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Updated: 28 जुलाई, 2022 02:18 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को जो लोग पसंद नहीं आते, ब्लॉक कर देती हैं. ऐसा आम लोग भी करते हैं. ममता बनर्जी तो आम आदमी की ही नेता भी हैं. उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार जगदीप धनखड़ को भी ट्विटर पर ब्लॉक कर चुकी हैं. ये तभी की बात है जब वो पश्चिम बंगाल के गवर्नर हुआ करते थे.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की ब्लॉकलिस्ट से नया नाम सामने आया है - पार्थ चटर्जी (Partha Chatterjee) का. बंगाल की तृणमूल सरकार में पार्थ चटर्जी मंत्री हैं और हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने उनको शिक्षक भर्ती घोटाले (SSC Scam) में गिरफ्तार किया है. जिस घोटाले में पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी हुई है, वो तभी कहा है जब वो ममता बनर्जी सरकार में शिक्षा मंत्री हुआ करते थे. ममता बनर्जी के कैबिनेट सहयोगी होने के साथ साथ फिलहाल वो तृणमूल कांग्रेस महासचिव भी हैं.

तृणमूल कांग्रेस ने तो शुरू से ही पार्थ चटर्जी से दूरी बनानी शुरू कर दी थी. जैसे ही पार्थ चटर्जी की करीब अर्पिता मुखर्जी के घर से 20 करोड़ से ज्यादा कैश बरामद होने की खबर आयी, टीएमसी की तरफ से बयान आया कि पैसों से उसका कोई लेना देना नहीं है.

पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी के बाद ममता बनर्जी की खामोशी पर भी सवाल उठे - और नेता के बचाव में मंत्रियों ने मोर्चा संभाल लिया है. तृणमूल कांग्रेस की तरफ से पार्थ चटर्जी के खिलाफ कड़ा रुख जाहिर किया गया है - और मांग की गयी है कि मामले की समयबद्ध जांच करवायी जाये.

ये भी तृणमूल कांग्रेस की तरफ से सरप्राइज ही है क्योंकि जो ममता बनर्जी अपने पुलिस कमिश्नर को सीबीआई की गिरफ्तारी से बचाने के लिए धरने पर बैठ जाती हैं, वो भला ऐसा क्यों कर रही हैं?

क्या ममता बनर्जी टीएमसी को कांग्रेस से बेहतर दिखाने की कोशिश कर रही हैं? एक तरफ ईडी के खिलाफ कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य गिरफ्तारी देते हैं. राहुल गांधी कांग्रेस के विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करते हैं और हिरासत में भी लिये जाते हैं - और ममता बनर्जी की पार्टी विरोध के बजाय मांग कर रही है कि जांच जरूर करायी जाये, लेकिन एक निश्चित समय सीमा के भीतर.

ममता बनर्जी का ये अनोखा तब थोड़ा अजीब भी लगता है जब तृणमूल कांग्रेस की तरह से साफ कर दिया है कि अदालत से दोषी साबित होने के बाद ही पार्थ चटर्जी के खिलाफ कोई एक्शन लिया जाएगा. मतलब, वो मंत्री भी बने रहेंगे और संगठन के महत्वपूर्ण पदाधिकारी भी. जैसे महाराष्ट्र उद्धव ठाकरे सरकार के रहने तक नवाब मलिक मंत्री बने रहे.

सवाल ये भी है कि क्या ममता बनर्जी को पार्थ चटर्जी की गिरफ्तारी का पूर्वाभास पहले ही हो गया था? और क्या ममता बनर्जी ने पहले ही तय कर लिया था कि कुछ ऐसा वैसा होने पर क्या स्टैंड लेना है? ममता बनर्जी को हमेशा ही अपने लोगों के बचाव में खड़े देखा गया है, लेकिन शहीद रैली में ममता बनर्जी के भाषण से तो ऐसा लगा जैसे वो सबको स्टैंडिंग वॉर्निंग दे रही हों!

ममता बनर्जी ने स्टैंड क्यों बदला?

ममता बनर्जी के लिए 21 जुलाई को कोलकाता में होने वाली शहीद दिवस रैली बड़ा मौका होती है. ममता बनर्जी अपना मैसेज देने के लिए रैली के मंच का हमेशा ही इस्तेमाल करती रही हैं. पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद भी किया था - और इस बार भी किया है. ये भी संयोग ही है कि रैली के ठीक एक दिन बाद ममता बनर्जी के मंत्री पार्थ चटर्जी को मनी लॉन्ड्रिंग के केस में गिरफ्तार कर लिया गया.

mamata banerjee, parth chatterjeeममता बनर्जी ने पार्थ चटर्जी को पहले ही क्यों नहीं ब्लॉक किया?

रैली के मंच से ममता बनर्जी अपने सभी लोगों को सार्वजनिक तौर पर एक साथ आगाह कर रही थीं, 'हम लोगों के लिए काम करते हैं और कभी कभी गलतियां हो जाती हैं. अगर किसी ने कुछ भी गलत किया है, तो वो सजा पाएगा.'

तृणमूल कांग्रेस की तरफ से भी बार बार यही बताने और जताने की कोशिश हो रही है - अगर कोई गलती करेगा तो सजा पाएगा. मतलब, पार्थ चटर्जी या किसी और ने कोई गलती की है तो सजा पाएगा.

शहीद दिवस की रैली में तृणमूल कांग्रेस महासचिव अभिषेक बनर्जी भी माइक थामने के बाद कुछ कुछ ऐसी ही वॉर्निंग दे रहे थे - 'तृणमूल कांग्रेस में भ्रष्ट नेताओं के लिए कोई जगह नहीं है.' आपको याद होगा पश्चिम बंगाल चुनाव में बीजेपी नेतृत्व ममता बनर्जी पर भी अभिषेक बनर्जी का नाम लेकर ही हमलावर था और भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जा रहे थे. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के चुनावी भाषणों में अक्सर सुनने को मिलता था, 'इस सरकार में शारदा घोटला, चिटफंड घोटाला जाने कौन-कौन सा घोटाला हुआ है... भ्रष्टाचार का बोलबाला है - अंत्येष्टि के लिए भी कटमनी ली जा रही है,' - और फिर निशाने पर नाम के जिक्र के बगैर ही अभिषेक बनर्जी आ जाते रहे, 'अब नये राजकुमार धन बटोर रहे हैं.'

भाषण देने की बात और है, लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रुजिरा बनर्जी भी पश्चिम बंगाल के कोयला खनन घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में प्रवर्तन निदेशालय के निशाने पर हैं. पिछले साल नवंबर में सीबीआई ने अभिषेक बनर्जी के करीबी विनय मिश्रा सहित 45 जगहों पर छापेमारी की थी. रुजिरा से तो उस वक्त भी पूछताछ हुई थी जब ममता बनर्जी चुनावी तैयारियों में व्यस्त रहीं.

ममता बनर्जी पर कभी सीधे आंच तो नहीं आयी, लेकिन ये भी है कि नारदा और शारदा जैसे घोटालों में भी उनके करीबी गिरफ्त में आते रहे हैं - मुकुल रॉय, पार्थ चटर्जी हो या फिर तृणमूल कांग्रेस में रहते शुभेंदु अधिकारी ही क्यों न रहे हों. और यही वजह है कि ममता बनर्जी के ही एक मंत्री फिरहाद हकीम ताना मारते हैं हैं, 'अगर पार्थ भी शुभेंदु अधिकारी की तरह बीजेपी में शामिल हो गये होते तो उनको आज ये दिन नहीं देखना पड़ता.'

फिर भी फिलहाल तृणमूल कांग्रेस की तरफ से ये जताने की ही कोशिश है कि कोई भी बख्शा नहीं जाएगा. टीएमसी महासचिव कुणाल घोष कहते हैं, कोई भी नेता, चाहे वो कितना ही बड़ा क्यों न हो - अगर कानूनी तौर पर दोषी पाया जाता है, न तो वो पार्टी में रह पाएगा न ही सरकार में.

टीएमसी के ताजा स्टैंड में भी बीजेपी अलग ही मजे ले रही है. बंगाल बीजेपी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार की बातों पर जरा गौर कीजिये, 'कुणाल घोष तब राज्य सभा सदस्य थे, जब बंगाल पुलिस ने शारदा चिट फंड केस में गिरफ्तार कर उनके जेल भेज दिया था. टीएमसी ने भी दूरी बना ली थी. तब तो पार्थ चटर्जी ने ही कुणाल घोष को तृणमूल कांग्रेस से सस्पेंड करवाया था. इतिहास दोहरा रहा है.'

करीब साल भर से ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में पांव जमाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन कांग्रेस उनके रास्ते की सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है. राष्ट्रपति चुनाव में तो कांग्रेस नेतृत्व के प्रवर्तन निदेशालय की वजह से आगे बड़ कर राजनीति का मौका भी मिला, लेकिन ममता बनर्जी की पसंद से उम्मीदवार नहीं तय हो सका. उपराष्ट्रपति चुनाव से तो वो दूरी ही बना चुकी हैं.

मान लीजिये सरकार के किसी और भी मंत्री के साथ पार्थ चटर्जी जैसा ही वाकया होता है तो ममता बनर्जी का क्या रुख होगा? अगर किसी टीएमसी नेता के साथ ऐसा होता है तो क्या स्टैंड होगा - और अगर अभिषेक बनर्जी के साथ पार्थ चटर्जी जैसा मामला हो गया तो भी क्या ममता बनर्जी ऐसे ही कदम उठाएंगी?

अगर ये काम पहले ही कर दिया होता

कानूनी प्रक्रिया में कुछ प्रोटोकॉल तय होते हैं. जैसे गिरफ्तारी के बाद आरोपी को ये बताना कि उसे किस बात के लिए अरेस्ट किया गया है - हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद प्रवर्तन निदेशालय के लिए अब ये भी जरूरी नहीं रहा कि वो ये सब बताये भी.

ऐसे प्रोटोकॉल के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को अपने परिवार, रिश्तेदार या किसी मित्र को फोन करने का मौका दिया जाता है. पार्थ चटर्जी को गिरफ्तार करने के बाद ईडी अफसरों ने भी ये मौका दिया था - और पार्थ चटर्जी ने ममता बनर्जी को कॉल करने का फैसला किया.

23 जुलाई की रात पार्थ चटर्जी ने बहुत कुछ सोच समझ कर ही ममता बनर्जी से बात करने का फैसला किया होगा. अपनी गिरफ्तारी के बाद पार्थ चटर्जी ने पहली बार रात के 2.33 बजे फोन किया, जवाब नहीं मिला. घंटे भर बाद करीब 3.37 बजे भोर में कोशिश की, कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला. फिर पार्थ चटर्जी ने सुबह होने का इंतजार किया और ये सोच कर कि उनकी नेता अगर सोई भी हों तो उठ ही गयी होंगी एक बार और सुबह 9.35 बजे डायल किया, फिर भी फोन नहीं उठा.

तीसरी कोशिश के बाद भी पार्थ चटर्जी का मन नहीं मान रहा था कि ममता बनर्जी जानबूझ कर उनका फोन नहीं उठा रही होंगी. चौथी कोशिश में ये ममता बनर्जी ने उनका सारा ही भ्रम दूर कर दिया - ममता बनर्जी ने पार्थ चटर्जी का नंबर ही ब्लॉक कर दिया.

विस्तार से तो नहीं, लेकिन पार्थ चटर्जी ने मीडिया को भी तीन बार फोन ट्राय करने की बात बतायी थी, लेकिन ममता बनर्जी के एक और करीबी मंत्री फिरहाद हकीम ने पार्थ चटर्जी के फोन करने की बात झुठला दी है. मीडिया से बात करते हुए फिरहाद हकीम ने कहा भी, 'कोई मुख्यमंत्री को कैसे कॉल कर सकता है? सारे फोन तो ED छापे के दौरान ही अपने कब्जे में ले लेता है.'

बहरहाल, ममता बनर्जी के पार्थ चटर्जी को फोन पर ब्लॉक कर देने भर से ये नहीं समझा जा सकता है कि वो वास्तव में वही कर रही हैं जो शहीद दिवस रैली के मौके पर कहा था. हो सकता है वो निजी तौर पर पार्थ चटर्जी से गुस्सा हों.

तृणमूल कांग्रेस का ये स्टैंड भी ममता बनर्जी के भाषण से मैच नहीं करता कि पार्थ चटर्जी जब तक अदालत से दोषी साबित नहीं हो जाते, उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है. अदालत का फैसला आने तक तृणमूल कांग्रेस पार्थ चटर्जी का इंतजार करेगी. भले ही लोअर कोर्ट के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचते पहुंचते बीस साल ही क्यों न लग जायें?

अगर ममता बनर्जी के फोन ब्लॉक करने का मतलब पार्थ चटर्जी के प्रति भरोसा कम होने में है तो ऐसा उनको पहले ही कर देना चाहिये था. फिर तो राजनीतिक विरोधियों को ममता बनर्जी को कठघरे में खड़ा करने का मौका भी नहीं मिलता.

असल बात तो ये है कि पार्थ चटर्जी का फोन ब्लॉक किया जाना भी ममता बनर्जी का एक राजनीतिक बयान बन कर ही रह गया है - और ये सब करना भी कुछ न करने के बराबर ही है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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