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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 10 अप्रिल, 2022 10:40 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मायावती (Mayawati) ने राहुल गांधी के गठबंधन प्रस्ताव को 'पूरी तरह तथ्यों से परे' बताया है, 'रत्ती भर भी कोई सच्चाई नहीं है.' राहुल गांधी ने दावा किया था कि कांग्रेस की तरफ से यूपी चुनाव में मायावती को मुख्यमंत्री पद की पेशकश के साथ चुनावी गठबंधन का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन बीएसपी नेता ने कोई जवाब नहीं दिया.

हमेशा की तरह अपने लिखित बयान के साथ मीडिया के सामने आयीं, बीएसपी नेता ने राहुल गांधी के बयान पर खूब खरी खोटी सुनायी है. मायावती ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस हमेशा ही बीएसपी के खिलाफ राजनीतिक साजिश, दगाबाजी और विश्वासघात किया है - और वो भरोसे के लायक नहीं है.

राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के बहाने मायावती ने अपने सारे राजनीतिक विरोधियों को एक साथ जवाब देने की कोशिश की है. कहती हैं, कांग्रेस हो या कोई और पार्टी दूसरे दलों पर टीका-टिप्पणी से पहले खुद के गिरेबान में भी झांक कर देख लेना चाहिये. लगता है मायावती ने अपने खिलाफ चल रही राजनीतिक कवायद की तपिश महसूस कर ली है.

राहुल गांधी ने दलितों का मुद्दा (Dalit Politics) ऐसे वक्त उठाया है जब सभी राजनीतिक दल 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती की तैयारी कर रहे हैं. बीजेपी तो अपनी स्थापना दिवस से शुरू कर सामाजिक न्याय पखवाड़ा ही मना रही है - और बीजेपी सांसदों को हर दिन के लिए अलग अलग टास्क दिये गये हैं.

राहुल गांधी ने भी मौका देख कर ही मायावती पर सीधा हमला बोला है. मायावती तो चुनावों से लेकर अब तक लगातार अखिलेश यादव को निशाना बना रही हैं. समाजवादी पार्टी के नेता पहले तो कोई भी टिप्पणी करने से परहेज कर रहे लेकिन अब वैसी बात नहीं है. अंदर ही अंदर बीएसपी के वोट बैंक में पैठ बनाने की तैयारी चल रही है.

अब तक भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद से दूरी बना कर चल रहा विपक्ष लगता है पैंतरा बदलने के बारे में सोचने लगा है. राहुल गांधी या अखिलेश यादव में से कोई भी सामने तो नहीं आया है, लेकिन जयंत चौधरी के साथ चंद्रशेखर आजाद की तस्वीर सोशल मीडिया पर घूम घूम कर इशारे तो कुछ ऐसा ही कर रही है.

चुनावों में मायावती के हिस्से सिर्फ एक सीट आयी और वो भी बलिया के रसड़ा से उमाशंकर सिंह को टिकट भले ही बीएसपी का मिला था, लेकिन लड़ाई तो अपने ही दम पर जीते हैं. तभी तो दो सीटें जीतने वाली कांग्रेस बीएसपी नेता के खिलाफ आक्रामक होकर ट्विटर पर मुहिम चला रही है - 'बहन जी कहां थीं?'

बीजेपी से नहीं डरतीं बीएसपी नेता

राहुल गांधी ने बीएसपी के कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन के प्रस्ताव पर जवाब न देने के पीछे मायावती के डर का जिक्र किया था. राहुल गांधी का दावा है कि मायावती सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों की वजह से बीजेपी से डरती हैं - मायावती ने कांग्रेस के प्रस्ताव और डरने के आरोपों को बकवास करार दिया है.

mayawati, chandrashekhar azadजिस चंद्रशेखर आजाद को मायावती ने कभी भाव नहीं दिया, अब मुसीबत खड़ी करने वाले हैं

बीएसपी की प्रेस कांफ्रेंस के साथ ही ट्विटर पर बयान जारी कर मायावती ने कहा है, "केंद्र की सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स से डर कर बीजेपी के खिलाफ काफी नरम रहने के आरोप में रत्ती भर सच्चाई नहीं है - क्योंकि सभी मामलों केंद्र में रही किसी पार्टी की सरकार से नहीं बल्कि सभी सरकारों के खिलाफ जाकर सुप्रीम कोर्ट में जीते हैं. "

हार जीत अपनी जगह है, लेकिन लड़ाई तो लड़ाई है. पूरे यूपी चुनाव में किसी को भी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि मायावती भी मैदान में हैं. ऐसा लगा जैसे मायावती की चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी बची ही नहीं है.

ऐसा भी नहीं कि बीएसपी ने जमीनी स्तर पर कोई तैयारी नहीं की थी, लेकिन उम्मीदवारों के चयन में भी ऐसा ही लगा जैसे वे चुनावी रस्म निभाने के मकसद से मैदान में उतारे गये हों. कई सीटों पर तो ऐसा लगा जैसे उम्मीदवारों को बीजेपी और उसके खिलाफ चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के हिसाब से टिकट बदल दिया गया हो.

अमित शाह के बयान से भी ऐसा ही लगा कि बीजेपी को भी बीएसपी का ही भरोसा हो. बीएसपी के प्रासंगिक बने रहने की बातें भी अमित शाह ने यही सोच कर कही थी कि मुस्लिम वोट सिर्फ समाजवादी पार्टी को ही न मिल जायें.

किसी को चुनाव के मैदान में चैलेंज करना तो प्रतिरोध का एक तरीका ही है. पूरे यूपी चुनाव में ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ कि मायावती बीएसपी की जीत सुनिश्चित करना चाहती हों - चुनावों के दौरान भी अखिलेश यादव तो नहीं लेकिन अमित शाह और प्रियंका गांधी तो मायावती के निष्क्रिय रहने को लेकर सवाल उठाते ही रहे. हां, मायावती की तरफ से जवाब भी आये. मायावती का कहना था कि चूंकि बीएसपी के पास बीजेपी या दूसरे दलों के मुकाबले संसाधन काफी कम होते हैं, इसलिए पार्टी चुनाव कैंपेन वोटिंग से कुछ पहले ही शुरू करती है.

जीतने को तो 2017 में भी मायावती सत्ता में वापसी नहीं कर पायी थीं, लेकिन तब तो किसी ने भी मायावती पर वैसे आरोप नहीं लगाये जैसा राहुल गांधी ने 2022 को लेकर दावा किया है. यहां तक कि 2019 के आम चुनाव में भी मायावती को काफी एक्टिव देखा गया था. कांग्रेस को भले ही सपा-बसपा गठबंधन से दूर रखा था, लेकिन अखिलेश यादव के साथ तो पुरानी दुश्मनी भुलाकर मैनपुरी तक पहुंच गयी थीं जानी दुश्मन मुलायम सिंह यादव के लिए वोट मांगने.

सवाल इसलिए भी उठता है कि 2019 की मोदी लहर में बीएसपी 10 लोक सभा सीटें जीत लेती है, लेकिन विधानसभा चुनाव में बीएसपी सिर्फ खाता खोल पाती है. मोदी लहर का बिहार में असर ये रहा कि तेजस्वी यादव आरजेडी को एक सीट भी नहीं दिला पाते और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी तीसरे नंबर पर पिछड़ जाती है, जगह जगह आप के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो जाती है - लेकिन जब विधानसभा के चुनाव होते हैं तो तेजस्वी यादव भी बहुमत के काफी करीब पहुंचते हैं और अरविंद केजरीवाल तो सत्ता में वापसी ही कर लेते हैं.

देखा जाये तो मायावती के मुकाबले लड़ाई में आजाद समाज पार्टी उम्मीदवार चंद्रेशेखर आजाद भी मायावती से आगे नजर आये हैं. ये जानते हुए भी कि हार सुनिश्चित है, चंद्रशेखर आजाद ने गोरखपुर सदर सीट पर जाकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चैलेंज किया था - और वो भी तब जब कोई भी राजनीतिक दल उनको सपोर्ट करने को तैयार न हुआ. गोरखपुर सदर सीट पर अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी ने ही नहीं मायावती ने भी अपना उम्मीदवार खड़ा किया था.

चंद्रशेखर आजाद की चुनौती भी वैसी ही लगी जैसे 2014 में अरविंद केजरीवाल ने वाराणसी सीट पर बीजेपी उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ मैदान में उतरने का फैसला किया था. गोरखपुर सीट पर सपा उम्मीदवार सुभावती शुक्ला ने अच्छी लड़ाई लड़ी. अगर मायावती ने वहां अपना मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा होता तो सपा का जीत भले नहीं हो पाती, लेकिन सपा का वोट नहीं बंटता.

मायावती के मुकाबले चंद्रशेखर को खड़ा करने की तैयारी?

चुनाव बीत जाने के बाद भी अखिलेश यादव के खिलाफ मायावती के हमले कम नहीं हुए हैं. फिर भी अखिलेश यादव संयम दिखा रहे हैं, हालांकि, समाजवादी पार्टी के नेताओं की तरफ से बीएसपी नेतृत्व को जवाब देने की कोशिश भी शुरू हो चुकी है.

राहुल गांधी की ही तरह अखिलेश यादव ने भी मायावती पर बीजेपी के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया है. आजमगढ़ के दौरे पर अचानक पहुंचे अखिलेश यादव ने यूपी चुनाव में बीएसपी की हार को भी मायावती और बीजेपी की मिलीभगत से ही जोड़ दिया था.

भला मायावती चुप कैसे रह जातीं. अखिलेश यादव को घेरने के लिए मायावती ने मुलायम सिंह यादव को भी लपेट लिया. मायावती ने आरोप लगाया कि मुलायम सिंह तो खुल कर भाजपा से मिले हैं. तभी तो अपने काम के लिए एक सदस्य को बीजेपी में भेज दिया है. मायावती असल में अपर्णा यादव के बीजेपी ज्वाइन करने की तरफ इशारा कर रही थीं.

अखिलेश यादव का कहना है कि मायावती और बीजेपी की मिलीभगत की वजह से ही समाजवादी पार्टी ने बीएसपी की जगह अंबेडकरवादियों से गठबंधन शुरू कर दिया है. चुनावों के दौरान भी अखिलेश यादव बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में समाजवादियों के साथ अंबेडरवादियों के साथ आ जाने की अपील करते रहे.

समाजवादी पार्टी की तरफ से मायावती पर आरोप लगाया जा रहा है कि चुनावों में बीएसपी ने बीजेपी के साथ अघोषित गठबंधन किया था. एक सपा नेता का कहना है कि मायावती के बयान तक बीजेपी ने तय किये थे.

मायावती पर पहले भी बीएसपी के संस्थापक कांशीराम की विचारधारा से अलग राजनीति के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे आरोप कांशीराम के जमाने के बीएसपी नेताओं के भी रहे हैं. राहुल गांधी और अखिलेश यादव भी मायावती पर दलित समुदाय के हितों को भुला कर कांशीराम के दिखाये राह से भटक जाने का आरोप लगा रहे हैं. पलटवार में मायावती याद दिला रही हैं कि राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने तो कांशीराम को सीआईए का एजेंट तक बता चुके हैं.

समाजवादी पार्टी का आरोप है कि मायावती ने कांशीराम की बीएसपी को बीजेपी के हाथों गिरवी रख दिया है, लिहाजा समाजवादी पार्टी अब लोहिया के साथ साथ कांशीराम के विचारों को लेकर आगे बढ़ेगी.

यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि चंद्रशेखर आजाद खुद को कांशीराम का अनुयायी बताते रहे हैं और फिलहाल उनकी यही लाइन अखिलेश यादव को भी पंसद आ रही है. अखिलेश यादव खुद तो नहीं लेकिन जयंत चौधरी के जरिये चंद्रशेखर को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, बीच बीच में शिवपाल यादव की तरह जयंत चौधरी और ओमप्रकाश राजभर पर भी बीजेपी की तरफ से डोरे डालने की चर्चा होने लगती है.

चुनावों में तो अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर को गठबंधन में शामिल नहीं किया, लेकिन भीम आर्मी नेता के आक्रामक हो जाने के बावजूद कभी उसी लहजे में रिएक्ट भी नहीं किया. अब जयंत चौधरी और चंद्रशेखर आजाद की मीटिंग के बाद लगता है कि अखिलेश यादव भी मायावती के खिलाफ चंद्रशेखर आजाद को दलित चेहरे के तौर पर आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं - हो सकता है राहुल गांधी भी उसी में कांग्रेस का भी भविष्य देख रहे हों.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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