New

होम -> सियासत

बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 25 अगस्त, 2021 07:03 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

नारायण राणे (Narayan Rane) बीजेपी-शिवसेना के झगड़े में महज एक मोहरा हैं. राणे को MSME मंत्री बनाकर बीजेपी नेतृत्व ने एक सोची समझी चाल चली थी. फिर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पलटवार में शह देने की कोशिश की है - लेकिन अब ये एक नये खतरनाक ट्रेंड की तरफ इशारा कर रहा है.

नारायण राणे को जिस तरीके से गिरफ्तार किया गया - और पुलिस हिरासत में आठ घंटे रहने के बाद वो जमानत पर छूट सके वो तमिलनाडु पुलिस के एक्शन रिप्ले जैसा ही लग रहा था. बीस साल पहले AIADMK नेता जे. जयललिता मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ ऐसे ही पेश आयीं थीं. संयोग की बात रही कि 2001 में भी केंद्र में बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार थी - और जैसे अभी अभी राणे शिकार बने हैं, तब वाजपेयी सरकार के दो मंत्री मुरासोली मारन और टीआर बालू की गिरफ्तारी हुई थी - कानून की धाराएं भले ही दोनों मामलों में अलग लगी हों, लेकिन राजनीतिक मंशा तो बिलकुल एक जैसी ही है.

अगर राणे की गिरफ्तारी को हाल के कंगना रनौत प्रकरण और अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी के इर्द गिर्द के राजनीतिक माहौल से जोड़ कर देखें तो ये ऐसी घटनाओं की तीसरी कड़ी लगती है - और ये तीनों ही वाकये एक ही तरह के टकराव और उकसावे की राजनीति का नतीजा लगते हैं, जिनके जरिये बीजेपी के बिछड़े साथी शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे सबक सिखाने वाले अंदाज में एक खास तरह का मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं.

कंगना रनौत, अर्णब गोस्वामी और अब नारायण राणे - ये तीनों ही मामले ऐसे हैं जिनको लेकर बीजेपी नेता खून का घूंट पीते नजर आये हैं और सीधे सीधे पल्ला झाड़ते देखे गये हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने उद्धव ठाकरे को लेकर 'थप्पड़' वाले बयान से पूरी तरह दूरी बनाते हुए खूब सोच समझ कर बयान दिया है. बीजेपी नेताओं ने गिरफ्तारी पर नाराजगी जाहिर करते हुए उद्धव ठाकरे की सरकार को आड़े हाथों तो लिया है, लेकिन ये भी जोर देकर कहा है कि वो केंद्रीय मंत्री के बयान से जरा भी इत्तेफाक नहीं रखते.

थप्पड़ तो नहीं, लेकिन चप्पल और डंडे मारने वाली बातें तो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी हुई हैं, लेकिन दोनों ही नेताओं ने ऐसा रिएक्शन तो कभी नहीं दिया - क्या उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) से जुड़े मामले बीजेपी-शिवसेना के राजनीतिक झगड़े (BJP Shiv Sena Tussle) से कहीं ज्यादा व्यक्तिगत वैमनस्य की परिणति हैं?

राणे भी एक मोहरा ही हैं

महाराष्ट्र के ताजा सियासी समीकरओं की तस्वीर तो तभी साफ हो गयी थी जब नारायण राणे को कैबिनेट मंत्री बनाया गया - वो नारायण राणे जो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को फूटी आंख नहीं सुहाते.

और ये कोई अभी अभी की बात नहीं है, जब शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे ने एक बार मनोहर जोशी को हटा कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नारायण राणे को बिठा दिया तब भी उद्धव ठाकरे को कुछ भी हजम नहीं हो पाया था. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में जांच पड़ताल के दौरान नारायण राणे और और उनके विधायक बेटे नितेश राणे ने जिस तरीके से ठाकरे परिवार को पेग्विन कह कर टारगेट किया, वो तो तकरीबन ताजा घाव ही है.

राजनीति की शुरुआत बतौर शिवसैनिक करने वाले नारायण राणे ने किसी खास राजनीतिक मकसद से ही शिवाजी पार्क में बाल ठाकरे मेमोरियल में श्रद्धांजलि अर्पित करने का कार्यक्रम बनाया होगा - क्योंकि बीजेपी की जन आशीर्वाद यात्रा में सीधे सीधे तो इसका कोई मतलब बनता नहीं.

narayan rane, uddhav thackerayनारायण राणे के बाद उद्धव ठाकरे का अगला शिकार कौन होने जा रहा है - ये क्रिया की कोई प्रतिक्रिया होने वाली है?

हो सकता है नारायण राणे ने ये तो बिलकुल नहीं सोचा होगा कि मेमोरियल से उनके निकलते ही शिवसैनिक गोमूत्र का छिड़काव कर उस जगह को पवित्र करने में जुट जाएंगे - लेकिन उद्धव ठाकरे को थप्पड़ जड़ देने की बात करते हुए निश्चित तौर पर उनके मन में क्रिया-प्रतिक्रिया जैसी चीजें तो आयी ही होंगी.

ये ठीक है कि नारायण राणे कांग्रेस से होते हुए बीजेपी में पहुंच गये हैं, लेकिन हाव भाव अब शिवसैनिक वाले ही लगते हैं. शिवसेना नेता रहते नारायण राणे टास्क फोर्स के अगुवा की तरह नजर आते रहे, जो आलाकमान के बयानों को हकीकत का रूप देता नजर आता रहा - और वो भी शिवसेना के पुराने नैसर्गिक अंदाज में. उद्धव ठाकरे की शिवसेना तो काफी बदल चुकी है. ये बात अलग है कि रह रह कर उद्धव ठाकरे के अंदर का शिवसैनिक जाग जाता है और अभी अभी जो हुआ है, या कुछ पहले जो हुआ, होने लगता है.

उद्धव ठाकरे को लेकर नारायण राणे ने जो कुछ भी कहा था वो भी फिल्म स्टार कंगना रनौत के वीडियो बयान जैसा ही रहा. जैसे तू-तड़ाक करती हुई कंगना रनौत वीडियो में बोल रही थीं, नारायण राणे का लहजा भी मिलता जुलता ही रहा, 'ये कैसा मुख्यमंत्री है जिसको अपने देश का स्वतंत्रता दिवस पता नहीं... मैं वहां होता तो कान के नीचे थप्पड़ लगा देता.' नारायण राणे खफा थे कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भाषण के दौरान मुख्यमंत्री ठाकरे के को अपने सेक्रेट्री से पूछना पड़ा कि इस बार डायमंड जुबली है या अमृत महोत्सव?

यहां तक कि एफआईआर दर्ज होने के बाद भी नारायण राणे के तेवर बता रहे थे कि जो कुछ भी कहा है वो उसे आगे ले जाने के मूड में हैं. नाराणय राणे का कहना रहा, 'मैं साधारण इंसान नहीं हूं... मैंने कोई अपराध नहीं किया है... अगर किसी को 15 अगस्त के बारे में नहीं पता तो क्या ये अपराध नहीं है? मैंने कहा कि मैं थप्पड़ मारता... ये शब्द थे मेरे - और ये अपराध नहीं है.'

शिवसेना के मुखपत्र सामना में बाकी बातों के अलावा राणे की इस बात पर खास जोर नजर आ रहा है. संपादकीय में लिखा गया है, ये वो खुद ही ऐलान किये कि वो मैं नॉर्मल इंसान नहीं हैं. फिर वे ऐबनॉर्मल हैं क्या ये जांचना होगा?

संपादकीय में कहा गया है, 'मैं नॉर्मल नहीं, इसलिए कोई भी अपराध किया तो मैं कानून के ऊपर हूं... राणे और संस्कार का संबंध कभी भी नहीं था - केंद्रीय मंत्री पद का चोला ओढ़कर भी राणे किसी लोकल गैंगस्टर जैसा बर्ताव कर रहे हैं.'

गिरफ्तार होने से लेकर जमानत पर छूटने तक जो कुछ हुआ है, उस पर नारायण राणे ने ट्वीट किया है - सत्यमेव जयते. राजनीति में ये नया फैशन है जो काफी हद तक अदालतों में गीता पर हाथ रख कर कसम खाने जैसा व्यवहार लगता है.

टीवी एंकर अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी के पीछे भी शिवसेना की अगुवाई वाली महाराष्ट्र सरकार का मकसद बीजेपी को मैसेज देना ही था कि वो हल्के में न ले. कंगना रनौत के वीडियो बयान को लेकर पहले तो उद्धव ठाकरे का कहना रहा कि वो कुछ बोल नहीं रहे हैं, लेकिन ऐसा नहीं कि उनके पास जवाब नहीं है. बाद में वो बीजेपी पर ही बरसे थे और नाम लेने के नाम पर बस इतना ही कहा था कि आप राजभवन में बुलाकर मीटिंग करते हो.

नारायण राणे के खिलाफ उद्धव ठाकरे सरकार के एक्शन की एक बड़ी वजह मराठा अस्मिता का कवच है और ये ऐसी ढाल है जिसके आगे बीजेपी भी बेबस हो जाती है. मुंबई पुलिस को लेकर कंगना रनौत के PoK कहने पर भी देवेंद्र फडणवीस ही नहीं बल्कि आक्रामक हो चले बीजेपी नेताओं को भी कदम पीछे खींचने पड़े थे - और तब बीजेपी ने मोर्चे पर अपने एनडीए सहयोगी आरपीआई नेता रामदास आठवले को भेज दिया था. जैसे बीच बीच में रामदास आठवले बीजेपी के पक्ष में शिवसेना पर हमले बोलते रहते हैं, नारायण राणे ने भी वैसा ही किया है, लेकिन ताजा बयान पहले से ही सुलग रही चिंगारी के लिए ईंधन का काम किया है.

सुशांत सिंह राजपूत केस की जांच के दौरान नारायण राणे के बयानों में इसी बात का इशारा होता कि उसमें आदित्य ठाकरे का हाथ है और मुख्यमंत्री होने की वजह से उद्धव ठाकरे बचाने की कोशिश कर रहे हैं. तब आदित्य ठाकरे का डर्टी पॉलिटिक्स वाला बयान आया था. ये भी तभी की बात है जब राणे के बेटे नितेश राणे आदित्य ठाकरे का नाम न लेकर ट्विटर पर लिखा करते थे - 'बेबी पेंग्विन, तू तो गयो.'

नारायण राणे के खिलाफ उद्धव ठाकरे का गुस्सा ज्वालामुखी जैसा फूटा लगता है. ऐसा लगता है जैसे उद्धव ठाकरे को नारायण राणे के खिलाफ एक मौके का इंतजार रहा. आपको याद होगा, जब बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन हुआ करता था, उद्धव ठाकरे गठबंधन की तरफ से नारायण राणे को राज्य सभा भेजने में भी अड़ंगा डाल रहे थे. आखिर में बीजेपी ने बीच का रास्ता निकाला और राणे को बाहर से सपोर्ट किया था.

नारायण राणे की गिरफ्तारी पर महाराष्ट्र बीजेपी अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस दोनों ने एक जैसी ही प्रतिक्रिया दी है - दोनों में से किसी ने भी राणे के थप्पड़ जड़ने की बात का सपोर्ट नहीं किया है - क्योंकि शिवसेना ने इसे मराठा अस्मिता से जोड़ दिया है.

देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि नारायण राणे को संयम बरतना चाहिये था, लेकिन बीजेपी उनके साथ पूरी ताकत से खड़ी है. चंद्रकांत पाटिल का कहना है कि ये सब बता रहा है कि राज्य सरकार डरी हुई है और ये एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है.

ये ट्रेंड काफी खतरनाक है

हाल फिलहाल महाराष्ट्र में जब भी ऐसा कोई बवाल होता है तो शरद पवार का रुख जानना महत्वपूर्ण हो जाता है, खासकर इसलिए भी क्योंकि यहां तक कहा जाता है कि उद्धव ठाकरे सरकार का रिमोट एनसीपी नेता अपने पास ही रखते हैं.

नारायण राणे को लेकर मचे बवाल पर शरद पवार से सवाल हुआ तो बोले, 'नारायण राणे अपने संस्‍कारों के मुताबिक आचरण कर रहे हैं... मैं इस विषय में नहीं जाना चाहता... मैं इस मुद्दे को कोई महत्व नहीं देता.'

शरद पवार ने नारायण राणे पर तो अपनी बात कह दी है, लेकिन मुद्दे को महत्व न देने की बात द्विअर्थी है - नारायण राणे की गिरफ्तारी का मुद्दा या नारायण राणे के खिलाफ उद्धव ठाकरे सरकार के एक्शन का मुद्दा?

कंगना रनौत के खिलाफ बीएमसी के एक्टर के दफ्तर में तोड़ फोड़ वाले एक्शन को भी शरद पवार ने गैर जरूरी ही माना था. कहने का मतलब यही रहा कि वो सब करने की जरूरत नहीं थी.

शरद पवार ने तूल न देने की बात कही है उसको कैसे समझने की कोशिश की जाये? क्या वो ये कह रहे हैं कि नारायण राणे उसी के पात्र हैं जो उनके साथ हुआ है या वो उद्धव ठाकरे को ये सलाह दे रहे हैं कि इस स्तर तक पहुंचने की जरूरत नहीं थी? एक सवाल ये भी उठता है कि शरद पवार के पार्टी के अनिल देशमुख सीबीआई के शिकंजे में फंसे हुए हैं - कहीं उनको केंद्र सरकार की तरफ से भी ऐसे ही रिएक्शन की आशंका तो नहीं है?

नारायण राणे के खिलाफ हुई कार्रवाई को लेकर नासिक के पुलिस कमिश्नर की दलील है, जो बयान दिया था उसकी वजह से दो गुटों में संघर्ष पैदा हो सकता... कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती थी... जिसके चलते हिरासत में लिया गया.

जून 2001 में तमिलनाडु पुलिस ने करीब करीब ऐसे ही तत्कालीन केंद्रीय मंत्री मुरासोली मारन और टीआर बालू को देर रात गिरफ्तार किया था, ठीक वैसे ही जैसे डीएमके नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि को गिरफ्तार किया गया था - ये गिरफ्तारियां घोषित तौर पर एक फ्लाईओवर घोटाले को लेकर हुई थीं.

नारायण राणे के बयान के बीच बीते दिनों के दो बयान यूं ही याद आ रहे हैं - एक खुद उद्धव ठाकरे का ही है और दूसरा कांग्रेस नेता राहुल गांधी का. उद्धव ठाकरे ने योगी आदित्यनाथ के लिए चप्पल से पीटने की बात कही थी - और राहुल गांधी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर कहा था कि देखना छह महीने बाद ही युवा डंडे मारेंगे.

ध्यान देने वाली बात ये है कि योगी आदित्यनाथ और नरेंद्र मोदी दोनों का ही रिएक्शन बिलकुल अलग रहा. योगी आदित्यनाथ ने तो मामले को टाल देने जैसी बात कही थी, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने तो आम चुनाव के दौरान अपने नाम में चौकीदार जोड़ने जैसा ही कहा था - अब तो पीठ मजबूत करनी पड़ेगी.

नारायण राणे गिरफ्तार होकर जमानत पर छूट भी चुके हैं, लेकिन अब उद्धव ठाकरे की गिरफ्तारी की मांग हो रही है - और अब ट्विटर पर एक नया ट्रेंड चल रहा है #ArrestUddhavThackrey

क्या ऐसा नहीं लगता जैसे अब उद्धव ठाकरे का राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ एक्शन हदें पार करने लगा है - और एनसीपी नेता शरद पवार की बातों में भी ऐसा संकेत लगता है.

नारायण राणे के साथ हुए सलूक का एक वीडियो भी वायरल हुआ है, जिसमें उनको खाने तक का मौका नहीं बख्शा जाता. जैसे कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के मामले में सीबीआई अफसरों ने दीवार फांद कर गिरफ्तार किया था - बाकियों के साथ भी कभी भी हो सकता है!

हो सकता है कभी ऐसा भी हो जैसे कोलकाता के पुलिस कमिश्रर के घर पहुंची सीबीआई की टीम के साथ हुआ - सभी सीबीआई अफसरों को बंगाल पुलिस ने हिरासत में ले लिया था.

तमिलनाडु से बंगाल होते हुए ये लहर महाराष्ट्र पहुंची है - और अब कहर बन कर कहां पहुंचती है देखना होगा. फर्ज कीजिये तब क्या मंजर होगा जब केंद्र सरकार भी राज्य सरकारों की तरह ही पेश आने लगे. मानते हैं कि कानून व्यवस्था राज्यों के तहत आता है, लेकिन तब क्या होगा जब केंद्रीय एजेंसियां राज्यों में राजनीतिक विरोधियों के पीछे लगा दी गयीं. अभी तक तो छापे ही पड़ते रहे और मुलायम सिंह यादव और मायावती जैसे पूर्व मुख्यमंत्री खुद को राजनीतिक पीड़ितों के तौर पर पेश करते रहे - ऐसा न हो कल से राजनीतिक विरोधी मुख्यमंत्रियों की भी गिरफ्तारी भी होने लगे, तो क्या होगा?

इन्हें भी पढ़ें :

राणे की गिरफ्तारी के बाद 'शिवसैनिक' उद्धव ठाकरे के लिए खतरा बढ़ गया है!

महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी में से किसे चुनेगी भाजपा?

महाराष्ट्र में कांग्रेस को 'कमजोर' करने की पटकथा लिखी जाने लगी है!

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय