तालिबान से बात कर रही मोदी सरकार ने कश्मीरी अलगाववादियों को मौका दिया है !
तालिबान संग वार्ता करने जा रही भारत सरकार पर जो सवाल उमर अब्दुल्ला ने उठाए हैं वो पूरी तरह सही हैं. सरकार को चाहिए कि दूसरी जगह शांति की बातें करने से बेहतर है कि पहले वो खुद अपने देश में शांति स्थापित करे.
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कश्मीर पर सरकार के रवैये से उमर अब्दुल्ला खासे नाराज हैं उन्होंने तालिबान के साथ वार्ता करने पर मोदी सरकार पर सवालिया निशान लगाए हैं. उमर ने सरकार से पूछा है कि जब सरकार अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के लिए तालिबान के साथ बातचीत कर सकती है तो फिर वो अब तक कश्मीर के मसले पर क्यों खामोशी अख्तियार किये हुए है. तालिबान के साथ भारत सरकार की वार्ता पर उमर का मत है कि तालिबान से बात करने से बेहतर है कि सरकार घाटी के अलगाववादी नेताओं से बात कर उनकी समस्याओं का निवारण कर घाटी में शांति स्थापित करने में मदद करे.
उमर चाहते हैं कि तालिबान से बात करने से पहले सरकार घाटी के अलगाववादी नेताओं से बात करे
उमर के इस सवाल को देखकर कहना गलत नहीं है कि इस सरकार ने भारत सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं. ज्ञात हो कि भारत ने मॉस्को में होने वाली एक मीटिंग में तालिबान के साथ गैर-आधिकारिक तौर पर वार्ता का आमंत्रण स्वीकार किया है.
यदि इस मसले पर हम उमर अब्दुल्ला के ट्वीट का अवलोकन करें तो मिल रहा है कि उन्होंने सरकार से पूछा है कि अगर भारत, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकी संगठन घोषित तालिबान के साथ पहली बार वार्ता कर सकता है तो फिर वह जम्मू कश्मीर के मसले पर इसी तरह की वार्ता की मांग को अनसुना क्यों कर देता है. उमर ने सरकार की कार्यप्रणाली पर अंगुली उठाते हुए यह भी पूछा है कि जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों के साथ गैर-आधिकारिक वार्ता करने में उसे क्या परेशानी है?
If “non-official” participation in a dialogue that includes the taliban is acceptable to the Modi government why not a “non-official” dialogue with non-mainstream stake holders in J&K? Why not a “non-official” dialogue centered around J&K’s eroded autonomy & its restoration? https://t.co/722SrqKkvo
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) November 8, 2018
उमर का मानना है कि कश्मीर में जारी संघर्ष भी अफगानिस्तान से मिलता जुलता है. उमर ने सवाल उठाया है कि मोदी सरकार तालिबान के साथ गैर-आधिकारिक वार्ता में शामिल होना चाहती है लेकिन हर बार अलगाववादियों के साथ बातचीत करने से साफ इनकार कर देती है. ध्यान रहे कि इस वार्ता पर विदेश मंत्रालय का तर्क है कि वार्ता पूर्ण रूप से गैर आधिकारिक स्तर की है और इसमें मंत्रलाय की तरफ से कोई भी अधिकारी अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराएगा.
गौरतलब है कि अफगानिस्तान में शांति कायम करने के उद्देश्य से रूस इस वार्ता की मेजबानी कर रहा है. रूस की तरफ से अमेरिका, पाकिस्तान और चीन समेत भारत को भी इसका आमंत्रण दिया गया है.
इस पूरे मामले में हम भी उमर की बात से सहमत हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि लगातार मोदी सरकार द्वारा घाटी के अलगाववादी नेताओं को सिरे से खारिज किया जा रहा है. ऐसे में यदि कल अलगाववादी नेताओं का कोई समूह यूएन या अन्य किसी मंच पर ये मुद्दा उठाए कि मोदी सरकार उससे बात करने के लिए अब तक सामने नहीं आई है तो इससे और कुछ नहीं बस सरकार की किरकिरी होगी.
भले ही भारत वहां पाकिस्तान पर दबदबा स्थापित करने के उद्देश्य से जा रहा हो. मगर वहां जाने से पहले उसे सोचना होगा कि दूसरों की समस्या सुनने से बेहतर है कि पहले वो अपने देश की समस्याओं का संज्ञान ले और उनका निवारण करने के भरसक प्रयास करे.
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