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Updated: 20 अक्टूबर, 2021 06:36 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने बड़े ही निराशा भरे माहौल में दिल्ली दौरा खत्म किया था और दो महीने बाद राजधानी का रुख करने की बात कही थी, लेकिन अब थोड़ा चेंज समझ आ रहा है - ममता बनर्जी पहले यूपी का दौरा (Mission 2024 via UP) करने वाली हैं. राजनीतिक के माहिर भी अब एक टोटका मानने लगे हैं कि दिल्ली का सफर तभी सुरक्षित होता है जब रास्ता उत्तर प्रदेश होकर गुजरता हो - और ममता बनर्जी से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसे साबित कर चुके हैं.

कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम तो यूपी से भी ज्यादा गोवा को तरजीह दे रहे हैं. कह रहे हैं 2022 में जो गोवा जीतेगा, वही 2024 में दिल्ली भी जीतेगा. चिदंबरम को कांग्रेस नेतृत्व ने गोवा का चुनाव प्रभारी बनाया है.

पश्चिम बंगाल चुनाव में हार के बाद बीजेपी यूपी को लेकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती - क्योंकि कुछ ऐसा वैसा हुआ तो सीधे असर 2024 के नतीजों पर पड़ सकता है. ममता बनर्जी की मंशा भी साफ हो चुकी है और वो बीजेपी की राह में हर संभव खलल डालने की कोशिश करती लगती हैं.

घोषित तौर पर ममता बनर्जी केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई लड़ रही हैं, लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर तो यही समझ आ रहा है कि तृणमूल कांग्रेस की वजह से ज्यादा नुकसान कांग्रेस (BJP-Congress on Target) को ही हो रहा है - गोवा से यूपी तक एक ही कहानी दोहरायी जा रही है. एक ही तरीका अपनाया जा रहा है. जो असम और गोवा में हुआ वैसी ही आशंका यूपी में भी जतायी जा रही है.

पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान एक पैर से बंगाल और दो पैरों से दिल्ली जीतने का दावा करने वाली ममता बनर्जी ने भवानीपुर की जीत के साथ ही अपना प्लान थोड़ा चेंज किया है - और दिल्ली से पहले लखनऊ का रुख कर लेने की खबर आ रही है. कयास लगाये जा रहे हैं कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 20 अक्टूबर के बाद यूपी का दौरा कर सकती हैं.

ममता बनर्जी के यूपी दौरे का असर बीजेपी पर भले न पड़े, लेकिन कांग्रेस को भारी पड़ने वाला है. जिस बनारस में अभी अभी रैली कर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने बीजेपी के साथ साथ योगी और मोदी सरकार के खिलाफ जंग का ऐलान किया है, उसी शहर के अपने जमाने के दिग्गज कांग्रेसी कमलापति त्रिपाठी परिवार के ललितेशपति त्रिपाठी के तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन करने की संभावना जतायी जा रही है. जितिन प्रसाद के बाद प्रियंका गांधी की यूपी टीम को ललितेशपति त्रिपाठी ने हाल ही में तगड़ा झटका दिया है.

प्रियंका गांधी वाड्रा यूपी में चुनावी गठबंधन की काफी पहले से वकालत कर रही हैं. मायावती की पार्टी बीएसपी से तो कांग्रेस का छत्तीस का ही आंकड़ा चल रहा है, ऐसे में प्रियंका गांधी की नजर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी पर ही होगी, लेकिन ममता बनर्जी ने वहां भी पहले ही पेंच फंसा दिया है - चर्चा है कि ममता बनर्जी कुछ सीटों पर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ सकती हैं.

2019 के आम चुनाव के वक्त से ही ममता बनर्जी राज्यों में मजबूत राजनीतिक दलों के नेतृत्व में बीजेपी के खिलाफ गठबंधन की पक्षधर रही हैं. यूपी में कांग्रेस गठबंधन तो चाहती है, लेकिन घोषित तौर पर बिहार की तरह नेतृत्व के पक्ष में नहीं लगती, लिहाजा ममता बनर्जी का प्रस्ताव अपनेआप खारिज हो जाता है. बिहार में कांग्रेस ने चुनाव के पहले ही महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किये जाने को मंजूरी दे दी थी और चुनावों में भी वैसा ही नजारा दिखा.

ऐसा लगता है जो काम ममता बनर्जी चाहती थीं कि कांग्रेस की तरफ से हो, अब उसी रणनीति के तहत तृणमूल कांग्रेस को फिट करने की कोशिश करने जा रही हैं.

ममता बनर्जी का यूपी प्लान

भवानीपुर उपचुनाव के दौरान ममता बनर्जी ने रोम जाने के लिए परमिशन न मिलने पर जिस तरह रिएक्ट किया था, उसमें KBC के एक सीजन में अमिताभ बच्चन के एक स्लोगन की ध्वनि सुनायी गूंज रही थी - "कब तक रोकोगे?"

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ममता बनर्जी को इटली की सरकार की तरफ से रोम में आयोजित एक कार्यक्रम के लिए आधिकारिक तौर पर आमंत्रित किया गया था. ये कार्यक्रम वैटिकन सिटी में 6-7 अक्टूबर, 2021 को होना था. विदेश मंत्रालय ने ये कहते हुए ममता बनर्जी के वैटिकन दौरे को मंजूरी नहीं दी कि वो कार्यक्रम किसी राज्य के मुख्यमंत्री के शामिल होने के लेवल का नहीं है.

laliteshpati tripathi, mamata banerjee, akhilesh yadavममता बनर्जी के निशाने पर बीजेपी है और निगाह कांग्रेस पर!

जब ममता बनर्जी को केंद्र सरकार से अनुमति नहीं मिली तो बोलीं, 'आप मुझे कितनी जगहों पर जाने नहीं देंगे... आप हमेशा के लिए मुझे नहीं रोक सकते.'

सामने से तो ये बात ममता बनर्जी ने बीजेपी और मोदी सरकार के लिए कही थी, लेकिन ऐसा लगता है जैसे मन में ऐसी ही भावना कांग्रेस नेतृत्व के लिए भी रही होगी. दिल्ली के पांच दिन के दौरे के वक्त अचानक से राहुल गांधी का एक्टिव हो जाना और एनसीपी नेता शरद पवार से मुलाकात न होने का मलाल तो निश्चित तौर पर ममता बनर्जी के मन में होगा ही क्योंकि पवार को लालू यादव से उनके यहां जाकर मिलने में कोई दिक्कत नहीं थी और खास मकसद से पहुंची ममता से मुलाकात के लिए वक्त नहीं मिला. जाहिर है ममता बनर्जी का शक तो सीधे सोनिया गांधी पर ही गया होगा.

भवानीपुर के मैदान से जो बात तृणमूल कांग्रेस नेता ने कही, लगता है ममता बनर्जी ने मोदी सरकार को कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार जैसे व्यवहार की याद दिलाने की कोशिश की है - जब मुख्यमंत्री रहते नरेंद्र मोदी के अमेरिका जाने की राह में केंद्र सरकार की तरफ से रोड़े अटकाये जाते रहे - और 2005 से लेकर मोदी को अमेरिका का वीजा नहीं मिला. जैसे ही बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया - अमेरिका की तरफ से डोरे डालने शुरू हो गये थे. 13 फरवरी 2014 को तो तत्कालीन अमेरिकी राजदूत नैंसी पॉवेल ने गांधीनगर पहुंच कर नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी.

त्रिपुरा, असम और गोवा में सत्ताधारी बीजेपी के खिलाफ जमीनी तैयारी दुरूस्त करने के बाद ममता बनर्जी अब राजनीतिक तौर पर देश के सबसे अहम सूबे उत्तर प्रदेश में बीजेपी को चैलेंज करने की तैयारी कर चुकी हैं - और ये कांग्रेस के लिए ऑटो-चैलेंज साबित हो रहा है.

असम और गोवा में कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं को झटकने के बाद ममता बनर्जी यूपी में जितिन प्रसाद के बाद बड़े ब्राह्मण चेहरे ललितेशपति त्रिपाठी को अपने पाले में करने की तैयारी में हैं - और अगर ऐसा होता है तो बीते सौ साल में ये पहला मौका होगा जब त्रिपाठी परिवार का कोई सदस्य कांग्रेस से हट कर राजनीति करेगा.

लखनऊ शहर में ललितेशपति त्रिपाठी के तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन करने की जोर शोर से चर्चा है. ये भी चर्चा है कि यूपी में पांव जमाने के लिए ममता बनर्जी ललितेशपति के पिता राजेशपति त्रिपाठी को तृणमूल कांग्रेस कोटे से राज्य सभा भी भेज सकती हैं - और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन तो करीब करीब पक्का ही माना जा रहा है. लगता है ममता बनर्जी भी मायावती की तरह मुलायम सिंह यादव के व्यवहार को किनारे रख कर नयी पीढ़ी के साथ नये सिरे से दोस्ती के लिए तैयार हैं. आम चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन चुनाव मैदान में उतरा था, लेकिन नतीजे आने के कुछ दिन बाद ही मायावती ने हाथ पीछे खींचते हुए गठबंधन तोड़ने की घोषणा कर दी थी.

निशाने पर बीजेपी लेकिन चोट कांग्रेस पर

16 अगस्त को राहुल गांधी की करीबी और भरोसेमंद सदस्यों में से एक सुष्मिता देव ने तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर लिया था. सुष्मिता देव तब महिला कांग्रेस की अध्यक्ष हुआ करती थीं. करीब दो हफ्ते बाद 29 सितंबर को गोवा के मुख्यमंत्री रहे लुईजिन्हो फलेरियो ने भी कांग्रेस छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया - और ये दोनों ही अपने अपने राज्यों में ममता बनर्जी को मजबूत करने में जुट चुके हैं.

जैसी की खबर आ रही है, 20 अक्टूबर के बाद कभी भी, जब भी ममता बनर्जी उत्तर प्रदेश के दौरे पर होंगी, पहले ही कांग्रेस छोड़ चुके ललितेशपति त्रिपाठी भी तृणमूल कांग्रेस का झंडा थाम लेंगे - और कोशिश करेंगे कि यूपी के लोग भी ममता बनर्जी की राजनीति के बारे में जानें, सोचें-समझें और अगले आम चुनाव में विकल्प के तौर पर गंभीरतापूर्वक विचार भी करें.

माना जा रहा है कि ललितेशपति त्रिपाठी को यूपी में टीएमसी की कमान सौंपी जा सकती है. फिलहाल उत्तर प्रदेश में ये जिम्मेदारी नीरज राय निभा रहे हैं. नीरज राय के मुताबिक, यूपी के 35 से ज्यादा जिलों में संगठन तैयार हो चुका है. टीएमसी की तरफ से स्थानीय स्तर पर मुद्दों को उठाया जा रहा है और ममता बनर्जी सरकार की योजनाओं का भी प्रचार प्रसार किया जा रहा है.

मीडिया से बातचीत में नीरज राय, ललितेशपति त्रिपाठी के टीएमसी ज्वाइन करने की पुष्टि तो नहीं करते, लेकिन ये जरूर स्वीकार करते हैं कि कई सारे नेता तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन करना चाहते हैं, लेकिन आखिरी फैसला पार्टी की केंद्रीय कमेटी ही करेगी. कुछ मीडिया रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से खबर दी गयी है कि समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के बीच चुनावी गठबंधन को लेकर दो दौर की बातचीत भी हो चुकी है - और दोनों ही मिल कर चुनाव मैदान में उतरने को करीब करीब तैयार भी हो चुके हैं.

गोवा में तृणमूल कांग्रेस के हाथों बड़ा झटका खाने के बाद, पणजी पहुंचे कांग्रेस के चुनाव प्रभारी पी. चिदंबरम ने अपने तरीके से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरने की भरपूर कोशिश की - कांग्रेस नेता ने सिलसिलेवार उदाहरण देकर समझाया कि कैसे गोवा के बाद कांग्रेस 2024 में दिल्ली भी जीत सकती है.

कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ एक मीटिंग में पी. चिदंबरम ने कहा, 'मैं इतिहास के झरोखे से आपसे एक बात कहना चाहता हूं कि जो भी गोवा जीतता है, दिल्‍ली में भी जीत हासिल कर लेता है... 2007 में हमने गोवा में जीत हासिल की और 2009 में हम दिल्‍ली जीत गये... दुर्भाग्‍य से 2012 में हम गोवा हार गये और 2014 में दिल्‍ली में भी हार हुई... 2017 में आपने गोवा जीता लेकिन हमारे विधायकों ने इसे गंवा दिया - और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार हो गयी.

कहीं चिदंबरम यूपी की जगह गोवा की ज्यादा अहमियत समझा कर ममता बनर्जी को गुमराह करने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं, सच तो ये है कि गोवा में 2017 में सबसे ज्यादा 17 सीटें जीतने वाली कांग्रेस महज चार विधायकों के साथ विपक्ष की भूमिका निभा रही है - और ममता बनर्जी वही जगह कब्जा करने की तैयारी में हैं.

बनारस रैली के मंच से प्रियंका गांधी वाड्रा को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का चेहरा बता चुके हैं - और ममता बनर्जी ने भी खलल डालने का मन बना लिया है, ताकि सीधे चोट सोनिया गांधी तक पहुंचे.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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