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Updated: 22 जनवरी, 2021 08:12 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के मई, 2019 में सत्ता में वापसी के बाद से अब तक के 20 महीनों में से आधा समय कोरोना वायरस और लॉकडाउन की भेंट चढ़ चुका है - बाकी चुनौतियां अपनी जगह कायम हैं, फिर भी देश की बहुसंख्यक आबादी मानती है कि कोविड 19 के दौरान मोदी सरकार ने बेहतरीन काम किया है.

इंडिया टुडे के मूड ऑफ द नेशन सर्वे में करीब 74 फीसदी लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज को अच्छा और बेहतरीन माना है. ऐसे 38 फीसदी लोगों का मानना है कि नरेंद्र मोदी अब तक के सबसे अच्छे प्रधानमंत्री हैं - नरेंद्र मोदी के बाद देश के प्रधानमंत्रियों की सूची में, सर्वे के अनुसार, अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी और फिर जवाहरलाल नेहरू का नंबर आता है.

प्रधानमंत्री मोदी को लगातार चैलेंज कर रहे राहुल गांधी के लिए सर्वे की रिपोर्ट अच्छी नहीं है. राहुल गांधी ने चुनावी हार की जिम्मेदारी लेते हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा तो दे दिया था, लेकिन तब से लेकर अब तक उनकी व्याहारिक भूमिका नहीं बदली है - पूरे 20 महीने के दौरान राहुल गांधी को मोदी सरकार के खिलाफ हमलावर और बेहद आक्रामक देखा गया है - और आत्मविश्वास से भरपूर भी, 'वे मुझे छू भी नहीं सकते - वे मुझे गोली मार सकते हैं!'

देश के मिजाज (Mood of The Nation) को देखें तो अब भी राहुल गांधी, प्रधानमंत्री मोदी के लिए कोई चुनौती पेश करने की स्थिति में नहीं लगते - महज 7 फीसदी जनता ही कांग्रेस नेता को अगले प्रधानमंत्री के लायक मानती है.

20 महीने बाद - क्या है देश का मिजाज

जिस तरीके से राहुल गांधी मोदी सरकार पर लॉकडाउन, चीन सीमा विवाद, और देश की अर्थव्यवस्था और अब किसान आंदोलन को लेकर हमलावर रहे - ऐसा लगा था कि कांग्रेस को निश्चित तौर पर कुछ न कुछ राजनीतिक फायदा मिलना चाहिये, लेकिन अफसोस की बात है कि ऐसा कुछ भी नहीं है.

ठीक वैसे ही लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के मामले और एक एक करके अलग अलग चुनौतियों के चलते, लग रहा था कि ब्रांड मोदी प्रभावित होना चाहिये, लेकिन बीजेपी के लिए संतोष की बात है कि अब तक ऐसा कुछ भी नहीं है.

आम चुनाव के बाद हुए कुछ विधानसभा चुनावों के नतीजों को थोड़ी देर के लिए अलग रख कर देखें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए को बिहार चुनाव अपने बूते जिता दिया - और उनकी मजबूत टीम के नेता अमित शाह ने हैदराबाद जैसे इलाके में अच्छे प्रदर्शन के अलावा कश्मीर में हुए डीडीसी चुनाव में भी बीजेपी का खाता खुलवा दिया. चुनाव में मिली कामयाबी के बाद शाहनवाज हुसैन को भी बिहार में नये सिरे से स्थापित करने की कोशिश चल ही रही है. अब अकर किसी का सवाल ये है कि टीम मोदी में प्रदर्शन के मामले में नंबर 1 कौन है?

narendra modi, rahul gandhiप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच 20 महीने बाद भी लोगों तक पहुंच का फासला कम क्यों नहीं हो रहा है?

सर्वे में लोगों ने इस सवाल का भी जवाब दे दिया है - केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह. सर्वे में शामिल करीब 39 फीसदी लोगों का मानना है कि अमित शाह का काम सबसे अच्छा है. अमित शाह के बाद दूसरे नंबर पर लोगों को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का काम पसंद आया है. ध्यान देने वाली बात है कि राजनाथ सिंह टीम मोदी के संकटमोचक समझे जाने लगे हैं - किसानों आंदोलन में तो वो कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से अलग बतौर किसान नेता ही प्रोजेक्ट किये गये हैं.

बड़ी बात ये है कि मई, 2019 में मोदी सरकार की नई पारी शुरू होने के बाद से ज्यादातर मामले गृह मंत्रालय से ही जुड़े रहे हैं - चाहे वो जम्मू-कश्मीर से जुड़े धारा 370 का मामला हो, CAA हो या लॉकडाउन के अनुपालन और गाइडलाइन से जुड़ी बातें हों - और अभी तो किसान आंदोलन को खत्म कराने में भी सबसे बड़ी भूमिका अमित शाह की ही नजर आती है. बहरहाल, टीम मोदी में अमित शाह और राजनाथ सिंह के बाद तीसरा नंबर नितिन गडकरी को मिला है.

20 महीने बाद - कौन कितने पानी में?

देश के सामने तो अगला चुनाव पश्चिम बंगाल का ही नजर आ रहा है जो केरल, तमिलनाडु और पुड्डुचेरी के साथ के साथ होने जा रहा है, लेकिन सर्वे में ये जानने की कोशिश रही कि आज की तारीख में आम चुनाव कराये जाते हैं तो नतीजे कैसे हो सकते हैं?

मोटे तौर पर दो चीजें साफ तौर पर नजर आ रही हैं - एक, NDA ही नहीं, बीजेपी अपने दम पर भी बहुमत हासिल कर सकती है - और दो, कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए की झोली अभी जस की तस बनी हुई है. ये सही है कि कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में सत्ता जरूर गंवाई है, लेकिन राजस्थान में अब तक बचा रखा है - और महाराष्ट्र और झारखंड सरकार में हिस्सेदार है. कांग्रेस का ताजातरीन प्रदर्शन बिहार में सबने देखा ही है जिसके बाद कांग्रेस के ही G-23 नेता कह रहे हैं कि नेतृत्व को हार की आदत पड़ चुकी है और गठबंधन साथी आरजेडी नेताओं की टिप्पणी तो अलग ही रही है.

सर्वे के मुताबिक, 2019 के लोक सभा चुनाव के हिसाब से देखें तो एनडीए को अभी चुनाव होने पर 32 सीटों का नुकसान दर्ज हो रहा है, जबकि बीजेपी के हिस्से की 12 सीटें कम हो सकती हैं. 2019 में एनडीए की मिली 353 सीटों में बीजेपी ने अपने बूते पर 303 संसदीय सीटें जीती थीं.

दूसरी तरफ, सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले यूपीए को आम चुनाव में मिली 91 सीटों में दो सीटों का इजाफा दर्ज हो रहा है - 93 सीटें. कांग्रेस को लोक सभा चुनाव में 52 सीटें हासिल हुई थीं, सर्वे के अनुसार पार्टी को एक सीट का नुकसान होता नजर आ रहा है. सर्वे में एनडीए और यूपीए से इतर बाकी दलों के खाते में 129 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है.

बेशक कांग्रेस नेता काम करते हुए नजर आने वाले अध्यक्ष की आस लगाये बैठे हैं, लेकिन राहुल गांधी के कामकाज में कोई फर्क आया हो ऐसा तो नहीं लगता. सिर्फ कागजों पर दस्तखत करने की बात अलग हो सकती है - बाकी सारे काम राहुल गांधी पहले की ही तरह करते आ रहे रहे हैं.

महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार बनने में तो नहीं और झारखंड में सीटों को लेकर हुए समझौते को छोड़ दें तो राहुल गांधी ने वो सब किया है जो पहले भी करते रहे हैं - यहां तक कि छुट्टियां भी उनकी वैसे ही चल रही हैं, लॉकडाउन पीरियड में तो सभी घर में ही रहे और राहुल गांधी को भी वैसा ही करना पड़ा था. लेकिन कांग्रेस का स्थापना दिवस कार्यक्रम छोड़कर वो छुट्टी पर चले गये तो हर कोई पूछने लगा था.

आम चुनाव के बाद निश्चित तौर पर बीजेपी को महाराष्ट्र और झारखंड में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, बनिस्बत हरियाणा के. दिल्ली में भी उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं आ सके, लेकिन बिहार चुनाव के बाद से तो भगवा झंडा बुलंद ही नजर आ रहा है - चिराग पासवान की पैंतरेबाजी का बीजेपी को ये फायदा तो हुआ ही कि नीतीश कुमार नाम के मुख्यमंत्री भर रह गये हैं.

विधानसभा चुनाव ही नहीं, निकाय और पंचायतों के चुनाव में देखें तो बीजेपी की हैदराबाद में मजबूत मौजूदगी, राजस्थान में सफलता और डीडीसी चुनाव में कश्मीर में खाता खुलना बड़ी बात है - साथ ही, केरल में भी बीजेपी ने मौजूदगी का एहसास कराते हुए भविष्य के लिए बड़ी उम्मीद कर सकती है.

कांग्रेस के हाथ से ज्योतिरादित्य सिंधिया और मध्य प्रदेश में सत्ता छीन लेने के बाद बीजेपी की नजर अब पश्चिम बंगाल चुनाव पर है. अब तक तो यही देखने को मिला है कि बीजेपी नेतृत्व लगातार ममता बनर्जी को नाको चने चबाने के लिए मजबूर किये हुए है - और तृणमूल कांग्रेस में भारी तोड़फोड़ मचा रखी है. मुकुल रॉय के बाद शुभेंदु को तोड़ लेना कोई आसान काम भी नहीं था.

कांग्रेस आम चुनाव हार जरूर गयी, लेकिन मोदी सरकार लगातार राहुल गांधी और सोनिया गांधी के साथ साथ प्रियंका गांधी के निशाने पर रही है. साथी कांग्रेस नेता भी सरकार के खिलाफ आक्रामक रवैया ही दिखाते रहे हैं - यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी चीन के मुद्दे पर तीखी टिप्पणी के साथ पेश आये थे.

लॉकडाउन के दौरान भी कांग्रेस नेतृत्व की तरफ से मोदी सरकार को पत्र लिख कर कई सुझाव दिये गये और फिर शिकायत की सरकार तो सुनती ही नहीं है किसी की. मनरेगा के कार्यदिवस बढ़ाने और NYAY योजना लागू करने को लेकर भी राहुल गांधी की तरफ से ने काफी दबाव बनाया गया.

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म करने को लेकर भी राहुल गांधी ने काफी शोर मचाया. जम्मू-कश्मीर के दौरे को लेकर भी राहुल गांधी और तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक के साथ भी काफी वाद विवाद हुए. सीएए विरोध में तो कांग्रेस आगे आगे ही नजर आयी - प्रियंका गांधी तो पीड़ितों के घर लगातार दौरे करती रहीं. सोनभद्र नरसंहार, उन्नाव गैंग रेप और हाथरस गैंग रेप - इन सारे मामलों में राहुल और प्रियंका फ्रंट पर लड़ते देखे गये. किसानों को लेकर ट्रैक्टर रैली से लेकर राष्ट्रपति को ज्ञापन देने तक - और प्रियंका गांधी वाड्रा के मार्च निकालने की कोशिश में गिरफ्तारी तक कांग्रेस ने अपनी तरफ से लोगों की सहानुभूति पाने को लेकर कोई कसर बाकी तो नहीं रखी, लेकिन सब के सब ढाक के तीन पात ही नजर आ रहे हैं.

करीब दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन का सरकार के साथ बातचीत के बावजूद अब तक कोई नतीजा नहीं निकल सका है, लिहाजा सर्वे में इस मसले पर भी लोगों की राय जानने की कोशिश की गयी. करीब 34 फीसदी लोगों की नजर में मोदी सरकार के बनाये तीनों कृषि कानूनों से किसानों का फायदा ही होने वाला है लेकिन 32 फीसदी लोग कह रहे हैं कि ये कानून सिर्फ कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाएंगे. सर्वे में 55 फीसदी लोगों ने सभी कानूनों में सुधार की सलाह दी है - और हां, 28 फीसदी लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि तीनों ही कानून वापस लिये जाने चाहिये - यही वो बिंदु है जहां राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले थोड़ी मजबूती के साथ खड़े पाये गये हैं.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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