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Updated: 25 जनवरी, 2021 04:19 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) फिर गुस्से में हैं. वो 2019 के चुनाव नतीजों को लेकर भी गुस्से में थीं. चुनाव नतीजे धोखेबाज निकले थे. एक तो जिसे एक्सपाइरी डेट पीएम बोलती थीं वो चुनाव जीत गया, दूसरे बंगाल में भी ममता बनर्जी के कोटे में भी हिस्सेदारी ले ली, बीजेपी को 18 सीटें जिताकर. ममता बनर्जी इतने गुस्से में रहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के शपथग्रहण समारोह से ही दूर रहीं.

जब ममता बनर्जी का गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ तो दिल्ली पहुंचीं. प्रधानमंत्री मोदी से मिली और गुलदस्ता दिया. बाद अमित शाह से भी मुलाकात कीं, गुलदस्ते के साथ ही. प्रोटोकॉल भी गजब की चीज है, हमेशा ही गुस्से पर भारी पड़ता है.

जैसे तैसे वक्त गुजरा और तभी कोरोना वायरस आ धमका. प्रधानमंत्री मोदी को संपूर्ण लॉकडाउन लागू करना पड़ा. पश्चिम बंगाल से लॉकडाउन ठीक से लागू न होने की शिकायतें मिलीं तो अमित शाह के गृह मंत्रालय ने नोटिस भेज दिया. ममता बनर्जी को फिर गुस्सा आ गया.

जब मुख्यमंत्रियों की मीटिंग हुई तो ममता बनर्जी ने अमित शाह की मौजूदगी में ही प्रधानमंत्री मोदी से उनकी शिकायत दर्ज करायी. प्रधानमंत्री मोदी ने ममता की शिकायतें सुनीं. बात आगे बढ़ी.

पश्चिम बंगाल में अम्फान तूफान आ गया. तूफान से काफी बर्बादी हुई. ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी से गुजारिश की, आइये देखिये क्या हाल हो रखा है. प्रधानमंत्री मोदी लॉकडाउन के बाद पहली बार दिल्ली से बाहर निकले. हालात का जायजा लिया. मदद भी की और तारीफें भी. प्रधानमंत्री मोदी के मुंह से ममता बनर्जी की तारीफ सुन कर राज्यपाल जयदीप धनखड़ ने भी ममता बनर्जी की तारीफ की - पहली बार और आखिरी बार भी.

पश्चिम बंगाल चुनाव (West Bengal Election 2021) को लेकर राजनीति अपनी जगह है, लेकिन सब ठीक ही चल रहा था कि मंच पर प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी में कुछ लोगों ने उत्साहित होकर ममता बनर्जी को देखते ही नारेबाजी कर दी - 'जय श्रीराम'. ये वो नारा है जो सुनते ही ममता बनर्जी भड़क जाती हैं. सुन कर भड़कना ही था. भड़क गयीं.

ममता बनर्जी ने अमित शाह की शिकायत तो प्रधानमंत्री से कर दी थी, अब नरेंद्र मोदी की शिकायत किससे करें? ये शिकायत तो ऐसी है कि जनता से ही की जा सकती है - और जनता है कि मूड ऑफ द नेशन सर्वे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मोस्ट पॉप्युलर ब्रांड मोदी बना दिया है - और ममता बनर्जी हैं कि बगैर कुछ सोचे समझे पंगा लिये ही चली जा रही हैं.

जो हुआ वो कोई पहली बार नहीं हुआ

कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हाल में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती समारोह में जो ममता बनर्जी के साथ हुआ वो राजनीति की दुनिया में कोई पहला वाकया नहीं था. करीब करीब वैसे ही सिचुएशन में एक बार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बुरी तरह फंसे थे, लेकिन बैठे बैठे मुस्कुराते रहे. कुछ बोले नहीं. देखने वाले कुछ लोगों ने वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर डाल दिया. वायरल होना ही था, हो भी गया.

mamata banerjee, narendra modiममता बनर्जी को देश का मिजाज समझना चाहिये - और ब्रांड मोदी से मुकाबले के लिए वैसी ही रणनीति तैयार करनी चाहिये, वरना लेने के देने पड़ते देर नहीं लगती.

नेताजी जयंती के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ भी मंच पर मौजूद थे. प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन से पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को मंच पर बुलाया गया, तभी दर्शकों के बीच से कुछ लोगों ने 'जय श्रीराम' के नारे लगाने शुरू कर दिये. कार्यक्रम संचालक ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री को बोलने दीजिये, लेकिन तभी ममता बनर्जी को मंच पर ही कहते सुना गया - "ना बोलबे ना...आमी बोलबे ना..."

फिर भी आग्रह किये जाने पर ममता बनर्जी उठीं. शब्द तो कम ही इस्तेमाल किये, लेकिन ज्यादा ही बोल गयीं, 'मुझे लगता है कि सरकार के कार्यक्रम की कोई मर्यादा होनी चाहिये... ये सरकार का कार्यक्रम है, किसी राजनीतिक पार्टी का नहीं... मैं तो प्रधानमंत्री जी और संस्कृति मंत्रालय की आभारी हूं कि आप लोगों ने कोलकाता में कार्यक्रम किया - लेकिन किसी को आमंत्रण देकर उसको बेइज्जत करना आपको शोभा नहीं देता... मैं फिर आप लोगों से कहती हूं... इसके विरोध में मैं कुछ नहीं बोलूंगी... जय हिंद. जय बांग्ला.'

नीतीश कुमार के बैठे बैठे मुस्कुराते रहने का जो वीडियो वायरल हुआ था वो 25 अप्रैल, 2019 का बताया गया. दरभंगा में बीजेपी और जेडीयू की एक संयुक्त रैली हुई थी. मंच पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ काफी लोग मौजूद थे.

नीतीश कुमार को कुछ समझ में नहीं आया जब अचानक वो अपने अलग बगल सबको खड़े होकर मुट्ठी बांधे 'बंदे मातरम्' लगाते देखे. मगर, नीतीश कुमार ने ममता बनर्जी की तरह धैर्य नहीं खोया. बैठे बैठे मुस्कुराते रहे. वो कर भी क्या सकते थे. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही थी. नीतीश कुमार का तब अभी के जैसा हाल भी न था, लेकिन ये जरूर था कि वो पूरे चुनाव अपनी पार्टी का मैनिफेस्टो नहीं जारी कर सके.

नीतीश कुमार के सामने हाल के विधानसभा चुनाव में भी अजीब हालात से दो-चार होना पड़ा था जब अचानक रैली के दौरान भीड़ में कुछ लोग 'लालू यादव जिंदाबाद' के नारे लगाने लगे थे. तब भी नीतीश कुमार ने सिर्फ इतना ही कहा कि वोट जिसे देना हो दे देना, लेकिन शांत हो जाओ. ऐसा ही धैर्य नीतीश कुमार ने तब भी दिखाया जब लोग उनकी ही रैली में 'नीतीश कुमार मुर्दाबाद' जैसे नारे लगाने लगे थे, लेकिन आखिरी रैली में नीतीश कुमार ने बड़े अर्थों वाली एक छोटी सी बात बोली - अंत भला तो सब भला.

ममता बनर्जी की तरह नीतीश कुमार भी मुख्यमंत्री थे, लेकिन तृणमूल नेता तो चलते चलते रास्ते में भी जय श्रीराम के नारे सुन कर रुक जाती हैं और नारेबाजी करने वाले नौजवानों से भी उलझ जाती हैं - लगता है प्रशांत किशोर की सलाह मानना ममता बनर्जी ने बंद कर दिया है.

ममता बनर्जी को याद रखना चाहिये दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी नेता अरविंद केजरीवाल को उकसाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखे थे. हद तो तब हो गयी जब अरविंद केजरीवाल को आतंकवादी बताया जाने लगा.

अरविंद केजरीवाल ये सुन कर भी ममता बनर्जी की तरह आपा नहीं खोये. बड़े आराम से दिल्लीवालों से कहा, अगर वास्तव में आतंकवादी मानते हो तो वोटिंग के दिन ईवीएम में बीजेपी का बटन दबा देना. एक छोटी सी बात का असर ऐसा हु्आ कि जब दिल्ली चुनाव के नतीजे आये तो अरविंद केजरीवाल को सरेआम फ्लाइंग किस देते हुए बोलना पड़ा - दिल्लीवालों आई लव यू!

अरविंद केजरीवाल के साथ ही दिल्ली में हुए एक सरकारी कार्यक्रम में अजीब वाकया फेस करना पड़ा. ये कार्यक्रम केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के विभाग की तरफ से आयोजित था.

हुआ ये कि जैसे ही अरविंद केजरीवाल बोलने के लिए माइक के पास पहुंचे. सामने ही बैठे कुछ लोग खांसने का एक्ट करने लगे. जब ये एक्ट दोहराया जाने लगा तो नितिन गडकरी बरस पड़े. डांटते हुए बोले की सरकारी कार्यक्रम में वे ऐसा क्यों कर रहे हैं. बाद में अरविंद केजरीवाल के मुंह से ऐसे कसीदे सुनने को मिले कि पूछिये मत. ये वही अरविंद केजरीवाल रहे जिनके लंबे चौड़े आरोपों के चलते नितिन गडकरी को बीजेपी का अध्यक्ष पद गंवाना पड़ा था. राजनीति में ये सब चलता है.

हो सकता है किसी ने कुछ ऐसा वैसा किया होता तो नितिन गडकरी की तरह नरेंद्र मोदी भी ऐसा करने वालों से कुछ कहते ही, लेकिन वो भला जयश्रीराम के नारे पर बोलें तो क्या बोलें? ममता बनर्जी को राजनीति में कभी कभी धैर्य बनाये रखना तो सीखना ही होगा.

विरोध की अकेली आवाज हैं ममता

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को छोड़ दें तो ममता बनर्जी उस खेमे की अकेली आवाज बची हैं जो अपने तीखे मोदी विरोध के लिए जाने जाते रहे हैं. ममता बनर्जी ने अगर सूझ बूझ से काम नहीं लिया तो ये आवाज भी कब फीकी पड़ जाये, किसे मालूम. वैसे भी विपक्ष के नाम पर तो देश में 2014 के बाद से लगता नहीं कि कुछ बचा भी है और ये लोकतंत्र के लिए किसी भी तरीके से अच्छी बात नहीं है.

नीतीश कुमार, मायावती और अरविंद केजरीवाल भी पहले मोदी विरोध के प्रतीक माने जाते रहे. सबसे बड़े मोदी विरोधी रहे नीतीश कुमार ने ही सबसे पहले हथियार भी डाल दिये. मायावती मोदी से ज्यादा बीजेपी विरोधी रहीं, लेकिन जो भी मजबूरी हो अब तो वो ऐसे स्टैंड लेती हैं कि प्रियंका गांधी उनको बीजेपी का अघोषित प्रवक्ता तक करार देती हैं.

आवाज तो अरविंद केजरीवाल की दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान ही दब गयी थी, लेकिन चुनाव बाद तो वो जैसे ही हनुमान भक्त हुए, एनडीए के बाहर होते हुए भी नीतीश कुमार जैसा ही व्यवहार करते देखे जाने लगे हैं.

ले देकर राहुल गांधी अकेले दम पर मोदी विरोध के मोर्चे पर डटे हुए हैं, लेकिन वो लोगों पर असर नहीं डाल पा रहे हैं. किसान आंदोलन को लेकर इतना कुछ करने के बाद भी इंडिया टुडे कार्वी इनसाइट्स के सर्वे में मोदी को जहां 38 फीसदी लोग फिर से प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, वहीं महज 7 फीसदी लोग राहुल गांधी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं.

ब्रांड मोदी की लोकप्रियता का आलम ये है कि सर्वे में शामिल करीब 74 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज को अच्छा और बेहतरीन माना है - और उनकी नजर में नरेंद्र मोदी अब तक के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री हैं - नरेंद्र मोदी के बाद ही देश के प्रधानमंत्रियों की सूची में अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी और फिर जवाहरलाल नेहरू का नंबर आता है.

सर्वे में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण और जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने को लोग मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि मान रहे हैं. धारा 370 तो संसद ने खत्म किया, एक बार मान लेते हैं - लेकिन राम मंदिर का फैसला तो सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया. भला वो मोदी सरकार की उपलब्धि कैसे मानी जाये. लेकिन लोग तो यही मान रहे हैं.

ममता बनर्जी को भी ये हकीकत समझ लेनी चाहिये. जितना जल्दी समझ लेंगी उतना ही अच्छा होगा. कहीं ऐसा न हो चुनाव खत्म होते होते ममता बनर्जी भी नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल की राह पकड़ लें!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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