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Updated: 19 जनवरी, 2021 01:46 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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14 साल बाद ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को आखिरकार नंदीग्राम (Nandigram) से ही फिर से उम्मीद जगी है. 2007 के नंदीग्राम संग्राम के बाद ममता बनर्जी राजकाज की दुनियादारी में फंस गयी थीं. अब फिर से ममता बनर्जी ने जड़ों का रुख किया है इसलिए निराश होने की जरूरत नहीं लगती.

ममता बनर्जी ने नंदीग्राम पहुंच कर वहीं से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. दरअसल, नंदीग्राम की एक बार फिर से शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) की वजह से अहमियत बढ़ गयी है. टीएमसी छोड़ कर बीजेपी में जा चुके शुभेंदु बनर्जी नंदीग्राम से ही पश्चिम बंगाल विधानसभा पहुंच कर तृणमूल कांग्रेस सरकार में मंत्री हुआ करते थे, लेकिन पाला बदलने से पहले ही वो इस्तीफा भी दे चुके हैं.

ममता बनर्जी की ही तरह बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने भी तृणमूल कांग्रेस नेता को चैलेंज किया है - अगर हराने में चूक गया तो राजनीति से संन्यास ले लूंगा. चुनावों से पहले अतिआत्मविश्वास में भी बुराई देखने का कोई मतलब नहीं होता, लेकिन शुभेंदु अधिकारी को भी ये नहीं भूलना चाहिये कि निश्चित रूप से नंदीग्राम उनका इलाका है, लेकिन वो भी ममता बनर्जी के नाम पर ही राजनीति करते आये हैं.

ऐसा लगता है ममता बनर्जी ने भी शुभेंदु अधिकारी को लेकर भस्मासुर जैसी धारणा बना ली है, वरना बीजेपी नेता अमित शाह के और पत्ते खोलने से पहले इतना बड़ा कदम उठाने की कतई जरूरत नहीं थी - ऐसा लगता है ममदा बनर्जी ने थोड़ी जल्दबाजी कर दी है!

बीजेपी के बिछाये जाल में फंसती जा रही हैं ममता बनर्जी

ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का नहीं, बल्कि 'करो या मरो' जैसे आखिरी संघर्ष का ऐलान कर दिया है. ममता बनर्जी को थोड़ा धैर्य बनाये रखना चाहिये था.

2019 के आम चुनाव की बात और थी. तब मोदी लहर हावी थी, पूरे देश में और बंगाल भी अछूता न रहा. ममता बनर्जी की राजनीति भी मोदी लहर में काफी झुलस गयी थी. आम चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह का आत्मविश्वास बढ़ा रहा है तो वही कारण ममता का भरोसा डिगा रहा है.

ममता को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लोक सभा से तब भी अलग करके देखना चाहिये जबकि हर तरफ से उनके लिए नुकसान की ही खबरें आ रही हैं. एक एक करके कई साथी पार्टी छोड़ते जा रहे हैं, लेकिन अगर ममता बनर्जी ने बंगाल के लोगों का भरोसा बनाये रखा तो जरूरी नहीं कि नतीजे आम चुनाव जैसे ही हों.

चुनाव में अभी काफी वक्त है - और होना तो ये चाहिये कि ममता बनर्जी ही पश्चिम बंगाल की राजनीति का एजेंडा सेट करें और बीजेपी उस पर रिएक्ट करे, लेकिन हो इसका उलटा रहा है. बीजेपी नेतृत्व किसी न किसी बहाने एजेंडा तय कर रहा है और ममता बनर्जी उस पर सहज तौर पर रिएक्ट करने की जगह बौखलाहट का प्रदर्शन शुरू कर दे रही हैं.

क्या ऐसा नहीं लगता कि ममता बनर्जी हड़बड़ी में बीजेपी के उकसावे में आने लगी हैं और एक शिकारी की तरह बीजेपी जैसे जैसे जाल बिछा रही है, फंसती जा रही हैं?

mamata banerjee, suvendu adhikari, amit shahये ठीक है ममता बनर्जी अपने राजनीतिक जीवन का जुआ खेल रही हैं, लेकिन शुभेंदु अधिकारी के साथ ही क्यों?

हाल ही में सौरव गांगुली को तबीयत अचानक खराब होने पर अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था. ममता बनर्जी ने पूरी तत्परता दिखाते हुए अस्पताल जाकर हाल चाल लिया और बड़े ही संयत तरीके से रिएक्ट किया. वैसे मौके पर वैसी ही संजीदगी दिखानी चाहिये थी. अभी न तो सौरव गांगुली ने और न ही बीजेपी की तरफ से किसी तरह का संकेत दिया गया है कि बीसीसीआई अध्यक्ष के लिए बंगाल में कोई नया रोल तैयार किया जा रहा है. राजनीतिक कयास लगाने के लिए ले देकर सौरव गांगुली की मुलाकात का वाकया भर सामने आया है.

लेकिन बाउल गायक के बाद नंदीग्राम को लेकर ममता बनर्जी का रिएक्शन करीब करीब एक जैसा ही रहा है. ममता बनर्जी और बीजेपी नेतृत्व दोनों एक दूसरे को चैलेंज कर चकमा देने की कोशिश कर रहा है. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अभिषेग बनर्जी के डायमंड हार्बर और ममता बनर्जी के भवानीपुर इलाके का रुख किया तो ममता बनर्जी बीजेपी के नये गढ़ के रूप में देखे जा रहे नंदीग्राम कर रुख किया. अमित शाह बाउल गायक बासुदेव दास के घर लंच किया तो उसी इलाके में पहुंच कर वो खाना पका कर खिलाने लगीं - और उसी बाउल गायक को स्टेज पर बुला कर अपनी तारीफ में गीत गवाने लगीं.

और अब ममता बनर्जी ने नंदीग्राम जाकर भवानीपुर के साथ साथ नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. ममता बनर्जी ने अपने तरीके से शुभेंदु अधिकारी के पार्टी छोड़ने को कम महत्व देते हुए नजर आने की कोशिश कर रही हैं. ममता बनर्जी समझाती हैं कि उनको फिक्र इसलिए भी नहीं हो रही है क्योंकि तृणमूल कांग्रेस की स्थापना के समय वे लोग नहीं थे. ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस की स्थापना 1998 में की थी - और ऐसा बोल कर वो शुभेंदु अधिकारी के न होने की चिंता से तृणमूल कार्यकर्ताओं को मुक्त कराने का प्रयास कर रही हैं.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नंदीग्राम की रैली में कहा, 'मैंने हमेशा से नंदीग्राम से विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान की शुरुआत की है. ये मेरे लिए भाग्यशाली स्थान है. इस बार मुझे लगा कि यहां से विधानसभा चुनाव लड़ना चाहिए. मैं प्रदेश पार्टी अध्यक्ष सुब्रत बख्शी से इस सीट से मेरा नाम मंजूर करने की गुजारिश करती हूं.'

आखिर ममता बनर्जी ने बीजेपी नेता अमित शाह से पहले ही हड़बड़ी में नंदीग्राम जैसा ब्रह्मास्त्र क्यों चल दिया?

शुभेंदु अधिकारी के भी पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे हैं

ममता बनर्जी अपनी जड़ों की ओर लौट रही हैं - नंदीग्राम से राजनीति चमकाने वाली ममता बनर्जी फिर से उसी इलाके के लोगों की शरण में पहुंच चुकी हैं - और शुभेंदु अधिकारी अपनी जड़ से कटने और राजनीतिक ट्रांसप्लांट के बाद किस्मत आजमा रहे हैं.

नंदीग्राम ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के राजनीति की मजबूत नींव रखी थी. ये सही है कि बीते बरसों में इलाके को शुभेंदु अधिकारी के नाम से जोड़ कर देखा जाने लगा है, लेकिन वो भी तो ममता बनर्जी के प्रतिनिधि बन कर ही काम करते रहे हैं.

बेशक शुभेंदु बनर्जी और मुकुल रॉय में बुनियादी फर्क है. शुभेंदु बनर्जी फील्ड के नेता हैं और मुकुल रॉय संगठन के. ये तो नहीं कहा जा सकता कि मुकुल रॉय, ममता बनर्जी को छोड़ने के बाद अब तक फेल रहे हैं तो शुभेंदु बनर्जी के साथ भी ऐसा ही होगा. मगर, ऐसा भी तो नहीं कि शुभेंदु बनर्जी बीजेपी के लिए भी उतने ही फायदेमंद होंगे जितने तृणमूल कांग्रेस के लिए साबित हुए.

अगर पश्चिम बंगाल की जनता का ममता बनर्जी से मोहभंग हो गया हो तो बात और है, वरना, ऐसे ढेरों उदाहरण हैं जिनसे मालूम होता है कि मातृ संस्था से अलग होकर बड़े ही कम लोग कामयाब हुए हैं.

ममता बनर्जी और शरद पवार जैसे नेता भी मिसाल हैं जो कामयाबी की मील का पत्थर साबित किये हैं, लेकिन कल्याण सिंह और उमा भारती जैसे उदाहरण भी हैं जो लोकप्रियता के शिखर पर होने के बावजूद मूल पार्टी छोड़ने के बाद कहीं के नहीं हुए - और आखिर में घर वापसी के बाद ही गुजारा हो पाया. टीएमसी छोड़ देने के बाद भी शुभेंदु अधिकारी की जबान से प्रशांत किशोर का नाम नहीं उतर रहा है. मालूम हुआ था कि प्रशांत किशोर के कामकाज के तौर तरीके और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी के बढ़ते हस्तक्षप के कारण ही शुभेंदु अधिकारी को टीएमसी से चिढ़ होनी शुरू हुई. ममता बनर्जी पर हमले के लिए शुभेंदु अधिकारी अब भी प्रशांत किशोर का नाम ले रहे हैं. कहते हैं, टीएमसी को अगर बिहार से चुनावी रणनीतिकार हायर करने की जरूरत पड़ रही है तो इससे साबित होता है कि बीजेपी बंगाल में लीड ले चुकी है.

सबसे बड़ी बात तो ये है कि ममता बनर्जी की ही तरह शुभेंदु अधिकारी ने भी करो या मरो जैसा ऐलान कर दिया है, 'ममता बनर्जी चुनाव के दौरान ही नंदीग्राम जाती हैं... क्या वह बता सकती हैं कि उन्होंने नंदीग्राम के लोगों के लिए क्या किया है? जो कोई भी उनके खिलाफ चुनाव लड़ेगा, वो पचास हजार वोटों से हार जाएगा - अगर मैं उन्हें हारने में नाकाम रहा, तो मैं राजनीति छोड़ दूंगा.'

बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए ममता बनर्जी कहती हैं, 'बीजेपी वाशिंग मशीन है... बीजेपी काले को सफेद करने का वॉशिंग पाउडर है - ऐसा बोल कर क्या ममता बनर्जी अपने पुराने साथी शुभेंदु अधिकारी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रही हैं? ये तो पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा हुआ क्योंकि शुभेंदु अधिकारी ने ऐसा कुछ किया है तो नेतृत्व तो ममता बनर्जी ही कर रही थीं!

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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