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Updated: 18 जून, 2018 07:04 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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विपक्षी एकता की ताकत क्या कर सकती है, इसका नमूना यूपी के कैराना उपचुनाव में देखा ही जा चुका है. लेकिन लगता है कैराना उपचुनाव ने बसपा का कॉन्फिडेंस कुछ ज्यादा ही बढ़ा दिया है. कैराना उपचुनाव से पहले ही मायावती ने यह साफ कर दिया था कि अगर 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्हें सम्मानजनक सीटें मिलीं, तभी वह गठबंधन करेंगी, वरना उनकी पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ेगी. उनके इस बयान का असर भी हुआ और कैराना उपचुनाव के कुछ समय बाद अखिलेश यादव ने कह भी दिया कि वह अपनी सीटों का बलिदान करने को तैयार हैं, क्योंकि वह भाजपा को हर हाल में हराना चाहते हैं. लेकिन अब मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर मायावती का कॉन्फिडेंस उस लेवल पर पहुंच चुका है कि वह मध्य प्रदेश में अकेले ही सभी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती हैं.

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कहीं ये ओवर कॉन्फिडेंस तो नहीं?

कुछ समय से यह बात सामने आ रही थी कि बसपा मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ सकती है. रविवार को बसपा ने साफ कर दिया कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. मध्य प्रदेश बसपा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद अहिरवार ने कहा है कि न तो राज्य स्तर पर ना ही केंद्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ बसपा के गठबंधन की कोई बात चल रही है. उन्होंने साफ किया कि मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में बसपा सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. बसपा के अनुसार कांग्रेस उनका वोटशेयर लेना चाहती है, इसीलिए वह गठबंधन के लिए बेकरार है. अब यहां एक बात जो सबसे दिलचस्प है वो ये है कि 2013 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा को महज 4 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 58 सीटें और भाजपा को 165 सीटें मिली थीं. तो इस बार बसपा बिना गठबंधन के सारी सीटों से लड़ने की बात क्यों कर रही है? ऐसा क्या जादू हो गया है इन 5 सालों में कि बसपा को लगता है कि इस बार उन्हें अकेले लड़ कर ही बहुमत मिल जाएगा.

अब इतने कॉन्फिडेंस का कारण भी जान लीजिए

हाल ही में हुए कैराना उपचुनाव में जिस तरह से विपक्षी एकता के चलते भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा, उससे लग रहा था कि सभी विपक्षी पार्टियां अब एक हो चुकी हैं. लेकिन मध्य प्रदेश को लेकर बसपा की तरफ से जो बयान आया है, उससे विपक्षी एकता को एक तगड़ा झटका लगा है. लेकिन यहां एक बात ये सोचने की है कि आखिर वो कौन सी वजह है, जिसके चलते बसपा का कॉन्फिडेंस इतना बढ़ गया है. दरअसल, बसपा ने कांग्रेस को हर तरीके से आजमा कर देख लिया है और लगातार हार रही कांग्रेस ने कर्नाटक में सत्ता में बचे रहने के लिए जो किया, उसने बसपा का कॉन्फिडेंस और बढ़ा दिया है. यूपी के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनावों में तो कांग्रेस की जमानत ही जब्त हो गई थी. कभी पूरे देश पर राज करने वाली कांग्रेस धीरे-धीरे गायब होने की कगार पर पहुंच चुकी है और खुद को बचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है. मुख्यमंत्री पद भी किसी और को देने को तैयार है. कांग्रेस की यही कमजोरी बसपा की ताकत बन रही है, जिसके दम पर बसपा मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सीना ठोंक पर सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कह रही है.

कहीं जेडीएस की तरह तो नहीं सोच रहीं मायावती?

हाल ही में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कैसे जेडीएस के मुख्यमंत्री उम्मीदवार को अन्य पार्टियों से कम सीटें मिलने के बावजूद मुख्यमंत्री पद मिल गया, ये तो सबने देखा. कांग्रेस और भाजपा की लड़ाई में फायदा तीसरी पार्टी को हो रहा है. कर्नाटक में भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही समर्थन की जरूरत थी, बस देखना ये था कि कौन जेडीएस को ज्यादा लुभावना ऑफर दे पाता है और कांग्रेस ने बाजी मार ली. हालांकि, इसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री पद की कुर्बानी देनी पड़ी. लग रहा है मायावती के मन में भी कुछ ऐसी ही खिचड़ी पक रही है. शायद उन्हें भी ऐसा ही लग रहा है कि मध्य प्रदेश में दो बड़ी पार्टियों के बीच की लड़ाई में मायावती को फायदा हो जाएगा. इस समय कांग्रेस हर हाल में भाजपा को हराना चाहती है. और ऐसे में अगर मध्य प्रदेश में भी उसे गठबंधन करने के लिए बसपा के उम्मीदवार को मुख्यमंत्री पद देना पड़ा तो दे देगी.

मध्य प्रदेश में बसपा ने जो कहा है अगर विधानसभा चुनाव तक उस पर कायम रही तो इससे विपक्षी एकता को नुकसान होना तो लाजमी है. सभी विपक्षी पार्टियां एक इसीलिए हुई हैं, ताकि भाजपा को हरा सकें, लेकिन अगर कोई पार्टी इस तरह खेमे से बाहर निकलेगी तो इसका असर राजनीति के साथ-साथ आम जनता पर भी पड़ेगा. इससे सबसे बड़ा नुकसान होगा कांग्रेस को, जिसने विपक्ष को एकजुट करने का बीड़ा उठाया है और सबसे बड़ा फायदा होगा भाजपा को, जो इस समय सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है.

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