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Updated: 12 जून, 2021 05:55 PM
देवेश त्रिपाठी
देवेश त्रिपाठी
  @devesh.r.tripathi
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महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के साथ आधिकारिक मुलाकात के साथ ही व्यक्तिगत तौर पर भेंट की. पीएम मोदी के साथ महाराष्ट्र (Maharashtra) के मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ठाकरे की मुलाकात के दौरान उनके साथ उपमुख्यमंत्री अजीत पवार और पीडब्ल्यूडी मंत्री अशोक चव्हाण भी थे. वहीं, उन्होंने प्रधानमंत्री के साथ वन टू वन मुलाकात भी की, जिसने कई सियासी चर्चाओं को जन्म दे दिया है. हालांकि, मराठा आरक्षण के मुद्दे पर उद्धव ठाकरे ने पहले से ही नरेंद्र मोदी से मुलाकात की बात कही थी, तो यह कोई खास चौंकाने वाली बात नहीं है. लेकिन, कुछ ही दिनों पहले भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ एनसीपी प्रमुख शरद पवार के बीच हुई बैठक ने महाराष्ट्र में एक बार फिर से सत्ता परिवर्तन के कयासों को बल दे दिया है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के लिए शिवसेना और एनसीपी में से भाजपा किसे चुनेगी?

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र सबसे ऊपर रहा है.कोरोना महामारी की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र सबसे ऊपर रहा है.

कोरोना महामारी और विधानसभा चुनावों ने बदली महाराष्ट्र की सियासत

कोरोना महामारी की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र सबसे ऊपर रहा है. इस दौरान वैक्सीन, ऑक्सीजन और रेमडेसिविर की उपलब्धता पर महाविकास आघाड़ी सरकार (MVA government) ने केंद्र सरकार के खिलाफ भरपूर हमला बोला. लेकिन, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नरम रहे. पीएम मोदी की ओर से भी उद्धव ठाकरे पर सीधा निशाना नहीं साधा गया. कोरोना से निपटने के लिए मोदी ने उद्धव सरकार की तारीफ की थी. पीएम मोदी से मुलाकात के बाद उद्धव ठाकरे ने कहा कि हम भले राजनीतिक रूप से साथ नहीं हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हमारा रिश्ता टूट चुका है. मैं कोई नवाज शरीफ से मिलने नहीं गया था तो अगर मैं पीएम से अलग से मिलता हूं तो इसमें कुछ गलत नहीं होना चाहिए. उद्धव ठाकरे का ये बयान सुशांत सिंह राजपूत, सचिन वाजे, अनिल देशमुख जैसे मामलों पर घिरी महाविकास आघाड़ी सरकार की मुश्किलों के बीच एक अवसर टटोलने की कवायद कही जा सकती है.

दरअसल, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ एनसीपी प्रमुख शरद पवार की कथित मुलाकात के बाद भी राज्य में चर्चाओं का दौर शुरू हो गया था. एमवीए सरकार के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार और उनके गुट के नेता भाजपा के साथ जाने के बड़े पक्षधर माने जाते हैं. अजीत पवार ने विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा की सरकार बनवा भी दी थी, लेकिन शरद पवार के दबाव में आकर जल्द ही घर वापसी कर ली थी. भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगियों में से एक रही शिवसेना को अच्छी तरह से पता है कि महाविकास आघाड़ी सरकार का रिमोट शरद पवार के हाथों में है. 'लेटर बम' और एंटीलिया मामले के बाद केंद्रीय जांच एजेंसियां महाराष्ट्र में लगातार सक्रिय हैं. जांच की आंच में फंसने से बचने के लिए एनसीपी कभी भी भाजपा के साथ जा सकती है. इस स्थिति में उद्धव ठाकरे ने पीएम मोदी के साथ मुलाकात कर संदेश देने की कोशिश की है कि भाजपा के साथ उनके संबंध अभी बिगड़े नहीं हैं.

कोरोना महामारी की वजह से शिवसेना की प्रदेश और भाजपा की राष्ट्रीय स्तर पर छवि को बड़ा नुकसान हुआ है. यह नुकसान लंबे समय तक रहने वाला है और इसकी भरपाई शिवसेना और भाजपा के एक साथ आने से ही हो सकती है. मराठा आरक्षण जैसे मुद्दे पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर इसे राज्य सरकार के अधीन बताते हुए गेंद को फिर से महाराष्ट्र सरकार के पाले में डाल दिया है. वहीं, भाजपा को हालिया विधानसभा चुनावों से कोई खास लाभ नहीं मिला है. पश्चिम बंगाल में 200 सीटें जीतने का दावा करने वाली भाजपा पूरी ताकत झोंकने के बाद भी 77 सीटों से ऊपर नहीं बढ़ सकी. यह भाजपा और पीएम मोदी के लिए एक बड़ा झटका कहा जा सकता है. इसी के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की एक बैठक में यह तय किया गया है कि राज्यों के चुनाव में प्रदेश के ही नेताओं को ही चेहरा बनाया जाएगा. अगर इस फॉर्मूले पर भरोसा किया जाए, तो संभावनाएं बढ़ जाती है कि आने वाले समय में ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री वाले फॉर्मूला पर भाजपा तैयार हो सकती है.

उद्धव से मुलाकात के बाद शिवसेना नेता संजय राउत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश और भाजपा का टॉप लीडर बता दिया.उद्धव से मुलाकात के बाद शिवसेना नेता संजय राउत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश और भाजपा का टॉप लीडर बता दिया.

शरद पवार कर रहे सरकार बचाने की कोशिश

उद्धव ठाकरे के साथ मुलाकात के बाद शिवसेना नेता संजय राउत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश और भाजपा का टॉप लीडर बता दिया. इन सबके बीच एनसीपी नेता शरद पवार महाराष्ट्र को लेकर चल रही अटकलों पर कहा कि हमारी सरकार पांच साल पूरे करेगी. इसके साथ ही पवार ने इमरजेंसी के दौरान बालासाहब ठाकरे का इंदिरा गांधी को दिया वादा भी याद दिलाकर शिवसेना को वादाखिलाफी से बचने का संदेश भी दे दिया. मोदी-उद्धव की मुलाकात के बाद शिवसेना और भाजपा के बीच पैदा हुई खाई को पाटे जाने की संभावना बढ़ गई है. संकेत दिए जा रहे हैं कि पीएम मोदी भाजपा और शिवसेना के बीच बढ़ी कड़वाहट को खत्म करने के लिए मध्यस्थता कर सकते हैं. एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में रहने के बाद भी शिवसेना ने हिंदुत्व की राजनीति से समझौता नहीं किया है. इसी वजह से शरद पवार के बयान के मायने बढ़ जाते हैं.

दरअसल, शरद पवार पूरी कोशिश कर रहे हैं कि महाविकास आघाड़ी सरकार बिना किसी दिक्कत के अपना कार्यकाल पूरा करे. एमवीए सरकार में रहते हुए पांच साल तक शिवसेना का सीएम रह सकता है, लेकिन इस गठबंधन में कांग्रेस के होने से इसके टूटने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस स्थिति में शिवसेना के पास भाजपा के रूप में एक स्थायी हल सामने तैयार खड़ा है. वहीं, एनसीपी को शायद ही भाजपा के साथ गठबंधन करने से कोई गुरेज होगा. शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, अनिल देशमुख के खिलाफ चल रही जांच और भ्रष्टाचार के अन्य मामलों में राहत मिलने पर एनसीपी आसानी से भाजपा को समर्थन देने को तैयार हो सकती है. इस गठबंधन से भाजपा के लिए हर चुनाव से पहले मुसीबत खड़ी करने वाली शिवसेना को सबक सिखाया जा सकता है.

महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी में से एक को चुनना भाजपा के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है.महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी में से एक को चुनना भाजपा के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है.

भाजपा के सामने बड़ी चुनौती

महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी में से एक को चुनना भाजपा के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है. एनसीपी के साथ गठबंधन का विरोध आरएसएस भी करता रहा है. एनसीपी का समर्थन लेने पर भाजपा की छवि को राष्ट्रीय स्तर पर नुकसान हो सकता है. बीते सात सालों से केंद्र की मोदी सरकार पर कोई भी गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं. अगर भाजपा एनसीपी के साथ गठबंधन करने की सोचती है, तो उसे नुकसान ही उठाना पड़ेगा. वहीं, भाजपा के साथ जाने पर शिवसेना मुख्यमंत्री पद पर आधे-आधे कार्यकाल की मांग से पीछे नहीं हटेगी. लेकिन, भाजपा इस फॉर्मूले पर तैयार होती तो, पहले ही सत्ता में आ चुकी होती. मोदी-ठाकरे की मुलाकात में इस बात पर चर्चा जरूर हुई होगी, लेकिन शायद ही इसका कोई हल निकला होगा.

महाराष्ट्र में भाजपा के समान ही हिंदुत्व और मराठा स्वाभिमान के एजेंडे वाली शिवसेना के लिए चुनौतियां काफी ज्यादा हैं. एनसीपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने से शिवसेना भी कटघरे में खड़ी होती दिखाई देती है. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री होने के नाते सवाल उद्धव ठाकरे पर भी उठेंगे. वहीं, 2014 में शिवसेना से अलग रहते हुए चुनाव में जाने पर भाजपा के खाते में 122 विधानसभा सीटें आई थीं. यह बहुमत के आंकड़े से 23 सीटें ही कम थीं. हो सकता है कि अगले विधानसभा चुनाव से पहले मराठा आरक्षण, हिंदुत्व और कोरोना से उपजी अव्यवस्थाओं को आधार बनाकर भाजपा के पास सत्ता में वापसी का मौका हो. हालांकि, यह पूरी तरह से 2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा. महाराष्ट्र में फिलहाल भाजपा शिवसेना के और कमजोर होने का इंतजार कर रही है.

लेखक

देवेश त्रिपाठी देवेश त्रिपाठी @devesh.r.tripathi

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखने का शौक है.

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