासन में कितना फर्क होता है. जनता को दिये आश्वासन में कुछ हिस्सा ही मिलता है, जनता की जगह नेता होने पर हिस्सेदारी काफी बढ़ जाती है.

अभी ये तो नहीं मालूम कि प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार से कोई आश्वासन मिला है या नहीं, क्योंकि पीके ने तेजस्वी की तरह मीडिया को अभी कुछ बताया नहीं है. नीतीश कुमार ने तो पहले ही बोल दिया था कि वो मिलने आये थे, तो उनसे ही पूछ लीजिये. दोनों अपनी अपनी तरफ से बता चुके हैं - अब कुछ नया तो पवन वर्मा ही बताएंगे. भले ही वो सब उनको फिर से लीक ही क्यों न करना पड़े.

वैसे नीतीश कुमार से ताजातरीन मीटिंग पर प्रशांत किशोर का आधिकारिक बयान भी आ गया है, 'ये मुलाकात सामाजिक, राजनीतिक, शिष्टाचार की भेंट थी.'

सही है.

बस और क्या ही चाहिये?

ये मुलाकात किसलिए?

छुप छुपाकर मिलने और फिर मिलने को लेकर बहाने बनाने को लेकर भी प्रशांत किशोर ने आधिकारिक जानकारी दे दी है. असल में तीनों की मुलाकात देर शाम बतायी जा रही थी, लेकिन प्रशांत किशोर का कहना है - 'मेरी मुलाकात कोई रात में नहीं हुई... मैं सीएम आवास पर शाम साढ़े चार बजे मिला... एक दो घंटे तक ये मुलाकात चली.'

Nitish Kumar, Prashant Kishorनीतीश कुमार के साथ आने को लेकर प्रशांत किशोर की शर्त इतनी कमजोर क्यों है - लगता है जैसे सारे रहस्य सामने आ जा रहे हों!

चूंकि नीतीश कुमार का कहना रहा कि वो क्यों मिले थे, ये प्रशांत किशोर से ही पूछिये. तो पूछ लिया गया और अपनी तरफ से प्रशांत किशोर ने बता भी दिया - 'मैंने अपनी बात उनके सामने रखी... मैं पिछले तीन चार महीने से बिहार में जो देख रहा हूं... बिहार में विकास के जिन मुद्दों को देखा, वो बात मैंने उन्हें बताईं.'

प्रशांत किशोर और पवन वर्मा को नीतीश कुमार ने एक ही साथ 2020 में पार्टी से निकाल दिया था - और निकाले जाने में जो सबसे बड़ा कांटा थे आरसीपी सिंह अब वो भी निकल चुके हैं. लिहाजा, 'भविष्य' फिर से संजोने की कोशिश तो की ही जा सकती है. असल में नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को जेडीयू ज्वाइन कराते वक्त ऐसा ही कहा था - ये जेडीयू के भविष्य हैं. प्रशांत किशोर जेडीयू में उपाध्यक्ष रह चुके हैं. पवन वर्मा जेडीयू की तरफ से राज्य सभा सदस्य रहे हैं.

प्रशांत किशोर को CAA के मुद्दे पर नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा करने के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था. तब पवन वर्मा भी वैसी ही बयानबाजी कर रहे थे. ये तब की बात है जब प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के साथ ही साथ दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का भी चुनाव कैंपेन संभाले हुए थे - और यही वजह रही कि प्रशांत किशोर के तब के बयान को राजनीतिक कम और कारोबारी ज्यादा समझा गया. तभी प्रशांत किशोर कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को भी ललकार रहे थे. जब सोनिया गांधी पूरे परिवार के साथ राजघाट पहुंची और अपना सामूहिक विरोध प्रकट किया तो प्रशांत किशोर ने आभार भी जताया था.

जब नीतीश कुमार ने जेडीयू से बाहर कर दिया तो प्रशांत किशोर कहने लगे कि वो समझ रहे हैं, किसके इशारे पर नीतीश कुमार ये सब कर रहे हैं. प्रशांत किशोर यही समझाने की कोशिश कर रहे थे कि नीतीश कुमार ने वो फैसला अपने मन से नहीं बल्कि बीजेपी नेता अमित शाह के दबाव में लिया है. और आपको ये भी याद होगा कि एक बार नीतीश कुमार ये भी बताये थे कि जेडीयू में प्रशांत किशोर को वो अमित शाह के ही कहने पर लिये थे - अब आप समझते रहिये! किसके किस बयान के क्या मायने होते हैं?

अब सवाल ये है कि क्या प्रशांत किशोर और पवन वर्मा के फिर से जेडीयू ज्वाइन करने पर विचार होने लगा है? मतलब, मिल बैठ कर ये सोचा जा रहा है कि कैसे 2024 का मिशन सफल बनाया जा सकता है? करीब करीब वैसा ही मिशन जैसा 2015 में मिल जुल कर अंजाम दिया गया था. निशाने पर तब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ही थे. अब भी मोदी-शाह ही हैं.

देखा जाये तो नीतीश कुमार के महागठबंधन का नेता बनने की नींव भी ऐसे ही पड़ी थी. वो भी एक मुलाकात ही थी, लेकिन इफ्तार की वो मुलाकात सरेआम हुई थी - और तेजस्वी यादव से मिलने नीतीश कुमार अपने सरकारी आवास से राबड़ी देवी के आवास तक पदयात्रा करते हुए ही पहुंचे थे.

क्या दोनों मुलाकातों को एक जैसे लिया जा सकता है?

मतलब, क्या दोनों मुलाकातों को एक नजर से देखा जा सकता है? मतलब, क्या दोनों ही मुलाकातें एक ही दिशा में बढ़ती हुई हो सकती हैं? मतलब, क्या 2024 के लिए नीतीश कुमार की मदद में प्रशांत किशोर और पवन वर्मा फिर से मैदान में खुलेआम उतर सकते हैं?

सोनिया गांधी और राहुल गांधी से डील पक्की न हो पाने के बाद प्रशांत किशोर ने टाइमपास के लिए बिहार की राजनीति चुनी थी, जो उनका सबसे पसंदीदा सेवा उपक्रम है. बिहार में वो जगह जगह लोगों से मुलाकात कर रहे हैं और सूबे की हालत पर रह रह कर सवाल भी उठाते रहे हैं. और जब प्रशांत किशोर के सवालों की तरफ ध्यान दिलाकर नीतीश कुमार का रिएक्शन मांगा जाता है तो वो कहने लगते हैं - उसको कुछ पता भी है... एबीसी तो मालूम नहीं!

प्रशांत किशोर के बिहार में रहने के छोटे से अंतराल में भी नीतीश कुमार एनडीए के चेहरे से महागठबंधन के मुख्यमंत्री बन जाते हैं - और प्रशांत किशोर की इस पर भी राय आ जाती है. और फिर मुलाकात भी होती है.

नीतीश कुमार के पाला बदलने पर प्रशांत किशोर ट्विटर पर लिखते हैं, 'पिछले 10 साल में नीतीश कुमार का सरकार बनाने का ये छठवां प्रयोग है - क्या आपको लगता है कि इस बार बिहार और यहां के लोगों का कुछ भला होगा?

'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है' जैसे स्लोगन के साथ नीतीश कुमार का चुनाव कैंपेन सफलतापूर्वकर चला चुके प्रशांत किशोर अब कहते हैं, 'ये छठवां प्रयोग है, लेकिन एक ही बात खास है कि अगर बिहार में कुछ नहीं बदला तो वह नीतीश कुमार और उनकी सीएम की कुर्सी है... दोनों एक दूसरे से चिपके हुए हैं.'

लेकिन तभी पवन वर्मा अपनी तरफ से नीतीश कुमार के साथ मुलाकात का प्रस्ताव रखते हैं. और पवन वर्मा के सौजन्य से प्रशांत किशोर और नीतीश कुमार की मुलाकात के बाद सवाल पूछे जाने लगते हैं. प्रशांत किशोर कहते हैं, 'वे बिहार के मुख्यमंत्री हैं... मैं दो महीने से बिहार में हूं... मैंने जो सवाल उठाये हैं... जो रास्ता चुना है, उन पर कायम हूं.'

तो क्या दोनों के फिर से साथ आने की कोई गुंजाइश नहीं बची है?

बिलकुल बची है. प्रशांत किशोर बीते कुछ दिनों ये संकेत देने लगे थे और अब भी वो गेंद नीतीश कुमार के पाले में ही डाले हुए हैं. शर्तें लागू हैं. लेकिन शर्ते काफी म्युचुअल लगती हैं - और म्युचुअल फंड की तरह जोखिमभरी भी नहीं लगतीं.

...और जो शर्तें हैं!

प्रशांत किशोर की बाकी शर्तें भी होंगी, लेकिन सार्वजनिक तौर पर वो एक शर्त बार बार दोहरा रहे हैं. खास बात ये है कि वो ऐसी शर्त है जिस पर तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार दोनों ही अपना राजनीतिक रुख साफ कर चुके हैं. ये बात अलग है कि ये भी उतना ही साफ है जितना राजनीति में सब कुछ साफ साफ होता है. सफेदी से भी ज्यादा सफेद!

बिहार में बीजेपी को सत्ता से बाहर कर आरजेडी के सरकार में हिस्सेदार बनने के साथ ही तेजस्वी यादव को उनका चुनाव वादा याद दिलाया जाने लगा था. 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने सरकार बनने की सूरत में कैबिनेट की पहली मीटिंग में ही, पहली दस्तखत से 10 हजार नौकरियां देने का वादा किया था. तब तो नीतीश कुमार ने भी सवाल उठाये थे, लेकिन अब मजबूरी में जवाब भी देना पड़ रहा है.

तेजस्वी यादव इस मुद्दे पर कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री जी से बात हुई है और विचार किया जाएगा. नीतीश कुमार भी मुद्दे को विचार-विमर्श के ही हवाले बताते हैं - और प्रशांत किशोर ने इसमें अपना ऐंगल खोज लिया है.

और नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद भी अपना स्टैंड वैसे ही ही दोहरा रहे हैं, 'जब वे एक साल में बिहार में दस लाख लोगों को रोजगार दे देते हैं, तभी गठबंधन पर कोई बातचीत संभव है... उससे पहले कोई बात नहीं हैं - मैं अपने रास्ते पर कायम हूं.'

एक छोटी सी शर्त के साथ, प्रशांत किशोर का एक लेटेस्ट ट्वीट भी काबिल-ए-गौर है - और अपनी तरफ से प्रशांत किशोर ने काफी कुछ कह दिया है. तभी तो इसे बेगूसराय की फायरिंग से लेकर 2024 में नीतीश कुमार के कैंपेन संभालने तक कड़ियों को जोड़ते हुए डिकोड करने की कोशिश हो रही है. आप भी सोचिये समझिये - और हां, हमे भी बताइये.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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