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Updated: 25 अगस्त, 2021 05:17 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्री नारायण राणे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर की गई कथित 'अपमानजनक' टिप्पणी के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था. हालांकि, देर रात उन्हें जमानत भी मिल गई. इस पूरे घटनाक्रम के बाद सियासी चर्चाओं के दौर में अचानक से तेजी आ गई है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इस गिरफ्तारी को महाराष्ट्र सरकार द्वारा संवैधानिक मूल्यों का हनन बताते हुए साफ कर दिया है कि भाजपा ऐसी कार्यवाही से डरने और दबने वाली नहीं है. वहीं, नारायण राणे को जमानत मिलने के बाद उनके बेटे नितेश राणे ने एक फिल्म की क्लिप के सहारे शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को इशारों-इशारों में चेतावनी दे दी है कि 'करारा जबाव मिलेगा'. वैसे, नारायण राणे और उद्धव ठाकरे की अदावत बालासाहेब ठाकरे के समय से ही रही है. तो, कहा जा सकता है कि शिवसेना और भाजपा के बीच शुरू हुआ ये वाकयुद्ध आगे और लंबा चलने वाला है.

दरअसल, नारायण राणे ने भाजपा की जनआशीर्वाद यात्रा के दौरान दावा किया था कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में दिए गए संबोधन में भूल गए थे कि देश की आजादी को कितने साल हुए हैं. नारायण राणे ने कहा था कि यह शर्मनाक है कि मुख्यमंत्री को याद नहीं कि देश को आजाद हुए कितने साल हो गए हैं. वह पीछे मुड़कर इस बारे में पूछ रहे थे. अगर मैं वहां मौजूद होता तो एक जोरदार थप्पड़ मारता. खैर, राणे के इस बयान के बाद उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री नहीं बल्कि एक शिवसैनिक के रूप में नजर आए. इससे पहले कंगना रनौत और सोनू सूद के मामले में भी उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्रित्व पर उनके अंदर का शिवसैनिक उन पर भारी रहा है. यहां से एक बात तो तय मानी जा सकती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को अफजल खान बताने के साथ उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ को चप्पल से पीटने की बात कहने वाले 'शिवसैनिक' उद्धव ठाकरे के लिए खतरा बढ़ गया है. और, ये खतरा व्यक्तिगत तौर के साथ ही राजनीतिक तौर पर भी पर भी बढ़ा है.

एक शिवसैनिक के रूप में उद्धव ठाकरे के सामने उग्रता का प्रदर्शन करते रहने की मजबूरी बनी हुई है.एक शिवसैनिक के रूप में उद्धव ठाकरे के सामने उग्रता का प्रदर्शन करते रहने की मजबूरी बनी हुई है.

जबान के मामले में राणे भी पूर्व शिवसैनिक ही हैं

व्यक्तिगत खतरे की बात करें, तो एक शिवसैनिक के रूप में उद्धव ठाकरे के सामने उग्रता का प्रदर्शन करते रहने की मजबूरी बनी हुई है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि नारायण राणे की गिरफ्तारी से शिवसैनिकों का उत्साह बढ़ा होगा. लेकिन, उद्धव ठाकरे के लिए व्यक्तिगत खतरा ये बढ़ा है कि नारायण राणे एक भूतपूर्व शिवसैनिक हैं, जो मुंबई की सड़कों पर शिवसेना के आदेशों का पालन कराने वाले के तौर पर जाने जाते रहे हैं. उग्रता और आक्रामता उन्होंने शिवसेना में रहते हुए ही सीखी है.

इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि शिवसेना में रहते हुए नारायण राणे ने उद्धव ठाकरे को 'कार्यकारी अध्यक्ष' घोषित किए जाने का विरोध किया था. माना जाता है कि राणे ने उद्धव की जगह वर्तमान में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे को शिवसेना प्रमुख बनाए जाने की आवाज बुलंद की थी. और, यही शिवसेना से राणे के बाहर होने की वजह भी बना. तो, ये बात तय है कि नारायण राणे भविष्य में सीएम ठाकरे के खिलाफ शब्द बाणों में कोई कमी लाने वाले नही हैं.

वहीं, भाजपा भी अपने नेताओं के अपमान का बदला लेने के लिए उद्धव ठाकरे को निशाने पर ही रखने वाली है. एंटीलिया केस हो या बीएमसी में भ्रष्टाचार का मामला भाजपा की ओर से उद्धव ठाकरे को लगातार कटघरे में खड़ा किया जाता रहा है. अगर भविष्य में किसी मामले पर सीएम ठाकरे की पूछताछ या पेशी हो जाए, तो लोगों के लिए शायद चौंकाने वाली बात होगी. भाजपा की ओर से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को जमीन पर लाने की हर संभव कोशिश हो रही है और आगे भी होगी.

बीएमसी से लेकर विधानसभा चुनाव तक पहुंचेंगी आंच

राजनीतिक खतरे की बात करें, तो शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने नारायण राणे को गिरफ्तार करवा कर साबित कर दिया है कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ चल रही महाविकास आघाड़ी सरकार के 'बॉस' वही हैं. मिशन 2024 के तहत साझा विपक्ष की रणनीतियों में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शामिल जरूर हैं. लेकिन, राज्य स्तर पर कांग्रेस और एनसीपी को उद्धव ठाकरे का ये दावा शायद ही पसंद आएगा. देखा जाए, तो महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले अपने बयानों से उद्धव ठाकरे को असहज करने का कोई मौका नही छोड़ते हैं. अगला विधानसभा चुनाव कांग्रेस द्वारा अकेले लड़ने से लेकर औरंगाबाद का नाम बदलने तक के मामले पर नाना पटोले की ओर से शिवसेना पर निशाना साधा जाता रहा है. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे औरंगाबाद का नाम बदलने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं. लेकिन, इस मामले पर न केवल कांग्रेस बल्कि एनसीपी का साथ भी उन्हें मिलता नहीं दिख रहा है.

एनसीपी के मुखिया शरद पवार भी अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश में जुटे हुए हैं. हालांकि, महाराष्ट्र में 2024 के लिए सीटों का बंटवारा किस फॉर्मूले पर होगा, ये देखने वाली बात होगी. लेकिन, इस बात का अंदाजा लगाना बड़ी बात नहीं है कि इसे लेकर कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के बीच सियासी तकरार जरूर देखने को मिलेगी. अगर 2024 के आम चुनाव में कोई कमाल हो जाता है. तो, उसी साल के आखिर में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भी होंगे. इस चुनाव में भी तीनों पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर खींचतान होना तय है. लेकिन, यहां खतरा इस बात का है कि अगर एनसीपी या कांग्रेस में से किसी राजनीतिक दल की शिवसेना से ज्यादा विधानसभा सीटें आ गईं. तो, उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा होना बहुत ही मुश्किल नजर आता है. कांग्रेस और एनसीपी इस बार तो कम सीटें होने की वजह से उद्धव ठाकरे के नाम पर तैयार हो गई थीं. लेकिन, अगली बार भी ऐसा ही होगा इसकी गारंटी मिलना मुश्किल है.

वहीं, महाराष्ट्र में सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने के बावजूद सत्ता से दूर रहने की टीस भाजपा इतनी आसानी से नहीं भूलेगी. आग में घी के तौर पर नारायण राणे की गिरफ्तारी ने भाजपा को और भड़काया है. भाजपा की जनआशीर्वाद यात्रा से संकेत मिलने लगे हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी अपने दम पर ही लड़ेगी. भाजपा की इस यात्रा को कुछ ही महीनों में होने वाले मुंबई महानगरपालिका यानी बीएमसी चुनावों में शिवसेना को झटका देने की तैयारियों के तौर पर भी देखा जा रहा है. दरअसल, नारायण राणे को कोंकण का एक मजबूत मराठा नेता माना जाता है. उन्हें भाजपा में लाने और मोदी सरकार में मंत्री पद दिए जाने का सबसे बड़ा कारण भी यही है. राणे के दम पर ही कोंकण इलाके में शिवसेना मजबूत हुई. कोंकण मूल के लोगों की आबादी का बड़ा हिस्सा बीएमसी में मतदाता के तौर पर अपना प्रभाव रखता है. भाजपा बीएमसी चुनावों में जीत के साथ शिवसेना के एकछत्र राज्य को खत्म करने की कोशिश में है.

वैसे, नारायण राणे के लिए भी ये सम्मान की लड़ाई ही हो गई है. अगर राणे का जादू बीएमसी चुनाव में चल जाता है, तो ये शिवसेना के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा. दरअसल, मुंबई महानगरपालिका पर तीन दशक से ज्यादा समय से शिवसेना का कब्जा है. बीते चुनाव में भाजपा ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया था और शिवसेना से केवल दो सीटें ही कम पाई थीं. लेकिन, इस बार नारायण राणे के सहारे भाजपा मुंबई महानगरपालिका में शिवसेना के गढ़ को ढहाने की पूरी कोशिश करेगी. अगर ऐसा हो जाता है, तो शिवसेना के लिए महाराष्ट्र में दोबारा उठ खड़ा होना आसान नहीं होगा. महाराष्ट्र सरकार में उसके वर्तमान सहयोगी दल कांग्रेस और एनसीपी ही चुनौती देने लगेंगे. कुल मिलाकर नारायण राणे की गिरफ्तारी के बाद 'शिवसैनिक' उद्धव ठाकरे के लिए खतरा बढ़ गया है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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