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Updated: 25 नवम्बर, 2021 07:26 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) अभी बीजेपी नहीं, कांग्रेस के लिए ही चिंता का सबब हैं. कांग्रेस नेतृत्व भी जितना चिंतित नजर आ रहा है, वैसी कोई बात भी नहीं लगती. गांधी परिवार की मुश्किल ये है कि ममता बनर्जी को काट कर बड़ी लकीर बनने की कोशिश कर रहा है - और ये रणनीति बहुत घातक हो सकती है.

पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी दूसरी बार दिल्ली के दौरे पर हैं - और इस बार भी सबसे ज्यादा हलचल कांग्रेस खेमे में ही महसूस की जा रही है. जैसे ममता बनर्जी के पिछले दौरे में राहुल गांधी एक्टिव देखे गये, इस बार सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के सक्रिय होने की खबर आ रही है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि ममता बनर्जी 10, जनपथ जाने से परहेज कर सकती हैं, लेकिन ऐसी कोई वजह समझ में नहीं आती. दिल्ली से ममता बनर्जी के लौट जाने के बाद सोनिया गांधी ने विपक्षी नेताओं की मीटिंग बुलायी तब भी ऐसा समझा गया था. ममता बनर्जी उस बैठक में न सिर्फ शामिल हुईं बल्कि जो मुद्दे महत्वपूर्ण समझ में आये उसे उठाया भी - सबसे ज्यादा ऐतराज तो ममता बनर्जी का मीटिंग से अरविंद केजरीवाल को दूर रखने को लेकर रहा. अब अगर ममता बनर्जी विपक्ष की बैठकों से अरविंद केजरीवाल को अलग नहीं होने देना चाहतीं तो भला कांग्रेस को दरकिनार करना क्यों चाहेंगी?

2014 में कांग्रेस को शिकस्त देकर नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के प्रधानमंत्री बनने के बाद अक्सर कहा जाता रहा कि राहुल गांधी 2019 नहीं बल्कि 2024 के आम चुनाव की तैयारी करते लगते हैं. अब जो हाल है ये कहना भी मुश्किल लग रहा है कि गांधी परिवार अब भी पेशेवर राजनीति में दिलचस्पी ले रहा है या फिर शौकिया तौर पर. प्रियंका गांधी वाड्रा की यूपी में फील्ड पॉलिटिक्स कांग्रेस में अपवाद जैसी ही लगती है, जबकि कांग्रेस को लेकर संभावनाएं सीमित ही लगती हैं.

असल बात तो ये है कि ममता बनर्जी अभी सिर्फ माहौल बनाने की कोशिश कर रही हैं क्योंकि 2024 के आम चुनाव के हिसाब से तृणमूल कांग्रेस नेता की सारी कवायद ऊंट के मुंह में जीरा जितनी ही लगती है - हां, अगर ये तैयारी 2029 को ध्यान में रख कर की जा रही है तो ममता बनर्जी हर किसी के लिए बहुत बड़ा चैलेंज हो सकती है.

गांधी परिवार को कितनी फिक्र नहीं होनी चाहिये

लाख कोशिश कर लें, लेकिन ममता बनर्जी अभी तो ऐसी स्थिति में नहीं हीं हैं कि अगले तीन साल में दिल्ली की गद्दी पर कोई मजबूत दावा ठोक सकें. बेशक ममता बनर्जी एक नये पॉलिटिकल ब्रांड के रूप में तेजी से उभर रही हैं और यही कारण है कि अलग अलग राजनीतिक दलों के नेता उनकी तरफ आकर्षित हो रहे हैं - लेकिन ऐसे नेता कौन हैं?

पश्चिम बंगाल की जीत और वो भी मोदी-शाह के हर राजनीतिक हथकंडे अपनाने के बावजूद ऐसा संभव होने के बाद ममता बनर्जी की हैसियत बेशक बढ़ गयी है, लेकिन बंगाल जैसा कमाल वो बाहर भी दिखा पाएंगी - बहुत कम लोगों को ही अभी ऐसा लगता होगा.

लेकिन ममता बनर्जी के दिल्ली में कदम रखते ही जिस तरह से सोनिया गांधी के मीटिंग बुलाने की खबर आयी है, उनकी चिंता की झलक मिलती है. सोनिया गांधी ने कांग्रेस के दो सीनियर नेताओं एके एंटनी और आनंद शर्मा से मुलाकात की है और माना जा रहा है कि बाकी चीजों के अलावा जोर तो ममता बनर्जी पर भी होगा ही. ये मुलाकात कांग्रेस नेता कमलनाथ से हुई मुलाकात के ठीक एक दिन बाद हुई है.

mamata banerjee, sonia gandhiराहुल गांधी के लिए ममता बनर्जी अभी से ज्यादा बाद में खतरनाक हो सकती हैं!

ममता बनर्जी के ताजा दौरे में कांग्रेस के दो नेताओं के तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन करने की खबर महत्वपूर्ण है. महत्वपूर्ण बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी से मुलाकात भी है और जिनके कतार में होने की चर्चा है वो भी, लेकिन क्या इतने भर से गांधी परिवार को अधीर हो जाने की जरूरत है.

1. कांग्रेस छोड़ना और टीएमसी ज्वाइन करना दो बातें हैं: अगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ये लगता है कि ममता बनर्जी कांग्रेस नेताओं का ही शिकार कर रही हैं, तो सबसे पहले ये सोचना चाहिये कि नेता पार्टी छोड़ क्यों रहे हैं?

अगर सुष्मिता देव और अशोक तंवर के तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन करने की तुलना करें तो बड़ा फर्क देखने को मिलता है. सुष्मिता देव ने जब कांग्रेस छोड़ी तब वो महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रहीं, लेकिन अशोक तंवर को तो दो साल पहले ही सोनिया गांधी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था.

2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले जब सोनिया गांधी ने अशोक तंवर को हटाकर कुमारी शैलजा को पीसीसी अध्यक्ष बनाया और चुनाव की जिम्मेदारी भूपेंद्र सिंह हुड्डा को सौंपी तो वो बौखला गये. टिकट बंटवारे में रिश्वतखोरी का इल्जाम लगाते हुए कांग्रेस दफ्तर पर प्रदर्शन करने लगे.

अशोक तंवर नहीं, सुष्मिता देव ने कांग्रेस क्यों छोड़ी कांग्रेस नेतृत्व के लिए ये चिंता का विषय होना चाहिये - लेकिन अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया या जितिन प्रसाद के जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता तो बाकियों की तो बात भी उतना मायने नहीं रखती. बीजेपी से आये कीर्ति आजाद का भी कांग्रेस छोड़ कर ममता बनर्जी के साथ जाना यही बता रहा है.

2. दिल्ली में अभी कांग्रेस टीएमसी से बड़ा प्लेयर है: राष्ट्रीय स्तर पर अपने बूते खड़े होने के लिए ममता बनर्जी को अभी मीलों चलना है और बीजेपी के लिए वो मेन चैलेंजर तभी बन पाएंगी जब अगले चुनाव में पश्चिम बंगाल की सभी संसदीय सीटों के अलावा दूसरे राज्यों से भी कुछ सांसद जुटा पायें.

ममता बनर्जी को दिल्ली में देखते ही भले सोनिया गांधी सीनियर नेताओं से विचार विमर्श करने लगें, राहुल गांधी भले ही विपक्षी नेताओं की बैठकें बुलाने लगें - लेकिन बंगाल से बाहर अभी ममता बनर्जी की स्वीकार्यता नहीं बन सकी है.

अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के मकसद से ही ममता बनर्जी अलग अलग राज्यों में तृणमूल कांग्रेस का विस्तार कर रही हैं. ममता बनर्जी पहले राज्यों में स्थानीय चेहरों को मौका दे रही हैं - और ये कांग्रेस के लिए ज्यादा खतरनाक हो सकता है.

3. कांग्रेस को ममता से राज्यों में ज्यादा खतरा: कांग्रेस नेतृत्व को ममता बनर्जी के दिल्ली दौरे से नहीं, बल्कि राज्यों के दौरे से चिंता होनी चाहिये. जैसी चिंता राहुल गांधी ने ममता बनर्जी की हाल की गोवा यात्रा के दौरान दिखायी थी. ममता बनर्जी के दौरे के आखिरी दिन राहुल गांधी भी गोवा पहुंच गये थे और लोगों से मिल कर बताया कि कांग्रेस अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर क्या सोच रही है.

ममता बनर्जी की विस्तार योजना

बंगाल से बाहर तृणमूल कांग्रेस के विस्तार के लिए ममता बनर्जी ने कम से कम तीन कमांडर मोर्चे पर लगा रखे हैं. ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी इनमें सबसे ज्यादा एक्टिव नजर आते हैं, लेकिन ऐसा इसलिए क्योंकि फ्रंट पर वो सबके सामने हैं.

अभिषेक बनर्जी के साथ साथ ममता बनर्जी को दिल्ली पहुंचाने के मिशन में बीजेपी से लौटे उनके पुराने साथी मुकुल रॉय और 2026 तक तृणमूल कांग्रेस के चुनावी सलाहकार प्रशांत किशोर लगे हुए हैं. मुकुल रॉय तो परदे के पीछे ही काम कर रहे हैं, लेकिन अभिषेक बनर्जी के साथ साथ प्रशांत किशोर भी रह रह कर थोड़ी बहुत हलचल पैदा करने की कोशिश करते हैं - जैसे गोवा में ममता बनर्जी के पहुंचने से पहले ही प्रशांत किशोर का एक वीडियो मार्केट में आकर सुर्खियां बन गया था.

जेडीयू में रहे पूर्व नौकरशाह पवन वर्मा ने ममता बनर्जी से मुलाकात के बाद तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर लिया है - और बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यन स्वामी की मुलाकात के बाद भी ऐसे ही कयास लगाये जा रहे हैं.

पवन वर्मा को नीतीश कुमार ने जेडीयू से प्रशांत किशोर के साथ ही निकाल दिया था और बीजेपी कार्यकारिणी से सुब्रह्मण्यन स्वामी को वरुण गांधी के साथ ही हटा दिया गया था - और खबरें आ रही हैं कि वरुण गांधी पर भी ममता बनर्जी की नजर टिकी हुई है.

जैसे ममता बनर्जी ने असम के लिए सुष्मिता देव को तैनात किया है, गोवा में ये जिम्मेदारी लुईजिन्हो फलेरियो को दी गयी है. अब वैसे ही यूपी, झारखंड और बिहार को लेकर भी चर्चा चल रही है - और माना जा रहा है कि जल्दी ही ऐसे कई और नेताओं के ममता बनर्जी की पार्टी ज्वाइन करने की खबर आ सकती है.

सुब्रह्मण्यन स्वामी को तो बीजेपी ने राज्य सभा भी भेजा था, लेकिन वो भी मोदी सरकार को लेकर बाकी बगावती नेताओं की तरह ही आक्रामक रुख अपनाये देखे जाते रहे. ऐसे नेताओं में से एक यशवंत सिन्हा तो पहले ही तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर चुके हैं और ममता बनर्जी ने उनको पार्टी का उपाध्यक्ष बना दिया है.

अब ऐसी ही चर्चा यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा हो लेकर भी चल रही है. 2014 के मोदी कैबिनेट में जयंत सिन्हा वित्त राज्य मंत्री रहे, लेकिन एक बार बाहर कर दिया गया तो मॉब लिंचिंग के आरोपी गोरक्षकों के जेल से छूटने पर घर बुलाकर सम्मानित करने का भी कोई फायदा नहीं मिल सका. वो लगातार हाशिये पर ही बने हुए हैं और उनको मुख्यधारा में लाने का बीजेपी नेतृत्व की तरफ से कोई संकेत भी नहीं मिल रहा है.

ऐसा में समझा जाता है कि लुईजिन्हो फैलेरियो और सुष्मिता देव की तरह झारखंड में जयंत सिन्हा को भी तृणमूल कांग्रेस को खड़ा करने की जिम्मेदारी मिल सकती है - देखा जाये तो जयंत सिन्हा की भी बीजेपी में वरुण गांधी जैसी ही हालत बना दी गयी है.

यूपी को लेकर ममता बनर्जी की नजर वरुण गांधी पर भी है, ऐसी चर्चा काफी जोर पकड़ चुकी है. हाल ही में ममता बनर्जी ने बनारस के कमलापति त्रिपाठी के परिवार के ललितेशपति त्रिपाठी को पार्टी में लिया है - लेकिन वरुण गांधी बड़े नेता हैं.

वरुण गांधी अब तक ऐसी बातों का जोरदार खंडन ही करते रहे हैं, लेकिन जिस तरीके से किसान आंदोलन को लेकर वरुण गांधी बीजेपी नेतृत्व पर हमलावर रहे हैं, ममता बनर्जी के लिए ज्यादा मुश्किल भी नहीं लगती. पहले तो यही माना जाता रहा कि वरुण गांधी परिवार के साथ जा सकते हैं और यूपी में कांग्रेस का चेहरा बन सकते हैं. 2019 के आम चुनाव से पहले प्रियंका गांधी के कांग्रेस महासचिव बनने के बाद ये चर्चा काफी रही.

जिस तरीके से वरुण गांधी ने अभी अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ एक्शन लेने की खुलेआम मांग की है, उसके बाद तो उनके बीजेपी में ज्यादा दिन तक बने रहने की कम ही संभावना लगती है.

कुछ मीडिया रिपोर्ट में प्रशांत किशोर को बिहार में तृणमूल कांग्रेस की जिम्मेदारी देने को लेकर भी खबर है. पश्चिम बंगाल चुनावों के बाद प्रशांत किशोर ने चुनाव कैंपेन का अपना मौजूदा छोड़ने के लिए भी कहा था. अभी प्रशांत किशोर के लिए कांग्रेस का दरवाजा बंद हो गया हो, ऐसा भी नहीं लगता - लेकिन बिहार में प्रशांत किशोर की दिलचस्पी को देखते हुए ये सब असंभव भी नहीं लगता.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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