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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 16 जून, 2018 10:34 PM
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देश में विपक्षी एकता को लेकर नया स्टेटस अपडेट आ गया है. कर्नाटक से कैराना तक रफ्तार भरते हुए पहुंची विपक्षी एकता एक्सप्रेस दिल्ली आते-आते डीरेल हो गयी है.

विपक्षी एकता में फूट की झलक तो राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में ही देखने को मिल गयी थी. बाद में मालूम हुआ राहुल के इफ्तार से विपक्ष के बड़े नेताओं के दूरी बनाने में बड़ा रोल ममता बनर्जी का रहा. ममता के इफ्तार पार्टी में खुद जाने को लेकर फैसला बदलने के पीछे अरविंद केजरीवाल को न्योता न दिया जाना बड़ा फैक्टर साबित हुआ.

अब अरविंद केजरीवाल का बड़ा बयान आने के बाद तो और भी साफ तस्वीर दिख रही है. अब इसमें शक की गुंजाइश कम ही लगती है कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ खड़ा होने वाला मोर्चा दो धड़े में बंट चुका है.

राहुल गांधी पर केजरीवाल का बड़ा हमला

राहुल गांधी की इफ्तार पार्टी में बिखरते विपक्ष की सिर्फ नींव नजर आयी थी. अब तो वो बुलंद इमारत बनती दिखने लगी है. पहले लगा था कि राहुल गांधी के इफ्तार से विपक्ष के बड़े नेताओं के दूरी बनाने के पीछे सोनिया गांधी की गैरमौजूदगी भी एक कारण रही होगी. अब तो ऐसा बिलकुल नहीं लगता. अब तो लगता है सोनिया गांधी भी होतीं तो जमावड़ा बहुत अलग शायद ही देखने को मिलता.

arvind kejriwalबहाना दिल्ली, नजर 2019 पर

विपक्षी एकता के मुद्दे पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को नये सिरे से कठघरे में खड़ा कर दिया है. ये बात सामने आयी इंडिया टुडे टीवी के साथ एक एक्सक्लूसिव बातचीत में. अरविंद केजरीवाल अपने कैबिनेट के साथियों के साथ दिल्ली के उप राज्यपाल के दफ्तर में धरने पर बैठे हैं. केजरीवाल के दो साथी मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन तो अनशन भी कर रहे हैं जिसमें वे सिर्फ पानी पी रहे हैं. छह दिन बीत जाने के बाद भी उपराज्यपाल के न मिलने से नाराज नेताओं ने भूख हड़ताल शुरू करने की धमकी भी दी है.

केजरीवाल से पूछा गया था कि दिल्ली को लेकर जो मुद्दे वो उठा रहे हैं उसमें कांग्रेस का सपोर्ट उन्हें क्यों नहीं मिल रहा है? वो भी ऐसे में जबकि कर्नाटक में पूरा विपक्ष साथ खड़ा देखा गया था?

ये सवाल सुनते ही केजरीवाल ने राहुल गांधी को तपाक से लपेट लिया. केजरीवाल का कहना था कि राहुल गांधी को ही इस सवाल का जवाब देना होगा कि बीजेपी को लेकर उनका स्टैंड क्या है?

केजरीवाल बोले - "राहुल गांधी को बताना पड़ेगा कि दिल्ली में वो बीजेपी के साथ हैं या बीजेपी के खिलाफ. अगर दिल्ली में राहुल गांधी बीजेपी के साथ हैं तो पूरे देश में वो बीजेपी के साथ हैं या खिलाफ?"

आम आदमी पार्टी की ओर से इसी बात को लेकर एक ट्वीट भी किया गया है. इस ट्वीट में बीजेपी और कांग्रेस के चुनाव निशान को साथ दिखाते हुए स्लोगन भी लिखा है - 'कांग्रेस का हाथ, भाजपा के साथ.' वैसे ये ट्वीट दिल्ली पर ज्यादा फोकस है जिसमें निशाने पर अजय माकन और शीला दीक्षित जैसे नेता लगते हैं.

ये बात तो पहले भी महसूस की गयी थी कि राहुल गांधी को अरविंद केजरीवाल पंसद नहीं आते. हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने जब पहली बार दिल्ली में सरकार बनायी थी तो वो कांग्रेस के सपोर्ट से ही बन पायी थी. तब कांग्रेस के आठ विधायक जीते थे. उससे पहले केजरीवाल का आंदोलन कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के खिलाफ ही रहा. अन्ना के नेतृत्व में चले रामलीला आंदोलन को कई कांग्रेस नेता तो आरएसएस का प्लान बी भी बताते रहे.

2019 की तैयारी कर रहे हैं केजरीवाल

हाल फिलहाल जब भी विपक्षी एकता को लेकर नेताओं का जमावड़ा हुआ और कांग्रेस उसकी होस्ट रही, केजरीवाल को हर बार दूर रखा गया. चाहे वो राष्ट्रपति चुनाव की बात रही हो या फिर 2019 के लिए विपक्ष का मोर्चा खड़ा करने की.

arvind kejriwalताकि दिल्ली को कोई तकलीफ न हो...

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही अब तक केजरीवाल की सबसे बड़ी पैरोकार रही हैं. बीते दिनों में भी ममता ने कांग्रेस नेतृत्व को विपक्षी मोर्चे में केजरीवाल को शामिल करने की सलाह दी थी. कांग्रेस नेतृत्व हमेशा ममता की बात अनसुना कर देता रहा. जब कर्नाटक में सारे नेताओं के साथ केजरीवाल भी पहुंचे तो लगा कि मामला रफा दफा हो चुका है. हालांकि, कर्नाटक की जमघट की होस्ट कांग्रेस नहीं बल्कि मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी रहे. कांग्रेस कर्नाटक सरकार में साझीदार जरूर है, लेकिन न्योता भेजने का अधिकार तो कुमारस्वामी के पास ही सुरक्षित रहा.

राहुल गांधी की इफ्तार को लेकर भी मालूम यही हुआ कि ममता बनर्जी ने पार्टी में जाने का फैसला तब बदला जब उन्हें पता चला कि केजरीवाल और तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव को तो न्योता नहीं मिला है. जब ममता नहीं गयीं तो देखा देखी अखिलेश यादव और मायावती ने भी न जाने का फैसला किया.

कहने को तो केजरीवाल एंड कंपनी का ताजा आंदोलन दिल्ली की समस्याओं को लेकर है - लेकिन जिस जोरदार तरीके से केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी और उप राज्यपाल अनिल बैजल पर हमला बोला है, उससे उनके इरादे कुछ और ही नजर आ रहे हैं. ऐसा लगता है कि निगाहें कहीं और निशाना कहीं और है.

इंडिया टुडे टीवी से बातचीत में केजरीवाल ने साफ साफ आरोप लगाया कि दिल्ली में आईएएस अफसरों की हड़ताल जानबूझ कर करवाई गयी है. केजरीवाल का कहना है कि सिर्फ एक फोन पर अधिकारी काम करने लगेंगे, लेकिन उन्हें डराया धमकाया जा रहा है. केजरीवाल और उनके साथियों का आरोप है कि आईएएस अधिकारी न तो मंत्रियों की मीटिंग में आते हैं और न ही उनके फोन उठाते हैं. इस बात को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में भी अर्जी डाली गयी है और 18 जून को इस मामले में सुनवाई होने वाली है.

प्रधानमंत्री मोदी और उप राज्यपाल बैजल पर सीधा हमला बोलते हुए केजरीवाल ने कहा कि आईएएस अधिकारियों को धमकी दी जा रही है कि अगर वे काम पर गये तो उनका कॅरियर बर्बाद कर दिया जाएगा. केजरीवाल का दावा है कि कई अफसरों ने उनसे शेयर किया है कि वे डर की वजह से काम पर नहीं लौट रहे हैं.

बीच में खबर आई थी कि केजरीवाल और उनके साथियों को धरने से जबरन हटाने की तैयारी चल रही है. एंबुलेंस की आवाजाही देखने के बाद केजरीवाल की टीम को भी ऐसी आशंका हुई और उसके बाद उन्होंने अपनी रणनीति में बदलाव किया है. केजरीवाल की बातचीत से भी लगा कि फिलहाल वो दिल्ली को पूर्ण राज्य देने की मांग से भी पीछे हट चुके हैं. केजरीवाल की दलील है कि ये काम सिर्फ 24 घंटे में नहीं होने वाला. इसलिए टीम केजरीवाल फिलहाल सिर्फ अफसरों की कथित हड़ताल खत्म कराने और डोर-टू-डोर राशन पहुंचाने को मंजूरी दिलाने पर फोकस हो चुकी है.

आंदोलन को गति देने के लिए आप नेता तैयारी में जोर शोर से जुट गये हैं. 17 जून को प्रधानमंत्री आवास घेरने की घोषणा की गयी है और आप के नेताओं को भीड़ जुटाने का फरमान मिल चुका है.

कामकाज को लेकर उठते सवालों से बचने के लिए टीम केजरीवाल ने अच्छा नुस्खा खोज लिया है और उसे आजमाने की तैयारी चल रही है. दिल्ली के मोहल्ला क्लिनिक की बेहाली पर जब केजरीवाल से सवाल पूछा गया तो सीधे जवाब देने की बजाये वो ये समझाने लगे कि सितंबर में कोफी अन्नान अपनी टीम के साथ मोहल्ला क्लिनिक का कंसेप्ट समझने आने वाले हैं. केजरीवाल का सवाल भी रहा - ये कम बड़ी बात है क्या?

दरअसल, केजरीवाल की मंशा दिल्ली का मुद्दा उछाल कर मोदी के खिलाफ खुद को सबसे बड़े चैलेंजर के रूप में स्थापित करने की लग रही है. अगर राहुल गांधी के नेतृत्व से अलग भी कोई मोर्चा बनता है तो फिलहाल उसकी नेता ममता बनर्जी ही मानी जा रही हैं. ममता के साथ पश्चिम बंगाल से बाहर स्वीकार्यता की चुनौती अलग से है. अगर पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की तरह आगे चल कर ममता भी अपवाद साबित होती हैं तो बात अलग है.

नीतीश कुमार मैदान पहले ही छोड़ चुके हैं, हालांकि, सपने फिर से कुलांचे भरने लगे हैं. राहुल गांधी ने खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित जरूर किया है लेकिन विपक्ष की बेरूखी के चलते कुछ नरम दिख रहे हैं. ममता बनर्जी उस धड़े की अगुवाई कर रही हैं जिसे गैर कांग्रेस और गैर बीजेपी बताया जा रहा है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल भला क्यों पीछे रहें - क्या पता ममता वाला धड़ा कल केजरीवाल के नाम पर भी राजी हो जाये? सियासत को भी तो क्रिकेट जैसा ही माना जाता है. वैसे भी फुटबॉल का सीजन तो चुनाव तक खत्म ही हो चुका होगा!

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